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नासिक - त्र्यंबकेश्वर में पहले शाही स्नान का महत्व


नासिक - त्र्यंबकेश्वर में पहले शाही स्नान का महत्व




नासिक त्र्यंबकेश्वर में 29 अगस्त 2015 को होने वाले पहले शाही स्नान में वैष्णव सम्प्रदाय के दिगम्बर, निर्मोही और निर्वाणी अखाड़ों के हजारों महंत और साधु नासिक में पहला पवित्र स्नान करेंगे, जबकि शैव सम्प्रदाय के 10 अखाड़ों के महंत और साधु यहां से 30 किलोमीटर दूर त्र्यंबकेश्वर में पवित्र स्नान करेंगे। नासिक में शाही जूलुस के मार्ग, महंतों और साधु की ओर से शाही स्नान के समय और विभिन्न अखाड़ों के जुलूस तपोवन के लक्ष्मीनारायण मंदिर से सुबह 6 बजे शुरू होगा।





कुंभ पर्व के आयोजन को लेकर दो-तीन पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ से अमृत बूँदें गिरने को लेकर है। इस कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। तब सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हे सारा वृतान्त सुनाया। तब भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता दैत्यों के साथ संधि करके अमृत निकालने के यत्न में लग गए।




अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इंद्रपुत्र श्जयंतश् अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा। तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा। इस परस्पर मारकाट के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं। उस समय चंद्रमा ने घट से प्रस्रवण होने से, सूर्य ने घट फूटने से, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से एवं शनि ने देवेन्द्र के भय से घट की रक्षा की। कलह शांत करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार सबको अमृत बाँटकर पिला दिया। इस प्रकार देव-दानव युद्ध का अंत किया गया। 





अमृत प्राप्ति के लिए देव-दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरंतर युद्ध हुआ था। देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के तुल्य होते हैं। अतएव कुंभ भी बारह होते हैं। उनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और शेष आठ कुंभ देवलोक में होते हैं, जिन्हें देवगण ही प्राप्त कर सकते हैं, मनुष्यों की वहाँ पहुँच नहीं है। जिस समय में चंद्रादिकों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, उस समय कुंभ का योग होता है अर्थात जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है, उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहाँ-जहाँ अमृत बूँद गिरी थी, वहाँ-वहाँ कुंभ पर्व होता है। पहले स्नान से पहले पूरे कुंभ क्षेत्र को आकर्षक विद्युत रोशनी से सजाया गया है।




स्नान घाट, सड़कों और मंदिरों को फ्लोरोसेंट लाइट्स से सजाया गया है। नासिक में शाही स्नान 29 अगस्त, 13 सितंबर और 18 सितंबर को होगा वहीं त्र्यंबकेश्वर में शाही स्नान की तिथि 29 अगस्त, 13 और 25 सितंबर है। नासिक में वैसे तो कुंभ मेले की शुरुआत 14 जुलाई से हो चुकी है। लेकिन 29 अगस्त को नासिक और त्र्यंबकेश्वर दोनों जगहों पर पहला शाही स्नान है। गौरतलब है कि अगस्त और सितंबर में पांच विशेष स्नान और शाही स्नान रहेंगे।






इसमें 80 लाख से ज्यादा लोगों के शामिल होने का अनुमान है। उज्जैन और नासिक में लगने वाले कुंभ को सिंहस्थ कुंभ भी कहते हैं। सूर्य ने कुंभ को टूटने से बचाया था। बृहस्पति ने उसे दानवों के हाथ में जाने से बचाया था और चंद्रमा ने अमृत को छलकने से बचाया था। और इन्हीं चार स्थानों पर विशेष तिथियों और गृह स्थितियों में कुंभ पर्व का बार-बार आना होता है।





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