.राशियों
के अनुसार करे
ज्योर्तिलिंग शिव पूजा
2. वृषभ्
राशि - मल्लिकार्जुन ज्योर्तिलिंग शिव पूजा
वृषभ्
राशि के व्यक्तियों
को मल्लिकार्जुन का
ध्यान करते हुए
ओम नमः शिवायः
मंत्र का जप
करें और कच्चे
दूध, दही, श्वेत
पुष्प (चमेली के फूल)
चढ़ाएं. ।
दूध
से अभिषेक - शिव
को प्रसन्न कर
उनका आशीर्वाद पाने
के लिए दूध
से अभिषेक करें, भगवान
शिव के प्रकाशमय
स्वरूप का मानसिक
ध्यान करें, - ताम्बे
के पात्र में
दूध भर कर
पात्र को चारों
और से कुमकुम
का तिलक करें, ॐ
श्री कामधेनवे नमः
का जाप करते
हुए पात्र पर
मौली बाधें, पंचाक्षरी
मंत्र ॐ नमरू
शिवायः का जाप
करते हुए फूलों
की कुछ पंखुडियां
अर्पित करें, शिवलिंग
पर दूध की
पतली धार बनाते
हुए-रुद्राभिषेक करें., अभिषेक
करते हुए ॐ
सकल लोकैक गुरुर्वै
नमरू मंत्र का
जाप करें, शिवलिंग को साफ
जल से धो
कर वस्त्र से
अच्छी तरह से
पौंछ कर साफ
करें
वृषभ
राशि ((इ उ
ए ओ व वि वु
वे वो ) - वृषभ
का राशि का
स्वामी ग्रह शुक्र
है। वृष राशि राशि
चक्र की यह
दूसरी राशि है
इस राशि का
चिह्न बैल है।
बैल स्वभाव से
ही अधिक परिश्रमी
और बहुत अधिक
वीर्यवान होता है।
साधारणत वह शांत
रहता है, किन्तु
क्रोध आने पर
वह उग्र रूप
धारण कर लेता
है। यह स्वभाव
वृष राशि के
जातक मे भी
पाया जाता है।
वृष राशि का
स्वामी शुक्र और शुक्र
का स्वभाव भौतिक
सुखों के लिये
माना जाता है।
शुक्र की यह
राशि सकारात्मक राशि
है जो भी
यह राशि देती
है वह सकारात्मक
ही होता है
चाहे वह रूप
में हो धन
के अन्दर हो
या किसी जानकार
व्यक्ति के मामले
में जाना जाता
हो। वृष राशि तीन
देष्काणों में उनके
स्वामी शुक्र-शुक्र, शुक्र-बुध’ और
शुक्र-शनि हैं।
वृष राशि का
स्वामी शुक्र है । चंद्रमा
इस राशि में
उच्च का होता
है तथा मतानुसार
केतु भी उच्च
का माना जाता
है किन्तु राहु
नीच का होता
है ,
वृष
राशि स्थिर स्वभाव
की है तथा
दक्षिण दिशा का
प्रतिनिधित्व करती है
, वर्ण
विभाजन में इस
राशि को वैश्य
तथा पृथ्वी तत्व
की क्षेणी में
रखा गया है
, वृष
राशि का बाह्य
में मुख व
भीतरी अंगों में
कण्ठ, टांन्सिल्स का
प्रतिनिधित्व करती है, वृष
राशि , स्त्री राशि है,
यह सौम्य, पृष्ठोदय,
तमोगुण वाली राशि
है ,
.मल्लिकार्जुन
ज्योतिर्लिंग - श्री मल्लिकार्जुन
ज्योर्तिंलिंग ऐसा तीर्थ
है, जहां शिव
और शक्ति की
आराधना से देव
और दानव दोनों
को सुफल प्राप्त
हुए। पुराणों में
इस दिव्य ज्योर्तिलिंग
के प्रागट्य की
कथा है। धर्मग्रन्थों
में यह महिमा
बताई गई है
कि श्री शैल
शिखर के दर्शन
मात्र से मनुष्य
सब कष्ट दूर
हो जाते हैं
और अपार सुख
प्राप्त कर जन्म-मरण के
चक्र से मुक्ति
मिलती है अर्थात्
मोक्ष प्राप्त होता
है। भगवान शिव
का यह पवित्र
मंदिर नल्लामलाई की
आकर्षक पहाड़ी की चोटी
पर स्थित है।
श्री सेलम (श्रीशैल)
का यह क्षेत्र
बहुत धार्मिक और
पौराणिक महत्व रखता है।
यहां पर भगवान
शिव के बारहवें
ज्योर्तिंलिंग के साथ
ही महाशक्तियों में
एक भ्रमराम्बा देवी
भी विराजित है।
शिव और शक्ति
के दोनों रुप
स्वयंभू माने जाते
हैं। इस पहाड़ी
को श्री पर्वत,
मलया गिरि और
क्रौंच पर्वत भी कहते
हैं।
रावण का
वध करने के
बाद राम और
सीता ने भी
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन
किए थे। द्वापर
युग में युधिष्ठिर,
अर्जुन, भीम, नकुल
और सहदेव ने
इनकी पूजा.अर्चना
की थी। राक्षसों
का राजा हिरण्यकश्यप
भी इनकी पूजा
करता था। कालांतर
में सातवाहन, वाकाटक,
काकातिय और विजयनगर
के राजा श्रीकृष्णदेव
राय आदि राजाओं
ने मंदिर पुनर्निमाण
कर इसका वैभव
बढ़ाया। बाद के
वर्षों में मराठा
शासक शिवाजी द्वारा
भी मंदिर के
गोपुरम का निर्माण
कराया। इस मल्लिकार्जुन
शिवलिंग का दर्शन-पूजन एवं
अर्चन करने वाले
भक्तों की सभी
सात्त्विक मनोकामनाएँ पूर्ण हो
जाती हैं। उनकी
भगवान् शिव के
चरणों में स्थिर
प्रीति हो जाती
है। दैहिक, दैविक,
भौतिक सभी प्रकार
की बाधाओं से
वे मुक्त हो
जाते हैं।
मल्लिकार्जुन
ज्योतिर्लिंग श्रीशैल पर्वत पर
कृष्णा नदी के
तट पर कृष्णा
जिले जो कि
आन्ध्रप्रदेश में है
विराजमान हैं और
इसे दक्षिण का
कैलाश भी कहते
हैं । महाभारत
के अनुसार श्रीशैल
पर्वत पर भगवान
शिव का पूजन
करने से अश्रवमेद्य
यज्ञ करने का
फल मिलता है
। प्राचीन मल्लिकार्जुन
मंदिर की वास्तुकला
बहुत सुन्दर और
जटिल है
। मंदिर की
दीवारों, टावरों और मूर्तिकला
काम के एक
अमीर बंदोबस्ती की
तरह किला है
। विशाल मंदिर
उदात्त टावरों और विशाल
प्रांगण साथ द्रविड़
शैली में बनाया
गया है और
विजयनगर वास्तुकला के बेहतरीन
नमूनों में से
एक माना जाता है
। श्रीमद् भागवत
गीती का दिव्य
संदेश अठारह संगमरमर
स्तंभों पर खुदा
है ।
मल्लिकार्जुन
ज्योतिर्लिंग की कथा
1 - भगवान गणेश ने
अपने भाई कार्तिकेय
से पहले शादी
की तो भाई
कार्तिकेय नाराज हो गये
और क्रंच पर्वत
पर चले गये
। तब पार्वती
ने देवताओं को
भेज कर कार्तिकेय
को मनाने की
कोशिश की पर
सभी प्रयास
बेकार सिद्ध हुए
। फिर
शिव पार्वती ने
क्रौंच पर्वत पर जाने
का फेसला लिया
। अपने माता
पिता के आने
का जान कर
कार्तिकेय और दूर
चला गया ।
आखिरकार भगवान शिव ज्योतिलिंग
के रूप ग्रहण
किया और मल्लिकार्जुन
नाम के पहाड़
पर निवास किया
। शिव का
दूसरा नाम अर्जुन
है, जबकि मल्लिका
का मतलब पार्वती
है । शिव
और पार्वती दोनों
एक ही लिंग
में निवास करने
लगे । इस
पहाड़ एक की
नोक देखकर उसके
सभी पापों और
चिंताओं से मुक्ति
मिलती है ।
व्यक्ति जीवन और
मृत्यु के दुष्चक्र
से मुक्त हो
जाता है ।
कथा
2 - कौंच पर्वत के समीप
में ही चन्द्रगुप्त
नामक किसी राजा
की राजधानी थी
। उनकी राजकन्या
किसी संकट में
उलक्ष गई थी
। उस विपत्ति
से बचने के
लिए वह अपने
पिता के राजमहल
से भागकर पर्वतराज
की शरण में
पहंुच गई ।
वह कन्या ग्वालों
के साथ कन्दमूल
खाती और दूध
पीती थी ।
इस प्रकार उसका
जीवन-निर्वाह उस
पर्वत पर होने
लगा । उस
कन्या के पास
एक काली गाय
थी जिसकी सेवा
वह स्वंय करती
थी । उस
गाय के साथ
विचित्र घटना घटित
होने लगी ।
कोई व्यक्ति छिपकर
प्रतिदिन उस काली
गाय का दूध
निका लेता था
। एक दिन
उस कन्या ने
किसी चोर को
काली गाय का
दूध दुहते हुए
देख लिया, तब
वह क्रोध में
आगबबूला हो उसको
मारने के लिए
दौड़ पड़ी ।
जब वह गाय
के समीप पहुंची,
तो उसके आश्चर्य
का ठिकाना न
रहा, क्योंकि वहां
उसे एक शिवलिंग
के अतिरिक्त कुछ
भी दिखाई नहीं
दिया । आगे
चलकर उस राजकुमारी
ने उस शिवलिंग
के ऊपर एक
सुन्दर सा मंदिर
बनवा दिया ।
वही प्राचीन शिवलिंग
आज ‘‘ मल्लिकार्जुन ’’ ज्योतिर्लिंग के
नाम से प्रसिद्ध
है ।
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