राशियों के अनुसार करे ज्योर्तिलिंग शिव पूजा
5. सिंह राशि - वैद्यनाथ ज्योर्तिलिंग शिव पूजा
सिंह राशि ;म मि मु मे मो ट टि
टु टे - सिंह राशि चक्र की पाचवीं राशि है। और पूर्व दिशा की द्योतक है। इसका चिन्ह शेर है। इसका विस्तार राशि चक्र के 120 अंश से 150 अंश तक है। सिंह राशि का स्वामी सूर्य हैए और इस राशि का तत्व अग्नि है। इसके तीन द्रेष्काण और उनके स्वामी सूर्यएगुरुए और मंगलए हैं। इसके अन्तर्गत मघा नक्षत्र के चारों चरणएपूर्वाफ़ाल्गुनी के चारों चरणए और उत्तराफ़ाल्गुनी का पहला चरण आता है। यह बहुत शक्तिशाली है।
सिंह राशि के यदि लोग कारोबारए परिवारए राजनीति या स्वास्थ्य को लेकर परेशान हैं तो उन्हे महाशिवरात्रि में शिवलिंग को जल में दूधए दहीए गंगाजल व मिश्री मिलाकर ॐ जटाधराय नमः मंत्र का जाप करते हुए अभिषेक करना चाहिए।
झारखण्ड स्थित प्रसिद्ध तीर्थस्थल बैद्यनाथ धाम भगवान शंकर के द्वादश ज्योतिर्लिगों में से नौवां ज्योतिर्लिंग है. यह ज्योतिर्लिंग सर्वाधिक महिमामंडित है.यूं तो यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु आते हैं लेकिन सावन में यहां भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ता है. सावन में यहां प्रतिदिन करीब एक लाख भक्त ज्योतिर्लिग पर जलाभिषेक करते हैं.पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक यह ज्योतिर्लिंग लंकापति रावण द्वारा यहां लाया गया था.
.वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग श्री शिव महापुराण की गणना के क्रम में नौवाँ ज्योतिर्लिंग है जो कि एक पुराणकालीन मंदिर मंे स्थित है । यह झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र के दुमका नामक जनपद में अतिप्रसिद्ध देवघर नामक स्थान पर अवस्थित है । पवित्र तीर्थ होने के कारण इसे वैद्यनाथ धाम भी कहते हैं । देवघर अर्थात देवताओं का घर, यह ज्योतिर्लिंग एक सिद्धपीठ है कहा जाता है कि यहां पर आने वाले की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है । इस कारण इस लिंग को ‘‘ कामना लिंग ’’ भी कहा जाता है । देवताओं ने भगवान का प्रत्यक्ष दर्शन किया और उसके बाद उनके लिंग की प्रतिष्ठा की । देवगण उस लिंग को वैद्यनाथ नाम देकर, उसे नमस्कार करते हुए स्वर्गलोक को चले गये ।
स्.थापना व कथा - एक बार राक्षकराज रावण ने हिमालय पर स्थिर होकर भगवान शिव की घोर तपस्या की । उस राक्षस ने अपना एक-एक सिर काट-काटकर शिवलिंग पर चढ़ा दिये । इस प्रक्रिया में उसने अपने नौ सिर चढ़ा दिया तथा दसवें सिर को काटने के लिए वह तैयार हुआ, तब तक भगवान शंकर प्रसन्न हो उठे । प्रकट होकर दसों सिर को पहले की भांति कर दिये व वर मांगने को कहा । रावण ने भगवान शिव से कहा कि मुझे इस शिव लिंग को ले जाकर लंका में स्.थापित करने की अनुमति दें । शंकरजी ने एक प्रतिबंध के साथ अनुमति दी की इस लिंग को ले जाते समय रास्ते में धरती पर नहीं रखोगे, यदि रखा तो यह वहीं स्.थापित / अचल हो जावेगा । जब रावण शिवलिंग को लेकर चला तो मार्ग में ‘‘ चिंताभूमि’’ में ही उसे लघुशंका के लिए रूकना पड़ा, उसे उस लिंग को एक अहीर को पकड़ा दिया पर शिवलिंग के भारी होने के कारण उस अहीर ने उसे भूमि पर रख दिया और वह लिंग वहीं अचल हो गया । रावण ने वापस आने पर पूरी कोशिश की लेकिन वह शिवलिंग को उठा नहीं पाया । गुस्से में रावण ने शिवलिंग को अपने अंगूठे से और दबा दिया । इसलिए वैद्यनाथ को रावणेश्वर भी कहते हैं ।
इस तरह रावण को खाली हाथ लंका जाना पड़ा । इधर ब्रहमा, विष्णु और इन्द्र देवताओं ने विधिवत पूजा की तब शिव जी का दर्शन किया । वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की लगातार आरती-दर्शन करने से लोगों को रोगों से मुक्ति मिलती है । मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि किसी भी द्वादश ज्योतिर्लिंग से अलग यहां के मंदिर के शीर्ष पर ‘‘त्रिशुल’’ नहीं, बल्कि ‘‘पंचशूल’’ है । पंचशूल का अर्थ काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा ईष्या जैसे पांच शूलों से मानव का मुक्त होना है । वैद्यनाथ धाम मंदिर के प्रांगण में ऐसे तो विभिन्न देवी-देवताओं के 22 मंदिर हैं । मंदिर के मध्य प्रांगण में भव्य 72 फीट ऊंचा शिव का मंदिर है । इसके अतिरिक्त प्रांगण में अन्य 22 मंदिर स्ािापित है । मंदिर प्रांगण में एक घंटा, एक चंद्रकूल और मंदिर में प्रवेश के लिए एक विशाल सिंह दरवाजा बना हुआ है । बाबा मंदिर में संध्या पूजा के लिए जो मौर (मुकुट) आता है वो फूलों का होता है और उसे देवघर सेंट्रल जेल के कैदी ही रोज बनाते हैं । आज शिवरात्रि के दिन बहुत भीड़ होती है मंदिर में और देवघर में बच्चे से लेकर बूढ़े तक व्रत रखते हैं । शाम में शिवजी की बारात निकलती है जिसमें भूत प्रेतों होते हैं बाराती के रूप में अलग अलग
वेशभूषा में सजे बारातियों और नंदी का नाच देखते ही बनता है ।
वैद्यनाथ की यात्रा श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) शुरू होती है । सबसे पहले तीर्थयात्री सुल्तानगढ़ में एकत्र होते हैं जहां वे अपने-अपने पात्रों में पवित्र जल भरते हैं । इसके बाद वे वैद्यनाथ और बासुकीनाथ की ओर बढ़ते हैं । पवित्र जल लेकर जाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वह पात्र जिसमें जल है, वह कहीं भी भूमि से न सटे । दिल्ली हावड़ा रेल लाइन पर जैसीडीह स्टेशन से 6 किलोमीटर आगे देवघर में ये मंदिर स्थित है । शिव पुराण के मुताबिक इस क्षेत्र को चिताभूमि कहा गया है ।
शिव सती के शव को लेकर जब उन्मत होका घूम रहे थे तब सती का हृदय पिंड यहां गलकर गिर गया था इसलिए ये स्ािली 51 शक्तिपीठ में से भी एक है । देवघर बाबाधाम सती के हृदय पर बसा है । बाबाधाम को शक्ति पीठ व सिद्ध पीठ के रूप में भी जाना जाता है । वैसे तो बाबाधाम में तंत्र साधना के लिए तांत्रिक व साधकों का आना जाना लगा रहता है, लेकिन श्रवणी मेेले के दौरान तांत्रिकों व साधकों का जमावड़ा लग जाता है । कहा जाता है कि श्रवण मास में बाबाधाम के कामना लिंग पर जलाभिषेक करने वाले भक्तों पर करूणा व दया के सागर भगवान शंकर व माता पार्वती का आर्शिवाद प्राप्त होता है ।
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