कैलाश मंदिर , वेरुळ लेणी - संभाजीनगर , महाराष्ट्र
कैलाश मन्दिर महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में में से एक है, जो एलोरा की गुफओं में स्थित है। कैलाश मंदिर को हिमालय के कैलाश का रूप देने में एलोरा के वास्तुकारों ने कुछ कमी नहीं की। शिव का यह दोमंजिला मंदिर पर्वत की ठोस चट्टान को काटकर बनाया गया है। एलोरा का कैलाश मन्दिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में प्रसिद्ध एलोरा की गुफाओं में स्थित है। यह मंदिर दुनिया भर में एक ही पत्थकर की शिला से बनी हुई सबसे बड़ी मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर को तैयार करने में करीब 150 वर्ष लगे और लगभग 7000 मजदूरों ने लगातार इस पर काम किया।
पच्ची कारी की दृष्टि से कैलाश मन्दिर अद्भुत है। मंदिर एलोरा की गुफा संख्या 16 में स्थित है। इस मन्दिर म कैलास पर्वत की अनुकृति निर्मित की गई है। 200 साल तक 20 पिढीयों ने पहाड को उपर से नीचे की तरफ तराशकर बनाया गया यह कैलाश मंदिर भारतीय शिल्प कला का अद्भुत नमूना है । संपूर्ण हिन्दू पौराणिक कथाओं के शिल्प है । विष्णु अवतार , महादेव से लेकर रामायण महाभारत भी मुर्तीयो के रूप में दर्शाया है ।
गुफाएँ - एलोरा में तीन प्रकार की गुफाएँ हैं- 1. महायानी बौद्ध गुफाएँ, 2.पौराणिक हिंदू गुफाएँ , 3. दिगंबर जैन गुफाएँ । इन गुफाओं में केवल एक गुफा 12 मंजिली है, जिसे श्कैलाश मंदिरश् कहा जाता है। मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट शासक कृष्ण प्रथम ने करवया था। यह गुफा शिल्प कला का अद्भुत नमूना है। एक ही चट्टान में काट कर बनाए गए विशाल मंदिर की प्रत्येक मूर्ति का शिल्प उच्च कोटि का है। इन गुफाओं से एक किलोमीटर की दूरी पर एलोरा गाँव है। इसी गाँव के नाम पर ये एलोरा गुफाएँ कहलाती हैं।
भव्या नक्काशी - एलोरा की गुफा-16 सबसे बड़ी गुफा है, जिसमें सबसे ज्यादा खुदाई कार्य किया गया है। यहाँ के कैलाश मंदिर में विशाल और भव्या नक्काशी है, जो कि कैलाश के स्वायमी भगवान शिव को समर्पित है। कैलाश मंदिर विरुपाक्ष मन्दिर से प्रेरित होकर राष्ट्रकूट वंश के शासन के दौरान बनाया गया था। अन्यि गुफाओं की तरह इसमें भी प्रवेश द्धार, मंडप तथा मूर्तियाँ हैं। अनुपम वास्तुशिल्प - कैलाश मंदिर को हिमालय के कैलाश का रूप देने में एलोरा के वास्तुकारों ने कुछ कमी नहीं की। शिव का यह दोमंजिला मंदिर पर्वत की ठोस चट्टान को काटकर बनाया गया है और अनुमान है कि प्राय 30 लाख हाथ पत्थर इसमें से काटकर निकाल लिया गया है।
कैलाश के इस परिवेश में, समीक्षकों का अनुमान है, समूचा ताज मय अपने आँगन में रख दिया जा सकता है। एथेंस का प्रसिद्ध मंदिर पार्थेनन इसके आयाम में समूचा समा सकता है और इसकी ऊँचाई पार्थेनन से कम से कम ड्योढ़ी है। कैलाश के भैरव की मूर्ति जितनी भयकारक है, पार्वतीकी उतनी ही स्नेहशील है और तांडव का वेग तो ऐसा है, जैसा पत्थर में अन्यत्र उपलब्ध नहीं। शिव-पार्वती का परिणय भावी सुख की मर्यादा बाँधता है, जैसे रावण का कैलाशत्तोलन पौरुष को मूर्तिमान कर देता है।
उसकी भुजाएँ फैलकर कैलाश के तल को जैसे घेर लेती हैं और इतने जोर से हिलाती हैं कि उसकी चूलें ढीली हो जाती हैं और उमा के साथ ही कैलाश के अन्य जीव भी संत्रस्त काँप उठते हैं। फिर शिव पैर के अँगूठे से पर्वत को हल्के से दबाकर रावण के गर्व को चूर-चूर कर देते हैं। कालिदास ने कुमारसंभव में जो रावण के इस प्रयत्न से कैलाश की संधियों के बिखर जाने की बात कही है, वह इस दृश्य में सर्वथा कलाकारों ने प्रस्तुत कर दी है। एलोरा का वैभव भारतीय मूर्तिकला की मूर्धन्य उपलब्धि है।
कैलास मन्दिर में पत्थर को काटकर बना सुन्दर स्तम्भ - अन्य लयणों की तरह भीतर से कोरा तो गया ही है, बाहर से मूर्ति की तरह समूचे पर्वत को तराश कर इसे द्रविड़ शैली के मंदिर का रूप दिया गया है। अपनी समग्रता में २७६ फीट लम्बा , १५४ फीट चैड़ा यह मंदिर केवल एक चट्टान को काटकर बनाया गया है।द्यइसका निर्माण ऊपर से नीचे की ओर किया गया है। इसके निर्माण के क्रम में अनुमानतरू ४० हजार टन भार के पत्थारोंको चट्टान से हटाया गया।
इसके निर्माण के लिये पहले खंड अलग किया गया और फिर इस पर्वत खंड को भीतर बाहर से काट-काट कर 90 फुट ऊँचा मंदिर गढ़ा गया है। मंदिर भीतर बाहर चारों ओर मूर्ति-अलंकरणों से भरा हुआ है। इस मंदिर के आँगन के तीन ओर कोठरियों की पाँत थी जो एक सेतु द्वारा मंदिर के ऊपरी खंड से संयुक्त थी। अब यह सेतु गिर गया है। सामने खुले मंडप में नंदि है और उसके दोनों ओर विशालकाय हाथी तथा स्तंभ बने हैं। यह कृति भारतीय वास्तु-शिल्पियों के कौशल का अद्भुत नमूना है।
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