राशि के अनुसार करें ज्योतिर्लिंग शिव पूजा
8. वृश्चिक राशि वाले करें नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा
गुजरात के द्वारका जिले में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है जिसका संबंध वृश्चिक राशि से है। इस राशि वालों को गले में नागों की माला धारण करने वाले नागों के देव नागेश्वर ज्योर्तिलिंग की पूजा करनी चाहिए। महाशिवरात्रि के दिन इनका दर्शन करने से दुर्घटनाओं से बचाव होता है। जो लोग इस दिन नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन न कर सकें वह दूध और धान के लावा से शिव की पूजा करें। शिव को गेंदे का फूल, शमी एवं बेलपत्र चढाएं। वृश्चिक राशि के लिए शिव मंत्र - ह्रीं ओम नमः शिवाय ह्रीं। मंत्र का जप करें।
पूजा से लाभ - इस राशि वालों के भाग्य के स्वामी चन्द्रमा हैं जो शिव के सिर पर सुशोभित हैं। महाशिवरात्रि के दिन इस प्रकार शिव की पूजा करने से भाग्योन्नति होती है। पिता से धन का लाभ होता है। भौतिक सुखों की कामना रखने वालों का धन वैभव बढ़ता है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से दसवें क्रम के ज्योतिर्लिंग के रूप में विश्व भर में प्रसिद्ध है । नागेश्वर
अर्थात नागों का ईश्वर और यह विष आदि से बचाव का सांकेतिक भी है । यह प्रसिद्ध मंदिर भगवान शिव को समर्पित है । गुजरात के द्वारकापुरी से 25 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है । नागेश्वर मंदिर जिस जगह पर बना है वहां कोई गांव या बसाहट नहीं है ।
यह मंदिर सुनसान तथा वीरान जगह पर बना है और निकटस्थ शहर द्वारका ही है । मंदिर परिसर में भगवान शिव की पद्मासन मुद्रा में एक विशालकाल मूर्ति भी स्थित है जो यहंा का मुख्य आकर्षण है । यह मूर्ति 85 फीट ऊंची है । इस मूर्ति के आसपास पक्षियों का झुण्ड मंडराते रहता है तथा भक्तगण यहां पक्षियों के लिए अन्न भी डालते हैं जो यही मंदिर परिसर से ही खरीदे जा सकते हैं ।
मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश से पहले मंदिर द्वारा दी गई धोतियां पहननी होती है तभी आप गर्भगृह में प्रवेश पा सकते हैं । ज्योतिर्लिंग को पंचामृत, दूध और जल से अभिषेक किया जाता है । ज्योतिर्लिंग मध्यम बड़े आकार का है जिसके ऊपर एक चांदी का आवरण चढ़ा रहता है । ज्योतिर्लिंग पर ही एक चांदी के नाग की आकृति बनी हुई है । ज्योतिर्लिंग के पीछे मां पार्वती की मूर्ति स्.थापित है ।
कथा - सुप्रिय भगवान शिव का अनन्य भक्त बहुत धर्मात्मा और सदाचारी वैश्य था । वह निरंतर शिव की आराधना, पूजन और ध्यान करता था यह दारूक नामक राक्षस को पसन्द नहीं थी । उसे नौका पर सवार सुप्रिय एवं कुछ यात्रियों को पकड़कर कैद कर लिया । फिर भी सुप्रिय कारागार में भी नित्यनियम से शिव आराधना एवं पूजा करता रहा तब शिव जी प्रसन्न होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और उसे पाशुपत-अस्त्र प्रदान किया जिससे सुप्रिय ने राक्षस दारूक एवं उसके सहायक का वध किया तथा भगवान शिव के आदेशानुसार ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर पड़ा ।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद जो मनुष्य उसकी उत्पत्ति और माहात्म्य सम्बंधी कथा को सुनता है वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है तथा सम्पूर्ण भौतिक और आध्यात्मिक सुखों को प्राप्त करता है । नागेश्वर यानि नागों के ईश्वर कहा जाता है कि इस मंदिर में पूजा से सर्प के विष से बचाव होता है । रूद्र संदिता में भगवान शिव को ‘‘ दारूकावने नागेश’’ कहा गया है । विष से बचाव करते हैं नागेश्वर ।
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