.राशि अनुसार करे ज्योर्तिलिंग शिव पूजा
1.मेष राशि - सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
मेष राशि वालों को सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के सोमनाथ देव की पूजा पचंामृत से करनी चाहिएं है । शिव पूजा पंचामृत से - गंगाजल, दूध, दही, शहद व घी को मिलाकर पंचामृत का निर्माण किया जाता है। शिव परिवार को पंचामृत अर्पण करने का भी विशेष महत्व है। सोमवार के दिन शिव की पंचामृत पूजा हर मनौती को पूरा करने वाली मानी गई है। इस पूजा में खासतौर पर शिव को दूध, दही, घी, शक्कर और शहद से स्नान कराया जाता है। पंचामृत स्नान व पूजा न केवल मनौतियां पूरी करती है, बल्कि वैभव भी देती है।
साथ ही अनेक परेशानियों और पीड़ा का अंत होता है। भगवान शिव की पंचामृत स्नान और पूजन का तरीका - सुबह जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहन घर या देवालय में शिवलिंग के सामने बैठें।- सबसे पहले शिवलिंग पर जल और उसके बाद क्रम से दूध, दही, घी, शहद और शक्कर चढ़ाएं। हर सामग्री के बाद शिवलिंग का जल से स्नान कराएं। पूजा के दौरान पंचाक्षरी या षडाक्षरी मंत्र ऊँ नमरू शिवाय बोलते रहें। - आखिर में पांच सामग्रियों को मिलाकर शिव को स्नान कराएं। - पंचामृत स्नान के बाद गंगाजल या शुद्धजल से स्नान कराएं।- पंचामृत पूजन के साथ रुद्राभिषेक पूजा शीघ्र मनोवांछित फलदायक मानी जाती है। यह पूजन किसी विद्वान ब्राह्मण से कराया जाना श्रेष्ठ होता है। - पंचामृत स्नान और पूजा के बाद पंचोपचार पूजा करें। गंध, चंदन, अक्षत, सफेद फूल और बिल्वपत्र चढ़ाएं। नैवेद्य अर्पित करें।- शिव की धूप या अगरबत्ती और दीप से आरती करें। - शिव रुद्राष्टक, शिवमहिम्र स्त्रोत, पंचाक्षरी मंत्र का पाठ और जप करें ं।
मेष राशि का चिन्ह मेढ़ा या भेड़ है, मेष राशि पूर्व दिशा की द्योतक है तथा इसका स्वामी मंगल है। मेष राशि के अन्तर्गत अश्विनी और भरणी नक्षत्र के चारों चरण और कृत्तिका का प्रथम चरण आते हैं। मंगल जातक को अधिक उग्र और निरंकुश बना देता है। वह किसी की जरा सी भी विपरीत बात में या कार्य में जातक को क्रोधात्मक स्वभाव देता है, जिससे जातक बात-बात में झगड़ा करने को उतारू हो जाता है। मेष राशि के जातक को किसी की आधीनता पसंद नहीं होती है। वह अपने अनुसार ही कार्य और बात करना पसंद करता है। मेष अग्नि तत्व वाली राशि है, अग्नि त्रिकोण (मेष, सिंह, धनु) की यह पहली राशि है। इसका स्वामी मंगल अग्नि ग्रह है। राशि और स्वामी का यह संयोग इसकी अग्नि या ऊर्जा को कई गुना बढ़ा देता है, यही कारण है कि मेष जातक ओजस्वी, दबंग, साहसी और दृढ़ इच्छाशक्ति वाले होते हैं, यह जन्मजात योद्धा होते हैं। मेष राशि वाले व्यक्ति बाधाओं को चीरते हुए अपना मार्ग बनाने की कोशिश करते हैं।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग - प्रथम आदिकाल ज्योतिर्लिंग -सोमनाथ ज्योतिर्लिंग गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र (काठियावाड़) के वेरावल बंदरगाह में स्थित है जिसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था । इस मदिंर में सोमनाथ देव की पूजा पचंामृत से की जाती है । कहा जाता है कि जब चंद्रमा को शिव ने शाप मुक्त किया तो उन्होंने जिस विधि से साकार शिव की पूजा की थी उसी विधि से आज भी सोमनाथ की पूजा होती है । सोमनाथ मंदिर को 17 बार नष्ट किया गया और हर बार इसका पुनिर्माण किया गया । सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्.थल है । लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था ।
श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे तब ही शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिन्ह को हिरण की आंख जानकर धोके में तीर मारा था । तब ही कृष्ण ने देह त्यागकर यहीं से वैकुंठ गमन किया । इस स्थान पर सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है । धार्मिक मान्यता - सोमनाथ भगवान की पूजा और उपासना करने से उपासक भक्त के क्षय तथा कोढ़ आदि रोग सर्वथा नष्ट हो जाते हैं और वह स्वस्थ हो जाता है । सभी देवताओं ने मिलकर एक सोमकुण्ड की भी स्ािापना की है ऐसा विश्वास किया जाता है कि कुण्ड में शिव और ब्रहमा का सदा निवास रहता है । यह चन्द्रकुण्ड मनुष्यों के पाप नाश करने वाले के रूप में प्रसिद्ध है इसे ‘‘पापनाशक तीर्थ’’ भी कहते हैं । जो मनुष्य इस चन्द्रकुण्ड में स्नान करता है वह सब प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है । सोमनाथ के भू-गर्भ में (भूमि के नीचे ) सोमनाथ लिंग की स्.थापना की गई है । भू-गर्भ में होने के कारण यहां प्रकाश का अभाव रहता है ।
इस मंदिर में पार्वती, सरस्वती देवी, लक्ष्मी, गंगा और नन्दी की भी मूर्तियां स्ािापित है । भूमि के ऊपरी भाग में शिवलिंग से ऊपर अहल्येश्वर मूर्ति है । मंदिर के परिसर में गणेश जी का मंदिर है । यहंा एक समुद्रका नामक अग्निकुण्ड है इसमें स्नान के बाद ही यात्रीगण प्राची त्रिवेणी में स्नान करते हैं । पूर्वकाल में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को स्.पर्शलिंग के नाम से जाना जाता था । आठ ब्रहमा की सृष्टि से सोमनाथ का नाम बदलता रहता है । सातवें ब्रहमा का नाम है ‘ शतानंद’ । बीते कल्प से पहले जो ब्रहमा थे उनका नाम विंरचि था उस समय इस शिवलिंग का नाम मृत्युंजय था । दूसरे कल्प में ब्रहमा पद्मभू नाम से जाने जाते थे, उस समय इस ज्योतिर्लिंग का नाम कालाग्निरूद था । तीसरे ब्रहमा की सृष्टि स्वयंभू नाम से हुई , उस समय सोमनाथ का नाम अमृतेश हुआ । शिव और चंद्रमा दोनों की कृपा और आप अगर मानसिक तनाव से मुक्त होना चाहते है तो सोमनाथ की कथा एवं पूजा करें वैसे भी चंद्रमा शीतलता का वाहक है ।
अगर आप वैभवशाली अतीत को निहारे तो पायेंगे मंदिर में सुवर्ण घंटा दो सौ मन सोने का था और मंदिर के छप्पन खम्भे हीरे, माणिक्य और मोती जैसे रत्नों और मोती जैसे रत्नों से जड़े हुए थे । मंदिर के गर्भगृह में रत्नदीपों की जगमगाहट रात दिन रहती थी और कन्नौजी इत्र से नंदा दीप हमेशा प्रज्जवलित रहता था । भंडार गृह में अनगिनत धन सुरक्षित रहता था । सोमनाथ के वैभवसंपन्न पवित्र स्थान पर क्रूर एवं अत्याचारी मुसलमान राजाओं ने कई बार आक्रमण किया, कुल मिला कर मंदिर को 6 बार ध्.वस्.त किया गया । सोमनाथ पहली बार चन्द्र देव ने देवकाल में निर्मित किया । आदि मंदिर के क्षीण होने पर दूसरी बार वल्लभी गुजरात के यादव राजाओं ने सन् 649 में इसे बनवाया ।
सन् 725 में सिंध के अरब सूबेदार जुनामद के प्रथम आक्रमण कर अनगिनत खजाना लूटा । सन् 815 में गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने तीसरी बार मंदिर बनवाया । गजनी के महमूद ने 11 मई 1025 ने सोमनाथ पर आक्रमण कर 18 करोड़ का खजाना लूटा था । सन् 1297 में इस मंदिर को एक बार फिर सुल्तान अलाउददीन खिजली की सेना ने लूटा, खसोटा और ध्वस्त किया । 1375 में गुजरात के सुल्तान मुजफफर शाह ने इस मंदिर को फिर ध्वस्त किया । 1451 में मंदिर एक फिर महमूद बेगडा के द्वारा ध्वस्त किया गया । 1451 में मंदिर एक बार फिर महमूद बेगडा के द्वारा ध्वस्त किया गया । और अंत में 1701 में इस मंदिर को मुगल शासक और औरंगजेब ने द्वारा ध्वस्त किया गया एवं लूटा गया । वर्तमान मंदिर सन् 1947 में लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने निर्मित करवाया । इसके बाद ज्योतिर्लिंग की प्राण प्रतिष्ठा दिनांक 11 मई सन् 1951 की गई ।
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