राशियों
के अनुसार करे
ज्योर्तिलिंग शिव पूजा
10- मकर राशि
- त्रयम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग
शिव पूजा
मकर
राशि का संबंध
त्रयम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग से है।
यह ज्योर्तिलिंग नासिक
में स्थित है।
महाशिवरात्रि के दिन
इस राशि वाले
गंगाजल में गुड़
मिलाकर शिव का
जलाभिषेक करें। शिव को
नीले का रंग
फूल और धतूरा
चढ़ाएं। मकर राशि
के लिए मंत्र
- त्रयम्बकेश्वर का ध्यान
करते हुए श्ओम
नमः शिवायश् मंत्र
का 5 माला जप
करें। पूजा
से लाभ - जो
लोग शादी करना
चाह रहे हैं
उनकी शादी में
आने वाली बाधा
दूर होती है
और सुन्दर एवं
सुयोग्य जीवनसाथी मिलता है।
दांपत्य जीवन के
तनाव में कमी
आती है। साझेदारी
में बिजनेस करने
वालों की साझेदारी
मजबूत होती है
और लाभ बढ़ता
है। राशि स्वामी-
शनि, शुभ रत्न-
नीलम, अक्षर- भो,
जा, जी, खी,
खू, खे, खो,
गा, गी ।
मकर राशि को
मृग भी कहा
जाता है ।
कहीं -कहीं पर
इस राशि को
आज की भी
संज्ञा दी गई है
। मकर राशि
के लोग सेवा
के क्षेत्र में
महती भूमिका निभाते
हैं । कठोर
संघर्ष से नई
जिंदगी की शुरुआत
करना ही मकर
राशि कहलाती है
। राशि चक्र
में 10वे नंबर
पर आती है
मकर राशि . इसके
स्वामी हैं शनि
देव . गोचर में
शनि के धनु
राशि के प्रवेश
करते ही मकर
राशि पर साढ़े
साती का प्रथम
चरण शुरू हो
जाता है ।
शनि न्यायधीश हैं
हमारे कर्मों के
अनुसार ही हमें
अपनी साढ़ेसाती में
शुभ और अशुभ
फल देते हैं
, नीचे आपको एक
सामान्य रूप से
जानकारी दी जा
रही है , साढ़ेसाती
का शुभ या
अशुभ फल आपकी
कुंडली में अन्य
ग्रहो की स्थिती
, आपकी राशि और
कर्मों पर निर्भर
करता है ।
त्रयंबकेश्वर
ज्योतिर्लिंग
त्रयंबकेश्वर
ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र राज्य के
नासिक जिले में
त्रिम्बक शहर में
है । यह
नासिक शहर से
28 किलोमीटर दूर है
। ज्योतिर्लिंग
की अदभुत विशेषता
भगवान ब्रहमा, विष्णु
एवं शिव का
प्रतीक तीन चेहरे
के दर्शन होते
हैं । इस
प्राचीन हिन्दू मंदिर की
स्.थापत्य शैली
पूरी तरह से
काले पत्थर पर
अपनी आकर्षक वास्तुकला
और मूर्तिकला के
लिए जाना जाता
है । मंदिर
लहरदार परिदृश्य और रसीला
हरी वनस्पति की
पृष्ठभूूमि पर ब्रहमगिरि
पर्वत श्रंृखला की
तलहटी में स्थित
है । गोदावरी
जो भारत में
सबसे लंबी नदी
है के तीन
स्त्रोत ब्रहमगिरि पर्वत से
उत्पन्न होकर राजमहेंद्रु
के पास समुद्र
से मिलती है
।
सोमवार को
विशेष रूप से
पवित्र माना जाता
है और पुजारियों
को मंदिर के
चारों ओर अपने
कंधों पर एक
पालकी में त्रयंबकेश्वर
की मूर्ति लानी
होती है ।
शिवरात्रि के वार्षिक
उत्सव भी बड़ी
धूमधाम और उल्लास
के साथ मनाया
जाता है ।
यह मंदिर 1755-1786 ईस्वी
में श्री नाना
साहेब पेशवा द्वारा
बनवाया गया ।
काले पत्थरों से
बने इस मंदिर
में शिव लिंग
प्राकृतिक रूप से
उदयीत हुआ है
। यह जगह
धार्मिक अनुष्ठान के लिए
बहुत प्रसिद्ध है
। नारायण नागबली,
कालसर्प शान्ति, त्रिपिंडी विधि
यहां सम्पन्न की
जाती है ।
नारायण नागबली पूजा केवल
त्रयंबकेश्वर में की
जाती है ।
तीन दिन की
यह पूजा विशेष
तिथियों पर होती
है । त्रयंबकेश्वर
शहर ब्राहमण परिवारों
की एक बड़ी
संख्या है और
यहां वैदिक गुरूकुल
के लिए एक
केन्द्र है ।
यह स्थान मानसून
के मौसम में
अपनी प्राकृतिक सुन्दरता
के लिए जाना
जाता है ।
मंदिर मंे पूजा
- अभिषेक, पितृ दोष
पूजा जो कि
एक कुंडली में
पितृ दोष को
दूर करने के
लिए की जाती
है । पितृ
दोष पूर्वजों के
नकारात्मक कर्मो के कारण
होता है ।
पितृ दोष 14 प्रकार
के होते हैं
। काल सर्प
शान्ति पूजा - कुंडली में
राहु सर्प के
रूप में और
केतु अपनी पूंछ
है ।
सर्प
योग विफलताओं और
नकारात्मकता और हीन
भावना पैदा करता
है । नारायण
बाली पूजा - यह
पूर्वजों के असंतुष्ट
इच्छाओं को पूरा
करने के लिए
की जाती है,
जैसे असामान्य मौत
जैसे बीमारी, आत्महत्या,
आगजनी, बिजली गिरने, सांप
काटने, हत्या पेड़ से
गिरने, डूबने आदि से
मौत से आत्मा
इस दुनिया में
भटकती रहती है
। लघु रूद्र
पूजा - बीमारी दूर करने,
अविवाहित को आदर्श
साथी , ऋण, धन
और सत्ता पाने के
लिए की जाती
है । महा
रूद्र पूजा का
भी प्रावधान है
।
कथा
/इतिहास - पौराणिक कथा के
अनुसार, गौतम नामक
एक ऋषि एक
गाय की हत्या
करके एक पाप
किया था, फिर
वह माह करने
के लिए भगवान
शिव से प्रार्थना
की, उसकी भक्ति
से प्रसन्न, भगवान
बाबा के सामने
प्रकट हुए और
उन्होंने इस जलाशय
में स्नान कर
आप अपने पापों
को धो सकते
हैं । ऋषि
के प्रार्थना जारी
रखी तब पहाड़
की चोटी पर
तांडव नृत्य करने
से गंगा से
कुशावार्ता क्षेत्र बना और
एक स्वाभाविक लिंग
का गठन हुआ
और आज भी
मंदिर के अंदर
प्रवाह जारी है
पर नदी लोकप्रिय
स्थानीय लोगों द्वारा गोदावरी
नदी के रूप
में जानी जाती
है ।
इस
मंदिर का मुख्य
आकर्षण तीन लिंग
से मिलकर मुख्य
गर्भगृह में देवताओं
हैं इन तीनों
देवताओं ब्रहमा, विष्णु और
शिव की पत्थर
की संरचना है
। तीनो अलग
अलग दिशाओं जिसे
सूर्य, चंद्रमा और आग
का निरूपण होना
कहा गया है
। मराठा शासकों
ने शिलालेख काले पत्थरों
पर खोद कर
लिखे हैं ।
त्रयंबकेश्वर मंदिर हिन्दू पौराणिक
कथाओं के तीन
शक्तिशाली देवताओं का प्रतीक
हैं कि केवल
मंदिर है ।
सांसारिक कष्टों से मुक्त
होने के लिए
और मन की
शान्ति और आन्नद
के लिए त्रयंबकेश्वर
जरूर जाएं ।
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