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राशियों के अनुसार करे ज्योर्तिलिंग शिव पूजा 6- कन्या राशि - भीमाशंकर ज्योर्तिलिंग शिव पूजा

राशियों के अनुसार करे ज्योर्तिलिंग शिव पूजा
6- कन्या राशि - भीमाशंकर ज्योर्तिलिंग शिव पूजा











भीमाशंकर की पूजा करें कन्या राशि वाले. महाराष्ट्र में भीमा नदी के किनारे बसा भीमाशंकर ज्योर्तिलिंग कन्या राशि का ज्योर्तिलिंग हैं। इस राशि वाले भीमाशंकर को प्रसन्न करने के लिए दूध में घी मिलाकर शिवलिंग को स्नान कराएं।  कन्या राशि (टा पि पू पा) का ग्रह स्वामी बुध है। इसकी आकृति हाथ में दीप लिये कन्या के समान है। कन्या राशि भचक्र पर छठे स्थान पर आने वाली राशि है, भचक्र पर इसका विस्तार 150 से 180 अंशो के मध्य तक है. इस राशि के अन्तर्गत उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के तीन चरण, हस्त नक्षत्र के चार चरण तथा चित्रा नक्षत्र के दो चरण आते हैं.






इस राशि का प्रतीक चिन्ह एक युवती है जो नाव पर सवार है. उसके एक हाथ में गेहूँ की बालियाँ तथा दूसरे में लालटेन है. लालटेन रोशनी का तो गेहूँ की बालियाँ सभ्यता सुख समृद्धि का प्रतीक है. यह पृथ्वी तत्व राशि है तथा स्वभाव से द्वि-स्वभाव राशि के अन्तर्गत आती है. इस राशि का राशि स्वामी बुध ग्रह है. इसलिए इस राशि के व्यक्ति सौम्य, गुणी, वाकपटु, चतुर, चालाक हर काम करने में निपुण होते हैं. हर बात में तर्क करने की आदत होती है लेकिन बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके से. कन्या राशि भूमि तत्व होती है जिसके कारण आप सभी काम धरातल पर रहकर करते हैं कन्या राशि वालों को  स्वभाव द्विस्वभाव है, तत्त्व पृथ्वी, शीर्षोदय राशि, दिशा दक्षिण-पश्चिम, पद द्विपद, शीर्षोदय उदय, जाति शूद्र और लिंग स्त्री है। रंग सलेटी, निवास हरियाली या गीली भूमि है। शरीर में स्थान कमर, पद इसका द्विपद है।













इस राशि में उत्पन्न जातक शरीर से दुबले-पतले तथा घनी भौहों वाले होते हैं। यह देखने में अपनी उमर से काफी कम लगते हैं। शरीर में काफी स्फूर्ति होती है। पुरूषों में स्त्रियोचित गुण मिलते है, तथा स्त्रियां बड़ी ही कोमल होती है। उनकी कमर में बड़ी ताकत होती है। इस राशि की महिला प्रायः अत्यन्त कुशल नर्तकी होती है। स्तन दीपक के समान होते हैं। नितम्ब मध्यम तथा स्त्री अंग दीपक की लौ के समान छोटा, संकर थोडा सा लम्बा होता है। योनि के भगोष्ठों की बनावट दीपक की लौ की लहर के समान होती है। इस राशि की स्त्री के तलुवे लाल और पैर बहुत सुन्दर होते हैं।
















भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। भारत के बारह ज्योतिर्लिगों में भीमाशंकर का स्थान छटवां है जो महाराष्ट्र के पूणे से लगभग 110 किमी दूर सहाद्रि नामक पर्वत पर स्थित है। श्रावण के महीने में भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के दर्शन का महत्व बहुत बढ़ जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से व्यक्ति को समस्त दुरूखों से छुटकारा मिल जाता है। यह मंदिर अत्यंत पुराना और कलात्मक है। भीमाशंकर मंदिर नागर शैली की वास्तुकला से बनी एक प्राचीन और नई संरचनाओं का समिश्रण है। भीमाशंकर मंदिर नागर शैली की वास्तुकला में बना एक प्राचीन और नई संरचनाओं का सम्मिश्रण है। इस मंदिर से प्राचीन विश्वकर्मा वास्तुशिल्पियों की कौशल श्रेष्ठता का पता चलता है। इस सुंदर मंदिर का शिखर नाना फड़नवीस द्वारा 18वीं सदी में बनाया गया था। नाना फड़नवीस द्वारा निर्मित हेमादपंथि की संरचना में बनाया गया एक बड़ा घंटा भीमशंकर की एक विशेषता है मन्दिर काफी पुराना है। गर्भगृह में जन सामान्य का प्रवेश वर्जित है।














सनातनधर्मियों के तमाम तीर्थ स्थानों की तरह यहाँ भी शिव लिंग के चित्र लेना निषेधित है। गर्भगृह के बाहर, एक दर्पण लगाकर ऐसी व्यवस्था की गई है कि मण्डप में खड़े रहकर आप शिवलिंग के दर्शन कर सकें। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मंदिर के विषय में मान्यता है कि जो भक्त श्रृद्धा से इस मंदिर के प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद दर्शन करता है, उसके सात जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं तथा उसके लिए स्वर्ग के मार्ग खुल जाते हैं। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के निकट ही भीमा नामक नदी बहती है. इसके अतिरिक्त यहां बहने वाली एक अन्य नदी कृ्ष्णा नदी है. दो पवित्र नदियों के निकट बहने से इस स्थान की महत्वत्ता ओर भी बढ जाती है













भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का नाम भीमा शंकर किस कारण से पडा इस पर एक पौराणिक कथा प्रचलित है. कथा महाभारत काल की है. महाभारत का युद्ध पांडवों और कौरवों के मध्य हुआ थाइस युद्ध ने भारत मे बडे महान वीरों की क्षति हुई थी. दोनों ही पक्षों से अनेक महावीरों और सैनिकों को युद्ध में अपनी जान देनी पडी थी. इस युद्ध में शामिल होने वाले दोनों पक्षों को गुरु द्रोणाचार्य से प्रशिक्षण प्राप्त हुआ था. कौरवों और पांडवों ने जिस स्थान पर दोनों को प्रशिक्षण देने का कार्य किया था. वह स्धान है. आज उज्जनक के नाम से जाना जाता है. यहीं पर आज भगवान महादेव का भीमशंकर विशाल ज्योतिर्लिंग है. कुछ लोग इस मंदिर को भीमाशंकर ज्योतिर्लिग भी कहते है














शिवपुराण में यह कथा के अनुसार - प्राचीनकाल में भीम नामक एक महाप्रतापी राक्षस था। वह कामरूप प्रदेश में अपनी माँ के साथ रहता था। वह महाबली राक्षस, राक्षसराज रावण के छोटे भाई कुंभकर्ण का पुत्र था। लेकिन उसने अपने पिता को कभी देखा था। उसके होश संभालने के पूर्व ही भगवान् राम के द्वारा कुंभकर्ण का वध कर दिया गया था। जब वह युवावस्था को प्राप्त हुआ तब उसकी माता ने उससे सारी बातें बताईं। भगवान् विष्णु के अवतार श्रीरामचंद्रजी द्वारा अपने पिता के वध की बात सुनकर वह महाबली राक्षस अत्यंत संतप्त और क्रुद्ध हो उठा। अब वह निरंतर भगवान् श्री हरि के वध का उपाय सोचने लगा। उसने अपने अभीष्ट की प्राप्ति के लिए एक हजार वर्ष तक कठिन तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे लोक विजयी होने का वर दे दिया। 














अब तो वह राक्षस ब्रह्माजी के उस वर के प्रभाव से सारे प्राणियों को पीड़ित करने लगा। उसने देवलोक पर आक्रमण करके इंद्र आदि सारे देवताओं को वहाँ से बाहर निकाल दिया। पूरे देवलोक पर अब भीम का अधिकार हो गया। इसके बाद उसने भगवान् श्रीहरि को भी युद्ध में परास्त किया। श्रीहरि को पराजित करने के पश्चात उसने कामरूप के परम शिवभक्त राजा सुदक्षिण पर आक्रमण करके उन्हें मंत्रियों-अनुचरों सहित बंदी बना लिया। इस प्रकार धीरे-धीरे उसने सारे लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। उसके अत्याचार से वेदों, पुराणों, शास्त्रों और स्मृतियों का सर्वत्र एकदम लोप हो गया। वह किसी को कोई भी धार्मिक कृत्य नहीं करने देता था। इस प्रकार यज्ञ, दान, तप, स्वाध्याय आदि के सारे काम एकदम रूक गए। भीम के अत्याचार की भीषणता से घबराकर ऋषि-मुनि और देवगण भगवान् शिव की शरण में गए और उनसे अपना तथा अन्य सारे प्राणियों का दुःख कहा।














उनकी यह प्रार्थना सुनकर भगवान शिव ने कहा, मैं शीघ्र ही उस अत्याचारी राक्षस का संहार करूँगा। उसने मेरे प्रिय भक्त, कामरूप-नरेश सुदक्षिण को भी सेवकों सहित बंदी बना लिया है। वह अत्याचारी असुर अब और अधिक जीवित रहने का अधिकारी नहीं रह गया। भगवान् शिव से यह आश्वासन पाकर ऋषि-मुनि और देवगण अपने-अपने स्थान को वापस लौट गए। इधर राक्षस भीम के बंदीगृह में पड़े हुए राजा सदक्षिण ने भगवान् शिव का ध्यान किया। वे अपने सामने पार्थिव शिवलिंग रखकर अर्चना कर रहे थे। उन्हें ऐसा करते देख क्रोधोन्मत्त होकर राक्षस भीम ने अपनी तलवार से उस पार्थिव शिवलिंग पर प्रहार किया। किंतु उसकी तलवार का स्पर्श उस लिंग से हो भी नहीं पाया कि उसके भीतर से साक्षात् शंकरजी वहाँ प्रकट हो गए। उन्होंने अपनी हुँकारमात्र से उस राक्षस को वहीं जलाकर भस्म कर दिया।




भगवान् शिवजी का यह अद्भुत कृत्य देखकर सारे ऋषि-मुनि और देवगण वहाँ एक होकर उनकी स्तुति करने लगे। उन लोगों ने भगवान् शिव से प्रार्थना की कि महादेव! आप लोक-कल्याणार्थ अब सदा के लिए यहीं निवास करें। यह क्षेत्र शास्त्रों में अपवित्र बताया गया है। आपके निवास से यह परम पवित्र पुण्य क्षेत्र बन जाएगा। भगवान् शिव ने सबकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। वहाँ वह ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए निवास करने लगे। उनका यह ज्योतिर्लिंग भीमेश्वर के नाम से विख्यात हुआ। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा अमोघ है। इसके दर्शन का फल कभी व्यर्थ नहीं जाता। भक्तों की सभी मनोकामनाएँ यहाँ आकर पूर्ण हो जाती हैं।


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