रक्षा बंधन (भाई का बहन के प्रति प्यार का प्रतीक ) - 2015
रक्षा
बंधन का त्यौहार
29 अगस्त 2015 पूर्णिमा तिथि को
मनाया जाना है
। इस
दिन प्रातः काल
से भद्रा व्याप्ति
रहेगी. इसलिए शास्त्रानुसार राखी
बांधने का यह
त्यौहार शुभ मुहूर्त
1 बजकर 50 मिनट के
बाद संपन्न किये
जाने का सुझाव
है । जब
भी कोई कार्य
शुभ समय में
किया जाता है,
तो उस कार्य
की शुभता में
वृ्द्धि होती है.
भाई- बहन के
रिश्ते को अटूट
बनाने के लिये
इस राखी बांधने
का कार्य शुभ
मुहूर्त समय में
करना चाहिए ।
सामान्यतः उतरी भारत
जिसमें पंजाब, दिल्ली, हरियाणा
आदि में प्रातः
काल में ही
राखी बांधने का
शुभ कार्य किया
जाता है ।
रक्षा सूत्र को
सामान्य बोलचाल की भाषा
में राखी कहा
जाता है.
इसका
अर्थ रक्षा करना,
रक्षा को तत्पर
रहना या रक्षा
करने का वचन
देने से है
। श्रावण मास
की पूर्णिमा का
महत्व इस बात
से और बढ़
जाता है कि
इस दिन पाप
पर पुण्य, कुकर्म
पर सत्कर्म और
कष्टों के उपर
सज्जनों का विजय
हासिल करने के
प्रयासों का आरंभ
हो जाता है।
जो व्यक्ति अपने
शत्रुओं या प्रतियोगियों
को परास्त करना
चाहता है उसे
इस दिन वरूण
देव की पूजा
करनी चाहिए ।
हिन्दू धर्म में
प्रत्येक पूजा कार्य
में हाथ में
कलावा ( धागा ) बांधने का
विधान है. यह
धागा व्यक्ति के
उपनयन संस्कार से
लेकर उसके अन्तिम
संस्कार तक सभी
संस्करों में बांधा
जाता है. राखी
का धागा भावनात्मक
एकता का प्रतीक
है. स्नेह व
विश्वास की डोर
है. धागे से
संपादित होने वाले
संस्कारों में उपनयन
संस्कार, विवाह और रक्षा
बंधन प्रमुख है।
पुरातन काल से
वृक्षों को रक्षा
सूत्र बांधने की
परंपरा है। बरगद
के वृक्ष को
स्त्रियां धागा लपेटकर
रोली, अक्षत, चंदन,
धूप और दीप
दिखाकर पूजा कर
अपने पति के
दीर्घायु होने की
कामना करती है।
आंवले के पेड़
पर धागा लपेटने
के पीछे मान्यता
है कि इससे
उनका परिवार धन
धान्य से परिपूर्ण
होगा। रक्षा बंधन
भाइयों को इतनी
शक्ति देता है
कि वह अपनी
बहन की रक्षा
करने में समर्थ
हो सके। श्रवण
का प्रतीक राखी
का यह त्यौहार
धीरे-धीरे राजस्थान
के अलावा अन्य
कई प्रदेशों में
भी प्रचलित हुआ
और सोन, सोना
अथवा सरमन नाम
से जाना गया
। श्रेष्ठ मुहूर्त
दोपहर 1.51 से 4.15 बजे तक
है ।
राखी
के इस उत्सव
के पीछे भी
एक पौराणिक कथा
प्रचलित हैं ।
देवताओं और दानवो
के बीच युद्ध
चल रहा था
जिसमे दानवो की
ताकत देवताओं से
कई गुना अधिक
थी । देवता
हर बाजी हारते
दिखाई पड़ रहे
थे । देवराज इंद्र के
चेहरे पर भी
संकट के बादल
उमड़ पड़े थे
। उनकी ऐसी
स्थिती देख उनकी
पत्नी इन्द्राणी भयभीत
एवं चिंतित थी
। इन्द्राणी धर्मपरायण
नारी थी उन्होंने
अपने पति की
रक्षा हेतु घनघोर
तप किया और
उस तप से
एक रक्षासूत्र उत्पन्न
किया जिसे इन्द्राणी
ने इंद्र की
दाहिनी कलाई पर
बांधा । वह दिन
श्रावण की पूर्णिमा
का दिन था
। और उस
दिन देवताओं की
जीत हुई और
इंद्र सही सलामत
स्वर्गलोक आये द्य
तब एक रक्षासूत्र
पत्नी ने अपने
पति को बांधा
था लेकिन आगे
जाकर यह प्रथा
भाई बहन के
रिश्ते के बीच
निभाई जाने लगी
जो आज रक्षाबंधन
के रूप में
मनाई जाती हैं
कैसे
मनाये रक्षाबंधन - अगर असल
मायने में इसे
मनाना हैं तो
इसमें से सबसे
पहले लेन देन
का व्यवहार खत्म
करना चाहिये ।
साथ ही बहनों
को अपने भाई
को हर एक
नारी की इज्जत
करे, यह सीख
देनी चाहिये । जरुरी
हैं कि व्यवहारिक
ज्ञान एवम परम्परा
बढे तब ही
समाज ऐसे गंदे
अपराधो से दूर
हो सकेगा ।
कई जगह पर
पत्नी अपने पति
को राखी बांधती
हैं । पति अपनी
पत्नी को रक्षा
का वचन देता
हैं । सही
मायने में यह
त्यौहार नारी के
प्रति रक्षा की
भावना को बढ़ाने
के लिए बनाया
गया हैं । समाज
में नारी की
स्थिती बहुत गंभीर
हैं क्यूंकि यह
त्यौहार अपने मूल
अस्तित्व से दूर
हटता जा रहा
हैं । जरुरत
हैं इस त्यौहार
के सही मायने
को समझे एवम
अपने आस पास
के सभी लोगो
को समझायें । अपने
बच्चो को इस
लेन देन से
हटकर इस त्यौहार
की परम्परा समझायें
तब ही आगे
जाकर यह त्यौहार
अपने एतिहासिक मूल
को प्राप्त कर
सकेगा ।
रक्षाबंधन
का ऐतिहासिक महत्व
- हुमायूं ने निभाई
राखी की लाज
- चित्तौड़ की विधवा
महारानी कर्मावती ने जब
अपने राज्य पर
संकट के बादल
मंडराते देखे तो
उन्होंने गुजरात के बहादुर
शाह के खिलाफ
मुगल सम्राट हुमायूं
को राखी भेज
मदद की गुहार
लगाई और उस
धागे का मान
रखते हुए हुमायूं
ने तुरंत अपनी
सेना चित्तौड़ रवाना
कर दी. इस
धागे की मूल
भावना को मुगल
सम्राट ने न
केवल समझा बल्कि
उसका मान भी
रखा । सिकंदर
ने अदा किया
राखी का कर्ज
- कहते हैं, सिकंदर
की पत्नी ने
अपने पति के
हिंदू शत्रु पुरु
को राखी बांध
कर उसे अपना
भाई बनाया था
और युद्ध के
समय सिकंदर को
न मारने का
वचन लिया था.
पुरु ने युद्ध
के दौरान हाथ
में बंधी राखी
का और अपनी
बहन को दिए
हुए वचन का
सम्मान करते हुए
सिकंदर को जीवन
दान दिया था
।
रविंद्र नाथ
टैगोर ने दिया
नया नजरिया - गुरुदेव
रविंद्र नाथ टैगोर
ने राखी के
पर्व को एकदम
नया अर्थ दे
दिया. उनका मानना
था कि राखी
केवल भाई-बहन
के संबंधों का
पर्व नहीं बल्कि
यह इंसानियत का
पर्व है. विश्वकवि
रवींद्रनाथ जी ने
इस पर्व पर
बंग भंग के
विरोध में जनजागरण
किया था और
इस पर्व को
एकता और भाईचारे
का प्रतीक बनाया
था. 1947 के भारतीय
स्वतन्त्रता संग्राम में जन
जागरण के लिए
भी इस पर्व
का सहारा लिया
गया ।
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