हरियाली तीज -2015
हरियाली तीज श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज कहते हैं और इसे हरियाली तीज के नाम से जानी जाती है। सावन का महिना एक अजीब सी मस्ती और उमंग लेकर आता है। चारों ओर हरियाली की जो चादर सी बिखर जाती है उसे देख कर सबका मन झूम उठता है। ऐसे ही सावन के सुहावने मौसम में आता है तीज का त्यौहार। यह मुख्यतरू स्त्रियों का त्योहार है। इस समय जब प्रकृति चारों तरफ हरियाली की चादर सी बिछा देती है तो प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित होकर नाच उठता है। जगह-जगह झूले पड़ते हैं। स्त्रियों के समूह गीत गा-गाकर झूला झूलते हैं। हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की तृतीय को हस्त नक्षत्र के दिन होता है।
इस दिन कुमारी और सौभाग्यवती महिला गौरी शंकर की पूजा करती है। सावन की तीज में महिलाएं व्रत रखती हैं इस व्रत को अविवाहित कन्याएं योग्य वर को पाने के लिए करती हैं तथा विवाहित महिलाएं अपने सुखी दांपत्य की चाहत के लिए करती हैं। देश के पूर्वी इलाकों में इसे कजली तीज के रुप में जाना तथा अधिकतर लोग इसे हरियाली तीज के नाम से जानते हैं इस समय प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित हो जाता है जगह-जगह झूले पड़ते हैं और स्त्रियों के समूह गीत गा-गाकर झूला झूलते हैं। इस पर्व के आने से पहले ही घर−घर में झूले पड़ जाते हैं। नारियों के समूह गीत गाते हुए झूला झूलते दिखाई देते हैं। इस दिन बेटियों को बढिया पकवान, गुजिया, घेवर, फैनी आदि सिंधारा के रूप में भेजा जाता है। इस दिन सुहागिनें बायना छूकर सास को देती हैं। इस तीज पर मेंहदी लगाने का विशेष महत्व है। स्त्रियां हाथों पर मेंहदी से भिन्न−भिन्न प्रकार के बेल बूटे बनाती हैं। स्त्रियां पैरों में आलता भी लगाती हैं जो सुहाग का चिन्ह माना जाता है।
यह त्योहार भारतीय परम्परा में पति पत्नी के प्रेम को और प्रगाढ़ बनाने तथा आपस में श्रद्धाव और विश्वास पैदा करने का त्योहार है। इस दिन कुआंरी कन्याएं व्रत रखकर अपने लिए शिव जैसे वर की कामना करती हैं। विवाहित महिलाएं अपने सुहाग को भगवान शिव तथा पार्वती से अक्षुण्ण बनाए रखने की कामना करती हैं। इस तीज पर निम्न बातों को त्यागने का विधान है− पति से छल कपट, झूठ बोलना एवं दुर्व्यवहार, परनिन्दा। कहते हैं कि इस दिन गौरी विरहाग्नि में तपकर शिव से मिली थीं। इस दिन राजस्थान में राजपूत लाल रंग के कपड़े पहनते हैं। माता पार्वती की सवारी निकाली जाती है। किंवदंती है कि राजा सूरजमल के शासन काल में इस दिन कुछ पठान कुछ स्त्रियों का अपहरण करके ले गये थे, जिन्हें राजा सूरजमल ने छुड़वाकर अपना बलिदान दिया था। उसी दिन से यहां मल्लयुद्ध का रिवाज शुरू हो गया। जयपुर के राजाओं के समय में पार्वती जी की प्रतिमा, जिसे तीज माता कहते हैं, को एक जुलूस उत्सव में दो दिन तक ले जाया जाता था।
उत्सव से पहले प्रतिमा का पुनः रंगरोगन किया जाता है और नए परिधान तथा आभूषण पहनाए जाते हैं इसके बाद प्रतिमा को जुलूस में शामिल होने के लिए लाया जाता है। हजारों लोग इस दौरान माता के दर्शनों के लिए उमड़ पड़ते हैं। शुभ मुहूर्त में जुलूस निकाला जाता है। सुसज्जित हाथी और बैलगाडि़यां इस जुलूस की शोभा को बढ़ा देते हैं। इस पर्व को बुन्देलखंड में हरियाली तीज के नाम से व्रतोत्सव के रूप में मनाते हैं तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे कजली तीज के रूप में मनाने की परम्परा है। राजस्थान के लोगों के लिए त्यौहार जीवन का सार है खासकर राजधानी जयपुर में इसकी अलग ही छटा देखने को मिलती है। यदि इस दिन वर्षा हो, तो इस पर्व का आनंद और बढ़ जाता है। राजस्थान सहित उत्तर भारत में नवविवाहिता युवतियों को सावन में ससुराल से मायके बुला लेने की परम्परा है। सभी विवाहिताएँ इस दिन विशेष रूप से श्रृंगार करती हैं। सायंकाल सज संवरकर सरोवर के किनारे उत्सव मनाती हैं और कजली गीत गाते हुए झूला झूलती हैं।
श्रावण शुक्ल तृतीया के दिन माता पार्वती ने सौ वर्षों के तप उपरान्त भगवान शिव को पति रूप में पाया था। इसी मान्यता के अनुसार स्त्रियां माता पार्वती का पूजन करती हैं। तीज पर मेहंदी लगाने,चूडियां पहनने, झूले झूलने तथा लोक गीतों को गाने का विशेष महत्व है। तीज के त्यौहार वाले दिन खुले स्थानों पर बड़े-बड़े वृक्षों की शाखाओं पर, घर की छत की कड़ों या बरामदे में कड़ों में झूले लगाए जाते हैं जिन पर स्त्रियां झूला झूलती हैं। हरियाली तीज के दिन अनेक स्थानों पर मेलों का भी आयोजन होता है। राजस्थान में जिन कन्याओं की सगाई हो गई होती है, उन्हें अपने भविष्य के सास दृ ससुर से एक दिन पहले ही भेंट मिलती है। इस भेंट को स्थानीय भाषा में शिंझारा कहते हैं।
शिंझारा में अनेक वस्तुएं होती हैं। जैसे मेंहदी, लाख की चूडियां, लहरिया नामक विशेष वेश-भूषा, जिसे बांधकर रंगा जाता है तथा एक मिष्टान जिसे घेवर कहते हैं। इसमें अनेक भेंट वस्तुएँ होती हैं, जिसमें वस्त्र व मिष्ठान होते हैं। इसे माँ अपनी विवाहित पुत्री को भेजती है। पूजा के बाद सास को सुपुर्द कर दिया जाता है। राजस्थान में नवविवाहिता युवतियों को सावन में ससुराल से मायके बुला लेने की परम्परा है। तीज से शुरू होने के बाद त्योंहारों का सिलसिला गणगोर तक चलता है। इसीलिये राजस्थान में एक कहावत प्रचलित है-तीज त्योंहारा बावड़ी,ले डूबी गणगोर।
हरियाली तीज की विस्तृत जानकारी देने के लिए धन्यवाद।
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