श्रीकृष्ण जन्माष्टमी -2015
जन्माष्टमी हिन्दुओं का यह त्यौहार श्रावण (जुलाई-अगस्त) के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भारत में मनाया जाता है। हिन्दु पौराणिक कथा के अनुसार कृष्ण का जन्म, मथुरा के असुर राजा कंस, जो उसकी सदाचारी माता का भाई था, का अंत करने के लिए हुआ था। जन्माष्टमी के अवसर पर पुरूष व औरतें उपवास व प्रार्थना करते हैं। मन्दिरों व घरों को सुन्दर ढंग से सजाया जाता है व प्रकाशित किया जाता है। उत्तर प्रदेश के वृन्दावन के मन्दिरों में इस अवसर पर खर्चीले व रंगारंग समारोह आयोजित किए जाते हैं। कृष्ण की जीवन की घटनाओं की याद को ताजा करने व राधा जी के साथ उनके प्रेम का स्मरण करने के लिए रास लीला की जाती है। इस त्यौहार को कृष्णाष्टमी अथवा गोकुलाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।
भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की अष्टमी, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र एवं वृषराशि के चंद्रमा में हुआ था। अतः इस दिन जन्माष्टमी व्रत रखने का विधान है। इस व्रत को स्मार्त जन पहले दिन तथा वैष्णव अगले दिन रखते हैं। इस व्रत को बाल, युवा, वृद्ध सभी कर सकते हैं। यह व्रत भारत वर्ष के कुछ प्रांतों में सूर्य उदय कालीन अष्टमी तिथि को तथा कुछ जगहों पर तत्काल व्यापिनी अर्थात अर्द्धरात्रि में पड़ने वाली अष्टमी तिथि को किया जाता है। सिद्धांत रूप से यह अधिक मान्य है। जिन्होंने विशेष विधि विधान के साथ वैष्णव संप्रदाय की दीक्षा ली हो, वे वैष्णव कहलाते हैं।
अन्य सभी लोग स्मार्त हैं। परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि वे भगवान विष्णु की उपासना व भक्ति नहीं कर सकते। सभी लोग भगवान विष्णु की भक्ति-साधना कर सकते हैं। लोक व्यवहार में वैष्णव संप्रदाय के साधु-संत आदि उदयकालीन एकादशी तथा जन्माष्टमी आदि के दिन ही व्रत करते हैं। व्रती व्रत से पहले दिन अल्प भोजन करें तथा प्रातः काल उठकर स्नान एवं दैनिक पूजा पाठादि से निवृत्त होकर संकल्प करें कि श्मैं भगवान बालकृष्ण की अपने ऊपर विशेष अनुकंपा हेतु व्रत करूंगा, सर्वअंतर्यामी परमेश्वर मेरे सभी पाप, शाप, तापों का नाश करें।श् उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन भी करना चाहिए। दिन और रात भर निराहार व्रत करें। अगर इसमें कठिनाई हो तो बीच में फलाहार, दूध आदि ले सकते हैं। पूरा दिन और रात्रि भगवान बाल कृष्ण के ध्यान, जप, पूजा, भजन-कीर्तन में बिताएं। भगवान के दिव्य स्वरूप का दर्शन करें, उनकी कथा का श्रवण करें। उनके निमित्त दान करें। अथवा उनके कीर्तन में, ध्यान में प्रसन्नचित्त होकर नृत्य आदि करें।
इस उत्सव पर सूतिका गृह में देवकी का स्थापन करें। इस प्रतिमा को, सुवर्ण, चांदी, तांबा, पीतल, मृत्तिका, वृक्ष, मणि या अनेक रंगों द्वारा निर्मित कर, 8 प्रकार के सब लक्षणों से परिपूर्ण वस्त्र से ढक कर, पलंग पर रखें। उसी शैय्या पर शयन करते हुए श्री कृष्ण की स्थापना करें। सूतिका गृह को भगवान श्री कृष्ण के विभिन्न चरणों, जैसे गौचारण, कालिया नाग मर्दन, शेष, श्री गिरिराज धारण, बकासुर-अधासुर-तृणावर्त, पूतना आदि का मर्दन, गज, मयूर, वृक्ष, लता, पताका आदि की सुंदर और दिव्य चित्राकृतियों से सजाएं। वेणु तथा वीणा और शृंगार प्रसाधन सामग्री से युक्त कुंभ हाथ में लिए किंकरों से सेव्यमान माता देवकी की षोडशोपचार पूजा, भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप सहित, करें। देवकी माता, वासुदेव जी और बाल कृष्ण लाल की जय-जयकार करें। देवकी के पैरों के समीप चरणों को दबाती हुई, कमल पर बैठी हुई, देवी श्री की श्नमो देव्यै श्रियेश् इस मंत्र से पूजा करें। जात कर्म, नाल छेदन आदि संस्कारों को संपन्न करते हुए चंद्रमा को भी अर्घ्य दें। असत्य भाषण न करें।
इस प्रकार से सभी शारीरिक इंद्रियों के संयम एवं सदुपयोग से किया गया व्रत अवश्य ही मनोवांछित फल प्रदान करने वाला होता है। मात्र एक इंद्रिय का संयम अर्थात अन्न का त्याग कर देने से तथा अन्य इन्द्रियों से संयम न करने से किसी भी व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है। जहां तक संभव हो, संयम-नियमपूर्वक ही व्रत करना चाहिए। जो लोग अस्वस्थ हों, उन्हें व्रत नहीं करना चाहिए। अर्धरात्रि में भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाना चाहिए तथा पूरी रात जागरण, भजन, कीर्तन में व्यतीत करनी चाहिए। तत्पश्चात् अगले दिन प्रातः अन्न ग्रहण करना चाहिए। यदि कोई पूर्व में भोजन करना चाहे तो अर्धरात्रि में भगवान का जन्मोत्सव मनाकर प्रसाद आदि ग्रहण करके भोजन करना चाहिए। यह कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत संपूर्ण पापों का नाश करने वाला है। इसे श्रद्धा, नियम और संयमपूर्वक करने से इहलोक तथा परलोक में भौतिक एवं आध्यात्मिक सुखों की प्राप्ति होती है।
कृष्ण जन्मकथा -
श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी व श्रीवसुदेव के पुत्र रूप में हुआ था। कंस ने अपनी मृत्यु के भय से अपनी बहन देवकी और वसुदेव को कारागार में कैद किया हुआ था। कृष्ण जी जन्म के समय घनघोर वर्षा हो रही थी। चारो ओर घना अंधकार छाया हुआ था। भगवान के निर्देशानुसार कुष्ण जी को रात में ही मथुरा के कारागार से गोकुल में नंद बाबा के घर ले जाया गया। नन्द जी की पत्नी यशोदा को एक कन्या हुई थी। वासुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को अपने साथ ले गए। कंस ने उस कन्या को वासुदेव और देवकी की संतान समझ पटककर मार डालना चाहा लेकिन वह इस कार्य में असफल ही रहा। दैवयोग से वह कन्या जीवित बच गई। इसके बाद श्रीकृष्ण का लालनदृपालन यशोदा व नन्द ने किया। जब श्रीकृष्ण जी बड़े हुए तो उन्होंने कंस का वध कर अपने माता-पिता को उसकी कैद से मुक्त कराया।
जन्माष्टमी के शुभ अवसर समय भगवा कृष्ण के दर्शनों के लिएए दूर दूर से श्रद्धालु मथुरा पहुंचते हैं. श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर ब्रज कृष्णमय हो जाता है. मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है. मथुरा के सभी मंदिरों को रंग-बिरंगी लाइटों व फूलों से सजाया जाता है. मथुरा में जन्माष्टमी पर आयोजित होने वाले श्रीकृष्ण जन्मोत्सव को देखने के लिए देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से लाखों की संख्या में कृष्ण भक्त पंहुचते हैं भगवान के विग्रह पर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाबजल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढाकर लोग उसका एक दूसरे पर छिडकाव करते हैं. इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है तथा भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है और रासलीला का आयोजन किया जाता है । भगवान विष्णु ने भी समय-समय पर मानव रूप लेकर इस धरती के सुखों को भोगा है। भगवान विष्णु का ही एक रूप कृष्ण जी का भी है जिन्हें लीलाधर और लीलाओं का देवता माना जाता है।
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