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हिंगलाज शक्तिपीठ



हिंगलाज शक्तिपीठ 




हिंगलाज शक्तिपीठ 52 शक्तिपीठों में से एक है। सिंधु नदी के मुहाने पर (हिंगोल नदी के तट पर) पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के हिंगलाज नामक स्थान पर, कराची से 144 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। कराची से फारस की खाड़ी की ओर जाते हुएमकरान तक जलमार्ग तथा आगे पैदल जाने पर 7वें मुकाम पर चंद्रकूप तीर्थ है। 


अधिकांश यात्रा मरुस्थल से होकर तय करनी पड़ती है, जो अत्यंत दुष्कर है। आगे 13वें मुकाम पर हिंगलाज है। यहीं एक गुफा के अंदर जाने पर देवी का स्थान है।  हिंगलाज की यात्रा कराची से प्रारंभ होती है। कराची से लगभग 10 किलोमीटर दूर हॉव नदी है। वस्तुतः मुख्य यात्रा वहीं से होती है। हिंगलाज जाने के पहले लासबेला में माता की मूर्ति का दर्शन करना होता है। पुराणों में हिंगलाज पीठ की अतिशय महिमा है। श्रीमद्भागवत के अनुसार यह हिंगुला देवी का प्रिय महास्थान है- हिंगुलाया महास्थान ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि हिंगुला देवी के दर्शन से पुनर्जन्म कष्ट नहीं भोगना पड़ता है। 


बृहन्नील तंत्रानुसार यहाँ सती का ब्रह्मरंध्र गिरा था। यहाँ पर शक्ति हिंगुला तथा शिव भीमलोचन हैं इस शक्तिपीठ में शक्तिरूप ज्योति के दर्शन होते हैं। गुफा में हाथ पैरों के बल जाना होता है। मुसलमान हिंगुला देवी ,को नानी तथा वहाँ की यात्रा को नानी का हज कहते हैं। पूरे बलूचिस्तान के मुसलमान भी इनकी उपासना पूजा करते हैं। हिंगुलाज को आग्नेय शक्तिपीठ तीर्थ भी कहते हैं, क्योंकि वहाँ जाने से पूर्व अग्नि उगलते चंद्रकूप पर यात्री को जोर-जोर से अपने गुप्त पापों का विवरण देना पड़ता है तथा भविष्य में उसकी पुनरावृत्ति करने का वचन भी देना पड़ता है। जो अपने पाप छिपाते हैं, उन्हें आज्ञा नहीं मिलती और उन्हें वहीं छोड़कर अन्य यात्री आगे बढ़ जाते हैं। इसके बाद चंद्रकूप दरबार की आज्ञा मिलती है। चंद्रकूप तीर्थ पहाड़ियों के बीच में धूम्र उगलता एक ऊँचा पहाड़ है। वहाँ विशाल बुलबुले उठते रहते हैं। 



आग तो नहीं दिखती, किंतु अंदर से यह खौलता, भाप उगलता ज्वालामुखी है। माँ के मंदिर के नीचे अघोर नदी है। कहते हैं कि रावण के वध के पश्चात् ऋषियों ने राम से ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति हेतु हिंगलाज में यज्ञ करके कबूतरों को दाना चुगाने को कहा। श्रीराम ने वैसे ही किया। उन्होंने ग्वार के दाने हिंगोस नदी में डाले। वे दाने ठूमरा बनकर उभरे, तब उन्हें ब्रह्महत्यादोष से मुक्ति मिली। वे दाने आज भी यात्री वहाँ से जमा करके ले जाते हैं। 



हिंगलाज देवी के विषय में पुराण में ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि जो एक बार माता हिंगलाज के दर्शन कर लेता है उसे पूर्वजन्म के कर्मों का दंड नहीं भुगतना पड़ता है। मान्यता है कि परशुराम जी द्वारा 21 बार क्षत्रियों का अंत किए जाने पर बचे हुए क्षत्रियों ने माता हिंगलाज से प्राण रक्षा की प्रार्थना की। माता ने क्षत्रियों को ब्रह्मक्षत्रिय बना दिया इससे परशुराम से इन्हें अभय दान मिल गया। पाकिस्तान में मुसलमान देवी हिंगलाज को नानी का मंदिर और नानी का हज भी कहते हैं। इस स्थान पर आकर हिंदू और मुसलमान का भेद भाव मिट जाता है। दोनों ही भक्ति पूर्वक माता की पूजा करते हैं।














एक मान्यता यह भी है कि रावण के वध के बाद भगवान राम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान राम ने भी हिंगलाज देवी की यात्रा की थी। राम ने यहां पर एक यज्ञ भी किया था। माता हिंगलाज माता वैष्णों की तरह एक गुफा में बैठी हैं। अंदर का नजारा देखेंगे तो आप भी कहेंगे अरे हम तो वैष्णो देवी गए, यह महसूस भी नहीं होगा कि आप पाकिस्तान में हैं। हिंगलाज माता के संबंध में 2500 वर्ष पुराने वृत्तांत और दस्तावेज तो मिलते ही हैं। इतने वर्षों से हजारों यात्री अपार कष्ट सहते हुए देवी दर्शन के लिए आते रहे हैं। हिंगलाज माता मंदीर के ज्योति दर्शन  मुसलमानों द्वारा प्रतिष्ठित है इस शक्तिपीठ में शक्तिरूप ज्योति के दर्शन होते हैं। कहते हैं, जो स्थानीय मुसलमानों द्वारा प्रतिष्ठित है। अप्रैल के महीने में पाकिस्तान पूरे बलूचिस्तान और स्थानीय मुसलमान समूह बनाकर हिंगलाज की यात्रा करते हैं। और इस स्थान पर आकरलाल या भगवा कपड़े, धूप, मोमबत्ती और मिठाई पेश कर इनकी उपासना पूजा करते हैं। 


अगरबत्ती जलाते है और शिरीनी का भोग लगाते हैं।मुसलमान इस यात्रा को हिंगुला देवी को नानी तथा वहाँ की यात्रा को नानी का हज कहते हैं। कहा जाता है कि इस हिंगलाज मंदिर को इंसानों ने नहीं बनाया। पहाड़ी गुफा में देवी मस्तिष्क रूप में विराजमान हैं। यह स्थल पर्यटन की दृष्टि से भी बेहद अच्छा है। धर्मशास्त्र में दाधिची जी द्वारा बताया गया एक महत्वपूर्ण मंत्र इस प्रकार है।]


हिंगुले परमहिंगुले अमृतरूपिणि तनुशक्ति
मनः शिवे श्री हिंगुलाय नमः स्वाहा
गुफा में हाथ पैरों के बल जाना होता है। हिंगलाज माता मंदिर एक विशाल पहाड़ के नीचे पिंडी के रूप में विद्यमान है जहां माता के मंदिर के साथ साथ शिव का त्रिशूल भी रखा गया है। हिंगलाज माता के लिए हर साल मार्च अप्रैल महीने में लगनेवाला मेला केवल हिन्दुओं में बल्कि स्थानीय मुसलमानों में भी बहुत लोकप्रिय है। ऐसा कहा जाता है कि दुर्गम पहाड़ी और शुष्क नदी के किनारे स्थित माता हिंगलाज का मंदिर दोनों धर्मावलंबियों के लिए अब समान रूप से महत्वपूर्ण हो गया है







   

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