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भगवान गणपति के बारह नामों का महत्व

भगवान गणपति के बारह नामों का महत्व

भगवान गणेश के 12 नामों भगवान गणेश की कृपा की तलाश के लिए एक शक्तिशाली और आसान प्रार्थना के रूप में उपयोग किया जाता है। आप दैनिक प्रार्थना के एक भाग के रूप में इन नामों का जाप कर सकते हैं। इन नामों के माध्यम से गणेश को प्रसन्न करने के लिए अलग अलग तरीके हैं। आप श्लोक   सुनाना कर सकते हैं या साधारण एक शक्तिशाली प्रार्थना के रूप में इन नामों का उपयोग करता है। गणपति  के 12 नामों का महत्व पता है।
भगवान गणेश सफलता के अपने पथ से सभी बाधाओं को निकालता है।, स्वास्थ्य, धन, सफलता और समृद्धि प्राप्त करने के लिए मदद करता है, भगवान गणेश बुद्धि के देवता है। इसलिए भगवान गणेश के इन शक्तिशाली 12 नामों गुणवत्ता की शिक्षा और उपयोगी सीखने के लिए सक्षम बनाता है , छात्रों को शैक्षणिक विकास में बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए इन नामों का जाप करना चाहिए, इन नामों के परिवार के सदस्यों के बीच खुशी और शांति लाने के जाप , आप एक नवनिर्मित घर में प्रवेश करते समय इन नामों सुनाना और एक शुभ शुरुआत बनाना चाहिए , एक लड़ाई है, परीक्षा के लिए या किसी भी समस्या की उपस्थिति में जा रहा है, जबकि इन नामों का भी उपयोगी माना जाता है।
सभी बाधाओं और समस्याओं को नष्ट कर देता है जो एक - हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान गणेश विघ्नहरता   कहा जाता है।उनका आशीर्वाद प्राप्त करके, एक सब महान प्राणी, सभी दिव्य प्राणी की कृपा प्राप्त करता है। उन्होंने कहा कि एक वह ऊपर ले जाता है जो भी प्रयास में सफल होने में मदद करता है। भगवान गणेश कई नामों से जाना जाता है और प्रत्येक नाम से जुड़ी यह एक अद्वितीय अर्थ और कहानी है।
1.सुमुख - सुन्दर मुख वाले , 2.एक दन्त - एक दांत वाले, 3. कपिल - जिनके श्री विग्रह से नीले और पीले वर्ण  की आभा का प्रसार होता है, 4. गजकर्णक - हाथी के कान वाले , 5.  लम्बोदर - लम्बे उदर (पेट) वाले , 6. विकट - सर्वश्रेष्ठ , 7. विघ्ननाश-विघ्नों (संकटों ) का नाश करने वाले ,8. विनायक - विशिष्ट नायक , 9. धूम्रकेतु - धुएं के से वर्ण की ध्वजा वाले , 10. गणाध्यक्ष - गणों के स्वामी ,11.  भाल चन्द्र - मस्तक पर चंद्रमा धारण करने वाले ,12. गजानन - हाथी के मुख वाले।

Sumukha Ganesha



















1- सुमुख - सुन्दर मुख वाले  
भगवान गणेश का बहुत सुंदर चेहरा भगवान शिव एवं माता पार्वती के तेज के कारण है जिसकी मुनियों ने वैज्ञानिक व्याख्या की है ।  भगवान गणेश का शरीर सूरज की तरह चमकदार होना बताया गया और चन्द्र मंडल में प्रवेश भी चंद्रमा की तरह शीतल होना दर्शाता है । चंद्रमा को  सौंदर्य के भगवान के रूप में जाना जाता है। चन्द्र मंडल में प्रवेश करने पर, यह भगवान में चमकदार अनुभाग गणेश उसके साथ चंद्रमा के सभी प्रमुख विशेषताओं के साथ जीवन के लिए आया था, और इसलिए नाम सुमुख दिया गया था। भगवान गणेश किसी भी शुभ अवसर की शुरुआत में पूजा की जाती है जब भी अपने पवित्र और सुंदर चेहरा हमेशा हमारे ध्यान का केंद्र है। उनकी छोटी आँखों गंभीरता को दर्शाता है। लंबी नाक उसकी लंबी फ्लैट कानों चरम प्रकृति के अपने ज्ञान कौशल के रूप में सुझाव जहां उसकी बुद्धि और बुद्धि, पता चलता है। उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण हैं जो घटनाओं को सुनता है, इसलिए यह भी ध्यान से शिकायतों और उनके भक्तों की शिकायतों को सुनता है।  दीर्घ कर्ण (लंबे कान) इस का मतलब है। उन्होंने यानी ब्रम्ह विष्णु और महेश ओमकार के एकीकृत प्रकृति भी इन सभी आयामों को एक साथ   सुमु्रख के रूप में अपने नाम का औचित्य साबित होता है । 


Ek Danta Ganesh
Ek Danta Ganesh















2. एक दन्त - एक दांत वाले
भगवान श्री गणेश जी की कोई प्रतिमा देखेंगे तो उसमे पाएंगे कि उनका एक दन्त खंडित है  उनके एकदंती होने के पीछे एक कथा है । इस कथा के अनुसार तीनों लोकों की क्षत्रिय  विहीन करने के पश्चात परशुराम जी अपने गुरुदेव भगवान शिव जी और गुरु माता से मिलने कैलाश पर्वत पहुंचे । उस समय भगवान शिव जी विश्राम कर रहे थे और भगवान श्री गणेश जी द्वार पर पहरेदार के रूप में बैठे थे । द्वार पर भगवान श्री गणेश को देख कर परशुराम जी ने उन्हें नमस्कार किया और अन्दर के ओर जाने लगे , इस पर भगवान श्री गणेशजी ने उनको अन्दर जाने से रोका । धीरे धीरे  दोनों के मध्य विवाद बढ़ता चला गया । परशुराम जी ने अपने अमोध फरसे को  , जो की उनको श्री शिव भगवान ने दिया था , चला दिया ।फरसे के वार से भगवान गणेश जी का एक दन्त खंडित हो गया द्य तब से भगवान गणेशजी एकदंत के नाम से भी जाने जाते हैं । और एक दूसरी कथा के अनुसार महाभारत विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है।  महर्षि वेद व्यास के मुताबिक महाभारत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की कथा है। इस ग्रंथ को लिखने के पीछे भी रोचक कथा है। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने स्वप्न में महर्षि व्यास को महाभारत लिखने की प्रेरणा दी थी। महर्षि व्यास ने यह काम स्वीकार कर लिया, लेकिन उन्हें कोई इसे लिखने वाला न मिला। वे ऐसे किसी व्यक्ति की खोज में लग गए जो इसे लिख सके। महाभारत के प्रथम अध्याय में उल्लेख है कि वेद व्यास ने गणेशजी को इसे लिखने का प्रस्ताव दिया तो वे तैयार हो गए। उन्होंने लिखने के पहले शर्त रखी कि महर्षि कथा लिखवाते समय एक पल के लिए भी नहीं रुकेंगे। इस शर्त को मानते हुए महर्षि ने भी एक शर्त रख दी कि गणेश भी एक-एक वाक्य को बिना समझे नहीं लिखेंगे। इस तरह गणेशजी के समझने के दौरान महर्षि को सोचने का अवसर मिल गया।

Kapil Ganesh
Kapil Ganesh














3 .कपिल - जिनके श्री विग्रह से नीले और पीले वर्ण  की आभा का प्रसार होता है
जिनके श्री विग्रह से नीले और पीले वर्ण  की आभा का प्रसार होता है। ग्रे रंग का एक विशेषण साधन है शक्की ग्रे रंग की गाय कपिला कहा जाता है गाय इसी प्रकार भगवान गणेश के रूप में ज्ञान और दूध के रूप में ज्ञान के रूप में दही घी देता है वह रंग में ग्रे है, हालांकि आदि घी दूध, दही, जैसे उत्पादों देकर उसे स्वस्थ रखने के लिए एक आदमी की जरूरतों को संतुष्ट अभिव्यक्ति की। उन्होंने कहा कि आदमी को स्वस्थ बनाता है उसके सभी बुराइयों को नष्ट कर देता है और अपनी चिंताओं से दूर साफ करता है। इसलिए उसका नाम कपिल यह किया जाता है, इस अर्थ में फिट बैठता है। 

Gajkarna Ganesh
Gajkarna Ganesh














4. गजकर्णक - हाथी के कान वाले।
श्री गणेश लंबे एवं बड़े  कानों वाले हैं। उनका एक नाम गजकर्ण भी है। लंबे कान वालों को भाग्यशाली भी कहा जाता है। श्री गणेश तो भाग्य विधाता और शुभ फल दाता हैं। गणेश जी के कानों से यह संदेश मिलता है कि मनुष्य को सुननी सबकी चाहिए, लेकिन अपने बुद्धि विवेक से ही किसी कार्य का क्रियान्वयन करना चाहिए। गणेश जी के लंबे कानों का एक रहस्य यह भी है कि क्षुद्र कानों वाला व्यक्ति सदैव व्यर्थ की बातों को सुनकर अपना ही अहित करने लगता है। इसलिए व्यक्ति को अपने कान इतने बड़े कर लेने चाहिए कि हजारों निन्दकों की भली-बुरी बातें उनमें इस तरह समा जाए कि वे बातें कभी मुंह से बाहर न निकल सकें।


Lambodara Ganesh













5. लम्बोदर - लम्बे उदर (पेट) वाले।
भगवान् श्री गणेश का लम्बोदर अवतार सत्स्वरूप तथा ब्रह्मशक्ति का धारक है, भगवान लम्बोदर को क्रोधासुर का वध करने वाला तथा मूषक वाहन पर चलने वाला कहा जाता है । कथारू- एक बार भगवान विष्णु के मोहिनी रुप को देखकर भगवान शिव कामातुर हो गये । जब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप का त्याग किया तो कामातुर भगवान् शिव का मन दुखी हो गया । उसी समय उनका शुक्र धरती पर स्खलित हो गया । उससे एक प्रतापी काले रंग का असुर पैदा हुआ। उसके नेत्र तांबे की तरह चमकदार थे । वह असुर शुक्राचार्य के पास गया और उनके समक्ष अपनी इच्छा प्रकट की । शुक्राचार्य कुछ क्षण विचार करने के बाद उस असुर का नाम क्रोधासुर रखा और उसे अपनी शिष्यता से अभिभूत किया । फिर उन्होंने शम्बर दैत्य की रूपवती कन्या प्रीति के साथ उसका विवाह कर दिया । एक दिन क्रोधासुर ने आचार्य के समक्ष हाथ जोड़कर कहा - ‘मैं आप की आज्ञा से सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों पर विजय प्राप्त करना चाहता हूँ । अतरू आप मुझे यश प्रदान करने वाला मन्त्र देने की कृपा करें ।’ शुक्राचार्य ने उसे सविधि सूर्य-मन्त्र की दीक्षा दी। क्रोधासुर शुक्राचार्य की आज्ञा लेकर वन मे चल गया । वहाँ उसने एक पैर पर खड़े होकर सूर्य-मन्त्र का जप किया । उस धैर्यशाली दैत्य ने निराहार रह कर वर्षा, शीत और धूप का कष्ट सहन करते हुए कठोर तप किया । असुर के हजारों वर्षो की तपस्या के बाद भगवान सूर्य प्रकट हुए । क्रोधासुर ने उनका भक्ति पूर्वक पूजन किया । भगवान सूर्य को प्रसन्न देख कर उसने कहा- ‘प्रभो ! मेरी मृत्यु न हो । मैं सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों को जीत लूँ । सभी योद्धाओं में श्रेष्ठ सिद्ध होऊँ ।’ तथास्तु ! कहकर भगवान सूर्य अन्तर्धान हो गये । घर लोटकर क्रोधासुर ने शुक्राचार्य के चरणों में प्रणाम किया । शुक्राचार्य ने उसका आवेश्पुरी में दैत्यों के राजा के पद पर अभिषेक कर दिया । कुछ दिनों के बाद उसने असुरों से ब्रह्माण्ड विजय की इच्छा व्यक्त की । असुर बड़े प्रसन्न हुए । विजय यात्रा प्रारम्भ हुई । उसने पृथ्वी पर सहज ही अधिकार कर लिया । इसी प्रकार वैकुण्ठ और कैलाश पर भी उस महादैत्य का राज्य स्थापित हो गया । क्रोधासुर ने भगवान सूर्य के सूर्य लोक को भी जीत लिया । वरदान देने के कारण उन्होंने भी सूर्यलोक का दुखी ह्रदय से त्याग कर दिया । अत्यंत दुखी देवताओं और ऋषियों ने आराधना की । इससे संतुष्ट होकर लम्बोदर प्रकट हुए । उन्होंने कहा - ’देवताओं और ऋषियों ! मैं क्रोधासुर का अहंकार चूर्ण कर दूंगा । आप लोग निश्चिंत हो जायें ।  लम्बोदर के साथ क्रोधासुर का भीषण संग्राम हुआ । देवगण भी असुरों का संहार करने लगे । क्रोधासुर के बड़े - बड़े योद्धा युद्ध भूमि में आहत होकर गिर पड़े । क्रोधासुर दुखी होकर लम्बोदर के चरणों में गिर गया तथा उनकी भक्ति भाव से स्तुति कर ने लगा । सहज कृपालु लम्बोदर ने उसे अभयदान दे दिया । क्रोधासुर भगवान लम्बोदर का आशीर्वाद और भक्ति प्राप्त कर शान्त जीवन लिए पाताल चला गया । देवता अभय और प्रसन्न होकर भगवान लम्बोदर का गुणगान करने लगे ।



Vikat Ganesh
Vikat Ganesh
















6.    विकट - सर्वश्रेष्ठ
भगवान श्रीगणेश को विकट नाम से भी जाना जाता है। दरअसल यह बप्पा के एक अवतार का नाम है। उन्होंने यह अवतार कामासुर के संहार के लिए लिया था। कहते हैं कि भगवान विष्णु जब जालंधर के वध के लिए वृन्दा का तप नष्ट करने गए तभी उसी समय उनके शुक्र से अत्यंत तेजस्वी दैत्य कामासुर पैदा हुआ। कामासुर ने अपनी पूरी शिक्षा दैत्यासुर शुक्राचार्य से ली। उन्हीं की आज्ञा पाकर वह भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तप किया। उसकी कठिन तप से खुश होकर। भगवान शिव उसके समक्ष प्रकट हुए। कामासुर ने वर मांगा कि उसे ब्रह्मांड का राज्य और शिवभक्ति प्रदान करें। इसके साथ ही उसे निर्भय और मृत्युंजयी होने का वरदान भी दें। भगवान शिव ने कामासुर को यह वरदान दे दिया। कामासुर प्रसन्न होकर दैत्यगुरु शुक्राचार्य के पास लौट आया। शुक्राचार्य ने कामासुर से प्रसन्न होकर महिषासुर की रूपवती पुत्री तृष्णा के साथ उसका विवाह कर दिया। वहीं सभी दैत्यों ने भी कामासुर के अधीन रहने का आश्वासन दिया। कामासुर ने अत्यंत सुंदर शहर रतिद को अपनी राजधानी बनाई। उसने कई दैत्यों को अपनी सेना में प्रधान बनाया। उस महा असुर ने पृथ्वी के सभी राजाओं को जीत लिया और स्वर्ग पर चढ़ाई की। इंद्र आदि देव भी उसके पराक्रम से घवरा कर हार गए। इस तरह चारों तरफ झूठ-कपट और छल का राज्य हो गया। चारों तरफ इस तरह का आतंक देखकर सभी देवता घबरा गए, तभी देवर्षि नारद वहां पहुंचे उन्होंने देवताओं को महर्षि मुद्गल से मिलने को कहा, महर्षि सभी देवताओं को लेकर गणेशधाम पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्होंने मयूरवाहन गणेश की उपासना की। भगवान प्रकट हुए। उन्होंने कामासुर के आतंक से मुक्त कराने का वचन दिया। भगवान विकट रूप में प्रकट हुए, जिनका वाहन मोर था। वह कामासुर से युद्ध करने चले गए। भयानक युद्ध हुआ जिसमें कामासुर के पुत्र भी मारे गए। कामासुर मूर्छित हो गया। वह इतना थक चुका था कि युद्ध करने की स्थिति में नहीं था। आखिर कामासुर ने हार मान ली और उसने भगवान विकट से क्षमा मांगी। इस तरह कामासुर भगवान विकट की शरण में आ गया।





7. विघ्ननाश-विघ्नों (संकटों ) का नाश करने वाले   
सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश जी का स्मरण किया जाता है। जिस कारण इन्हें विघ्नेश्वर, विघ्न हर्ता कहा जाता है। इनकी उपासना करने से सभी विघ्नों का नाश होता है तथा सुख-समृद्ध व ज्ञान की प्राप्ति होती है। विघ्नेश्वर नामक एक दैत्य का वध करने के कारण ही इसका नाम श्विघ्नेश्वर विनायकश् हुआ था। तभी से यहाँ भगवान श्री गणेश सभी विघ्नों को नष्ट करने वाले माने जाते हैं। एक अन्य कथानुसार अभयदान मांगते समय विघनसुर दैत्य की प्रार्थना थी कि गणेशजी के नाम के पहले उसका भी नाम लिया जाए, इसलिए गणपति को विघ्नहर्ता या विघ्नेश्वर का नाम यहीं से मिला। एक कहानीके मुताबिक विघ्नासुर राक्षसको देवताके राजा इंद्र द्वारा राजा अभिनंदन द्वारा आयोजितप्रार्थना को नष्ट करने के लिए बनाया गया था, हालांकि, दानव एक कदम आगे चला गया और सभीवैदिक, धार्मिक कार्यको नष्ट कर दिया, उसी समय लोगोकी प्राथनासे प्रसन्न होके गणेशजी उसका वध करने के लिए आये थे पर कहानी के मुताबिक राक्षसने गणेशजीको विनंती करके दया बक्षने के लिए कहा था, उस समय गणेशजीने उसको बक्ष दिया था परंतु एक शर्त रखी थी और वो येथी के जहा गणेश पूजा हो रही हाई वहा वो राक्षस नहीं जा पाएगा और उसके बदलेमे राक्षसने गणेशजी से यह वरदान माँगा था की आपके साथ मेरे नामभी जुड़ना चाहिए और तबसे यहाँ गणेशजीको विघ्नेश्वरध्विघ्नहर गणेशजी के नामसे जाना जाता हैं. यहाँ के गनेशको श्री विघ्नेश्वर विनायकभी कहा जाता हैं.
















8. विनायक - विशिष्ट नायक।
.विनायक विशिष्ट नायक  या स्वामी  भगवान गणेश का नाम है। भगवान गणेश विघ्नकर्ता और हर्ता दोनों हैं। कहा जाता है भगवान गणेश की परिक्रमा कर के पूजा की जानी चाहिए। परिक्रमा करते वक्त अपनी इच्छाओं को लगातार दोहराते रहना चाहिए। भगवान ऐसा करने वाले भक्तों की मनोकामना जरुर पूरी करते हैं। भक्तों को विनायक के मंदिर की तीन परिक्रमा करनी चाहिए। इसके अलावा भक्त अगर भगवान विनायक को खुश करना चाहते हैं और अपनी इच्छाओं के पूरा करना चाहते हैं तो उन्हें विनायक के नाम से तर्पण करना चाहिए। सिद्धि विनायक गणेश जी का सबसे लोकप्रिय रूप है। गणेश जी जिन प्रतिमाओं की सूड़ दाईं तरह मुड़ी होती है, वे सिद्घपीठ से जुड़ी होती हैं और उनके मंदिर सिद्घिविनायक मंदिर कहलाते हैं। कहते हैं कि सिद्धि विनायक की महिमा अपरंपार है, वे भक्तों की मनोकामना को तुरंत पूरा करते हैं। मान्यता है कि ऐसे गणपति बहुत ही जल्दी प्रसन्न होते हैं और उतनी ही जल्दी कुपित भी होते हैं। सिद्धि विनायक की दूसरी विशेषता यह है कि वह चतुर्भुजी विग्रह है। उनके ऊपरी दाएं हाथ में कमल और बाएं हाथ में अंकुश है और नीचे के दाहिने हाथ में मोतियों की माला और बाएं हाथ में मोदक (लड्डुओं) भरा कटोरा है। गणपति के दोनों ओर उनकी दोनो पत्नियां रिद्धि और सिद्धि मौजूद हैं जो धन, ऐश्वर्य, सफलता और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने का प्रतीक है। मस्तक पर अपने पिता शिव के समान एक तीसरा नेत्र और गले में एक सर्प हार के स्थान पर लिपटा है। सिद्धि विनायक का विग्रह ढाई फीट ऊंचा होता है और यह दो फीट चैड़े एक ही काले शिलाखंड से बना होता है। गणेश जी प्रतीक हैं मनुष्य और अन्य जीवों के सह अस्तित्व के ,जो इस प्रकृति में एक दूसरे पर आश्रित हैं । इनके अस्तित्व की मूल कल्पना बहुत ही वृहद है ,जिसे अध्ययन और ज्ञान के द्वारा ही समझा जा सकता है । हम अपने हर मंगल कार्य में भगवान गणेश की पूजा सबसे पहले करते हैं जो कार्य को निर्विघ्न सम्पन्न करवाने में हर जीव का आवाह्न है । जो इसे नकारते हैं उनको बस इतना ही कहना है की भारतीय हिन्दू संस्कृति के धार्मिक प्रतीक मनुष्य के अस्तित्व की पहचान हैं। 
















9. धूम्रकेतु - धुएं के से वर्ण की ध्वजा वाले।
भविष्य पुराण के अनुसार, नाम धूम्रकेतु  द्वारा गणेश के चैथे अवतार कलयुग  में जन्म लेते हैं और अनर्थकारी नष्ट कर देगा। इस गणेश की एक भयंकर रूप माना जाता है और वह एक नीले घोड़े पर सवारी करेंगे। इस रूप में वह एक अंत कलियुग लाना होगा और सृष्टि के अगले चक्र के लिए ब्रह्मांड साफ होगा। धूम्रकेतु राख या धूम्रपान  की तरह रंग में ग्रे है। उन्होंने कहा कि या तो दो या दो से चार हथियार है। उन्होंने अपने पर्वत के रूप में एक नीला घोड़ा है। उन्होंने कहा की गिरावट समाप्त करने के लिए आ जाएगा कलियुग । इस अवतार के दौरान उन्होंने कई राक्षसों को मारता है। ग्रिम्स गणेश के इस अवतार और के दसवें और अंतिम अवतार के बीच एक समानांतर है कि कलियुग, वर्तमान युग  उम्र में भ्रम की स्थिति, आतंकवाद, लालच और अराजकता की है। गणेश की चैथी अभिव्यक्ति धूम्रकेतु आना अभी बाकी है। गणेश पुराण में, यह आतंकवाद, नकारात्मक और अंधेरे शक्तियों को नष्ट करने के लिए (ब्लू अनंत का प्रतीक) धूम्रकेतु एक नीले घोड़े की सवारी कलियुग के अंत तक आ जाएगा कि लिखा है।






10 गणाध्यक्ष - गणों के स्वामी।
गणाध्यक्ष - गणों के स्वामी यह श्री गणेश दसवीं नाम है ।  यह भी दो अर्थ वहन करती है. एक स्वामी या ऐसी बातों के एक नियंत्रक, जो गिना जा सकता है. दूसरा अर्थ स्वामी या ळंदंे के एक नियंत्रक है. (सामान्य लोग) (पुरुष) नर, असुर (डेमन) (सांप) नाग (चारों वेदों) चार पुरुषार्थ ....... गणेश इन सब के स्वामी है. विज्ञान इन सभी के स्वामी के रूप में गणेश कहता है. विज्ञान पूरे (ब्रम्ह) ब्रह्मांड इसलिए गणेशा अधिपति के रूप में जाना जाता है । गणेश सैंकड़ों पुत्रों और सैकड़ों गणों से भी बढ़ कर है, इसलिए देवनिर्मित अमृतमय मोदक मैं इसी को प्रदान करती हूं। माता-पिता की भक्ति के कारण गणेश यज्ञादि में सर्वत्र अग्रपूज्य होगा।श् तब शिवजी बोले, श्इस गणेश की अग्रपूजा से ही समस्त देवगण प्रसन्न हों।श् साथ ही उन्हें गणों का अध्यक्ष भी बना दिया। इस तरह गणेश जी मोदकप्रेमी बने। अगर पैसे की कमी न हो तो इन्हें 21 मोदक चढ़ाने चाहिए। पैसा न होने की स्थिति में 5 मोदक तो अवश्य चढ़ाने चाहिए। घर में बने मोदक, लड्डू उन्हें ज्यादा आनंद देते हैं, इसमें आपकी श्रद्धा और प्रेम जो मिला होता है। मूंग की दाल के बने लड्डू इन्हें बहुत प्रिय हैं तो माघ में तिल के लड्डू गणेश जी को बहुत पसंद हैं।




11. भाल चन्द्र - मस्तक पर चंद्रमा धारण करने वाले।
भगवान श्रीगणेश का एक स्वरूप भालचन्द्र के नाम से भी पूजनीय है। सरल शब्दों में श्भालचन्द्रश् का अर्थ है भाल यानी मस्तक पर चंद्र धारण करने वाले। श्रीगणेश के इस नाम में सफल जीवन का अहम सूत्र है। चूंकि शास्त्रों में चन्द्रमा को सभी जीवों के मन का नियंत्रक माना गया है, तो वहीं गणेश बुद्धि दाता हैं। मस्तक भी बुद्धि केन्द्र है। श्रीगणेश ने मस्तक पर ही चन्द्र को धारण किया है। चन्द्र की प्रकृति शीतल व शांत होती है। इस तरह संकेत है कि सफलता और जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए मन-मस्तिष्क को शांत रख बुरी और नकारात्मक सोच से बचा जाए। मानसिक धैर्य, संयम व सूझबूझ ही कामयाबी और दायित्वों की राह में आने वाले हर उतार-चढ़ाव में दक्षता के साथ आगे बढने में मददगार साबित होते हैं। बुधवार को श्रीगणेश उपासना के दौरान भालचन्द्र स्वरूप का ध्यान कर सुनिश्चित सफलता का यही सूत्र अपनाना बड़ा ही असरदार उपाय माना गया है। इसके लिए सुबह या शाम के वक्त इस विशेष मंत्र का ध्यान श्रीगणेश को सिंदूर, अक्षत व दूर्वा चढ़ाकर व यथाशक्ति लड्डुओं का भोग लगाकर कार्यसिद्धि की कामनाओं के साथ करें। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। करवाचैथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अर्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। वर्तमान समय में करवाचैथ व्रतोत्सव ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं लेकिन अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं।








12. गजानन - हाथी के मुख वाले।
शिव और पार्वती पुत्र भगवान गणेश का ही नाम गजानन है। लिंग पुराण के अनुसार एक बार देवताओं ने भगवान शिव की उपासना करके उनसे सुरद्रोही दानवों के दुष्टकर्म में विघ्न उपस्थित करने के लिये वर माँगा। आशुतोष शिव ने  तथास्तु कहकर देवताओं को संतुष्ट कर दिया। समय आने पर गणेश जी का प्राकट्य हुआ। उनका मुख हाथीके समान था और उनके एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे में पाश था। देवताओं ने सुमन-वृष्टि करते हुए गजानन के चरणों में बार-बार प्रणाम किया। भगवान शिव ने गणेश जी को दैत्यों के कार्यों में विघ्न उपस्थित करके देवताओं और ब्राह्मणों का उपकार करने का आदेश दिया। द्वापर युग में उनका वर्ण लाल है। वे चार भुजाओं वाले और मूषक वाहनवाले हैं तथा गजानन नाम से प्रसिद्ध हैं।किसी नवजात शिशु का मस्तक उसके धड़ से लगा दो। एक गजराज का नवजात शिशु मिला उस समय। उसी का मस्तक पाकर वह बालक गजानन हो गया।
एक समय जब माता पार्वती मानसरोवर में स्नान कर रही थी तब उन्होंने स्नानस्थल पर कोई आ न सके इस हेतु अपनी माया से गणेश को जन्म देकर ‘बाल गणेश’ को पहरा देने के लिए नियुक्त कर दिया। इसी दौरान भगवान शिव उधर आ जाते हैं। महादेव इस बात से अंजान थे की बाल गणेश उनके पुत्र है गणेशजी उन्हें रोक कर कहते हैं कि आप उधर नहीं जा सकते हैं। महादेव ने बालक से पूछा की आप कौन है? बाल गणेश ने कहा में माता पार्वती का पुत्र हूँद्य महादेव ने कहा की में पार्वती का पति हूँ मुझे अंदर जाने दो। किन्तु गणेश ने अनुमति नही दी। महादेव अपना क्रोध शांत करके वहां से चले गये। महादेव ने अपने गण को वहां भेजा। गणेश ने उनके साथ युद्ध किया गणेश ने उनकी ऐसी हालत कर दी की वह भगवान शिव की शरण में चले गये। उन्होंने अपनी व्यथा महादेव के आगे व्यक्त की। उनकी व्यथा सुनकर महादेव क्रोधित हो जाते हैं और पुनः वह गणेश से युद्ध करने चले जाते है। महादेव गणेश जी को रास्ते से हटने का कहते हैं किंतु गणेश जी अड़े रहते हैं तब दोनों में युद्ध हो जाता है। युद्ध के दौरान क्रोधित होकर शिवजी बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर देते हैं। शिव के इस कृत्य का जब पार्वती को पता चलता है तो वे विलाप और क्रोध से प्रलय का सृजन करते हुए कहती है कि तुमने मेरे पुत्र को मार डाला। यह सुनकर महादेव को आश्चर्य होता हैद्य माता का रौद्ररूप देख महादेव अपने गण को कहते है की वह उत्तर दिशा की ओर जाये और कोई भी पहला प्राणी मिले तो उसका सर काटकर शाम होने से पूर्व ले आये। शिवगण उत्तर की ओर जाते है। उन्हें पहले दो हिरन मिले किन्तु वह माता पुत्र थे। यह देखकर गण आगे गये। फिर उन्हें एक हाथी मिला। हाथी ने गण को अपना शीष काटने की अनुमति दी। वह जल्दी से महादेव के पास गये।  महादेव हाथी का सिर गणेश के धड़ से जोड़कर गणेश जी को पुनरूजीवित कर देते हैं। तभी से भगवान गणेश को गजानन गणेश कहा जाने लगा।

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हस्तमुद्रा - औषधीय एवं आध्यात्मिक लाभ योग अनुसार आसन और प्राणायाम की स्थिति को मुद्रा कहा जाता है। बंध , क्रिया और मुद्रा में आसन और प्राणायाम दोनों का ही कार्य होता है। योग में मुद्राओं को आसन और प्राणायाम से भी बढ़कर माना जाता है। आसन से शरीर की हड्डियाँ लचीली और मजबूत होती है जबकि मुद्राओं से शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास होता है। मुद्राओं का संबंध शरीर के खुद काम करने वाले अंगों और स्नायुओं से है। मुद्राओं की संख्या को लेकर काफी मतभेद पाए जाते हैं। मुद्रा और दूसरे योगासनों के बारे में बताने वाला सबसे पुराना ग्रंथ घेरण्ड संहिता है। हठयोग पर आधारित इस ग्रंथ को महर्षि घेरण्ड ने लिखा था। घेरंड में 25 और हठयोग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं का उल्लेख मिलता है , लेकिन सभी योग के ग्रंथों की मुद्राओं को मिलाकर कुल 50 से 60 हस्त मुद्राएँ हैं। मानव - सरीर अनन्त रहस्यों से भरा हुआ है । शरीर की अपनी एक मुद्रामयी भाषा है । जिसे करने स

पुष्कर - पौराणिक एवं धार्मिक महत्व

पुष्कर - पौराणिक एवं धार्मिक महत्व पुष्कर ब्रह्मा के मंदिर और ऊँटों के व्यापार मेले के लिए प्रसिद्ध है। पुष्कर का शाब्दिक अर्थ है तालाब और पुराणों में वर्णित तीर्थों में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। राजस्थान के शहर अजमेर में कई पर्यटन स्थल है जिनमें से ये एक है। अनेक पौराणिक कथाएं इसका प्रमाण हैं। यहाँ से प्रागैतिहासिक कालीन पाषाण निर्मित अस्त्र - शस्त्र मिले हैं , जो उस युग में यहाँ पर मानव के क्रिया - कलापों की ओर संकेत करते हैं। हिंदुओं के समान ही बौद्धों के लिए भी पुष्कर पवित्र स्थान रहा है। भगवान बुद्ध ने यहां ब्राह्मणों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। फलस्वरूप बौद्धों की एक नई शाखा पौष्करायिणी स्थापित हुई। शंकराचार्य , जिन सूरी और जिन वल्लभ सूरी , हिमगिरि , पुष्पक , ईशिदत्त आदि विद्वानों के नाम पुष्कर से जुड़े हुए हैं।   चैहान राजा अरणोराज के काल में विशाल शास्त्रार्थ हुआ था। इसमें अजमेर के जैन विद्वान जिन सूरी और ज