Skip to main content

सावन महीने का महत्व एवं शिव उपासना


सावन महीने का महत्व एवं शिव उपासना 













माह सावन का हर दिन एक विशेष महत्व रखता है क्योंकि पूरा सावन माह, अत्यधिक शुभ माना जाता है। पूरे महीने में भगवान शिव का आशीर्वाद हमंे प्राप्त होता है   सावन के महीने में  शुभ  त्योहार  हरियाली तीज, नाग पंचमी  और रक्षाबंधनका सफल आयोजन किया जाता है सावन के पूरे महीने में भगवान शिव की पूजा करने का विशेष महत्व है  क्योंकि भगवान शिव की पूजा के शुभ फल सावन के पवित्र महीने में कई गुना बढ़ जाते हैं। सोलह सोमवारके व्रत का प्रारंभ करना भी सावन के महीने में अत्यधिक शुभ माना जाता है। सावन के महीने के दौरान भगवान शिव और मां पार्वती पूजा की पूजा की जाती है तथा उनको प्रसन्न करने के लिए प्रसाद, गुलाब या गेंदे के फूलबेल पत्र, धतूरा आदि शिवलिंग की पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता हैं।














सावन माह के पहले दिन शनिवार अगस्त 1, सावन सोमवार व्रत 2015  सोमवार 3 अगस्त, सावन सोमवार व्रत 2015   सोमवार 10 अगस्त ,सावन सोमवार व्रत 2015 सोमवार 17 अगस्त, सावन सोमवार व्रत 2015सोमवार, 24 अगस्त, सावन महीने के अंतिम दिन शनिवार 29 अगस्त













धार्मिक मान्यता है कि सोमवार का व्रत करने से दुःख, कष्ट और परेशानियों से छुटकारा मिलता है और सुख, निरोगी काया और समृद्ध जीवन का आनन्द पाता है। सावन माह में सोमवार को जो भी पूरे विधि-विधान से शिव जी की पूजा करता है वो शिव जी का विशेष आशीर्वाद पा लेता है। इस दिन व्रत करने से बच्चों की बीमारी दूर होती है, दुर्घटना और अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है, मनचाहा जीवनसाथी मिलता है, वैवाहिक जीवन में रही परेशानियों का अंक होता है, सरकार से जुड़ी परेशानियों हल हो जाती हैं साथ ही भक्त को आध्यात्मिक उत्थान होता है। 











सावन के सोमवार व्रत के नियम - व्रतधारी को ब्रह्म मुर्हत में उठकर पानी में कुछ काले तिल डालकर नहाना चाहिए।, भगवान शिव का अभिषेक जल या गंगाजल से होता है परंतु विशेष अवसर विशेष मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए दूध, दही, घी, शहद, चने की दाल, सरसों तेल, काले तिल, आदि कई सामग्रियों से अभिषेक की विधि प्रचिलत है, तत्पश्चात ऊँ नमः शिवाय मंत्र के द्वारा श्वेत फूल, सफेद चंदन, चावल, पंचामृत, सुपारी, फल और गंगाजल या साफ पानी से भगवान शिव और पार्वती का पूजन करना चाहिए।, , मान्यता है कि अभिषेक के दौरान पूजन विधि के साथ-साथ मंत्रों का जाप भी बेहद आवश्यक माना गया है फिर महामृत्युंजय मंत्र का जाप हो, गायत्री मंत्र हो या फिर भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र।शिव-पार्वती की पूजा के बाद सावन के सोमवार की व्रत कथा करें।, आरती करने के बाद भोग लगाएं और घर परिवार में बांटने के पश्चात स्वयं ग्रहण करें। , दिन में केवल एक समय नमक रहित भोजन ग्रहण करें। ,















श्रद्धापूर्वक व्रत करें। अगर पूरे दिन व्रत रखना सम्भव हो तो सूर्यास्त तक भी व्रत कर सकते हैं, ज्योतिष शास्त्र में दूध को चंद्र ग्रह से संबंधित माना गया है क्योंकि दोनों की प्रकृति शीतलता प्रदान करने वाली होती है। चंद्र ग्रह से संबंधित समस्त दोषों का निवारण करने के लिए सोमवार को महादेव पर दूध अर्पित करें।, समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए शिवलिंग पर प्रतिदिन गाय का कच्चा दूध अर्पित करें। ताजा दूध ही प्रयोग में लाएं, डिब्बा बंद अथवा पैकेट का दूध अर्पित करें।
सावन माह में शिव भक्ति के महत्व का वर्णन ऋग्वेद में किया गया है चारों ओर का वातावरण शिव भक्ति से ओत-प्रोत रहता है शिव मंदिरों में शिवभक्तों का तांता लगा रहता है शिव को प्रसन्न करने के लिए ‘‘ ऊं नमः शिवाय ’’ मंत्र का उच्चारण वातावरण को प्रफुल्लित कर देता है भक्तजन दूर स्थानों से जल भरकर लाते हैं और उस जल से भगवान का जलाभिषेक करते हैं श्रावण मास के अंतर्गत प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर शिवामुट्ठी चढ़ाई जाती है 1. प्रथम सोमवार - कच्चे चावल की एक मुट्ठी , 2. दूसरे सोमवार - सफेद तिल एक मुट्ठी 3. तीसरे सोमवार - खड़े मूंग एक मुट्ठी 4. चैथे सोमवार - जौ मुट्ठी  चढ़ाने का महत्व है












रोगों से मुक्ति दिलाता सावन माह: 1. सिर दर्द, नेत्र रोग, अस्ति रोग आदि मे शिवलिंग का पूजन आक वृक्ष के पुष्पों, पत्तों एवं बिल्वपत्रों से करने से आराम मिलता है 2. खांसी, जुकाम, नजला, मानसिक परेशानियां, रक्तचाप से आराम पाने के लिए शिवलिंग का रूद्री पाठ करते हुए काले तिल मिश्रित दूध धार से रूद्राभिषेक करना चाहिए 3. रोग जैसे रक्तदोष में गिलोय जड़ी-बूटी के रस से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए 4. चर्म रोग, गुर्दे के रोग में विदार या जड़ी-बूटी के रस से अभिषेक करें 5.  लीवर, आंतों एवं अधिक चर्बी को कम करने के लिए शिवलिंग पर हल्दी मिश्रित दूध चढ़ाना चाहिए 6. शारीरिक शक्ति की कमी, यू टी आई रोग एवं वीर्य की कमी को दूर करने के लिए पंचामृत, शहद और घृत से शिवलिंग का अभिषेक करने से आराम मिलता है 7. रोग  जैसे वात, जोड़ों का दर्द, और मांसपेशियों का दर्द में गन्ने का रस और छाछ से शिवलिंग का अभिषेक करना होता है
सावन माह में उपाकर्म व्रत का महत्व बहुत ज्यादा है इसे श्रावणी भी कहते हैं सावन माह को पवित्र और व्रत रखने वाला माह माना जाताा है पूरे सावन माह में निराहारी या फलाहारी रहने की हिदायत है श्रावण माह में समुद्र मंथन किया गया था मंथन के दौरान समुद्र से निकले विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में समाहित कर संपूर्ण सृष्टि की रक्षा की किन्तु अग्नि के समान दुग्ध विष के पान के बाद महादेव शिव का कंठ नीलवर्ण हो गया विष की ऊष्णता को शांत करने कर भगवान भोले को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल-अर्पण किया, यही कारण है कि भगवान शिव की मूर्ति शिवलिंग पर जल चढ़ाने का महत्व आज भी है
सावन माह में एक बिल्वपत्र से शिवार्चन करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है एक अखंड बिल्वपत्र अर्पण करने से कोटि बिल्वपत्र चढ़ाने का फल प्राप्त होता है शिव पूजा में रूद्राक्ष अर्पित करने का भी विशेष फल महत्व है क्योंकि रूद्राक्ष शिव नयन जल से प्रगट हुआ इसी लिए शिव को अति प्रिय है भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने के लिए महादेव को कच्चा दूध, सफेद फल, भस्म तथा भांग, धतूरा, श्वेत वस्त्र अधिक प्रिय हैं सावन माह में दिन के अनुसार शिव पूजा का फल इस प्रकार है: रविवार - पाप नाशक, सोमवार-धन लाभ, मंगलवार- स्वास्थ्य लाभ, रोग निवारण, बुधवार- पुत्र प्राप्ति, गुरूवार-आयुकारक, शुक्रवार- इंद्रिय सुख, शनिवार - सर्व सुखकारी



शिव पूजा का उत्तम स्थानों में तुलसी, पीपल वट वृक्ष के समीप, नदी, सरोवर का तट, पर्वत की चोटी, सागर तीर, मंदिर, आश्रम, तीर्थ अथवा धार्मिक स्.थल, पावन धाम, गुरू की शरण शिव पूजा में पुष्प का महत्व - 1. बिल्वपत्र - जन्म जन्मान्तर के पापों से मुक्ति, 2. कमल -मुक्ति,धन, शान्ति प्रदायक 3. कुशा - मुक्ति प्रदायक, 4. दूर्वा - आयु प्रदायक, 5. धतूरा - पुत्र सुख प्रदायक, 6. आक - प्रताप वृद्धि, 7. कनेर- रोग निवारक, श्रंघार पुष्प- संपदा वर्धक, शमी पत्र- पाप नाशक शिव अभिषेक पूजा में प्रयुक्त द्रव्य विशेष के फल - 1. शहद- सिद्धि प्राप्ति, 2. दूध-समृद्धि दायक, 3.कुषा जल- रोग नाशक, 4. ईख रस- मंगल कारक, 5. गंगा जल- सर्व सिद्धि दायक, 6. ऋतु फल के रस - धन लाभ



सावन को साल का सबसे पवित्र महीना माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस माह का प्रत्येक दिन किसी भी देवी-देवता की आराधना करने के लिए सबसे उपयुक्त होता है, विशेष तौर पर इस माह में भगवान शिव, माता पार्वती और श्रीकृष्ण की आराधना की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जिस तरह इस माह में कीट-पतंगे अपनी सक्रियता बढ़ा देते हैं, उसी तरह मनुष्य को भी पूजा-पाठ में अपनी सक्रियता को बढ़ा देनी चाहिए।
यह महीना बारिशों का होता है, जिससे कि पानी का जल स्तर बढ़ जाता है। मूसलाधार बारिश नुकसान पहुंचा सकती है इसलिए शिव पर जल चढ़ाकर उन्हें शांत किया जाता है। महाराष्ट्र में जल स्तर को सामान्य रखने की एक अनोखी प्रथा विद्यमान है। वे सावन के महीने में समुद्र में जाकर नारियल अर्पण करते हैं ताकि किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं पहुंच पाए। सावन के महीने से जुड़ी एक पौराणिक कथा धार्मिक हिन्दू दस्तावेजों में मौजूद है जिसके अनुसार समुद्र मंथन के दौरान निकले विष का पान करने से भगवान शिव के शरीर का तापमान तेज गति से बढ़ने लगा था। ऐसे में शरीर को शीतल रखने के लिए भोलेनाथ ने चंद्रमा को अपने सिर पर धारण किया और अन्य देव उन पर जल की वर्षा करने लगे। यहां तक कि इन्द्र देव भी यह चाहते थे कि भगवान शिव के शरीर का तापमान कम हो जाए इसलिए उन्होंने अपने तेज से मूसलाधार बारिश कर दी। इस वजह से सावन के महीने में अत्याधिक बारिश होती है, जिससे भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं।



भगवान शिव के भक्त कावड़ ले जाकर गंगा का पानी शिव की प्रतिमा पर अर्पित कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं। इसके अलावा सावन माह के प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव पर जल चढ़ाना शुभ और फलदायी माना जाता है। सावन के महीने में व्रत रखने का भी विशेष महत्व दर्शाया गया है। ऐसी मान्यता है कि कुंवारी लड़कियां अगर इस पूरे महीने व्रत रखती हैं तो उन्हें उनकी पसंद का जीवनसाथी मिलता है। इसके पीछे भी एक कथा मौजूद है जो शिव और पार्वती से जुड़ी है। पिता दक्ष द्वारा अपने पति का अपमान होता देख सती ने आत्मदाह कर लिया था। पार्वती के रूप में सती ने पुनर्जन्म लिया और शिव को अपना बनाने के लिए उन्होंने सावन के सभी सोमवार का व्रत रखा। फलस्वरूप उन्हें भगवान शिव पति रूप में मिले। यह सब तो पौराणिक मान्यताएं हैं, जिनका सीधा संबंध धार्मिक कथाओं से है। परंतु सावन के महीने में मांसाहार से क्यों परहेज किया जाता है इसके पीछे का कारण धार्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक भी है। दरअसल सावन के पूरे माह में भरपूर बारिश होती है जिससे कि कीड़े-मकोड़े सक्रिय हो जाते हैं। इसके अलावा इस मौसम में उनका प्रजनन भी अधिक मात्रा में होता है। इसलिए बाहर के खाने का सेवन सही नहीं माना जाता। सावन के महीने को प्रेम और प्रजनन का महीना कहा जाता है। इस माह में मछलियां और पशु, पक्षी सभी में गर्भाधान की संभावना होती है। किसी भी गर्भवती मादा की हत्या हिन्दू धर्म में एक पाप माना गया है इसलिए सावन के महीने में जीव को मारकर उसका सेवन नहीं किया जाता। 




देख नभ में सावन के बादल नाचे मयूर ठंडी हवा के झोंके मनभावन लगे सुन्दर लगे हवा से लहराते ताल का पानी फूलों और पत्तों पे निखार लाया पानी बूंदों के मोती बिखेरे सावन ने रंगीली छटा ओढ़ ली है धरा ने सर पे चुनर धानी सावन आया याद आई गाँव की बागों के झूले वो महक मिट्टी की मन में है समाई इस बरस आएगा मेरा भाई बांधूंगी राखी खुशी से झूमें मन झूमे हैं ये सावन
सावन मास मंे व्रत, पूजन और अर्चना करके आप शिवजी को प्रसन्न कर अपनी मुरादें पूरी करें एवं शुभदायी एवं सुखकारी फल पाएं 






               


Comments

Popular posts from this blog

Elephant Pearl ( Gaj Mani)

हाथी मोती ( गज मणि ) गज मणि हल्के हरे - भूरे रंग के , अंडाकार आकार का मोती , जिसकी जादुई और औषधीय  शक्ति    सर्वमान्य   है । यह हाथी मोती   एक लाख हाथियों में से एक में पाये जाने वाला मोती का एक रूप है। मोती अत्यंत दुर्लभ है और इसलिए महंगा भी है जिस किसी के पास यह होता है वह बहुत भाग्यषाली होता है इसे एक अनमोल खजाने की तरह माना गया है । इसके अलौकिक होने के प्रमाण हेतु अगर इसे साफ पानी में रखा जाए तो पानी दूधिया हो जाता है । इसी तरह अगर स्टेथोस्कोप से जांचने पर उसके दिन की धड़कन सुनी जा सकती है । अगर इसे हाथ में रखा जाता है तो थोड़ा कंपन महसूह किया जा सकता है ।   अगर गज मणि को आप नारयिल पानी में रखत हैं तो बुलबुले पैदा होने लगते हैं और पानी की मात्रा भी कम हो जाती है । चिकित्सकीय लाभ में जोड़ों के दर्द , बच्चे न पैदा होने की असमर्थता के इलाज और तनाव से राहत के

हस्तमुद्रा - औषधीय एवं आध्यात्मिक लाभ

हस्तमुद्रा - औषधीय एवं आध्यात्मिक लाभ योग अनुसार आसन और प्राणायाम की स्थिति को मुद्रा कहा जाता है। बंध , क्रिया और मुद्रा में आसन और प्राणायाम दोनों का ही कार्य होता है। योग में मुद्राओं को आसन और प्राणायाम से भी बढ़कर माना जाता है। आसन से शरीर की हड्डियाँ लचीली और मजबूत होती है जबकि मुद्राओं से शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास होता है। मुद्राओं का संबंध शरीर के खुद काम करने वाले अंगों और स्नायुओं से है। मुद्राओं की संख्या को लेकर काफी मतभेद पाए जाते हैं। मुद्रा और दूसरे योगासनों के बारे में बताने वाला सबसे पुराना ग्रंथ घेरण्ड संहिता है। हठयोग पर आधारित इस ग्रंथ को महर्षि घेरण्ड ने लिखा था। घेरंड में 25 और हठयोग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं का उल्लेख मिलता है , लेकिन सभी योग के ग्रंथों की मुद्राओं को मिलाकर कुल 50 से 60 हस्त मुद्राएँ हैं। मानव - सरीर अनन्त रहस्यों से भरा हुआ है । शरीर की अपनी एक मुद्रामयी भाषा है । जिसे करने स

पुष्कर - पौराणिक एवं धार्मिक महत्व

पुष्कर - पौराणिक एवं धार्मिक महत्व पुष्कर ब्रह्मा के मंदिर और ऊँटों के व्यापार मेले के लिए प्रसिद्ध है। पुष्कर का शाब्दिक अर्थ है तालाब और पुराणों में वर्णित तीर्थों में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। राजस्थान के शहर अजमेर में कई पर्यटन स्थल है जिनमें से ये एक है। अनेक पौराणिक कथाएं इसका प्रमाण हैं। यहाँ से प्रागैतिहासिक कालीन पाषाण निर्मित अस्त्र - शस्त्र मिले हैं , जो उस युग में यहाँ पर मानव के क्रिया - कलापों की ओर संकेत करते हैं। हिंदुओं के समान ही बौद्धों के लिए भी पुष्कर पवित्र स्थान रहा है। भगवान बुद्ध ने यहां ब्राह्मणों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। फलस्वरूप बौद्धों की एक नई शाखा पौष्करायिणी स्थापित हुई। शंकराचार्य , जिन सूरी और जिन वल्लभ सूरी , हिमगिरि , पुष्पक , ईशिदत्त आदि विद्वानों के नाम पुष्कर से जुड़े हुए हैं।   चैहान राजा अरणोराज के काल में विशाल शास्त्रार्थ हुआ था। इसमें अजमेर के जैन विद्वान जिन सूरी और ज