Hanuman garhi temple - Ayodhya
हनुमान
गढ़ी मंदिर -अयोध्या
अयोध्या
में हनुमान गढ़ी
है जिसे हनुमान
जी का घर
भी कहा जाता
है, हनुमान गढ़ी
मंदिर सरयू नदी
के दाहिने तट
पर अयोध्या में
एक टीले पर
स्थित है और
यहां से काफी
दूर तक साफ
- साफ देखा जा सकता
है। इस मंदिर
तक पहुंचने के
लिए आपको लगभग
76 सीढि.यां चढ़नी
पडती हैं ।
हनुमान गढ़ी मंदिर
के लिए भूमि
को अवध के
नबाव ने दी
थी और इसे
लगभग दसवीं शताब्दी
के मध्य बनवाया
गया था।
हनुमान
गढ़ी, वास्तव में
एक गुफा मंदिर
है। इस मंदिर
परिसर के चारों
कोनो में परिपत्र
गढ़ हैं। मंदिर
परिसर में मां
अंजनी व बाल
( बच्चे ) हनुमान की मूर्ति
है जिसमें हनुमान
जी, अपनी मां
अंजनी की गोदी
में बालक रूप
में लेटे है।
यहाँ पर स्थापित
हनुमान जी की
प्रतिमा केवल छः
(6) इंच लम्बी है, जो
हमेश फूल-मालाओं
से सुशोभित रहती
है । यह
विशाल मंदिर न
केवल धार्मिक दृष्टि
से अच्छा है
बल्कि वास्तु पहलू
से भी इसे
बहुत अच्छा माना
जाता है। लोगों
का मानना है
कि इस मंदिर
में सभी मन्नतें
पूरी होती हैं।
साल भर इस
मंदिर में भक्तों
का तांता लगा
रहता है। अयोध्या
नगरी में आज
भी भगवान श्रीराम
का राज्य चलता
है. मान्यता है
कि भगवान राम
जब लंका जीतकर
अयोध्या लौटे, तो उन्होंने
अपने प्रिय भक्त
हनुमान को रहने
के लिए यही
स्थान दिया. साथ
ही यह अधिकार
भी दिया कि
जो भी भक्त
यहां दर्शन के
लिए अयोध्या आएगा,
उसे पहले हनुमान
का दर्शन-पूजन
करना होगा ।
अंजनीपुत्र की महिमा
से परिपूर्ण हनुमान
चालीसा की चैपाइयां
हृदय के साथ-साथ मंदिर
की दीवारों पर
सुशोभित हैं.
कहते
हैं कि हनुमानजी
के इस दिव्य
स्थान का महत्व
किसी धर्म विशेष
में बंध कर
नहीं रहा, बल्कि
जिस किसी ने
भी यहां जो
भी मुराद मांगी,
हनुमानलला ने उसे
वही दिया. तभी
तो अपने इकलौते
पुत्र के प्राणों
की रक्षा होने
पर अवध के
नवाब मंसूर अली
ने इस मंदिर
का जीर्णोंद्धार कराया कहते
हैं कि एक
बार नवाब का
पुत्र बहुत बीमार
पड़ गया. पुत्र
के प्राण बचने
के कोई आसार
न देखकर नवाब
ने बजरंगबली के
चरणों में माथा
टेक दिया.
संकटमोचन
ने नवाब के
पुत्र के प्राणों
को वापस लौटा
दिया, जिसके बाद
नवाब ने न
केवल हनुमानगढ़ी मंदिर
का जीर्णोंद्धार कराया,
बल्कि इस ताम्रपत्र
पर लिखकर यह
घोषणा की कि
कभी भी इस
मंदिर पर किसी
राजा या शासक
का कोई अधिकार
नहीं रहेगा और
न ही यहां
के चढ़ावे से
कोई टैक्स वसूल
किया जाएगा ।
हनुमान गढ़ी मंदिर
भक्त पवनपुत्र के
सबसे छोटे रूप
के दर्शन करते
हैं । लंका
से विजय के
प्रतीक रूप में
लाए गए निशान
भी इसी गढ़ी
में रखे गए
जो आज भी
खास मौके पर
बाहर निकाले जाते
हैं और जगह-जगह पर
उनकी पूजा-अर्चना
की जाती है.
होली से ठीक
पहले रंग भरी
एकादशी उन खास
दिनों में से
एक है जब
ये निशान बाहर
निकाले जाते हैं
और भक्त उनकी
आराधना कर खुशियां
मनाते हैं.
यहीं
से साधु संतों
की होली के
साथ देशभर में
होली की शुरुआत
होती है. यहां
पर हनुमान लला
की आराधना और
दर्शन का विशेष
समय निश्चित है.
कहते हैं विशेष
मुहूर्त में पवनपुत्र
की आराधना से
भक्तों की हर
मुराद पूरी होती
है । मंदिर
का इतिहास - अयोध्या
स्थित अति प्राचीन
हनुमान गढ़ी की
स्थापत्य कला दिल्ली
और आगरा के
लाल किले की
ही एक छवि
है। इस विराट
मन्दिर और इसके
समीप स्थित इमली
वन को बनवाया
था सुल्तान मंसूर
अली ने, लगभग
तीन सौ वर्ष
पूर्व। मंसूर अली लखनऊ
और फैजाबाद का
प्रशासक था। संत
अभयारामदास के सहयोग
और निर्देशन में
यह विशाल निर्माण
सम्पन्न हुआ। संत
अभयारामदास निर्वाणी अखाडा के
शिष्य थे और
यहाँ उन्होंने अपने
सम्प्रदाय का अखाडा
भी स्थापित किया
था। वर्तमान हनुमान
गढ़ी को संवारने
में राजा टिकैत
राय का विशेष
योगदान रहा था।
सन् 1915 में अमीर
अली ने हनुमान
गढ़ी पर आक्रमण
किया था। उसने
सुन्नी मुसलमानों को यह
कहकर उकसाया कि
नागाओं ने मस्जिद
ढहा दी है।
उसने सुन्नी मुस्लिम
फौज बनाकर हनुमान
गढ़ी पर चढ़ाई
कर दी, पर
हनुमान गढ़ी के
नागा साधुओं और
उनका साथ देने
वाले हिन्दू जत्थों
ने उन हमलावरों
को धूल चाटने
पर विवश कर
दिया। इस तरह
हनुमान गढ़ी सुरक्षित
रही। आज भी
हनुमान गढ़ी के
नागा साधु कार्तिक
कृष्ण चतुर्दशी को
हनुमत जयन्ती तो
मनाते ही हैं,
साथ ही कार्तिक
शुक्ल एकादशी को
सशस्त्र परिक्रमा करते समय
उनके हाथ में
“निशान” (ध्वज) भी रहता
है। इसी प्रकार
फाल्गुन शुक्ल एकादशी को
भी वे ध्वज
के साथ ही
शस्त्र-पूजन भी
करते हैं। आश्विन
शुक्ल को नागा
अखाड़ों में शस्त्र-पूजन करके
हनुमान गढ़ी से
चलकर अयोध्या नगरी
में निशान-यात्रा
की जाती है।
प्रत्येक मंगलवार और शनिवार
को इस मंदिर
में भक्तो का
ताँता लगता है
!
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