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ब्रह्म कमल (ससोरिया ओबोलेटा) - उत्तरांचल का राज्य पुष्प


ब्रह्म कमल (ससोरिया ओबोलेटा) - उत्तरांचल का राज्य पुष्प



ब्रह्म कमल ऊँचाई वाले क्षेत्रों का एक दुर्लभ पुष्प है जो कि सिर्फ हिमालय, उत्तरी बर्मा और दक्षिण-पश्चिम चीन में पाया जाता है। धार्मिक और प्राचीन मान्यता के अनुसार ब्रह्म कमल को इसका नाम उत्पत्ति के देवता ब्रह्मा के नाम पर मिला है। ब्रह्म कमल एक रहस्यपूर्ण सफेद कमल है ,जो हिमालय में 11 हजार से 17 हजार फुट की ऊंचाइयों पर पाया जाता है।  उत्तराखंड में यह विशेषतौर पर पिण्डारी से लेकर चिफला, सप्तशृंग , रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ तक के आसपास के क्षेत्र में यह स्वाभाविक रूप से पाया जाता है।  केदारनाथ और बद्रीनाथ के मंदिरों में  ब्रह्म कमल चढ़ाने की परंपरा है।  



यह अत्यंत सुंदर  चमकते सितारे जैसा आकार लिए मादक सुगंध वाला पुष्प है। ब्रह्म कमल को हिमालयी फूलों का सम्राट भी कहा गया है। यह कमल आधी रात के बाद खिलता है इसलिए इसे खिलते देखना स्वप्न समान ही है।  एक विश्वास है कि अगर इसे खिलते समय देख कर कोई कामना की जाए तो अतिशीघ्र पूरी हो जाती है। ब्रह्मकमल के पौधे में एक साल में केवल एक बार ही फूल आता है जो कि सिर्फ रात्रि में ही खिलता है। दुर्लभता के इस गुण के कारण से ब्रह्म कमल को शुभ माना जाता है। 



इस पुष्प की मादक सुगंध का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है जिसने द्रौपदी को इसे पाने के लिए व्याकुल कर दिया था। राज्य पुष्प ब्रह्म कमल बदरीनाथ, रुद्रनाथ, केदारनाथ, कल्पेश्वर आदि ऊच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। किवदंति है कि जब भगवान विष्णु हिमालय क्षेत्र में आए तो उन्होंने भोलेनाथ को 1000 ब्रह्म कमल चढ़ाए, जिनमें से एक पुष्प कम हो गया था। तब विष्णु भगवान ने पुष्प के रुप में अपनी एक आंख भोलेनाथ को समर्पित कर दी थी। तभी से भोलेनाथ का एक नाम कमलेश्वर और विष्णु भगवान का नाम कमल नयन पड़ा। हिमालय क्षेत्र में इन दिनों जगह-जगह ब्रह्म कमल खिलने शुरु हो गए हैं। 


ब्रह्म कमल पुष्प के पीछे हुआ था भीम का गर्व चूर - जब द्रोपदी ने भीम से हिमालय क्षेत्र से ब्रह्म कमल लाने की जिद्द की तो भीम बदरीकाश्रम पहुंचे। लेकिन बदरीनाथ से तीन किमी पीछे हनुमान चट्टी में हनुमान जी ने भीम को आगे जाने से रोक दिया। हनुमान ने अपनी पूंछ को रास्ते में फैला दिया था। जिसे उठाने में भीम असमर्थ रहा। यहीं पर हनुमान ने भीम का गर्व चूर किया था। बाद में भीम हनुमान जी से आज्ञा लेकर ही बदरीकाश्रम से ब्रह्म कमल लेकर गए।


















ब्रह्म कमल के औषधीय गुण - ससोरिया ओबिलाटा वानस्पतिक नाम वाला ब्रह्म कमल औषधीय गुणों से भी परिपूर्ण है। इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है। साथ ही पुरानी खांसी भी काबू हो जाती है। भोटिया जनजाति के लोग गांव में रोग-व्याधि न हो, इसके लिए इस पुष्प को घर के दरवाजों पर लटका देते हैं। इस फूल की विशेषता यह है कि जब यह खिलता है तो इसमें ब्रह्म देव तथा त्रिशूल की आकृति बन कर उभर आती है। गौर हो कि इस फूल का वानस्पतिक नाम एपीथायलम ओक्सीपेटालम है तथा इस फूल का प्रयोग जड़ी-बूटी के रूप में किया जाता है। ब्रह्म कमल न तो खरीदा जाना चाहिए और न ही इसे बेचा जाता है। 




बस इसे उपहार स्वरूप ही प्राप्त किया जाता है, क्योंकि इसे देवताओं का प्रिय पुष्प माना गया है और इसमें जादुई प्रभाव भी होता है।  इस दुर्लभ पुष्प की प्राप्ति आसानी से नहीं होती। हिमालय में खिलने वाला यह पुष्प देवताओं के आशीर्वाद सरीखा है । यह साल में एक ही बार जुलाई-सितंबर के बीच खिलता है और एक ही रात रहता है। इसका खिलना देर रात आरंभ होता है तथा दस से ग्यारह बजे तक यह पूरा खिल जाता है। मध्य रात्रि से इसका बंद होना शुरू हो जाता है और सुबह तक यह मुरझा चुका होता है। इसकी सुगंध प्रिय होती है और इसकी पंखुडियों से टपका जल अमृत समान होता है। भाग्यशाली व्यक्ति ही इसे खिलते हुए देखते हैं और यह उन्हें सुख-समृद्धि से भर देता है। ब्रह्म कमल का खिलना एक अनोखी घटना है। 


यह अकेला ऐेसा कमल है जो रात में खिलता है और सुबह होते ही मुरझा जाता है। सुगंध आकार और रंग में यह अद्भुत है। भाग्योदय की सूचना देने वाला यह पुष्प पवित्रता और शुभता का प्रतीक माना जाता है। जिस तरह बर्फ से ढका हिमालयी क्षेत्र देवताओं का निवास माना जाता है उसी तरह बर्फीले क्षेत्र में खिलने वाले इस फूल को भी देवपुष्प मान लिया गया है। नंदा अष्टमी के दिन देवता पर चढ़े ये फूल प्रसाद रूप में बांटे जाते हैं। मानसून के मौसम में जब यह ऊंचाइयों पर खिलता है  



तो स्थानीय लोग चरागाहों में जाकर इन्हें बोरों में भर कर लाते हैं और मंदिरों में देते हैं। मंदिर में यही फूल चढ़ाने के बाद प्रसाद रूप में वितरित किए जाते हैं। गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ के क्षेत्र में मौसम के दौरान पूरे वैभव और गरिमा के साथ इन्हें खिले हुए देखा जा सकता है। वनस्पति विज्ञानियों ने ब्रह्मकमल की 31 प्रजातियां दर्ज की हैं। कहा जाता है कि आम तौर पर फूल सूर्यास्त के बाद नहीं खिलते, पर ब्रह्म कमल एक ऐसा फूल है जिसे खिलने के लिए सूर्य के अस्त होने का इंतजार करना पड़ता है। धार्मिक मान्यता - ब्रह्म कमल अर्थात ब्रह्मा का कमल, यह फूल माँ नन्दा का प्रिय पुष्प है, इसलिए इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोडने के भी सख्त नियम होते हैं।


 जिनका पालन किया जाना अनिवार्य होता है। इससे बुरी आत्माओं को भगाया जाता है। ब्रह्मकमल को अलग-अगल जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तरखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से इसे जाना जाता है। यह फूल अगस्त के समय में खिलता है और सितम्बर-अक्टूबर के समय में इसमें फल बनने लगते हैं। इसका जीवन 5-6 माह का होता है।




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