Skip to main content

Adhik Maas -2015

अधिमास - 2015



हिंदू पंचांग के अनुसार  विक्रम संवत् 2072 (सन् 2015) में अधिक मास आषाढ़ महीने का होगा जो 17 जून 2015 से 16 जुलाई 2015 तक रहेगा। अधिक मास को मलमास या  उतम मास  या खर मास भी कहते हैं सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को संक्रांति होना कहते हैं. सौर मास और राशियों दोनों की संख्या 12 होती है. जब दो पक्षों में संक्रांति नहीं होती, तब अधिकमास होता है. आमतौर पर यह स्थिति 32 माह और 16 दिन में एक बार यानी हर तीसरे वर्ष में बनती है. ऐसा सूर्य और पृथ्वी की गति में होने वाले परिवर्तन से तिथियों का समय घटने-बढने के कारण होता है  



अधिकमास में व्रत त्यौहारों की तिथियों में होगा परिवर्तन हो जाता है अधिकमास (मलमास) पड़ने के कारण लगभग सभी व्रत और त्योहार आम सालों की अपेक्षा कुछ जल्दी पड़ेंगे. 2015 में अधिकमास के कारण दो आषाढ़ होंगे. नए वर्ष के शुरू के छह माह में त्योहार गत वर्ष की अपेक्षा दस दिन पहले और बाद के छह माह में देरी से होंगे. ज्योतिषीय गणित के मुताबिक 16 दिसंबर को सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करते ही मलमास शुरू हो गया है अधिक मास को मलमास कहा, क्योंकि शकुनि, चतुष्पद, नाग किंस्तुघ्न ये चार करण, रवि का मल माने जाते हैं, इसलिए उनकी संक्रांति से जुड़े होने के कारण वह मास मलमास कहलाता है।


भाषा में मलमास में शादी, जनेऊ यज्ञ प्रधान उत्सव करके, ईश्वर आराधना, स्नान-दान, पुण्य क्रियाएं करना एवं शास्त्रों का श्रवण करना दैनिक जीवन धर्ममय रखने को कहा गया है। मलमास या पुरुषोत्तम मास तीन साल के बाद बनने वाली तिथियों के योग से बनता है। इसे अधिमास भी कहा जाता है। इस वर्ष 17 जून से 16 जुलाई तक अधिक मास के योग बन रहे हैं। वर्ष 2015 का यह मलमास कई मामलों में बेहद अहम है, क्योंकि यह योग 19 साल बाद बन रहा है। मलमास में मांगलिक कार्य तो वर्जित रहते हैं, लेकिन भगवान की आराधना, जप-तप, तीर्थ यात्रा करने से ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। 



इस मास में भगवान शिव की अराधना बेहद फलदायी होती है। विद्वानों के अनुसार, हर तीसरे वर्ष में अधिक मास होता है। सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश को संक्रांति होना कहा जाता है। सौर मास 12 और राशियां भी 12 होती हैं। जब दो पक्षों में संक्रांति नहीं होती, तब अधिक मास होता है। यह स्थिति 32 माह 16 दिन में एक यानि हर तीसरे वर्ष बनती है। इस वर्ष 17 जून से 16 जुलाई तक का समय मलमास का रहेगा। इस माह में जप, तप, तीर्थ यात्रा, कथा श्रवण का बड़ा महत्व है। 



अधिक मास में प्रतिदिन भागवत कथा का श्रवण करने से अभय फल की प्राप्ति होती है। मलमास को भगवान विष्णु की पूजा के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। आषाढ़ मास में मलमास लगने का संयोग दशकों बाद बनता है। इस साल जुलाई से दिसंबर तक पड़ने वाले त्योहार मौजूदा साल की तिथियों के मुकाबले दस से 20 दिन तक की देरी से आएंगे। 



यह स्थिति अधिक मास के कारण बनेगी। 2015 में दो आषाढ़ होंगे,   अधिमास में किए जाने वाले पूजन यज्ञ से मिलने वाले फल की चर्चा करते हुए डॉ. शुक्ल ने बताया कि इस मास में भगवान विष्णु का पूजन, हवन, जप-तप एवं दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। खास तौर पर भगवान कृष्ण, श्रीमद् भागवत गीता, श्रीराम की अराधना, कथा वाचन एवं विष्णु की उपासना की जाती है।



इस मास में एक समय भोजन करना, भूमि पर सोने से भी लाभ प्राप्त होता है। पुरुषोत्तम मास में तीर्थ स्थलों एवं धार्मिक स्थानों पर जाकर स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। डॉ. शुक्ल के मुताबिक, अधिमास में आने वाली शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की एकादशी पद्मिनी एवं परमा एकादशी कहलाती है, जो इष्ट फलदायिनी, वैभव एवं कीर्ति में वृद्धि करती है। अधिक मास में शादी, विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवित जैसे मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं।



अधिमास में क्या करें-क्या नहीं


महर्षि वाल्मीकि ने अधिक मास के नियमों के संबंध में कहा है कि इस महीने में गेहूं, चावल, सफेद धान, मूंग, जौ, तिल, मटर, बथुआ, शहतूत, सामक, ककड़ी, केला, घी, कटहल, आम, हर्रे, पीपल, जीरा, सौंठ, इमली, सुपारी, आंवला, सेंधा नमक आदि भोजन पदार्थों का सेवन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त मांस, शहद, चावल का मांड, चैलाई, उरद, प्याज, लहसुन, नागरमोथा, छत्री, गाजर, मूली, राई, नशे की चीजें, दाल, तिल का तेल और दूषित अन्न का त्याग करना चाहिए। 



तांबे के बर्तन में गाय का दूध, चमड़े में रखा हुआ पानी और केवल अपने लिए ही पकाया हुआ अन्न दूषित माना गया है। अतएव इनका भी त्याग करना चाहिए। पुरुषोत्तम मास में जमीन पर सोना, पत्तल पर भोजन करना, शाम को एक वक्त खाना, रजस्वला स्त्री से दूर रहना और धर्मभ्रष्ट संस्कारहीन लोगों से संपर्क नहीं रखना चाहिए। किसी प्राणी से द्रोह नहीं करना चाहिए। परस्त्री का भूल करके भी सेवन नहीं करना चाहिए। देवता, वेद, ब्राह्मण, गुरु, गाय, साधु-सन्यांसी, स्त्री और बड़े लोगों की निंदा नहीं करनी चाहिए।



Comments

Popular posts from this blog

हस्तमुद्रा - औषधीय एवं आध्यात्मिक लाभ

हस्तमुद्रा - औषधीय एवं आध्यात्मिक लाभ योग अनुसार आसन और प्राणायाम की स्थिति को मुद्रा कहा जाता है। बंध , क्रिया और मुद्रा में आसन और प्राणायाम दोनों का ही कार्य होता है। योग में मुद्राओं को आसन और प्राणायाम से भी बढ़कर माना जाता है। आसन से शरीर की हड्डियाँ लचीली और मजबूत होती है जबकि मुद्राओं से शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास होता है। मुद्राओं का संबंध शरीर के खुद काम करने वाले अंगों और स्नायुओं से है। मुद्राओं की संख्या को लेकर काफी मतभेद पाए जाते हैं। मुद्रा और दूसरे योगासनों के बारे में बताने वाला सबसे पुराना ग्रंथ घेरण्ड संहिता है। हठयोग पर आधारित इस ग्रंथ को महर्षि घेरण्ड ने लिखा था। घेरंड में 25 और हठयोग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं का उल्लेख मिलता है , लेकिन सभी योग के ग्रंथों की मुद्राओं को मिलाकर कुल 50 से 60 हस्त मुद्राएँ हैं। मानव - सरीर अनन्त रहस्यों से भरा हुआ है । शरीर की अपनी एक मुद्रामयी भाषा है । जिसे करने स...

Elephant Pearl ( Gaj Mani)

हाथी मोती ( गज मणि ) गज मणि हल्के हरे - भूरे रंग के , अंडाकार आकार का मोती , जिसकी जादुई और औषधीय  शक्ति    सर्वमान्य   है । यह हाथी मोती   एक लाख हाथियों में से एक में पाये जाने वाला मोती का एक रूप है। मोती अत्यंत दुर्लभ है और इसलिए महंगा भी है जिस किसी के पास यह होता है वह बहुत भाग्यषाली होता है इसे एक अनमोल खजाने की तरह माना गया है । इसके अलौकिक होने के प्रमाण हेतु अगर इसे साफ पानी में रखा जाए तो पानी दूधिया हो जाता है । इसी तरह अगर स्टेथोस्कोप से जांचने पर उसके दिन की धड़कन सुनी जा सकती है । अगर इसे हाथ में रखा जाता है तो थोड़ा कंपन महसूह किया जा सकता है ।   अगर गज मणि को आप नारयिल पानी में रखत हैं तो बुलबुले पैदा होने लगते हैं और पानी की मात्रा भी कम हो जाती है । चिकित्सकीय लाभ में जोड़ों के दर्द , बच्चे न पैदा होने की असमर्थता के ...

Shri Sithirman Ganesh - Ujjain

श्री स्थिरमन गणेश - उज्जैन श्री स्थिरमन गणेश   एक अति प्राचीन गणपति मंदिर जो कि उज्जैन में स्थित है । इस मंदिर एवं गणपति की विशेषता यह है कि   वे न तो दूर्वा और न ही मोदक और लडडू से प्रसन्न होते हैं उनको गुड़   की एक डली से प्रसन्न किया जाता है । गुड़ के साथ नारियल अर्पित करने से गणपति प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की झोली भर   देते हैं , हर लेते हैं भक्तों का हर दुःख और साथ ही मिलती है मन को बहुत शान्ति । इस मंदिर में सुबह गणेश जी का सिंदूरी श्रंृगार कर चांदी के वक्र से सजाया जाता है ।   यहां सुबह - शाम आरती होती है जिसमें शंखों एवं घंटों की ध्वनि मन को शांत कर   देती है । इतिहास में वर्णन मिलता है कि श्री राम जब सीता और लक्ष्मण के साथ तरपन के लिए उज्जैन आये थे तो उनका मन बहुत अस्थिर हो गया तथा माता सीता ने श्रीस्थिर गणेश की स्थापन कर पूजा की तब श्री राम का मन स्थिर हुआ ...