हनुमान
धारा मंदिर - चित्रकुट
हनुमान
धारा चित्रकुट का
एक ओर पवित्र
स्थल है जहां
के बारे में
मान्यता है कि
लंका दहन के
उपरांत भक्तराज श्री हनुमानजी
ने अपने शरीर
के तापके शक्ती
धारा की जलराशि
से बुझाया था।
हनुमान धारा मंदिर
गुफा और पूंछ
पर गिरते पानी
का एक प्राकृतिक
धारा के अंदर
श्री हनुमान की प्राकृतिक
रॉक गठन छवि
है, जहां पहाड़
की चोटी पर
स्थित है। यह
भगवान राम के
राज्याभिषेक के बाद
हनुमान ने अपनी
पूंछ पर जलने
के अपनी चोट
ठीक हो जाएगा,
जहां भगवान राम
के राज्य में
बसने के लिए
एक स्थायी जगह
के लिए अनुरोध
किया है कि
माना जाता है।
भगवान राम, तो
उसकी तीर के
साथ, पहाड़ की
नोक पर पानी
की एक धारा
को प्रेरित और
उसकी पूंछ में
जलन शांत करने
के लिए उसकी
पूंछ पर गिरने
धारा के पानी
के साथ वहां
आराम करने के
लिए हनुमान से
पूछा। गुफा मंदिर
के लिए उपयोग
अपने शीर्ष करने
के लिए पहाड़
के नीचे से
शुरू सीढ़ियों के
माध्यम से है।
यह मंदिर तक
पहुंचने के लिए
मोटे तौर पर
30 से 40 मिनट लगते
हैं। समय के
साथ मंदिर एक
नया नाम, अर्थात्
हनुमान धारा हासिल
की है। यह
धारा रामघाट से
लगभग 4 कि.मी.
दूर है। इसका
जल शीतल और
स्वच्छ है। 365 दिन यह
जल आता रहता
है। यह जल
कहां से आता
है यह किसी
को जानकारी नहीं
है। यदि किसी
व्यक्ति को दमा
की बिमारी है
तो यह जल
पीने से काफी
लोगों को लाभ
मिला है। यह
मंदिर पहाडी पर
स्थित है। बहुत
सुंदर द्विय मुर्ति
है। इस के
दर्शन से हर
एक व्यक्ति का
तनाव से मुक्त
हो जाता है
तथा मनोकामना भी
पूर्ण हो जाती
है।
कामतानाथजी को
चित्रकुट तीर्थ का प्रधान
देवता माना गया
है। वैसे तो
मंदाकिनी नदी के
तट पर चित्रकुट
के दर्शन के
लिए भक्तों का
आना-जाना तो
सदा लगा रहता
है पर अमावस्या
के दिन यहां
श्रध्दालुओं के आगमन
से विशाल मेला
लग जाता है।
श्री कामदर गिरी
की परिक्रम की
महिमा अपार है।
श्रध्दा सुमन कामदर
गिरी को साक्षात ऋग्वेद
विग्रह मानसकर उनका दर्शन
पूजन और परिक्रमा
अवश्य करते रहते
हैं। चित्रकुट के
केन्द्र स्थल का
नाम रामघाट है
जो मंदाकिनी के
किनारे शोभायमान है। इस
घाट के ऊपर
अनेक नए पुराणे
मठ, मंदिर, अखाडे
व धर्मशालाएं हैं,
लेकिन कामदर गिरी
भवन अच्छा बना
हुआ है।
इस
भवन को बंबई
के नारायणजी गोयनका
ने बनवाया। इसके
दक्षिण में राघव
प्रयागघाट है यहां
तपस्विनी मंदाकिनी ओर गायत्री
नदियां आकर मिलती
हैं। जानकीकुंड यहां
का पवित्र मंदिर
दर्शनीय है। नदी
के किनारे श्वेत
पत्थरों पर यहां
चरण चिन्ह हैं।
लोक मान्यता है
कि इसी स्थान
पर माता सीता
स्नान करती थी।
जानकी कुंड से
कुछ दुर स्फटिक
शिला है जहां
स्फटिक युक्त एक विशाल
शिला है। मान्यता
है कि अत्रि
आश्रम आते जाते
समय सीता और
राम विश्राम किया
करते थे। यह
वही स्थल है
जहां श्रीराम कि
शक्ति की परीक्षा
लेने के लिए
इंद्र पुत्र जयंत
ने सीता जी
को चोंच मारी
थी। यहां श्रीराम
के चरण चिन्ह
दर्शनीय है। इस
स्थान पर प्राकृतिक
दृश्य बडा मनोरम
है।
चित्रकुट से
12 कि.मी. दूर
दक्षिण पश्चिम में एक
पहाडी की तराह
में गुप्त गोदावरी
है। यह दो
चट्टानों के बीच
सदा प्रवाह मान
एक जलधारा है
मान्यता है कि
यह नासिक से
गुप्त रूप से
प्रकट हुई है।
रामघाट से लगभग
20 कि.मी. की
दूरी पर भरत
कुप है मान्यता
है कि श्रीराम
को वापस अयोध्या
लौटाने आए भरत
के राज्यभिषेक हेतु
लाए गए समस्त
तीर्थों के जल
को इसी कुप
में डाल दिया
इसकी महिमा अपार
है यहां हरेक
मकर संक्राती को
विशाल मेला लगता
है। हाल के
दिनों में चित्रकुट
के तीर्थों में
एक नया नाम
आरोग्य धाम का
जुडा है जो
प्राकृतिक विधि से
मानव चिकित्सा के
भारत स्तर के
एक ख्यातनाम केन्द्र
के रूप में
स्थापित हो चुका
है। इसके अलावा
वनदेवी स्थान, राम दरबार,
चरण पादुका मंदिर,
यज्ञवेदी मंदिर, तुलसी स्थान,
सीता रसोई, श्री
केकई मंदिर, दास
हनुमान मंदिर श्रीराम पंचायत
मंदिर आदि यहां
के भूमि को
सुशोभित कर रहे
हैं। चित्रकुट के
आसपास के दर्शनीय
स्थलों में नैहर
वाल्मीकि आश्रम राजापुर सुतिक्षन
आश्रम आदि प्रमुख
जहां तीर्थ यात्री
अपने समय व
सुविधा के अनुसार
जाते हैं। मध्यप्रदेश
और उत्तरप्रदेश दोनों
राज्य में अवतीर्ण
चित्रकुट में हाल
के वर्षों में
चित्रकुट महोत्सव का आयोजन
किया जाता है। सचमुच
चित्रकुट पावन है।
मन पावन रमणीय
है
अतः ये
चित्रकुट में हनुमान
धारा से यह
एक श्रेष्ठ तीर्थ
भूमि पावन बन
गई है। भारत
के तीर्थों में
चित्रकुट को इसलिए
भी गौरव प्राप्त
है कि इसी
तीर्थ में भक्तराज
हनुमान की सहायता
से भक्त शिरोमणि
तुलसीदास को प्रभु
श्रीराम के दर्शन
हुए। उत्तर प्रदेश
के सीतापुर नामक
स्थान के समीप
यह हनुमान मंदिर
स्थापित है।यह स्थान पर्वतमाला
के मध्यभाग में
स्थित है। पहाड़
के सहारे हनुमानजी
की एक विशाल
मूर्ति के ठीक
सिर पर दो
जल के कुंड
हैं, जो हमेशा
जल से भरे
रहते हैं और
उनमें से निरंतर
पानी बहता रहता
है। इस धारा
का जल हनुमानजी
को स्पर्श करता
हुआ बहता है।
इसीलिए इसे हनुमान
धारा कहते हैं।
धारा का जल
पहाड़ में ही
विलीन हो जाता
है। उसे लोग
प्रभाती नदी या
पातालगंगा कहते हैं।
इस स्थान के
बारे में एक
कथा इस प्रकार
प्रसिद्ध है- श्रीराम
के अयोध्या में
राज्याभिषेक होने के
बाद एक दिन
हनुमानजी ने भगवान
श्रीरामचंद्र से कहा-
हे भगवन। मुझे
कोई ऐसा स्थान
बतलाइए, जहां लंका
दहन से उत्पन्न
मेरे शरीर का
ताप मिट सके।
तब भगवान श्रीराम
ने हनुमानजी को
यह स्थान बताया।
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