बेल
वृक्ष - पौराणिक, आध्यात्मिक एवं
औषधीय महत्व
बेल
वृक्ष की महिमा
हिन्दू धर्म में
विशेष है क्योंकि
बेलपत्र भगवान शिव को
अति प्रिय है
। धार्मिक दृष्टि
से महत्त्वपूर्ण होने
के कारण इसे
मंदिरों के पास
लगाया जाता है।
हिन्दू धर्म में
इसे भगवान शिव
का रूप ही
माना जाता है
व मान्यता है
कि इसके मूल
यानि जड़ में
महादेव का वास
है तथा इनके
तीन पत्तों को
जो एक साथ
होते हैं उन्हे
त्रिदेव का स्वरूप
मानते हैं ।
बेल का पत्ता
और फल दोनों
ही गुणकारी होते
है आयुर्वेद में
बेल को स्वास्थ्य
के लिए काफी
लाभप्रद फल माना
गया है।
आयुर्वेद
के अनुसार पका
हुआ बेल मधुर,
रुचिकर, पाचक तथा
शीतल फल है।
बेलफल बेहद पौष्टिक
और कई बीमारियों
की अचूक औषधि
है। इसका गूदा
खुशबूदार और पौष्टिक
होता है। बेल
के फल का
गुदा निकल कर
उसमें थोड़ी मिश्री
मिलाकर ३-४
बार लगातार
खाने से आँखों
की समस्याओ से
राहत मिलती है
। बेल के
फल का रस
ठंडा होता है
इसका सेवन गर्मियों
में करने से
लू और गर्मी
की दिक्कते नहीं
होती है ।
बेल का रस
शीतलता देने वाला
और वीर्यवर्धक होता
है । बेल
के फल के
100 ग्राम गूदे का
रासायनिक विश्लेषण इस प्रकार
है- नमी 61.5 प्रतिशत,
वसा 3 प्रतिशत, प्रोटीन
1.8 प्रतिशत , फाइबर 2.9 प्रतिशत , कार्बोहाइड्रेट
31.8 प्रतिशत , कैल्शियम 85 मिलीग्राम, फॉस्फोरस
50 मिलीग्राम, आयरन 2.6 मिलीग्राम, विटामिन
सी 2 मिलीग्राम। इनके
अतिरिक्त बेल में
137 कैलोरी ऊर्जा तथा कुछ
मात्रा में विटामिन
बी भी पाया
जाता है। आयुर्वेद
में बेल को
स्वास्थ्य के लिए
काफी लाभप्रद फल
माना गया है।
कच्चा बेलफल
रुखा, पाचक, गर्म,
वात-कफ, शूलनाशक
व आंतों के
रोगों में उपयोगी
होता है।
बेल
का फल ऊपर
से बेहद कठोर
होता है। इसे
नारियल की तरह
फोड़ना पड़ता है।
अंदर पीले रंग
का गूदा होता
है, जिसमें पर्याप्त
मात्रा में बीज
होते हैं। गूदा
लसादार तथा चिकना
होता है, लेकिन
खाने में हल्की
मिठास लिए होता
है। ताजे फल
का सेवन किया
जा सकता है
और इसके गूदे
को बीज हटाकर,
सुखाकर, उसका चूर्ण
बनाकर भी सेवन
किया जा सकता
है। उदर विकारों
में बेल का
फल रामबाण दवा
है। वैसे भी
अधिकांश रोगों की जड़
उदर विकार ही
है। बेल के
फल के नियमित
सेवन से कब्ज
जड़ से समाप्त
हो जाती है।
कब्ज के रोगियों
को इसके शर्बत
का नियमित सेवन
करना चाहिए। बेल
का पका हुआ
फल उदर की
स्वच्छता के अलावा
आँतों को साफ
कर उन्हें ताकत
देता है। मधुमेह
रोगियों के लिए
बेलफल बहुत लाभदायक
है।
बेल की
पत्तियों को पीसकर
उसके रस का
दिन में दो
बार सेवन करने
से डायबिटीज की
बीमारी में काफी
राहत मिलती है।
रक्त अल्पता में
पके हुए सूखे
बेल की गिरी
का चूर्ण बनाकर
गर्म दूध में
मिश्री के साथ
एक चम्मच पावडर
प्रतिदिन देने से
शरीर में नए
रक्त का निर्माण
होकर स्वास्थ्य लाभ
होता है। गर्मियों
में प्रायः अतिसार
की वजह से
पतले दस्त होने
लगते हैं, ऐसी
स्थिति में कच्चे
बेल को आग
में भून कर
उसका गूदा, रोगी
को खिलाने से
फौरन लाभ मिलता
है। गर्मियों में
लू लगने पर
बेल के ताजे
पत्तों को पीसकर
मेहंदी की तरह
पैर के तलुओं
में भली प्रकार
मलें। इसके अलावा
सिर, हाथ, छाती
पर भी इसकी
मालिश करें। मिश्री
डालकर बेल का
शर्बत भी पिलाएं
तुरंत राहत मिलती
है।
बेल
फल - बिल्व,
बेल या बेलपत्थर,
भारत में होने
वाला एक फल
का पेड़ है।
इसे रोगों को
नष्ट करने की
क्षमता के कारण
बेल को बिल्व
कहा गया है।
बेल के वृक्ष
सारे भारत में,
विशेषतः हिमालय की तराई
में, सूखे पहाड़ी
क्षेत्रों में ४०००
फीट की ऊँचाई
तक पाये जाते
हैं। मध्य व
दक्षिण भारत में
बेल जंगल के
रूप में फैला
पाया जाता है।
इसके पेड़ प्राकृतिक
रूप से भारत
के अलावा दक्षिणी
नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान,
बांग्लादेश, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया
एवं थाईलैंड में
उगते हैं। इसके
अलाव इसकी खेती
पूरे भारत के
साथ श्रीलंका, उत्तरी
मलय प्रायद्वीप, जावा
एवं फिलीपींस तथा
फीजी द्वीपसमूह में
की जाती है। धार्मिक
दृष्टि से महत्त्वपूर्ण
होने के कारण
इसे मंदिरों के
पास लगाया जाता
है।
हिन्दू धर्म
में इसे भगवान
शिव का रूप
ही माना जाता
है व मान्यता
है कि इसके
मूल यानि जड़
में महादेव का
वास है तथा
इनके तीन पत्तों
को जो एक
साथ होते हैं
उन्हे त्रिदेव का
स्वरूप मानते हैं परंतु
पाँच पत्तों के
समूह वाले को
अधिक शुभ माना
जाता है, अतः
पूज्य होता है।
धर्मग्रंथों में भी
इसका उल्लेख मिलता
है। इसके वृक्ष
१५-३० फीट
ऊँचे कँटीले एवं
मौसम में फलों
से लदे रहते
हैं। इसके पत्ते
संयुक्त विपत्रक व गंध
युक्त होते हैं
तथा स्वाद में
तीखे होते हैं।
गर्मियों में पत्ते
गिर जाते हैं
तथा मई में
नए पुष्प आ
जाते हैं। फल
मार्च से मई
के बीच आ
जाते हैं। बेल
के फूल हरी
आभा लिए सफेद
रंग के होते
हैं व इनकी
सुगंध भीनी व
मनभावनी होती है।
बेल का फल
५-१७ सेंटीमीटर
व्यास के होते
हैं।
इनका हल्के
हरे रंग का
खोल कड़ा व
चिकना होता है।
पकने पर हरे
से सुनहरे पीले
रंग का हो
जाता है जिसे
तोड़ने पर मीठा
रेशेदार सुगंधित गूदा निकलता
है। इस गूदे
में छोटे, बड़े
कई बीज होते
हैं। बाजार में
दो प्रकार के
बेल मिलते हैं-
छोटे जंगली और
बड़े उगाए हुए।
दोनों के गुण
समान हैं। जंगलों
में फल छोटा
व काँटे अधिक
तथा उगाए गए
फलों में फल
बड़ा व काँटे
कम होते हैं।
बेल का फल
अलग से पहचान
में आ जाता
है। इसकी अनुप्रस्थ
काट करने पर
यह १०-१५
खण्डों में विभक्त
सा लगता है,
जिनमें प्रत्येक में ६-१० बीज
होते हैं। ये
सभी बीज सफेद
लुआव से परस्पर
जुड़े होते हैं।ख्5,
प्रायः सर्वसुलभ होने से
इसमें मिलावट कम
होती है। कभी-कभी इसमें
गार्मीनिया मेंगोस्टना तथा कैथ
के फल मिला
दिए जाते हैं,
परन्तु इसे काट
कर इसकी परीक्षा
की जा सकती
है। इनकी वीर्य
कालावधि लगभग एक
वर्ष है।
बेल
का पका फल
- बेल फल-वात
शामक मानते हुए
इसे ग्राही गुण
के कारण पाचन
संस्थान के लिए
समर्थ औषधि माना
गया है। आयुर्वेद
के अनेक औषधीय
गुणों एवं योगों
में बेल का
महत्त्व बताया गया है,
परन्तु एकाकी बिल्व, चूर्ण,
मूलत्वक्, पत्र स्वरस
भी अत्यधिक लाभदायक
है।, चक्रदत्त बेल
को पुरानी पेचिश,
दस्तों और बवासीर
में बहुत अधिक
लाभकारी मानते हैं। बंगसेन
एवं भाव प्रकाश
ने भी इसे
आँतों के रोगों
में लाभकारी पाया
है। यह आँतों
की कार्य क्षमता
बढ़ती है, भूख
सुधरती है एवं
इन्द्रियों को बल
मिलता है। बेल
फल का गूदा
डिटर्जेंट का काम
करता है जो
कपड़े धोने के
लिए प्रयोग किया
जा सकता है।
यह चूने के
प्लास्टर के साथ
मिलाया जाता है
जो कि जल
अवरोधक का काम
करता है और
मकान की दीवारो
सीमेंट में जोड़ा
जाता है। चित्रकार
अपने जलरंग मे
बेल को मिलाते
है जो कि
चित्रों पर एक
सुरक्षात्मक परत लगाता
है।
पाचन-तंत्र
के लिए फायदेमंद
- बेल सुनहरे पीले
रंग का, कठोर
छिलके वाला एक
लाभदायक फल है।
गर्मियों में इसका
सेवन विशेष रूप
से लाभ पहुंचाता
है। शाण्डिल्य, श्रीफल,
सदाफल आदि इसी
के नाम हैं।
इसके गीले गूदे
को बिल्व कर्कटी
तथा सूखे गूदे
को बेलगिरी कहते
हैं। ग्राही पदार्थ
मूलतः बेल के
गूदे में पाए
जाते हैं। ये
पदार्थ हैं− क्यूसिलेज,
पेक्टिक, शर्करा, टैनिन्स आदि।
मार्मेलोसिन नामक रसायन
जो स्वल्प मात्रा
में ही विरेचक
होता है इसका
मूल रेचक संघटक
है। इसके अलावा
इसमें उड़नशील तेल
भी पाया जाता
है। इसके पत्ते,
जड़ तथा तने
की छाल भी
औषधीय गुणों से
युक्त होते हैं।
औषधीय प्रयोगों के
लिए बेल का
गूदा, बेलगिरी पत्ते,
जड़ एवं छाल
का चूर्ण आदि
प्रयोग किया जाता
है। चूर्ण बनाने
के लिए कच्चे
फल का प्रयोग
किया जाता है
वहीं अधपके फल
का प्रयोग मुरब्बा
तो पके फल
का प्रयोग शरबत
बनाकर किया जाता
है। चूर्ण को
शरबत आदि की
अपेक्षा प्राथमिकता दी जाती
है क्योंकि चूर्ण
अपेक्षाकृत अधिक लाभकारी
होता है। दशमूलारिष्ट
आदि में इसकी
जड़ की छाल
का प्रयोग किया
जाता है।
बेल
का सर्वाधिक प्रयोग
पाचन संस्थान संबंधी
विकारों को दूर
करने के लिए
किया जाता है।
पुरानी पेचिश तथा दस्तों
में यह फल
बहुत लाभकारी है।
इसके कच्चे फल
का प्रयोग अग्निमंदता,
जलन, गैस, बदहजमी
आदि के उपचार
में किया जाता
है। बेल में
म्यूसिलेज इतना अधिक
होता है कि
डायरिया के बाद
यह तुरन्त घावों
को भर देता
है। जिससे मल
संचित नहीं हो
पाता और आतें
कमजोर नहीं होतीं।
बेल चाहे कच्चा
हो या पक्का
आंतों के लिए
लाभदायक होता है।
इसेस आंतों की
कार्यक्षमता बढ़ती है
तथा भूख सुधरती
है। पुरानी पेचिश
के साथ−साथ
यह अल्सरेटिव, कोलाइटिस
जैसे जीर्ण असाध्य
रोगों के इलाज
में भी उपयोगी
होता है। पेक्टिव
बेल के गूदे
का एक महत्वपूर्ण
घटक है।
यह
अपने से बीस
गुना अधिक जल
में एक कोलाइटल
घोल के रूप
में मिल जाता
है जो चिपाचिपा
तथा अम्ल प्रधान
होता है। यह
घोल आतों पर
अधिशोषक (एड्सारबेंट) तथा रक्षक
के रूप में
कार्य करता है।
बड़ी आंत में
पाए जाने वाले
जीवाणुओं को मारने
की क्षमता भी
इसमें होती हैं।
पुरानी पेचिश तथा कब्जियत
में पके फल
का शर्बत या
10 ग्राम बेल, 100 ग्राम गाय
के दूध में
उबाल कर ठंडा
करके देते हैं।
संग्रहणी जब खून
के साथ बहुत
वेगपूर्ण हो तो
कच्चे फल के
लगभग पांच ग्राम
चूर्ण को एक
चम्मच शहद के
साथ दो−चार
बार देते हैं।
हैजा होने पर
बेल पर शरबत
या चूर्ण गर्म
पानी के साथ
देते हैं। आषाढ़
या श्रावण मास
में निकाले गये
पत्तों के रस
को काली मिर्च
के साथ देने
से रोगी को
पुराने कब्ज में
आराम पहुंचता है।
इसके अलावा पके
हुए फल का
गूदा मिसरी के
साथ देने से
कब्ज में लाभ
मिलता है। कच्चे
बेल का गूदा
गुड़ के साथ
पकाकर या शहद
मिलाकर देने से
रक्तातिसार तथा खूनी
बवासीर में लाभ
पहुंचता है।
इन
स्थितियों में जहां
तक हो सके,
पके फल का
प्रयोग नहीं करें
क्योंकि ग्राही क्षमता अधिक
होने के कारण
हानि भी हो
सकती है। बेल
को कैसे करें संग्रहित
- बेल के गूदे
में पर्याप्त मात्रा
में बीज पाए
जाते हैं, जिन्हें
निकालकर गूदे को
सुखाने के बाद
चूर्ण बनाया जा
सकता है। इस
चूर्ण का सेवन
पेट के रोगों
में फायदेमंद होता
है। गांवों में
लोग बेल के
गूदे की टिकिया
बनाकर रखते हैं।
इस मौसम में
आप पके बेल
और कच्चे बेल
दोनों के गूदे
का चूर्ण बनाकर
स्टोर कर लें।
कच्चे बेल के
टुकड़े काटकर उनका
हवन करने से
घर कीटाणु रहित
हो जाता है
।
बेल
पत्र - बेल पत्र इसी
बेल नामक फल
की पत्तियाँ हैं
जिनका प्रयोग पूजा
में किया जाता
है। बेल की
कोमल पत्तियों को
सुबह−सुबह चबाकर
खाने और फिर
ठंडा पानी पीने
से शूल तथा
मानसिक रोगों में शांति
मिलती है। आंखों
के रोगों में
इसके पत्तों का
रस, उन्माद अनिद्रा
में जड़ का
चूर्ण तथा हृदय
की अनियमितता में
फल का प्रयोग
करना लाभदायक होता
है। आँखें दुखने
पर पत्तों का
रस, स्वच्छ पतले
वस्त्र से छानकर
एक-दो बूँद
आँखों में टपकाएँ।
दुखती आँखों की
पीड़ा, चुभन, शूल
ठीक होकर, नेत्र
ज्योति बढ़ेगी। पीलिया में
बेल की कोंपलों
का पचास ग्राम
रस, एक ग्राम
पिसी काली मिर्च
मिलाकर सुबह-शाम
पिलाएँ।
शरीर में
सूजन भी हो
तो पत्र रस
तेल की तरह
मलिए। सिर दर्द
में बेल पत्र
के रस से
भीगी पट्टी माथे
पर रखें। पुराना
सर दर्द होने
पर ग्यारह पत्तों
का रस निकाल
कर पी जाएँ।
गर्मियों में इसमें
थोड़ा पानी मिला
ले। कितना ही
पुराना सर दर्द
ठीक हो जाएगा।
मोच अथवा अन्दरूनी
चोट में बेल
पत्रों को पीस
कर थोड़े गुड़
में पकाइए। इसे
थोड़ा गर्म पुल्टिस
बन पीडित अंग
पर बाँध दें।
दिन में तीन-चार बार
पुल्टिस बदलने पर आराम
आ जाएगा। बिल्वपत्र
ज्वरनाशक, वेदनाहर, कृमिनाशक, संग्राही
(मल को बाँधकर
लाने वाले) व
सूजन उतारने वाले
हैं। ये मूत्र
के प्रमाण व
मूत्रगत शर्करा को कम
करते हैं। शरीर
के सूक्ष्म मल
का शोषण कर
उसे मूत्र के
द्वारा बाहर निकाल
देते हैं। इससे
शरीर की आभ्यंतर
शुद्धि हो जाती
है। बिल्वपत्र हृदय
व मस्तिष्क को
बल प्रदान करते
हैं। शरीर को
पुष्ट व सुडौल
बनाते हैं। इनके
सेवन से मन
में सात्त्विकता आती
है।
शिवपुराण में
कहा गया है
कि बेलपत्र भगवान
शिव का प्रतीक
है। भगवान स्वयं
इसकी महिमा स्वीकारते
हैं। मान्यता है
कि बेल वृक्ष
की जड़ के
पास शिवलिंग रखकर
जो भक्त भगवान
शिव की आराधना
करते हैं, वे
हमेशा सुखी रहते
हैं। बेल वृक्ष
की जड़ के
निकट शिवलिंग पर
जल अर्पित करने
से उस व्यक्ति
के परिवार पर
कोई संकट नहीं
आता और वह
सपरिवार खुश और
संतुष्ट रहता है।
कहते हैं कि
बेल वृक्ष के
नीचे भगवान भोलेनाथ
को खीर का
भोग लगाने से
परिवार में धन
की कमी नहीं
होती है और
वह व्यक्ति कभी
निर्धन नहीं होता
है।
बेल वृक्ष
की उत्पत्ति के
संबंध में स्कंदपुराण
में कहा गया
है कि एक
बार देवी पार्वती
ने अपनी ललाट
से पसीना पोछकर
फेंका, जिसकी कुछ बूंदें
मंदार पर्वत पर
गिरीं, जिससे बेल वृक्ष
उत्पन्न हुआ। इस
वृक्ष की जड़ों
में गिरिजा, तना
में महेश्वरी, शाखाओं
में दक्षयायनी, पत्तियों
में पार्वती, फूलों
में गौरी और
फलों में कात्यायनी
वास करती हैं।
कहा जाता है
कि बेल वृक्ष
के कांटों में
भी कई शक्तियाँ
समाहित हैं। यह
माना जाता है
कि देवी महालक्ष्मी
का भी बेल
वृक्ष में वास
है। जो व्यक्ति
शिव-पार्वती की
पूजा बेलपत्र अर्पित
कर करते हैं,
उन्हें महादेव और देवी
पार्वती दोनों का आशीर्वाद
मिलता है।
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