सावन का महीना - पौराणिक एवं आध्यात्मिक महत्व
गुरु पूर्णिमा ने रविवार को सावन महीने 2017 की शुरुआत हुई । सावन का महीना भगवान शिव को बेहद पसंद होता है। इसमे शिव जी का अभिषेक करने से उनकी विशेष कृपा मिलती है। इस बार का सावन पहले के सावन से एकदम अलग है। 10 जुलाई को सर्वार्थ सिद्दि योग से शुरू होकर 7 अगस्त राखी तक चलेगा. सावन के सोमवार की बात करे तो पहला सोमवार 10 जुलाई को, दूसरा सोमवार 17 जुलाई को, तीसरा सोमवार 24 जुलाई, चैथा 31 और पांचवां और अंतिम सोमवार 7 अगस्त को रहेगा. इस सावन तीसरे सोमवार 24 जुलाई को पुष्य नक्षत्र रहेगा । सावन के आखिरी सोमवार 7 अगस्त को राखी के दिन चंद्रग्रहण पड़ेगा । भगवान शिव के साथ पार्वती जी की पूजा करने से शुभ फल प्राप्त होगा। सर्वार्थ सिद्धि योग का वक्त बेहद शुभ होता है. सर्वार्थ सिद्धि योग यानी अपने आप में सिद्ध. इस दिन की गई पूजा या हवन-यज्ञ का महत्व काफी अधिक होता है ।
वैज्ञानिक रूप से भी, सावन महीने के दौरान उपवास स्वस्थ माना जाता है। जाहिर है, चिकित्सा चिकित्सकों ने कहा है कि जब लोग श्रावण के दौरान उपवास करते हैं और यह वर्षा और सूर्य के प्रकाश की कमी है, तो यह पाचन तंत्र को धीमा कर देती है। इसलिए, यह खाना खाने के लिए अच्छा है जो आसानी से पचने योग्य है इसलिए, श्रावण महीने में अधिकांश हिंदू सख्त शाकाहारी आहार का पालन करते हैं। सावन महीने के दौरान, लोग भगवान शिव को बेलपात्र की पेशकश करते हैं। एक विश्वास है कि भगवान शिव के पूजा के दौरान बेल पत्रा की पेशकश किसी भी तीर्थ यात्रा के बराबर है।
सावन में घर में रखें ये 8 चीजें, हर काम में मिलेगा दोगुना फल मिलेगा । कुछ वस्तुएं भगवान शिव को प्रिय मानी जाती हैं, यदि सावन के दौरान घर के इन 8 अलग-अलग हिस्सों में ये 8 चीजें रखी जाए तो निश्चित रूप से शिव की विशेष कृपा मिलती है और हर काम का दोगुना फल प्राप्त होता है। ये 8 वस्तुऐं हैं - रूद्राक्ष, भस्म, गंगाजल, चांदी/तांबें का त्रिशूल, पानी से भरा तांबें का लोटा, डमरू, चांदी / तांबें के नंदी, चांदी तांबें का नाग । पुराणों में भगवान शिव की उपासना का उल्लेख बताया गया है। शिव की उपासना करते समय पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय और महामृत्युंजय आदि मंत्र जप बहुत खास है।
इन मंत्रों के जप-अनुष्ठान से सभी प्रकार के दुख, भय, रोग, मृत्युभय आदि दूर होकर मनुष्य को दीर्घायु की प्राप्ति होती है। सावन मास के आरंभ होते ही व्रत-उपवासों का दौर शुरू हो जाता है। सावन मास में जहाँ शिवोपासना, शिवलिंगों की पूजा की जाती है जिससे मनुष्य को अपार धन-वैभव की प्राप्ति होती है। इस माह में बिल्व पत्र, जल, अक्षत और बम-बम बोले का जयकारा लगाकर तथा शिव चालीसा, शिव आरती, शिव-पार्वती की उपासना से भी आप शिव को प्रसन्न कर सकते हैं। दयालु होने के कारण भगवान शिव सहज ही अपने भक्तों को कृपा पात्र बना देते हैं। अगर आपके लिए हर रोज शिव आराधना करना संभव नहीं हो तो सोमवार के दिन आप शिव पूजन और व्रत करके शिव भक्ति को प्राप्त कर सकते हैं। और इसके लिए सावन माह तो अति उत्तम हैं। सावन मास के दौरान एक महीने तक आप भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना कर साल भर की पूजा का फल प्राप्त सकते हैं। शिव को दूध-जल, बिल्व पत्र, बेल फल, धतूरे-गेंदे के फूल और जलेबी-इमरती का भोग लगाकर शिव की सफल आराधना कर सकते हैं। भगवान शंकर को सोमवार का दिन प्रिय होने के कारण भी सावन माह भोलेनाथ को अतिप्रिय है।
सावन में प्रति सोमवार, प्रदोष काल में की गई पार्थिव शिव पूजा अतिफलदायी है। सावन में रात्रिकाल में घी-कपूर, गूगल धूप से आरती करके शिव का गुणगान किया जाता है। शिव को देवों का देव महादेव कहा जाता है। शिव हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से है। वेदों में इन्हें रूद्र नाम से पुकारा गया है। यह चेतना के अर्न्तयामी है और इनकी अर्द्धागिंनी मॉ पार्वती है। शिव के मस्तक में चन्द्रमा तथा जटाओं में मॉ गंगा का वास है। जन कल्याण के लिए शंकर ने विष का पान किया था जिससे उनका कण्ठ नीला पड़ गया था। इसलिए शंकर को नीलकंठ भी कहा जाता है। भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है। भोले बाबा सौम्य आकृति व रूद्र रूप देानों के लिए विख्यात है। शिव चित्रों में योगी के रूप में नजर आते है। इसलिए शिव जी की पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूप में की जाती है।
शिव जी की पूजा कैसे करें - सावन के महीने में शिवलिंग की पूजा की जाती है लिंग सृष्टि का आधार है । शिवलिंग से दक्षिण दिशा में ही बैठकर पूजन करने से मनोकामना पूर्ण होती है। उज्जैन के दक्षिणामुखी महाकाल और अन्य दक्षिणामुखी शिलिंग पूजा का बहुत अधिक धार्मिक महत्च है। शिवलिंग पूजा में दक्षिण दिशा में बैठकर करके साथ में भक्त को भस्म का त्रिपुण्ड लगाना चाहिए, रूद्राक्ष की माला पहननी चाहिए और बिना कटे-फटे हुये बिल्वपत्र अर्पित करना चाहिए। शिवलिंग की कभी पूरी परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। आधी परिक्रमा करना ही शुभ होता है।
विभिन्न अभिषेकों के फल - दूध से शिव जी का अभिषेक करने पर परिवार में कलह, मानसिक अवसाद व अनचाहे दुःख व कष्टों आदि का निवारण होता है। वंश वृद्धि के लिए घी की धारा डालते हुये शिव सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। इत्र की धारा डालते हुये शिव का अभिषेक करने से भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। जलधारा डालते हुये शिव जी का अभिषेक करने से मानसिक शान्ति मिलती है। शहद की धारा डालते हुये अभिषेक करने से रोग मुक्ति मिलती है। परिवार में बीमारियों का अधिक प्रकोप नहीं रहता है। गन्ने के रस की धारा डालते हुये अभिषेक करने से आर्थिक समृद्धि व परिवार में सुखद माहौल बना रहता है। शिव जी को गंगा की धारा बहुत प्रिय है। गंगा जल से अभिषेक करने पर चारो पुरूषार्थ की प्राप्ति होती है। अभिषेक करते समय महामृत्युंजय का जाप करने से फल की प्राप्ति कई गुना अधिक हो जाती है। ऐसा करने से मॉ लक्ष्मी प्रसन्न होती है। सरसों के तेल की धारा डालते हुये अभिषेक करने से शत्रुओं का शमन होता, रूके हुये काम बनने लगते है व मान-सम्मान में वृद्धि होती है।
शिव पूजा में पुष्पों का महत्व - विल्वपत्र चढ़ाने से जन्मान्तर के पापों व रोग से मुक्ति मिलती है। ऽ कमल पुष्प चढ़ाने से शान्ति व धन की प्राप्ति होती है। कुशा चढ़ाने से मुक्ति की प्राप्ति होती है। दूर्वा चढ़ाने से आयु में वृद्धि होती है। धतूरा अर्पित करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति व पुत्र का सुख मिलता है। कनेर का पुष्प चढ़ाने से परिवार में कलह व रोग से निवृत्ति मिलती हैं। शमी पत्र चढ़ाने से पापों का नाश होता, शत्रुओं का शमन व भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है।
श्रावण सोमवार पूजा - सोमवार के व्रत में भगवान भगवान शिवजी समेत श्री गणेश जी, देवी पार्वती व नन्दी देव एवं नागदेव मूषक राज सभी की पूजा करनी चाहिए. पूजन सामग्री में जल, दुध, दही, चीनी, घी, शहद, पंचामृ्त,मोली, वस्त्र, जनेऊ, चन्दन, रोली, चावल, फूल, बेल-पत्र, भांग, आक-धतूरा, कमल,गट्ठा, प्रसाद, पान-सुपारी, लौंग, इलायची, मेवा, दक्षिणा चढाया जाता है. इस दिन धूप दीया जलाकर कपूर से आरती करनी चाहिए । पूजा करने के बाद एक बार भोजन करना चाहिए.सावन के व्रत करने से व्यक्ति को दुखों से मुक्ति मिलती है और सुख की प्राप्ति होती है. सावन सोमवार व्रत सूर्योदय से शुरु होकर सूर्यास्त तक किया जाता है. व्रत के दिन सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिए. तथा व्रत करने वाले व्यक्ति को दिन में सूर्यास्त के बाद एक बार भोजन करना चाहिए.
सावन सोमवार महत्व - सावन माह में प्रत्येक सोमवार के दिन भगवान श्री शिव की पूजा करने से व्यक्ति को समस्त सुखों की प्राप्ति होती है. श्रावण मास के विषय में प्रसिद्ध एक पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रावण मास के सोमवार व्रत, जो व्यक्ति करता है उसकी सभी इछाएं पूर्ण होती है. इन दिनों किया गया दान पूण्य एवं पूजन समस्त ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के समान फल देने वाला होता है. इस व्रत का पालन कई उद्देश्यों से किया जा सकता है । वैवाहिक जीवन की लम्बी आयु और संतान की सुख-समृ्द्धि के लिये या मनोवांछित वर की प्राप्ति करती है. सावन सोमवार व्रत कुल वृद्धि, लक्ष्मी प्राप्ति और सुख -सम्मान देने वाले होते हैं. इन दिनों में भगवान शिव की पूजा जब बेलपत्र से की जाती है, तो भगवान अपने भक्त की कामना जल्द से पूरी करते है. बिल्व पत्थर की जड़ में भगवान शिव का वास माना गया है इस कारण यह पूजन व्यक्ति को सभी तीर्थों में स्नान करने का फल प्राप्त होता है । सावन माह में भारत के सभी द्वादश शिवलिंगो की पूजा अर्चना की जाती है। आदिकाल से सावन माह का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि सावन के सोमवार का व्रत करने से इच्छित वर की प्राप्ति होती है। जो भक्त पूरे सावन महीने उपवास नहीं कर सकते वे श्रावण मास के सोमवार का व्रत कर सकते हैं। सोमवार के समान ही प्रदोष का महत्व है। इसलिए श्रावण में सोमवार व प्रदोष में व्रत जरूर रखें।
इस साल सावन महीने में बड़ा ही शुभ योग बन रहा है। इस बार सावन माह में पांच सोमवार हैं। सोमवार को बाबा भोलेनाथ का दुग्धाभिषेक व उस दिन व्रत रखने तथा श्रद्धा भाव से पूजन अर्चन करने वाले आस्थावानों की मनोकामनाएं भगवान शिव पूरी करते हैं ऐसा शास्त्रों में भी उल्लेखित है।
श्रावण मास में बाबा को भांग, बेल पत्र और दूध चढ़ाने से मनवांक्षित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही गरीबों को दान देने से पुण्य फल मिलता है। हालांकि महादेव चूंकि बड़े ही भोले माने जाते हैं इसलिए मात्र सच्चे मन से शिवलिंग पर जल चढ़ाकर उन्हें रिझाया जा सकता है। सावन माह आशाओं की पूर्ति का समय होता है। श्रावण में शिव भक्तों के लिए भगवान शिव का दर्शन एवं जलाभिषेक करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। इस महीने में शिव उपासना से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है।
सावन माह की विशेषता - सावन माह के बारे में एक पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया। इसके आलावा एक अन्य कथा के मुताबिक, मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव कृपा प्राप्त की। जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे ।
सोमवार और शिव जी - सोमवार दिन का प्रतिनिधि ग्रह चन्द्रमा है। चन्द्रमा मन का कारक है ( चंद्रमा मनसो जात )। मन के नियंत्रण और नियमण में उसका (चंद्रमा का) महत्त्वपूर्ण योगदान है। चन्द्रमा भगवान शिव जी के मस्तक पर विराजमान है। भगवान शिव स्वयं साधक व भक्त के चंद्रमा अर्थात मन को नियंत्रित करते हैं। इस प्रकार भक्त के मन को वश में तथा एकाग्रचित कर अज्ञानता के भाव सागर से बाहर निकालते है। सावन मास में सबसे अधिक वर्षा होती है जो शिव जी के गर्म शरीर को ठंडक प्रदान करती है। महादेव ने सावन मास की महिमा बताते हुए कहते है कि मेरे तीनों नेत्रों में सूर्य दाहिने, बांये चन्द्र और अग्नि मध्य नेत्र है। जब सूर्य कर्क राशि में गोचर करता है, तब सावन महीने की शुरुआत होती है। सूर्य (ैनद) गर्म है जो उष्मा देता है जबकि चंद्रमा ठंडा है जो शीतलता प्रदान करता है। इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने से खूब बरसात होती है। जिससे लोक कल्याण के लिए विष को पीने वाले भोले को ठंडक व सुकून मिलता है। प्रजनन की दृष्टि से भी यह मास बहुत ही अनुकूल है। इसी कारण शिव को सावन प्रिय हैं।
शिवजी की पूजा में मुख्य रूप से गंगाजल, जल, दूध, दही, घी, शहद,चीनी, पंचामृत, कलावा, जनेऊ, वस्त्र, चन्दन, रोली, चावल, बिल्वपत्र, दूर्वा, फूल,फल, विजिया, आक, धूतूरा, कमल−गट्टा, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, पंचमेवा, धूप, दीप तथा नैवेद्य का इस्तेमाल किया जाता है।
सावन मास में ही भगवान शिव जी इस पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत र्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। मान्यता है कि शिवजी प्रत्येक वर्ष सावन माह में अपनी ससुराल आते हैं। सावन मास में समुद्र मंथन भी किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो विष निकला था उस विष को पीकर तथा कंठ में धारण कर सृष्टि की रक्षा किये थे। यही कारण है कि विषपान से शिवजी का कंठ नीला हो गया है। इसी कारण ‘नीलकंठ” के नाम से जाने जाते हैं। देवी-देवताओं ने शिवजी के विषपान के प्रभाव को कम करने के लिए जल अर्पित किये थे। इसी कारण शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोलेनाथ को जल चढ़ाने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
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