मंगला गौरी व्रत (2017) - सुखी वैवाहिक जीवन के लिए
मंगला गौरी व्रत श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को रखा जाता है। इस दिन देवी पार्वती की पूजा गौरी स्वरूप में की जाती है। इस साल मंगला गौरी व्रत 10 जुलाई, 11 जुलाई, 18 जुलाई, 25 जुलाई और 07 अगस्त को रखा जाएगा। जिन जातकों की कुंडली में विवाह-दोष या जिनकी शादी में देरी हो रही हो उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए। सुखी वैवाहिक जीवन के लिए भी इस व्रत को बेहद अहम माना जाता है।
मंगला गौरी व्रत कथा - एक गांव में बहुत धनी व्यापारी रहता था कई वर्ष बीत जाने के बाद भी उसका कोई पुत्र नहीं हुआ। कई मन्नतों के पश्चात बड़े भाग्य से उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई। परंतु उस बच्चे को श्राप था कि 16 वर्ष की आयु में सर्प काटने के कारण उसी मृत्यु हो जाएगी। संयोगवश व्यापारी के पुत्र का विवाह सोलह वर्ष से पूर्व मंगला गौरी का व्रत रखने वाली स्त्री की पुत्री से हुआ। व्रत के फल स्वरूप उसकी पुत्री के जीवन में कभी वैधव्य दुख नहीं आ सकता था। इस प्रकार व्यापारी के पुत्र से अकाल मृत्यु का साया हट गया तथा उसे दीर्घायु प्राप्त हुई।
मंगला गौरी व्रत विधि - मंगला गौरी उपवास रखने के लिये सुबह स्नान आदि कर व्रत का प्रारम्भ किया जाता हैं । एक चैकी पर सफेद लाल कपडा बिछाना चाहियें । सफेद कपडे पर चावल से नौ ग्रह बनाते है, तथा लाल कपडे पर षोडश माताएं गेंहूं से बनाते है । चैकी के एक तरफ चावल और फूल रखकर गणेश जी की स्थापना की जाती है । दूसरी और गेंहूं रख कर कलश स्थापित करते हैं । कलश में जल रखते है । आटे से चैमुखी दीपक बनाकर कपडे से बनी 16-16 तार कि चार बतियां जलाई जाती है । सबसे पहले श्री गणेश जी का पूजन किया जाता है । पूजन में श्री गणेश पर जल, रोली, मौली, चन्दन, सिन्दूर, सुपारी, लोंग, पान,चावल, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढाते हैं ।
इसके पश्चात कलश का पूजन भी श्री गणेश जी की पूजा के समान ही किया जाता है । फिर नौ ग्रहों तथा सोलह माताओं की पूजा की जाती है. चढाई गई सभी सामग्री ब्राह्माण को दे दी जाती है । मंगला गौरी की प्रतिमा को जल, दूध, दही से स्नान करा, वस्त्र आदि पहनाकर रोली, चन्दन, सिन्दुर, मेंहन्दी व काजल लगाते है. श्रंगार की सोलह वस्तुओं से माता को सजाया जाता हैं ।
सोलह प्रकार के फूल- पत्ते माला चढाते है, फिर मेवे, सुपारी, लौग, मेंहदी, शीशा, कंघी व चूडियां चढाते है । अंत में मंगला गौरी व्रत की कथा सुनी जाती हैं । कथा सुनने के बाद विवाहित महिला अपनी सास तथा ननद को सोलह लड्डु देती हैं. इसके बाद वे यही प्रसाद ब्राह्मण को भी देती हैं. अंतिम व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी या पोखर में विर्सिजित कर दिया जाता हैं ।
सौभाग्य से जुडे होने के कारण मंगला गौरी व्रत को विवाहित महिलाएं और नवविवाहित महिलाएं करती है. इस उपवास को करने का उद्धेश्य अपने पति व संतान के लम्बें व सुखी जीवन की कामना करना है.
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