बरगद/वटवृक्ष - धार्मिक, पौराणिक एवं औषधीय महत्व
बरगद बहुवर्षीय विशाल वृक्ष है। यह एक स्थलीय द्विबीजपत्री एंव सपुष्पक वृक्ष है। इसका तना सीधा एंव कठोर होता है। इसकी शाखाओं से जड़े निकलकर हवा में लटकती हैं तथा बढ़ते हुए जमीन के अंदर घुस जाती हैं एंव स्तंभ बन जाती हैं। इन जड़ों को बरोह या प्राप जड़ कहते हैं। इसका फल छोटा गोलाकार एंव लाल रंग का होता है। इसके अन्दर बीज पाया जाता है। इसका बीज बहुत छोटा होता है किन्तु इसका पेड़ बहुत विशाल होता है। इसकी पत्ती चैड़ी, एंव लगभग अण्डाकार होती है। इसकी पत्ती, शाखाओं एंव कलिकाओं को तोड़ने से दूध जैसा रस निकलता है जिसे लेटेक्स कहा जाता है।
बरगद के पेड़ के कभी भी नष्ट न होने के कारण इसे अक्षय वट भी कहा जाता है। यह भारत का राष्ट्रीय वृक्ष है। इसका वानस्पतिक नाम फाइकस बेंघालेंसिस है। वटवृक्ष पांच तरह के होते हैं - अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट.। भारत में बरगद के वृक्ष को एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस वृक्ष को ‘वट’ के नाम से भी जाना जाता है। यह एक सदाबहार पेड़ है, जो अपने प्ररोहों के लिए विश्वविख्यात है। इसकी जड़ें जमीन में क्षैतिज रूप में दूर-दूर तक फैलकर पसर जाती है। इसके पत्तों से दूध जैसा पदार्थ निकलता है। यह पेड़ ‘त्रिमूर्ति’ का प्रतीक है। इसकी छाल में विष्णु, जड़ों में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव विराजते हैं।
अग्निपुराण के अनुसार बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है। इसीलिए संतान के लिए इच्छित लोग इसकी पूजा करते हैं। वृक्ष या पेड़-पौधे प्रकृति के ऐसे वरदान हैं, जो हमें हरियाली और फल-फूल देने के साथ ही हमारे बेहतर स्वास्थ्य में भी सहयोग करते हैं। ना सिर्फ पर्यावरण संरक्षण में वृक्षों का महत्व है बल्कि इनका महत्व धर्म और वास्तु से भी जुड़ा है। वृक्षों की पूजा हमारे देश की समृद्ध परंपरा और जीवनशैली का अंग रहा है। हिंदू धर्मानुसार पांच वटवृक्षों का महत्व अधिक है। अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट के बारे में कहा जाता है कि इनकी प्राचीनता के बारे में कोई नहीं जानता। संसार में उक्त पांच वटों को पवित्र वट की श्रेणी में रखा गया है। प्रयाग में अक्षयवट, नासिक में पंचवट, वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट और उज्जैन में पवित्र सिद्धवट है।
धार्मिक महत्व - भारतीय संस्कृति में बरगद को ब्रह्म समान माना जाता है। कई व्रत व त्यौहारों में वटवृक्ष की पूजा की जाती है। इसी प्रकार वट सावित्री व्रत सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना गया है। भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को आत्मसात करने का पर्व है। वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसके नीचे बैठ कर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है, ऐसी मान्यता है। वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व बोध के प्रतीक के नाते भी स्वीकार किया जाता है। वट वृक्ष ज्ञान व निर्वाण का भी प्रतीक है। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था।
पौराणिक महत्व - पुराणों में वर्णन आता है कि कल्पांत या प्रलय में जब समस्त पृथ्वी जल में डूब जाती है उस समय भी वट का एक वृक्ष बच जाता है। अक्षय वट कहलाने वाले इस वृक्ष के एक पत्ते पर ईश्वर बालरूप में विद्यमान रह कर सृष्टि के अनादि रहस्य का अवलोकन करते हैं। वाराणसी और गया में भी ऐसे वट वृक्ष हैं जिन्हें अक्षय वट मान कर पूजा जाता है। कुरुक्षेत्र के निकट ज्योतिसर नामक स्थान पर भी एक वटवृक्ष है जिसके बारे में ऐसा माना जाता है कि यह भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए गीता के उपदेश का साक्षी है। ज्योतीषीय दृष्टि में बरगद के पेड़ को मघा नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है।
मघा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति बरगद की पूजा करते हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपने घर में बरगद के पेड़ लगाते हैं। रामायण के परावर्ती साहित्य में इसका अक्षयवट के नाम से उल्लेख मिलता है। राम, लक्ष्मण और सीता अपने वन प्रवास के समय जब यमुना पार कर दूसरे तट पर उतरते हैं तो तट पर स्थित इस विशाल वट वृक्ष को सीता प्रणाम करती है। अक्षयवट के पत्ते पर ही प्रलय के अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने मार्कण्डेय को दर्शन दिए थे. देवी सावित्री भी वटवृक्ष में निवास करती हैं. प्रयाग में गंगा के तट पर स्थित अक्षयवट को तुलसीदासजी ने तीर्थराज का छत्र कहा है. वटवृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति को पुनः जीवित किया था. तब से यह व्रत ‘वट सावित्री’ के नाम से जाना जाता है.
औषधीय महत्व - बरगद के पेड़ का उपयोग बहुत से रोगों में लाभकारी है । बरगद का पेड़ कसैला , शीतल, मधुर, और पाचन शक्तिवर्धक, भारी, पित्त, कफ (बलगम), व्रणों (जख्मों), धातु (वीर्य) विकार, पेशाब की जलन, योनि विकार, ज्वर (बुखार), वमन (उल्टी), विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल) तथा शारीरिक और यौन दुर्बलता को खत्म करता है। यह दांत के दर्द और स्तन की शिथिलता (स्तनों का ढीलापन), रक्तप्रदर, श्वेत प्रदर (स्त्रियों का रोग), स्वप्नदोष, कमर दर्द, जोड़ों का दर्द, बहुमूत्र (बार-बार पेशाब का आना), अतिसार (दस्त), बेहोशी, योनि दोष, गलित कुष्ठ (कोढ़), घाव, बिवाई (एड़ियों का फटना), सूजन, वीर्य का पतलापन, बवासीर, पेशाब में खून आना आदि रोगों में गुणकारी है ।
बरगद, बांस, नीम और तुलसी के पेड़ अधिक मात्रा में ऑक्सीजन देते हैं। बरगद, नीम, तुलसी के पेड़ एक दिन में 20 घंटों से ज्यादा समय तक ऑक्सीजन का निर्माण करते हैं। बरगद पेड़ की पत्तियां एक घंटे में 5 मिलीलीटर ऑक्सीजन बनाती हैं इसलिए जिस पेड़ में ज्यादा पत्तियां होती हैं वह पेड़ सबसे ज्यादा ऑक्सीजन बनाता है। बरगद के फल, जड़, छाल, पत्ती आदि सभी भागों से कई तरह के रोगों का नाश होता है । बरगद का दूध चोट, मोच और सूजन पर दिन में दो से तीन बार लगाने और मालिश करने से काफी आराम मिलता है। यदि कोई खुली चोट है तो बरगद के पेड़ के दूध में हल्दी मिलाकर चोट वाली जगह बांध लेने से घाव जल्द भर जाता है । पर्यावरण की रक्षा में उपयोगी है
बरगद का पेड़ । दही के साथ बड़ को पीसकर बने लेप को जले हुए अंग पर लगाने से जलन दूर होती है। जले हुए स्थान पर बरगद की कोपल या कोमल पत्तों को गाय के दही में पीसकर लगाने से जलन कम हो जाती है। बरगद के पत्तों की 20 ग्राम राख को 100 मिलीलीटर अलसी के तेल में मिलाकर मालिश करते रहने से सिर के बाल उग आते हैं। बरगद के साफ कोमल पत्तों के रस में, बराबर मात्रा में सरसों के तेल को मिलाकर आग पर पकाकर गर्म कर लें, इस तेल को बालों में लगाने से बालों के सभी रोग दूर हो जाते हैं। 25-25 ग्राम बरगद की जड़ और जटामांसी का चूर्ण, 400 मिलीलीटर तिल का तेल तथा 2 लीटर गिलोय का रस को एकसाथ मिलाकर धूप में रख दें, इसमें से पानी सूख जाने पर तेल को छान लें। इस तेल की मालिश से गंजापन दूर होकर बाल आ जाते हैं और बाल झड़ना बंद हो जाते हैं।
बरगद की जटा और काले तिल को बराबर मात्रा में लेकर खूब बारीक पीसकर सिर पर लगायें। इसके आधा घंटे बाद कंघी से बालों को साफ कर ऊपर से भांगरा और नारियल की गिरी दोनों को पीसकर लगाते रहने से बाल कुछ दिन में ही घने और लंबे हो जाते हैं। बरगद की जटा के बारीक पाउडर को दूध की लस्सी के साथ पिलाने से नाक से खून बहना बंद हो जाता है। नाक में बरगद के दूध की 2 बूंदें डालने से नकसीर (नाक से खून बहना) ठीक हो जाती है। बरगद की जड़ों में एंटी-ऑक्सीडेंट सबसे ज्यादा पाए जाते हैं।
अपने इसी गुण के कारण यह वृद्धावस्था की ओर ले जाने वाले कारकों को दूर कगरती है। हवा में तैरती ताजी जड़ों के सिरों को काटकर पानी में कुचल कर रस को चेहरे पर लगाएं। इससे चेहरे से झुर्रियां दूर हो जाती हैं। बरगद के पत्ते पर हल्दी से स्वास्तिक बना कर अपने मंदिर में रखने से पैसे की तकलीफ नहीं रहती । बरगद का बाँदा बाजार में भी मिलता है. इसे अपनी हाथ पर बांधना अच्छा रहता है. कोई व्यत्कि यदि आपको नुकसान पहुचाना चाहता है तो ये उपाय करें ।
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