Skip to main content

पीपल वृक्ष - पौराणिक , धार्मिक एवं औषधीय महत्व


पीपल वृक्ष  - पौराणिक , धार्मिक एवं औषधीय महत्व 




पेड़ों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है पीपल का वृक्ष । पीपल को देव वृक्ष कहा गया है । । इस पेड़ की मात्र परिक्रमा से ही कालसर्प जैसे ग्रह योग के बुरे प्रभावों से छुटकारा मिल जाता   है । शास्त्रों के अनुसार इस वृक्ष में सभी देवी-देवताओं का वास भी माना गया है । गीता में भगवान श्री कृष्ण ने तो पीपल के वृक्ष को स्वयं अपना ही स्वरूप बताया है । शास्त्रों में कहा गया है कि ‘‘ अष्वत्थः पूजितोयत्र पूजिताःसर्व देवताः - अर्थात पीपल की पूजा करने से एक साथ सभी देवताओं की पूजा का फल प्राप्त हो जाता है । स्कन्दपुराण में कहा गया है कि पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव , शाखाओं में नारायण पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं के  साथ अच्युत भगवान निवास करते हैं । व्रतराज नामक ग्रंथ में बताया गया है कि प्रतिदिन पीपल पर जल चढ़ाकर तीन बार परिक्रमा करने से आर्थिक समस्या एवं भाग्य में आने वाली बाधा दूर हो जाती है ।




 नित पीपल की पूजा एवं दर्शन करने से आयु और समृद्धि बढ़ती है । जो स्त्री नियमित पीपल की पूजा करती है उनका सौभाग्य बढ़ता है । शनिवार   के दिन अगर अमावस्या तिथि हो तब सरसों तेल का दीपक जलाकर काले तिल से पीपल वृक्ष की पूजा करें और सात बार परिक्रमा करें तो शनि दोष के कारण प्राप्त होने वाले कष्ट समाप्त हो जाते हैं । वैज्ञानिक दृष्टि कोण भी पीपल को पूजनीय बनाता है क्योंकि यह एक ऐसा वृक्ष है जो गर्मी में शीतलता और सर्दी में उष्णता प्रदान करता है । पीपल में हमेशा प्राण वायु यानि आॅक्सीजन का संचार होता है । आयुर्वेद में बताया गया है कि पीपल का हर भाग जैसे तना, पत्ते और छाल और फल सभी चिकित्सा में काम आते हैं । इनसे कई गंभीर रोगों का भी इलाज संभव है । 




पीपल भारत, नेपाल, श्रीलंका, चीन और इंडोनेशिया में पाया जाने वाला बरगद की जाति का एक विशालकाय वृक्ष है जिसे भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है तथा अनेक पर्वों पर इसकी पूजा की जाती है । पीपल वृक्ष का विस्तार, फैलाव तथा ऊंचाई व्यापक और विशाल होती है । बरगद और गूलर वृक्ष की भांति इसके पुष्प भी गुप्त रहते है अतः इसे गुहयपुष्पक भी कहा जाता है । पीपल को पेड़ दीर्घायु सम्भवतः 90-100 साल की आयु का होता है । इसके फल बीजों से भरे तथा आकार में मूंगफली  के छोटे दानों जैसे होते हैं बीज राई के दाने के आधे आकार में होते हैं परन्तु इनसे उत्पन्न वृक्ष विशालतम रूप धारण करके सैकड़ों वर्षों तक खड़ा रहता है । 




पीपल एक छायादार वृक्ष है इसके पत्ते अधिक सुन्दर, कोमल, चंचल, चिकने, चैड़े व लहर दार किनारे वाले होते हैं । वसंत ऋतु में इस पर धानी रंग की नयी कोपलें आने लगती हैं बाद में वह हरी और फिर गहरी हरी हो जाती हैं । पीपत का वृक्ष हमेशा कर्म करने की शिक्षा देता है । जब अन्य वृक्ष शांत  हो पीपल की पत्तियों तब भी हिलती रहती हैं । इसके इस गतिशील  प्रकृति के कारण इसे चल वृक्ष (चल पत्र) भी कहते हैं । पीपल के वृक्ष के नीचे गौतम को इस तथ्य का बोध हुआ था और वे बुद्ध कहलाये थे । महात्मा बुद्ध (भगवान बुद्ध)  का बोध-निर्वाण पीपल की घनी छाया से जुड़ा हुआ है तथा गया में पीपल के वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था । इस वृक्ष के नीचे एकाग्रचित बैठकर देखें तो यह अनुभव होगा कि पत्तों के हिलने की ध्वनि एकाग्रचित्तता में सहायक होती है । पौराणिक काल से ही पीपल को पवित्र और पूज्य मानने की आस्था रही है । संपूर्ण देश  में पीपल से लोगों की आस्था जुड़ी है । 






श्रद्धा, आस्था, विश्वास और भक्ति का यह पेड़ वास्तव में बहुत शक्ति रखता है । पवित्र और पूज्य पीपल का पेड़ बहुत परोपकारी गुणों से भरा होता है । शास्त्रों  के अनुसार जो लोग पीपल वृक्ष की पूजा वैशाख  माह में करते हैं और जल भी अर्पित करते हैं उनका जीवन पाप मुक्त हो जाता है । पीपल का वृक्ष लगाने वाले की वंश  परंम्परा कभी विनष्ट नहीं होती । पीपल की सेवा करने वाले सद्गति प्राप्त करते हैं । कहा जाता है कि इसकी परिक्रमा मात्र से हर रोग नाशक शक्तिदाता पीपल मनोवांछित फल प्रदान करता है । पीपल को रोपने से धन, रक्षा करने से पुत्र, स्पर्श करने से स्वर्ग एवं पूजने से मोक्ष की प्राति होती है। रात में पीपल की पूजा को निषिद्ध माना गया है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि रात्रि में पीपल पर दरिद्रता बसती है और सूर्योदय के बाद पीपल पर लक्ष्मी का वास माना जाता है । वैज्ञानिक दृष्टि से भी पीपल का महत्व है पीपल की एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो रात-दिन आॅक्सीजन देता है । गंधर्वों , अप्सराओं, यक्षिणी, भूत-प्रेतात्माओं का निवास स्थल, जातक कथाओं, पंचतंत्र की विविध कथाओं का घटना स्थल तपस्वियों का आहार स्थल होने के कारण पीपल का महात्म्य दुगुना हो जाता है । आज के इस दूषित पर्यावरण में इस कल्प वृक्ष का महत्व और भी बढ़ जाता है । 






अतः हमें अपने धर्म ग्रंर्थों के अनुसार चलते हुए अधिक से अधिक पीपल के पेड़ लगाने चाहिए तथा उनकी श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना करनी चाहिए । 1. यदि कोई व्यक्ति किसी पीपल के वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित करता है और नियमित रूप से पूजन करता है तो उसकी सभी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं । इस उपाय से गरीब व्यक्ति  भी धीरे धीरे मालामाल हो सकता है । 2. यदि पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ किया जाए तो यह चमत्कारी फल प्रदान करने वाला उपाय है । 3.  शनि की साढ़ेसाती या ढयया के बुरे प्रभावों को नष्ट करने के लिए प्रति शनिवार पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाकर सात परिक्रमा करनी चाहिए । इसके साथ ही शाम के समय पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक भी लगाना चाहिए । 4. पीपल का पेड़ लगाने वाले व्यक्ति को जीवन में किसी भी प्रकार का कोई दुख नहीं सताता है । उस इंसान को कभी भी पैसों की कमी नहीं रहती है । पीपल के पेड़ लगाने के बाद उसे नियमित रूप से जल अर्पित करना चाहिए । जैसे जैसे यह वृक्ष बड़ा होगा आपके घर-परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती जाएगी, धन बढ़ता जाएगा । 5. पीपल - सैकरेड फिग - एक विशालकाय वृक्ष है जिसे भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है । पीपल के वृक्ष में जड़ से लेकर पत्तियों तक तैंतीस कोटि देवताओं का वास होता है और इसलिए पीपल का वृक्ष प्रातः पूज्यनीय माना गया है । पीपल के पेड़ में जल अर्पण करने से रोग और शोक मिट जाते है । 6. पीपल के प्रत्येक तत्व जैसे छाल, पत्ते, फल, बीज, दूध, जटा एवं कोपल तथा लाख सभी प्रकार की आधि-व्याधियों के निदान में काम आते हैं । जब इतने फायदे हैं तो, भला पीपल की पूजा क्यों न करें । ऐसा विश्वास है कि पीपल के वृक्ष की पूजा करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं और शनि दोष के कुप्रभाव से मुक्ति मिलती है ।




















वैज्ञानिक दृष्टिकोण -  पीपल का वृक्ष 24 घंटे आॅक्सीजन छोड़ता है जो प्राणधारियों के लिए प्राण वायु कही जाती है । इस गुण के अतिरिक्त इसकी छाया सर्दियों में गर्मी देती है और गर्मियों में सर्दी, पीपल के पत्तों से स्पर्ष होने पर वायु में मिले संक्रामक वायरस नष्ट हो जाते हैं अतः वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह वृक्ष पूज्यनीय है । पीपल की पूजा साक्षात देव शक्तियों के आवाहन और प्रभाव से पितृदोष, ग्रहदोष, सर्पदोष दूर कर लंबी उम्र, धन संपत्ति, संतान, सौभाग्य व शान्ति देने वाली मानी गई है ।
पीपल के पेड़ के नीचे दीपावली रात - दीपावली की रात में कुछ विशेष  स्थानों पर दीपक लगाने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है ।  दीपावली  रात देवी महालक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती है । यदि संभव हो तो रात के समय किसी ष्मषान में दीपक जरूर लगाएं ।



















पैसा प्राप्त करने के लिए यह एक चमत्कारी टोटका है । धन प्राप्ति की कामना करने वाले व्यक्ति को दीपावली की रात मुख्य दरवाजे की चैखट के दोनों ओर दीपक अवश्य लगाना चाहिए । घर के आसपास वाले चैराहे पर रात के समय दीपक लगाना चाहिए । ऐसा करने पर पैसों से जुड़ी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं । घर के पूजन स्थल में दीपक लगाएं, जो पूरी रात बुझना नहीं चाहिए । ऐसा करने पर महालक्ष्मी प्रसन्न होती है । किसी बिल्व पत्र के पेड़ के नीचे दीपावली की शाम दीपक लगाएं । बिल्व पत्र भगवान शिव का प्रिय वृक्ष है अतः यहां दीपक लगाने पर उनकी कृपा प्राप्त होती है । घर के आसपास जो भी मंदिर हो वहां रात के समय दीपक अवश्य लगाएं । इससे सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है । घर के आंगन में भी दीपक लगाना चाहिए । ध्यान रखें यह दीपक बुझना नहीं चाहिए । पीपल से रोगों का उपचाररू 1. पीपल का फल बाँझपन को दूर करने में मददगार है जिन स्त्रियों को गर्भधारण नहीं होता है वह इसके फलों को बारीक पीसकर दिन के एक बार खाए तो उनको शीघ्र गर्भ धारण करने में मदद मिलेगी । 2. पुरूषों में शीघ्रपन के रोगियों को पीपल के दूध को बताशे के साथ पकाकर खाए अति शीघ्र लाभ होता है । 3. पीपल दमे को भी ठीक करने में मददगार है, पीपल के छाल का चूर्ण थोड़े गरम पानी के साथ दिन में तीन बार लेने से दमा ठीक हो जाता है । 4. पेट के कृमि होने पर पीपल के पंचांग का चूर्ण थोड़े गुड़ और सौंफ के साथ खाने से लाभ होता है । 5. पीलिया के रोगियों को पीपल और नीम के 5-5 पत्ते पीसकर सेंधा नमक मिलाकर नियमित खाने से लाभ होता है । 6. पेट दर्द -पीपल की छाल का चूर्ण, हींग एवं खाना सोड़ा सबकी उचित मात्रा लेकर फांकें और ऊपर से पानी पी लें । पीपल के पत्तों का रस , मोंगरे के पत्तों का रस, काला नमक मिलाकर सेवन करें । 7. बवासीर - पीपल के पत्तों का रस 10 ग्राम, अमरबेल का रस 50 ग्राम, 8-10 काली मिर्च का चूर्ण मिला घोटकर दिन भर में तीन बार पी लें । 



यह दवा वादी और खूनी दोनों बवासीरों में लाभदायक है । 8. कब्ज - कब्ज पीपल के सूखे पत्तों का चूर्ण, शहद में मिलाकर सेवन करने से कब्ज खुल जाता है । पीपल के फल और अमलतास के फूल दोनों का समान मात्रा में सूखा, थोड़ी मिश्री मिलाकर चूर्ण बना प्रतिदिन एक चम्मच पानी के साथ लें । 9. खांसी - खांसी में एक चम्मच पिसी हल्दी तथा एक चम्मच पीपल की सूखी पिसी छाल का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ सेवन करें । पीपल के फलों का चूर्ण, फुलाया हुआ सुहागा में शहद मिलाकर चाटें । 10. दमा - पीपल की छाल में शहद मिलकर सुबह-शाम सेवन करें । चक्कर आना पीपल के फलों का चूर्ण 6 ग्राम दूध के साथ सोते समय सेवन करें । 11. जीव-जन्तु का काटना (बिच्छू) ततैया, मधुमक्कखी, मकड़ी आदि) में पीपल की छाल को पानी में घिसकर डंक लगने या काटे जाने वाले स्थान पर लगाएं । नीम की छाल, पीपल की छाल दोनों को अलग अलग पानी में घिसकर मिला लें और काटे जाने वाली जगह पर लगाएं लाभ होगा । इसके अलावा यह अपच, अजीर्ण, खाज-खुजली, फौड़ा, फुंसी, कील-मुहांसे, चक्कर आना, सिरदर्द, कमर दर्द आदि रोगों में भी लाभदायक है । पीपल और शनि - .शनिवार को पीपल पर जल व तेल चढ़ाना, दीप जलाना, पूजा करना या परिक्रमा लगाना अतिशुभ होता है । .पीपल वृक्ष की विशेषताएं - 1. .पीपल विषैली वायु को षुद्ध करता है तथा प्राण वायु का संचार करता है । 2. दमा और टी बी के रोगियों के लिए पीपल अमृत समान है । पीपल के पत्तों को चाय पीने से रोगों में आराम मिलता है । पीपल की छाल को सुखाकर चूर्ण बनाकर शहद के साथ लेने से भी लाभ होता है । जड़ को पानी में उबालकर स्नान करना चाहिए । 3. पीपल की छांव में बैठने से थकावट दूर होती है क्योंकि पीपल के पत्तों से होकर नीचे आने वाली किरणों में तैलीय गुण आ जाते हैं ।




 4. पीपल का वृक्ष दिन-रात प्रकाश  देता है । दिन हो या रात पीपल के पेड़ के नीचे सघन अंधकार कभी दिखाई नहीं देता । पत्तियों के बीच से दिन में सूर्य का और रात में चन्द्रमा का प्रकाश  छन छन कर आता रहता है । 5. पीपल के नीचे बैठने से शीतल, मंद सुगंधित वायु के चलने पर कुछ पत्ते तालियां बजाते हैं तो कुछ मीठी मीठी ध्वनि निकालते हैं जो कानों में प्रवेश  करके व्यक्ति को हल्का नशा देते हैं इसी कारण व्यक्ति आनंदित होकर सो जाता है । 6. पीपल के पत्ते, कोपलें, फूल फल, डाली, छाल एवं जड़ सभी अमृत रस की वर्षा प्रदान करते हैं इसी प्रकार पीपल की हर एक चीज व्यक्ति का बुद्धि बल और स्वास्थ्य प्रदान करती है यही अमृत रस है । 7. पीपल रोग नाशक विषहर एवं दीर्घायु प्रदान करने वाला है अतः भगवान शिव को यह वृक्ष बहुत पसंद है । 8. पीपल में भगवान शिव जैसे गुण पाये जाते है जो विष पीकर लोगों को अमृत प्रदान करने वाले हैं । पीपल और शिव का संगम हमारे देश  में हजारों वर्ष  पूर्व से चला आ रहा है । आयुर्वेदिक गुण ऋषि चरक ने अपने ग्रंथ मंे लिखा है कि यदि व्यक्ति में नपुंसकता का दोष है और वह अपनी पत्नी से संतान उत्पन्न करने में असमर्थ हो तो उसे पीपल की जटा को उबालकर उसका क्वाथ पीना चाहिए । पीपल की जड़ तथा जटा में पुरूषत्व बढ़ाने के गुण विदयमान हैं सभी प्रकार की दवाओं का निर्माण जड़ी बूटियों फलो पत्तों छालों एवं रसों से होता है । उनके बनाने में देर लगती है उस पर निर्मित दवा प्रयोग करने के बाद भी परहेज करना पड़ता है किन्तु पीपल वृक्ष आशुतोष है आशु का अर्थ है सन्तुष्टि और तोष का अर्थ है शीघ्र प्रदान करना । 





अर्थात शीघ्र संतुष्टि प्रदान करना अर्थात शीघ्र संतुष्टि प्रदान करना । पीपल का वृक्ष किसी लाग-लपेट के शीघ्र ही पूर्ण लाभ पहुंचाता है । स्त्रियों-पुरूषों दोनों को पीपल के पत्तों की छाल का सेवन करना चाहिए । ये दोनों चीजें पुत्र प्रदान करने वाली  हैं । सूखी कोख को हरी करने वाली हैं । चर्म विकार जैसे कुष्ठ, फोड़े फुन्सी, दाद खाज और खुजली को नष्ट करने वाला है । पीपल की छाल घिसकर चर्म रोगों पर लगाने से त्वचा को लाभ होता है । कुष्ठ रोगों में पीपल के पत्तों को पीसकर कुष्ठ स्थान पर लगाया जाता है । पत्तों का जल सेवन किया जाता है ।  आयुर्वेद ग्रंथों में ऐसा कहा गया है कि पीपल के वृक्ष  के नीचे दो तीन घंटे प्रतिदिन नियमित रूप से रूक कर आसन लगाकर बैठने से हर प्रकार के त्वचा रोगों में लाभ होता है । .रोगों में पीपल का उपचार - पीपल वृक्ष के औषधीय गुण पीपल के वृक्षों में अनेक औषधीय गुण हैं तथा इसके औषधीय गुणों को बहुत कम लोग जानते हैं । जो गुणी होता है लोग उसका आदर करते ही हैं लोग उसे पूजते है ।  भारत में उपलब्ध विविध वृक्षों में जितना अधिक धार्मिक एवं औषधीय महत्व पीपल का है अन्य किसी वृक्ष का नहीं है । पीपल की एक ऐसा वृक्ष है जो चैबीसों घंटे आॅक्सीजन देता है जबकि अन्य वृक्ष रात को कार्बन-डाइ-आक्साइड या नाइट्रोजन छोड़ते हैं । इस वृक्ष का सबसे बड़ा उपयोग पर्यावरण प्रदूषण को दूर करने में किया जा सकता है क्योंकि यह प्राणवायु प्रदान कर वायुमंडल को शुद्ध करता है और इसी गुणवत्ता के कारण भारतीय शास्त्रों  ने इस वृक्ष को सम्मान दिया । पीपल के जितने ज्यादा वृक्ष होंगे, वायुमंडल उतना ही ज्यादा शुद्ध होगा ।



पीपल के फल - पीपल वृक्ष के पके हुए फल हृदय रोगों को शीतलता और शान्ति देने वाले होते हैं । इसके साथ ही पित्त, रक्त और कफ के दोष को दूर करने वाले गुण भी इनमें निहित हैं । दाह, वमन, शोथ, अरूचि आदि रोगों में यह रामबाण है । पीपल का फल पाचक, आनुलोमिक, संकोच, विकास-प्रतिबंधक और रक्त शोधक  है । पीपल के सूखे फल दमे के रोग को दूर करने में काफी लाभकारी साबित हुआ है । महिलाओं में बांझपन को दूर करने और सन्तानोत्पत्ति में इसके फलों का सफल प्रयोग किया गया है । पीपल का दूध - अति षीघ्र रक्तशोधक, वेदना नाशक, शोशहर होता है । दूध का रंग सफेद होता है पीपल का दूध आंखों के अनेक रोगों को दूर करता है । पीपल के पत्ते या टहनी तोड़ने से जो दूध निकलता है उसे थोड़ी मात्रा में प्रतिदिन सलाई से लगाने पर आंखों के रोग जैसे पानी आना, मल बहना, फोला, आंखों में दर्द और आंखों की लाली आदि रोगों में आराम मिलता है । पीपल की छाल का रस या दूध लगाने से पैरों की बिवाई ठीक हो जाती है । 





पीपल की छाल - पीपल की छाल स्तम्भक, रक्त संग्राहक और पौष्टिक होती है । सुजाक मे ंपीपल की छाल का उपयोग किया जाता है । इसके छाल के अन्दर फोड़ों को पकाने के तत्व भी होते हैं । पीपल की छाल का इस्तेमाल गीली खुजली को दूर करने में किया जाता है । ताजा जलाई हुई छाल की राख को पानी में घोलकर और उसके निथरे हुए जल को पिलाने से भयंकर हिचकी भी रूक जाती है । छाल के रस दांत और मसूड़ों के दर्द को दूर करने में कुल्ले करने में किया जाता है । पीपल के पत्ते - पीपल के पत्तों को गर्म करके सूजन पर बांधने से कुछ ही दिनों में सूजन उतर आती है । खंासी के रोग में पीपल के पत्तों को छाया में सुखाकर कूट-छानकर समान भाग मिश्री  मिला लें तथा कीकर का गोंद मिलाकर चने के आकार की समान गोली बनाये तथा दिन में 2 - 3 गोलियां ले खांसी को आराम मिलेगा । कान दर्द में पीपल की ताजी हरी पत्तियों को निचोड़कर उसका रस कान में डालने से कान दर्द दूर होता है नियमित उपयोग से कान का बहरापन भी ठीक हो सकता है । पीपल की टहनियां - पीपल की टहनियों में से दातुन बना लें प्रतिदिन पीपल की दातुन करने से लाभ होता है । दांतों के रोग जैसे दांतों में कीड़ा लगना, मसूड़ों में सूजन, पीप या खून निकलना, दांतों के पीलापन, दांत हिलना आदि में लाभ देता है । पीपल का दातुन मुंह की दुर्गंध को दूर करता है ।



Comments

Popular posts from this blog

हस्तमुद्रा - औषधीय एवं आध्यात्मिक लाभ

हस्तमुद्रा - औषधीय एवं आध्यात्मिक लाभ योग अनुसार आसन और प्राणायाम की स्थिति को मुद्रा कहा जाता है। बंध , क्रिया और मुद्रा में आसन और प्राणायाम दोनों का ही कार्य होता है। योग में मुद्राओं को आसन और प्राणायाम से भी बढ़कर माना जाता है। आसन से शरीर की हड्डियाँ लचीली और मजबूत होती है जबकि मुद्राओं से शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास होता है। मुद्राओं का संबंध शरीर के खुद काम करने वाले अंगों और स्नायुओं से है। मुद्राओं की संख्या को लेकर काफी मतभेद पाए जाते हैं। मुद्रा और दूसरे योगासनों के बारे में बताने वाला सबसे पुराना ग्रंथ घेरण्ड संहिता है। हठयोग पर आधारित इस ग्रंथ को महर्षि घेरण्ड ने लिखा था। घेरंड में 25 और हठयोग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं का उल्लेख मिलता है , लेकिन सभी योग के ग्रंथों की मुद्राओं को मिलाकर कुल 50 से 60 हस्त मुद्राएँ हैं। मानव - सरीर अनन्त रहस्यों से भरा हुआ है । शरीर की अपनी एक मुद्रामयी भाषा है । जिसे करने स...

Elephant Pearl ( Gaj Mani)

हाथी मोती ( गज मणि ) गज मणि हल्के हरे - भूरे रंग के , अंडाकार आकार का मोती , जिसकी जादुई और औषधीय  शक्ति    सर्वमान्य   है । यह हाथी मोती   एक लाख हाथियों में से एक में पाये जाने वाला मोती का एक रूप है। मोती अत्यंत दुर्लभ है और इसलिए महंगा भी है जिस किसी के पास यह होता है वह बहुत भाग्यषाली होता है इसे एक अनमोल खजाने की तरह माना गया है । इसके अलौकिक होने के प्रमाण हेतु अगर इसे साफ पानी में रखा जाए तो पानी दूधिया हो जाता है । इसी तरह अगर स्टेथोस्कोप से जांचने पर उसके दिन की धड़कन सुनी जा सकती है । अगर इसे हाथ में रखा जाता है तो थोड़ा कंपन महसूह किया जा सकता है ।   अगर गज मणि को आप नारयिल पानी में रखत हैं तो बुलबुले पैदा होने लगते हैं और पानी की मात्रा भी कम हो जाती है । चिकित्सकीय लाभ में जोड़ों के दर्द , बच्चे न पैदा होने की असमर्थता के ...

Shri Sithirman Ganesh - Ujjain

श्री स्थिरमन गणेश - उज्जैन श्री स्थिरमन गणेश   एक अति प्राचीन गणपति मंदिर जो कि उज्जैन में स्थित है । इस मंदिर एवं गणपति की विशेषता यह है कि   वे न तो दूर्वा और न ही मोदक और लडडू से प्रसन्न होते हैं उनको गुड़   की एक डली से प्रसन्न किया जाता है । गुड़ के साथ नारियल अर्पित करने से गणपति प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की झोली भर   देते हैं , हर लेते हैं भक्तों का हर दुःख और साथ ही मिलती है मन को बहुत शान्ति । इस मंदिर में सुबह गणेश जी का सिंदूरी श्रंृगार कर चांदी के वक्र से सजाया जाता है ।   यहां सुबह - शाम आरती होती है जिसमें शंखों एवं घंटों की ध्वनि मन को शांत कर   देती है । इतिहास में वर्णन मिलता है कि श्री राम जब सीता और लक्ष्मण के साथ तरपन के लिए उज्जैन आये थे तो उनका मन बहुत अस्थिर हो गया तथा माता सीता ने श्रीस्थिर गणेश की स्थापन कर पूजा की तब श्री राम का मन स्थिर हुआ ...