.रूद्राक्ष
- औषधीय एंव आध्यात्मिक
महत्व
1 Mukhi Rudrasha |
रूद्राक्ष एक दिव्य
औषधीय एंव आध्यात्मिक
वृक्ष है । संसार
में यही एक
ऐसा फल है
जिसको खाया नहीं
जाता बल्कि गुददे
को निकालकर उसके
बीज को धारण
किया जाता है
। यह एक
ऐसा काष्ठ है
जो पानी में
डूब जाता है
। पानी में
डूबना यह दर्शाता
है कि इसका
आपेक्षिक घनत्व अधिक है
क्योंकि इसमें लोहा, जस्ता,
निकल, मैंगनीज, एल्यूमिनियम,
फास्फोरस, कोबाल्ट, पोटैशियम, सोडियम,
सिलिका,गंधक इत्यादि
तत्व होते हैं
।
2 Mukhi Rudrasha |
रूद्राक्ष प्रायः तीन रंगों
में पाया जाता
है । लाल,
मिश्रित लाल व
काला । इसमें
धारियां बनी रहती
हैं । इन
धारियांे को मुख
कहा गया है
। एक मुखी
से लेकर इक्कीस
मुखी तक रूद्राक्ष
होते हैं परन्तु
वर्तमान में चैदह
मुखी रूद्राक्ष उपलब्ध
हो जाते हैं
। रूद्राक्ष के
एक ही वृक्ष
से कई प्रकार
के रूद्राक्ष मिलते
हैं ।
3 Mukhi Rudrasha |
करामाती रूद्राक्ष के जन्म
का विवरण इस
प्रकार है ।
त्रिपुर नाम के
एक राक्षस ने
ब्रहमा, विष्णु और अन्य
देवताओं को तिरस्कृत
किया, तो इन
देवताओं ने भगवान
शंकर से सभी
की रक्षा करने
को कहा ।
त्रिपुर नामक दैत्य
को मारने हेतु
भगवान शंकर ने कालाग्नि
नामक शस्त्र जब
धारण किया तभी
अश्रु पात होने
से आंखों के
जल बिंदु से
रूद्राक्ष की उत्पति
बताई गई है
। इसे धारण
करने से सकारात्मक
ऊर्जा मिलती है
। रूद्राक्ष शिव
का वरदान है,
जो संसार के
भौतिक दुःखों को
दूर करने के
लिए प्रभु शंकर
ने प्रकट किया
है । रूद्राक्ष एक फल
की गुठली है
। इसका उपयोग
आध्यात्मिक क्षेत्र में किया
जाता है ।
4 Mukhi Rudrasha |
रूद्राक्ष के नाम
और उनका स्वरूप
एकमुखी रूद्राक्ष भगवान शिव,
द्विमुखी श्री गौरी
शंकर, त्रिमुखी तेजोमय
अग्नि, चतुर्थमुखी श्री पंचदेव,
पंचमुखी सर्वदेव्मयी, षठमुखी भगवान कार्तिकेय,
सप्तमुखी प्रभु अनंत, अष्टमुखी
भगवान श्री गणेश,
नवमुखी भगवती देवी दुर्गा,
दसमुखी श्री हरि
विष्णु, तेरहमुखी श्री इंद्र
तथा चैदहमुखी स्वयं
हनुमानजी का रूप
माना जाता है
। इसके अलावा
श्री गणेश व
गौरी-शंकर नाम
के रूद्राक्ष भी
होते हैं ।
5 Mukhi Rudrasha |
1. एकमुखी रूदाक्ष - ऐसा रूद्राक्ष
जिसमें एक आँख
अथवा बिंदी हो
। एक मुखी
रूद्राक्ष को साक्षात
शिव माना जाता
है । यह
किस्मत वालों को ही
मिलता है ।
स्वंय शिव का
स्वरूप है जो
सभी प्रकार के
सुख, मोक्ष और
उन्नति प्रदान करता है
। देवता - शिव, मंत्र
- ऊँ नमः शिवाय
। ऊँ हीं
नमः
6 Mukhi Rudrasha |
2. द्विमुखी
रूद्राक्ष - दो मुखी
रूद्राक्ष देवता और देवी
का मिला जुला
रूप है ।
सभी प्रकार की
कामनाओं को पूरा
करने वाला तथा
दांपत्य जीवन मे
ंसुख, शान्ति व तेज
प्रदान करता है
। देवता - अर्धनारीश्रवर, मंत्र
- ऊँ नमः
7 Mukhi Rudrasha |
3. त्रिमुखी
रूद्राक्ष - समस्त भोग- ऐश्वर्य
प्रदान करने वाला
होता है ।
तीन मुखी रूद्राक्ष
पहनने से स्त्री
हत्या का पाप
समाप्त होता है
। देवता - अग्निदेव
, मंत्र - ऊँ क्लीं
नमः
8 Mukhi Rudrasha |
4. चतुर्थमुखी
रूद्राक्ष-धर्म, अर्थ काम
एवं मोक्ष प्रदान
करने वाला होता
है । चार
मुखी रूद्राक्ष पहनने
से नर हत्या
का पाप समाप्त
होता है ।
देवता - ब्रहमा, सरस्वती,
मंत्र - ऊँ ह्नीं
नमः
9 Mukhi Rudrasha |
5. पंचमुखी
रूद्राक्ष-सुख प्रदान
करने वाला ।
पंच मुखी रूद्राक्ष
पहनने से अभक्ष्याभक्ष्य
और अभग्यागमन के
अपराध से मुक्ति
मिलती है ।
देवता - कालाग्नि रूद्र, मंत्र
- ऊँ ह्नीं नमः
10 Mukhi Rudrasha |
6. षष्ठमुखी
रूद्राक्ष- पापों से मुक्ति
एवं संतान देने
वाला होता है
। इसे साक्षात
कार्तिकेय माना जाता
है । देवता
- कार्तिकेय, मंत्र - ऊँ ह्नीं
हुं नमः
11 Mukhi Rudrasha |
7. सप्तमुखी
रूद्राक्ष-दरिद्रता को दूर
करने वाला है
। सात मुखी
रूद्राक्ष धारण करने
वाले से सोने
की चोरी आदि
के पाप से
मुक्ति मिलती है और
महालक्ष्मी की कृपा
प्राप्त होती है
। देवता - नागराज,
मंत्र - ऊँ ह्नीं
हुं नमः
12 Mukhi Rudrasha |
8. अष्टमुखी
रूद्राक्ष-आयु एवं
सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने
वाला होता है
। आठ मुखी
रूद्राक्ष को गणेश
जी ही माना
जाता है ।
देवता - भैरव,अष्ट
विनायक, मंत्र - ऊँ हुं
नमः
13 Mukhi Rudrasha |
9. नवममुखी
रूद्राक्ष-मृत्यु के डर
से मुक्त करने
वाला होता है
। नौ मुखी
रूद्राक्ष को भैरव
कहा जाता है
। इसे बाई
भुजा में धारण
करने से गर्भाहत्या
के दोषियों को
मुक्ति मिलती है ।
देवता - माँ दुर्गा,
मंत्र -1. ऊँ ह्नीं
दुं दुर्गायै नमः
, 2. ऊँ ह्नीं हुं नमः
14 Mukhi Rudrasha |
10. दसमुखी
रूद्राक्ष-शांति एवं सौंदर्य
प्रदान करने वाला
होता है ।
दस मुखी को
विष्णु जी माना
जाता है ।
इसे धारण करने
से समस्त भय
समाप्त हो जाते
हैं । देवता
- विष्णु,
मंत्र - 1.
ऊँ नमो भवाते
वासुदेवाय नमः
, 2. ऊँ ह्नीं नमः
15 Mukhi Rudrasha |
11. ग्यारह
मुखी रूद्राक्ष-विजय
दिलाने वाला, ज्ञान एवं
भक्ति प्रदान करने
वाला होता है ।
ग्यारह मुखी रूद्राक्ष
भी शिव का
ही रूप है
। देवता - एकादश
रूद्र ,
मंत्र -1. ऊँ तत्पुरूषाय
विदमहे महादेवय धीमही तन्ना
रूद्रः प्रचोदयात, 2. ऊँ ह्नीं
हुं नमः
16 Mukhi Rudrasha |
12. बारह मुखी रूद्राक्ष-धन प्राप्ति
कराता है ।
बारह मुखी वाला
रूद्राक्ष धारण करने
से अश्वमेद्य यज्ञ
का फल मिलता
है और शासन
करने का अवसर
भी । देवता
- सूर्य,
13. तेरहमुखी
रूद्राक्ष-शुभ व
लाभ प्रदान कराने
वाला होता है
। तेरह मुखी
रूद्राक्ष धारण करने
वाले व्यक्ति को
समस्त भोग प्राप्त
होते हैं ।
देवता - कार्तिकेय, इंद्र, इंद्राणी,
17 Mukhi Rudrasha |
14. चैदह मुखी रूद्राक्ष
- संपूर्ण पापों को नष्ट
करने वाला होता
है । चैदह
मुखी रूद्राक्ष सिर
पर धारण करने
वाला साक्षात शिव
रूप हो जाता
है । देवता
- शिव, हनुमान, आज्ञा चक्र,
15. पन्द्रह
मुखी के देवता
- पशुपति,
18 Mukhi Rudrasha |
16. सोलह मुखी के
देवता - महामृत्युंजय, महाकाल,
17. सत्तरह
मुखी के देवता
- विश्वकर्मा, माँ कात्यायनी,
18. अठारह मुखी के
देवता - माँ पार्वती,
19 Mukhi Rudrasha |
19. उन्नीस
मुखी के देवता
- नारायण,
20. बीस मुखी के
देवता - ब्रहमा,
20 Mukhi Rudrasha |
21. इक्कीस
मुखी के देवता
- कुबेर,
21 Mukhi Rudrasha |
राशि के अनुसार
रूद्राक्ष धारण करने
की विधियाँ
1. मेष व
वृश्चिक राशि वाले
को तीन मुखी
रूद्राक्ष
2. वृष व
तुला राशि वालों
को छह मुखी
रूद्राक्ष
3. मिथुन व कन्या
राशि वालों को
चार मुखी रूद्राक्ष
4. कर्क राशि
वाले को दो
मुखी रूद्राक्ष
5. सिंह राशि
वाले को एक
व बारह मुखी
रूद्राक्ष
6. धनु व
मीन राशि वाले
को चार मुखी
रूद्राक्ष
7. मकर व
कुम्भ राशि वाले
को सात मुखी
रूद्राक्ष
22 Mukhi Rudrasha |
मुख के हिसाब
से रूद्राक्ष धारण
करने को पृथक-पृथक नियम
बतलाया गया है
।
शिव भक्ति सरल और
जल्दी ही फल
देने वाली मानी
जाती है ।
इसलिए शिव उपासना
के विशेष दिनों
में शिव पूजा
और जागरण के
दौरान शिव मंत्र
जप का बहुत
महत्व है ।
धार्मिक दृष्टि से शिव
मंत्र जप रूद्राक्ष
की माला से
करना बहुत प्रभावी
माना जाता है
। किंतु अनेक
भक्त इस बात
से अनजान होते
हैं कि अलग-अलग रूद्राक्ष
के दानों की
रूद्राक्ष माला से
शिव मंत्र जप
अलग-अलग कामनाओं
को पूरी करने
वाले होते हैं
।
Ganesh Mukhi Rudrasha |
मंत्र ज पके
दौरान कितने रूद्राक्ष
की माला में
कितने दाने हों
और उसका क्या
फल मिलता है
:
1. 30 रूद्राक्ष के दानों
वाली माला से
मंत्र जप धन-संपत्ति देने वाली
होती है ।
2. 27 दानों की रूद्राक्ष
माला से मंत्र
जप अच्छी सेहत
और ऊर्जा देने
वाली होती है
3. 25 दानों की रूद्राक्ष
माला से मंत्र
जप मोक्ष देने
वाली होती है
।
4. 15 रूद्राक्ष की माला
से मंत्र जप
तंत्र सिद्धि, अभिचार
कर्म के लिए
श्रेष्ठ मानी जाती
है ।
5. 54 दानों की रूद्राक्ष
माला से मंत्र
जप मानसिक अशांति
दूर करती है
।
6. 108 दानों की रूद्राक्ष
की माला सबसे
श्रेष्ठ मानी जाती
है । क्योंकि
इस माला से
मंत्र जप सांसारिक
जीवन की हर
कामना सिद्ध करने
वाली मानी जाती
है ।
Gauri Shankar Mukhi Rudrasha |
रूद्राक्ष की माला
एक से लेकर
चैदहमुखी रूद्राक्षों से बनाई
जाती है ।
यू ंतो 26 दानों
की माला सिर
पर, 50 की हदय
पर, 16 की भुजा
पर, 12 की माला
मणिबंध पर धारण
करने का विधान
है । 108 दानों
की माला धारण
करने से अश्रवमेध
यज्ञ का फल
और समस्त मनोकामनाओं
में सफलता मिलती
है ।
शिव पुराण
में कहा गया
है: यथा च
दृष्यते लोके फलदः
शुभः ।
न तथा दृश्यते
अन्या च मालिका
परमेश्रवरि ।।
अर्थात - विश्व में रूद्राक्ष
की माला की
तरह अन्य कोई
दूसरी माला फलदायक
और शुभ नहीं
है ।
देवीभागवत में लिखा
है:
रूद्राक्षधारणाय
श्रेष्ठ न किञिचदपि
विद्यते
अर्थात
विश्व में रूद्राक्ष
धारण से बढ़कर
श्रेष्ठ कोई दूसरी
वस्तु नहीं है
। साथ ही
108 दानों की माला
धारण करने वालों
को क्षण-क्षण
पर अश्रवमेध का
फल प्राप्त होता
है और वे
अपनी इक्कीस पीढ़ियों
का उद्धार करते
हुए शिवलोक में
निवास करते हैं
।
रूद्राक्ष की माला
श्रद्धापूर्वक विधि-विधानुसार
धारण करने से
व्यक्ति की आध्यात्मिक
उन्नति होती है
। सांसारिक
बाधाओं और दुखों
से छुटकारा होता
है । मस्तिष्क और हृदय
को बल मिलता
है । रक्तचाप
संतुलित होता है
। भूत-प्रेत
की बाधा दूर
होती है ।
मानसिक शांति मिलती है
। शीत-पित
रोग का शमन
होता है ।
इसलिए इतनी लाभकारी,
पवित्र रूद्राक्ष की माला
में भारतीय जन
मानस की अनन्य
श्रद्धा है ।
जो मनुष्य रूद्राक्ष
की माला से
मंत्रजाप करता है
उसे दस गुणा
फल प्राप्त होता
है अकाल मृत्यु
का भय भी
नहीं रहता है
।
आयुर्वेद चिकित्सा क्षेत्र में
रूद्राक्ष का विशिष्ट
वर्णन मिलता है
। बहुत से
रोगों का उपचार
रूद्राक्ष से आयुर्वेद
मंे वर्णित है:
दाहिनी भुजा पर
रूद्राक्ष बांधन से बल
व वीर्य शक्ति
बढ़ती है ।
स्वर का भारीपन
भी मिटता है
। कमर में
बांधने से कमर
का दर्द समाप्त
हो जाता है
।
शुद्ध जल में
तीन घंटे रूद्राक्ष
को रखकर उसका
पानी किसी अन्य
पात्र में निकालकर
पीने से बेचैनी,
घबराहट, मिचली व आंखौं
की जलन रोकने
के लिए किया
जा सकता है
।
दो बंूद रूद्राक्ष
का जल दोनों
कानों में डालने
से सिरदर्द में
आराम मिलता है
।
रूद्राक्ष का जल
हृदय रोग के
लिए भी लाभकारी
है ।
चरणामृत की तरह
प्रतिदिन दो घूंट
इस जल को
पीने से शरीर
स्वस्थ रहता है
।
इस प्रकार से कई
रोगों का उपचार
रूद्राक्ष से संभव
होता है ऐसा
हमारे विद्वानों द्वारा
कहा गया है
।
रूद्राक्ष के समान
ही एक अन्य
फल होता है
जिसे भद्राक्ष कहा
जाता है, और
यह रूद्राक्ष के
जैसा हो दिखाई देता
है । इसलिए
कुछ लोग रूद्राक्ष
के स्थान पर
इसे भी नकली
रूद्राक्ष के रूप
में बेचते हैं
। भद्राक्ष दिखता
तो रूद्राक्ष की
भांति ही है
किंतु इसमें रूद्राक्ष
जैसे गुण नहीं
होते ।
असली रूद्राक्ष की पहचान:
1. रूद्राक्ष की पहचान
के लिए रूद्राक्ष
को कुछ घंटे
के लिए पानी
में उबालें यदि
रूद्राक्ष का रंग
न निकले या
उस पर किसी
प्रकार का कोई
असर न हो,
तो वह असली
होगा ।
2. रूद्राक्ष को काटने
पर यदि उसके
भीतर उतने ही
घेर दिखाई दें
जितने की बाहर
हैं तो यह
असली रूद्राक्ष होगा,
यह परीक्षण सही
माना जाता है,
किंतु इसका नकारात्मक
पहलू यह है
कि इस परीक्षण
से रूद्राक्ष नष्ट
हो जाता है
।
3. रूद्राक्ष की पहचान
के लिए उसे
किसी नुकिली वस्तु
द्वारा कुरेदें यदि उसमें
से रेशा निकले
तो समझें की
रूद्राक्ष असली है
।
4. दो असली
रूद्राक्षों की उपरी
सतह यानि के
पठार समान नहीं
होती किंतु नकली
रूद्राक्ष के पठार
समान होते हैं
5. एक अन्य
उपाय है कि
रूद्राक्ष को पानी
में डाले अगर
यह डूब जाए,
तो असली होगा,
यदि नहीं डूबता
तो नकली लेकिन
यह जांच उपयोगी
नहीं मानी जाती
है क्यांेकि रूद्राक्ष
के डूबने या
तैरने की क्षमता
उसके घनत्व एंव
कच्चे या पक्के
होने पर निर्भर
करती है और
रूद्राक्ष धातु या
किसी अन्य भारी
चीज से भी
बनाया जा सकता
है जिस के
कारण वह भी
पानी में डूब
सकता है, सो
ये प्रयोग बहुत
कारगर नहीं कहा
जा सकता है
।
6. एक अन्य
उपयोग द्वारा भी
परीक्षण किया जा
सकता है .........रूद्राक्ष
के मनके को
तांबे के दो
सिक्कों के बीच
में रखा जाए,
तो थोड़ा सा
हिल जाता है
क्योंकि रूद्राक्ष में चुंबकत्व
होता है जिस
की वजह से
ऐसा होता है
, कहा जाता है
कि दोनों अंगुठों
के नाखुनों के
बीच मे ंरूद्राक्ष
को रखें यदि
वह घुमता है
तो असली होगा
अन्यथा नकली परंतु
यह तरीका भी
सही नहीं है
क्योंकि बाहरी तौर से
धातु की मिलावट
करना असंभव नहीं
है ।
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