नरसिंह जयंती - 2015
नरसिंह जयंती या नरसिंह
चतुर्दशी मुख्य रूप से
बुराई पर अच्छाई
की जीत के
लिए मनाई जाती
है। यह बहुत
ही महान दिन
पर, भगवान नरसिंह
प्रहलाद महाराजा में व्यक्ति
धर्म और भक्ति
के बचाव के
लिए दिखाई दिया
है ।
हिन्दू
पंचांग के अनुसार
नृसिंह जयंतीका व्रत वैशाख
माह के शुक्ल
पक्ष की चतुर्थी
तिथि को मनाया
जाता है. पुराणों
में वर्णित कथाओं
के अनुसार इसी
पावन दिवस को
भक्त प्रहलाद की
रक्षा करने के
लिए भगवान विष्णु
ने नृसिंह रूप
में अवतार लिया
था. जिस कारण
वश यह दिन
भगवान नृसिंह के
जयंती रूप में
बड़े ही धूमधाम
और हर्सोल्लास के
साथ मनाया जाता
है ।
राक्षस
राज हिरण्यकशिपु ने अपने
भाई की मृत्यु
का बदला लेने
के लिए ने
कठिन तपस्या करके
ब्रह्माजी व शिवजी
को प्रसन्न कर
उनसे अजेय होने
का वरदान प्राप्त
कर लिया. वरदान
प्राप्त करते ही
अहंकार वश वह
प्रजा पर अत्याचार
करने लगा और
उन्हें तरह-तरह
के यातनाएं और
कष्ट देने लगा.
जिससे प्रजा अत्यंत
दुखी रहती थी.
इन्हीं दिनों हिरण्यकशिपु की
पत्नी कयाधु ने
एक पुत्र को
जन्म दिया, जिसका
नाम प्रहलाद रखा
गया.
राक्षस कुल
में जन्म लेने
के बाद भी
बचपन से ही
श्री हरि भक्ति
से प्रहलाद को
गहरा लगाव था
। हिरण्यकशिपु ने
प्रहलाद का मन
भगवद भक्ति से
हटाने के लिए
कई असफल प्रयास
किए, परन्तु वह
सफल नहीं हो
सका. एक बार
उसने अपनी बहन
होलिका की सहायता
से उसे अग्नि
में जलाने के
प्रयास किया, परन्तु प्रहलाद
पर भगवान की
असीम कृपा होने
के कारण उसे
मायूसी ही हाथ
लगी.
अंततः एक
दिन उसने प्रहलाद
को तलवार से
मारने का प्रयास
किया, तब भगवान
नृसिंह खम्भे से प्रकट
हुए और हिरण्यकशिपु
को अपने जांघों
पर लेते हुए
उसके सीने को
अपने नाखूनों से
फाड़ दिया और
अपने भक्त की
रक्षा की ।
भगवान नरसिंह चैथे
और आधा पुरुष
और आधा शेर
के रूप में
अपने दस अवतारों
में से सभी
के बीच भगवान
विष्णु के सबसे
शक्तिशाली अवतार है और
भगवान नरसिंह दानव
हिरण्यकशिपु को मारने
के लिए जन्म
लिया।
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