हिन्दू धर्म और
बौद्ध धर्म के
अनुसार गरूड़ भगवान
विष्णु का वाहन
है जिसकी जानकारी
हिन्दू और बौद्ध
पौराणिक कथाओं में एक
बड़ा पौराणिक पक्षी
के रूप में
वर्णित है ।
गरूड एक सुनहरा
शरीर, सफेद चेहरा,
लाल पंख, और
एक ईगल चोंच
के साथ ही
मजबूत आदमी के
शरीर के साथ
दिखाया गया है
। गरूड़ सबसे
शक्तिशाली वाहनों में से
एक है ।
गरूड़ हमेशा अपने
गुरू, विष्णु के
जीवन में एक
बहुत ही महत्वपूर्ण
निभाता है ।
गरूड़ पिता
ऋषि कश्यप और
माता विनाता के
यहां जन्मा ।
महर्षि कश्यप के पुत्र
पक्षीराज गरूड़ को
भगवान विष्णु का
वाहन कहा गया
है । पौराणिक
कथाओं के अनुसार
भगवान विष्णु की
सवारी और भगवान
राम को मेघनाथ
के नागपाश से
मुक्ति दिलाने वाले गरूड़
के वंशज आज
देशभर में विलुप्ति
के कगार पर
हैं । गरूड़
सितंबर-अक्टूबर में घोंसला
बनाते है और
अक्टूबर-नवंबर में अंडे
देते हैं ।
अप्रैल-मई तक
ये घोंसला छोड़
देते हैं ।
गरूड़ मुख्य रूप
से दक्षिण एशिया
में ही मिलते
हैं । गरूड़
के भोजन में
मछली, मेढ़क,मृत
पशु और सांप
शामिल हैं ।
आज लुप्तप्राय गरूड़ के
संरक्षण के बारे
में विचार कर
कार्यवाही करनी होगी
।
गरूड़ के बारे
में गरूड़ पुराण
ने उसे तीन
भागों में विभक्त
किया है ।
पहली अवस्था में
मनुष्य अपने शुभ-अशुभ, अच्छे-बुर
कर्मों को इसी
लोक में भोग
लेता है ।
दूसरी अवस्था मंे
मृत्यु के उपरान्त
मनुष्य विभिन्न चैरासी लाख
योनियों में से
किसी एक में
अपने कर्म के
अनुसार जन्म लेता
है । तीसरी
अवस्था में वह
अपने कर्मों के
अनुसार स्वर्ग और नर्क
का प्राप्त करता
है ।
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