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राशियों के अनुसार करे ज्योर्तिलिंग शिव पूजा 4. कर्क राशि - ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग शिव पूजा

राशियों के अनुसार करे ज्योर्तिलिंग शिव पूजा

4. कर्क राशि - ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग शिव पूजा










कर्क राशि , राशि चक्र की  चौथी राशि है. कर्क राशि वालों में अपने विचारों के प्रति दृढ़ रहने की शक्ति होती है. इनमें अपार कल्पना शक्ति होती है, स्मरण शक्ति बहुत तीव्र होती है, इनके नाम के अक्षर की शुरुआत -ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो अक्षरों से होती है कर्क राशि का स्वामी चन्द्रमा है इसलिए इस राशि के लोग बेहद संवेदनशील और जिज्ञासु होते हैं। परिवार और बच्चों के साथ बहुत लगाव होता है। सफेद वस्तुओं और जल तत्व से जुडे व्यापार या नौकरी में लाभ होता है। यह उत्तर दिशा की द्योतक है, तथा जल त्रिकोण की पहली राशि है, इसका चिन्ह केकडा है, यह चर राशि है, इस राशि का स्वामी चन्द्रमा है, इसके तीन द्रेष्काणों के स्वामी चन्द्रमा, मंगल और गुरु हैं,





कर्क राशि वाले करें ओंकारेश्वर की पूजा - मध्य प्रदेश में नर्मदा तट पर बसा ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग का संबंध कर्क राशि से है। इस राशि वाले महाशिवरात्रि के दिन शिव के इसी रूप की पूजा करें। ओंकारेश्वर का ध्यान करते हुए शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद अपामार्ग और विल्वपत्र चढ़ाएं।












पंचामृत - गोरस, पुष्प रस और इक्षु रस अर्थात गाय का दूध, दही और घीय पुष्पों से निकला शहद रूपी रस तथा रसों में श्रेष्ठ इक्षु रस अर्थात गन्ने के रस से बनी शक्कर- इन पांच पदार्थों का मिश्रण पंचामृत कहलाता है। इसमें दूध की मात्र का आधा दही, दही की मात्र का आधा घी, घी की मात्र का आधा शहद और शहद की मात्र की आधी शक्कर मिला कर पंचामृत तैयार किया जाता है। ये पदार्थ हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार सभी तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की पूजा में आवश्यक रूप से प्रयोग में लाये जाते हैं। इससे प्रधान देवता के साथ-साथ सभी का अभिषेक किया जाता है। पंचामृत स्नान के बगैर किसी भी पूजा में आवाहित देवता का स्नान पूर्ण नहीं होता। यह सबसे अधिक मात्र में शिव के अभिषेक में प्रयोग में लाया जाता है।















कर्क राशि के लिए शिव मंत्र - शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए ओम हौं जूं सः। इस मंत्र का जितना संभव हो जप करें। इस प्रकार शिव जी की पूजा करने से राशि के स्वामी चन्द्रमा को बल मिलेगा जिससे सेहत अच्छी रहेगी। मानसिक परेशानियों एवं चिंताओं का निदान होगा। इस प्रकार शिव की पूजा करने से भौतिक सुख के साधनों में वृद्घि होती है।













श्री ओंकारेश्वर  ज्योतिर्लिंग - श्री ओंकारेश्वर  एक हिन्दू मंदिर है यह मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है यह नर्मदा नदी के बीच मन्धाता शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है यह भगवान शिव के बारह ज्योतिलिंगओं में से एक है यह यहां के मोरटक्का गांव से लगभग 12 मील (20 कि.मी. ) दूर बसा है यह द्वीप हिन्दू पवित्र चिन्ह उँ के आकार में बना है यहां दो मंदिर स्थित हैं 1. ओम्कारेश्वर     2. अमरेश्वर
श्री ओम्कारेश्वर का निर्माण नर्मदा नदी से स्वतः ही हुआ है यह नदी भारत की पवित्रतम नदियों में से एक है, और अब इस पर विश्व का सर्वाधिक बड़ा बांध परियोजना का निर्माण हो रहा है जिस ओंकार शब्द का उच्चारण सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता विधाता के मुख से हुआ, वेद का पाठ इसके उच्चारण किए बिना नहीं होता है इस औंकार का भौतिक विग्रह औंकार क्षेत्र है


इसमें 68 तीर्थ हैं यहाँ 33 करोड़ देवता परिवार सहित निवास करते हैं तथा 2 ज्योतिस्वरूप लिंगों सहित 108 प्रभावशाली शिवलिंग हैं मध्यप्रदेश में देश के प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों में से 2 ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं एक उज्जैन में महाकाल के रूप में और दूसरा ओम्कारेश्वर में ममलेश्वर (अमलेश्वर) के रूप में विराजमान है देवी अहिल्याबाई होलकर की ओर से यहां नित्य मृत्तिका के 18 सहस्त्र शिवलिंग तैयार कर उनका पूजन करने के पश्चात उन्हें नर्मदा में विसर्जित कर दिया जात है ओम्कारेश्वर नगरी का मूल नाम ‘‘ मान्धाता ’’ है   राजा मान्धाता ने यहां नर्मदा किनारे इस पर्वत पर घोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और शिवजी ने प्रकट होने पर उनसे यहीं निवास करने का वरदान मांग लिया












तभी से उक्त प्रसिद्ध तीर्थ नगरी औंकार-मान्धाता के रूप में पुकारे जाने लगी नर्मदा क्षेत्र में ओम्कारेश्वर सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है शास्त्र मान्यता है कि कोई भी तीर्थ यात्री देश के भले ही सारे तीर्थ कर ले किन्तु जब तक वह ओम्कारेश्वर आकर किए गए तीर्थों का जल लाकर यहां नहीं चढ़ाता उसके सारे तीर्थ अधूरे माने जाते हैं ओम्कारेश्वर तीर्थ के साथ नर्मदाजी का भी विशेष महत्व है शास्त्र मान्यता के अनुसार जमुना जी में 15 दिन का स्नान तथा गंगा जी में 7 दिन का स्नान जो फल प्रदान करता है, उतना पुण्यफल नर्मदाजी के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है । ओम्कारेश्वर तीर्थ क्षेत्र में - चैबीस अवतार, माता घाट, सीता वाटिका, धावड़ी कुंड, मार्कण्डेय शिला, मार्कण्डेय संन्यास आश्रम, अन्नपूर्णाश्रम, विज्ञान शाला, बड़े हनुमान, खेड़ापति हनुमान, ओम्कार मठ, माता आनंदमयी आश्रम, ऋणमुक्ेतश्वर महादेव, गायत्री माता मंदिर, सिद्धनाथ गौरी सोमनाथ, आड़े हनुमान, माता वैष्णोदेवी मंदिर, चांद-सूरज दरवाजे, वीरखला, विष्णु मंदिर, ब्रहोश्वर मंदिर, सेगांव के गजानन महाराज का मंदिर, काशी विश्वनाथ, नरसिंह टेकरी, कुबेरेश्वर महादेव, चन्द्रमोलेश्वर महादेव के मंदिर भी दर्शनीय हैं ओम्कारेश्वर लिंग किसी मनुष्य के द्वारा गढ़ा, तराशा हुआ नहीं है बल्कि यह प्राकृतिक शिवलिंग है इसके चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है परिक्रमा के अन्तर्गत बहुत से मन्दिरों के विद्यमान होने के कारण भी यह पर्वत ओम्कार के स्वरूप में दिखाई पड़ता है



रोचक कथा - शिव और पार्वती के चैसर खेलने का चिक्र कई धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है ओम्कारेश्वर देश का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां शिव और पार्वती के लिए नियमित रूप से चैसर बिछाई जाती है तथा वे यहां ओम्कारेश्वर में नियमित रूप से चैसर खेलने आते हैं इसी के चलते रोज शयन आरती के बाद यहां चैसर सजाई जाती है और कपाट बन्द कर दिए जाते हैं मंदिर के पुजारी के अनुसार मंदिर में दो चैसर बिछाई जाती है, एक जमीन में तथा दूसरी झूले पर जमीन में जहां चैसर के दोनों ओर गोल तकिया रखे जाते हैं, वहीं झूले को भी आरामदेह बनाया जाता है












श्री ओंकारेश्वर आत्मा, परमात्मा और प्रकृति का संगम है भगवान शिव का यह चैथा ज्योर्तिलिंग है नर्मदा नदी के किनारे एक पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है यह पांच मंजिला मंदिर है मंदिर में प्रवेश करते समय दाहिनी ओर ओंकारेश्वर तथा बाईं ओर पार्वती विराजमान हैं
कथा - शिवपुराण के अनुसार एक बार मुनि नारदजी ने विंध्य पर्वत के समक्ष मेरू पर्वत की प्रशंसा की तब विंध्य ने शिव का पार्थिव लिंग बनाकर उनकी आराधना की उसकी भक्ति से शिव प्रसन्न हुए और विंध्य की मनोकामना पूरी की कहते हैं कि तभी से शिव वहां श्री आंेकारलिंग के रूप में  स्थापित हो गये यह लिंग देा भागों में है एक का श्री ओंकारेश्वर और दूसरे को श्री ममलेश्वर या श्री परमेश्वर कहते हैं



श्री ओंकारेश्वर जिस पहाड़ी पर है उसे मान्धता पर्वत भी कहते हैं कहा जाता है कि प्राचीनकाल में सूर्यवंश के राजा मान्धता ने यहंा शिव की आराधना की थी ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान श्री राम की पत्नी देवी सीता भी यहां आयी थी और महर्षि वाल्मीकि का यहां आश्रम था वर्तमान मंदिर पेशवा राजाओं ने बनवाया है श्री ओंकारेश्वर के दर्शन मात्र से व्यक्ति की सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं जिस ओंकार शब्द का उच्चारण सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता विधाता के मुख से हुआ, वेद का पाठ इसके उच्चारण किए बिना नहीं होता है इस ओंकार का भौतिक विग्रह ओंकार क्षेत्र है इसमें 68 तीर्थ हैं यहां 33 करोड़ देवता परिवार सहित निवास करते हैं



                







श्री ओंकारेश्वर तीर्थ क्षेत्र में चैबीस अवतार, माता घाट (सेलानी), सीतावाटिका, धावड़ी कुंड, मार्कण्डेय शिला, मार्कण्डेय संन्यास आश्रम, अन्नपूर्णाश्रम, विज्ञान शाला, बड़े हनुमान, खेड़ापति हनुमान, ओंकार मठ, माता आनंदमयी आश्रम, ऋणमुक्तेश्वर महादेव, गाय़त्री माता मंदिर, सिद्धनाथगोरी सोमनाथ, आड़े हनुमान, माता वैष्णोदेवी मंदिर, चांद-सूरज दरवाजे, वीरखला, विष्णु मंदिर, ब्रहमेश्वर मंदिर, सेगांव के गजानन महाराज का मंदिर, काशी विश्वनाथ, नरसिंह टेकरी, कुबेरेश्वर महादेव, चन्द्रमोलेश्वर महादेव के मंदिर भी दर्शनीय हैं नर्मदा क्षेत्र मंे श्री ओंकारेश्वर सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है  






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