Skip to main content

Pandarinath Temple - God Indreshwar Mahadev and God Vishnu ka Famous Temple

पंढरीनाथ मंदिर - भगवान इन्द्रेश्वर महादेव एवं भगवान विष्णु का प्रसिद्ध मंदिर




पंढरीनाथ मंदिर विट्ठल (विष्णु ) भगवान का मंदिर है जिसे पंढरीनाथ को विठोबा, पांडुरंग, और विट्ठल नाम से भी जाना जाता है इस मंदिर को महाराजा मल्हारराव होलकर द्वितीय के समय ( 1811 से 1833 ) के मध्य बनवाया गया था यह मंदिर पंढरीनाथ थाने के सामने है पंढरीनाथ मंदिर के बारे में प्रचलित है की होलकर रियासत के संस्थापक श्रीमंत सीता बाई सा. का विवाह जागीरदार श्री विसजी लाभांते के साथ हुआ था   श्री विसजी भवन पाडुरंग के अनन्य भक्त थे   



प्रत्येक वर्ष आषाडी एकादशी को पंढरपुर की वारी ( वे जो पूजा करने हेतु पैदल जाते है ) में भाग लेने का उनका नियम था   लेकिन एक साल राज्य के कार्य से उन्हें बासवाडा जाना पड़ा, जिस वजह से उनका नियम खंडित हो गया, सो उनके मन में इस कारण से बेहद दुख रहा उसी रात स्वयं भगवान पांडुरंग ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिये और कहा की तुम सके तो क्या, मै स्वयं तुम्हारे पास आया हॅू , तुम्हारे डेरे के पास तालाब में हूं, मुझे निकालो तब खुदाई कर प्रतिमा निकली गई जिसे इंदौर लाकर प्राचीन इन्द्रेश्वर महादेव मंदिर के नजदीक खान और सरस्वती नदी के किनारे सैनिक छावनी के नजदीक स्थापित किया गया  


  पंढरीनाथ मंदिर को मराठा शैली में बनवाया गया है , मंदिर का गुम्बद गोलाकार है और चार खम्बो पर टिका है एवं शिखर नगर शैली का है शिखर के कीर्तिमुख पर पीतल का कलश स्थापित है , पत्थरो से बने मंदिर को बाद में सफेद पैंट से रंगा गया वर्तमान में मंदिर का भीतरी भाग पीले रंग और बाहरी भाग को गेरुए और गुलाबी रंग से पोता गया है मंदिर के गर्भ गृह में पंढरीनाथ (विष्णु) की प्रतिमा के साथ रुक्मणी और कला गोपाल की छोटी मूर्ति भी स्थापित है   


गर्भगृह के प्रवेश द्वार के ऊपर गणेश जी अंकित है प्रवेश द्वार के दाई और गणेश जी और बायीं और कार्तिकेय की मूर्ति है यहाँ अपने गई शैली 19 वी सदी में इंदौर में मंदिर के साथ साथ कई छतरियो में भी अपनाया गया है   वर्तमान में यह मंदिर मध्यप्रदेश शासन के अधिपत्य में है इंदौर का सबसे प्राचीन मंदिर इसी के पास स्थित है प्रति वर्ष देवशयानी एवम देवउठनी एकादशी पर यहाँ मेला भरता है और पालकी निकली जाती है और यहाँ पर नगर की भजन मंडलिया आती है , मंदिर के पट सुबह 7.30 से 11.30 बजे तक खुले रहते है एवं शाम को 5 बजे से 9.25 तक   



Comments

Popular posts from this blog

हस्तमुद्रा - औषधीय एवं आध्यात्मिक लाभ

हस्तमुद्रा - औषधीय एवं आध्यात्मिक लाभ योग अनुसार आसन और प्राणायाम की स्थिति को मुद्रा कहा जाता है। बंध , क्रिया और मुद्रा में आसन और प्राणायाम दोनों का ही कार्य होता है। योग में मुद्राओं को आसन और प्राणायाम से भी बढ़कर माना जाता है। आसन से शरीर की हड्डियाँ लचीली और मजबूत होती है जबकि मुद्राओं से शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास होता है। मुद्राओं का संबंध शरीर के खुद काम करने वाले अंगों और स्नायुओं से है। मुद्राओं की संख्या को लेकर काफी मतभेद पाए जाते हैं। मुद्रा और दूसरे योगासनों के बारे में बताने वाला सबसे पुराना ग्रंथ घेरण्ड संहिता है। हठयोग पर आधारित इस ग्रंथ को महर्षि घेरण्ड ने लिखा था। घेरंड में 25 और हठयोग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं का उल्लेख मिलता है , लेकिन सभी योग के ग्रंथों की मुद्राओं को मिलाकर कुल 50 से 60 हस्त मुद्राएँ हैं। मानव - सरीर अनन्त रहस्यों से भरा हुआ है । शरीर की अपनी एक मुद्रामयी भाषा है । जिसे करने स

Elephant Pearl ( Gaj Mani)

हाथी मोती ( गज मणि ) गज मणि हल्के हरे - भूरे रंग के , अंडाकार आकार का मोती , जिसकी जादुई और औषधीय  शक्ति    सर्वमान्य   है । यह हाथी मोती   एक लाख हाथियों में से एक में पाये जाने वाला मोती का एक रूप है। मोती अत्यंत दुर्लभ है और इसलिए महंगा भी है जिस किसी के पास यह होता है वह बहुत भाग्यषाली होता है इसे एक अनमोल खजाने की तरह माना गया है । इसके अलौकिक होने के प्रमाण हेतु अगर इसे साफ पानी में रखा जाए तो पानी दूधिया हो जाता है । इसी तरह अगर स्टेथोस्कोप से जांचने पर उसके दिन की धड़कन सुनी जा सकती है । अगर इसे हाथ में रखा जाता है तो थोड़ा कंपन महसूह किया जा सकता है ।   अगर गज मणि को आप नारयिल पानी में रखत हैं तो बुलबुले पैदा होने लगते हैं और पानी की मात्रा भी कम हो जाती है । चिकित्सकीय लाभ में जोड़ों के दर्द , बच्चे न पैदा होने की असमर्थता के इलाज और तनाव से राहत के

पुष्कर - पौराणिक एवं धार्मिक महत्व

पुष्कर - पौराणिक एवं धार्मिक महत्व पुष्कर ब्रह्मा के मंदिर और ऊँटों के व्यापार मेले के लिए प्रसिद्ध है। पुष्कर का शाब्दिक अर्थ है तालाब और पुराणों में वर्णित तीर्थों में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। राजस्थान के शहर अजमेर में कई पर्यटन स्थल है जिनमें से ये एक है। अनेक पौराणिक कथाएं इसका प्रमाण हैं। यहाँ से प्रागैतिहासिक कालीन पाषाण निर्मित अस्त्र - शस्त्र मिले हैं , जो उस युग में यहाँ पर मानव के क्रिया - कलापों की ओर संकेत करते हैं। हिंदुओं के समान ही बौद्धों के लिए भी पुष्कर पवित्र स्थान रहा है। भगवान बुद्ध ने यहां ब्राह्मणों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। फलस्वरूप बौद्धों की एक नई शाखा पौष्करायिणी स्थापित हुई। शंकराचार्य , जिन सूरी और जिन वल्लभ सूरी , हिमगिरि , पुष्पक , ईशिदत्त आदि विद्वानों के नाम पुष्कर से जुड़े हुए हैं।   चैहान राजा अरणोराज के काल में विशाल शास्त्रार्थ हुआ था। इसमें अजमेर के जैन विद्वान जिन सूरी और ज