शीतलाष्टमी
- 2015
शीतला अष्टमी हिन्दुओं का
एक महत्वपूर्ण पर्व
है, जिसमें शीतला
माता का व्रत
एवं पूजन किया
जाता है यह
पर्व होली के
सम्पन्न होने के
कुछ दिन पश्चात
मनाया जाता है.
देवी शीतला की
पूजा चैत्र मास
के कृष्ण पक्ष
की अष्टमी तिथि
से आरंभ होती
है। शीतला अष्टमी
के दिन शीतला
माँ की पूजा
अर्चना की जाती
है तथा पूजा
के पश्चात बासी
ठंडा खाना ही
माता को भोग
लगया जाता है
जिसे बसौड़ा कहा
जाता हैं. वही
बासा भोजन प्रसाद
रूप में खाया
जाता है तथा
यही नैवेद्य के
रूप में समर्पित
सभी भक्तों के
बीच प्रसाद के
रूप में वितरित
किया जाता है
। शीतला
माता एक प्रमुख
हिन्दू देवी के
रूप में पूजी
जाती है.
अनेक
धर्म ग्रंथों में
शीतला देवी के
संदर्भ में वर्णित
है, स्कंद पुराण
में देवी
शीतला चेचक जैसे
रोग कि देवी
हैं, यह हाथों
में कलश, सूप,
मार्जन(झाडू) तथा नीम
के पत्ते धारण
किए होती हैं
तथा गर्दभ की
सवारी किए यह
अभय मुद्रा में
विराजमान हैं ।
शीतला माता के
संग ज्वरासुर-ज्वर
का दैत्य, हैजे
की देवी, चैंसठ
रोग, घेंटुकर्ण- त्वचा-रोग के
देवता एवं रक्तवती
देवी विराजमान होती
हैं इनके कलश
में दाल के
दानों के रूप
में विषाणु या
शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं
रोगाणु नाशक जल
होता है. इनकी
अर्चना स्तोत्र को शीतलाष्टक
के नाम से
व्यक्त किया गया
है. मान्यता है
कि शीतलाष्टक स्तोत्र
की रचना स्वयं
भगवान शिव जी
ने लोक कल्याण
हेतु की थी
। शीतला अष्टमी
पूजन - शीतला माता जी
की पूजा बहुत
ही विधि विधान
के साथ कि
जाती है, शुद्धता
का पूर्ण ध्यान
रखा जाता है.
इस विशिष्ट उपासना
में शीतलाष्टमी के
एक दिन पूर्व
देवी को भोग
लगाने के लिए
बासी खाने का
भोग ‘बसौड़ा’ उपयोग
में लाया जाता
है. अष्टमी के
दिन बासी वस्तुओं
का नैवेद्य शीतला
माता को अर्पित
किया जाता है
। इस दिन
माता की कथा
का श्रवण होता
है. कथा समाप्त
होने पर मां
की पूजा अर्चना
होती है तथा
शीतलाष्टक को पढ़ा
जाता है, शीतलाष्टक
शीतला देवी की
महिमा को दर्शाता
है, साथ ही
साथ शीतला माता
की वंदना उपरांत
उनके मंत्र का
उच्चारण किया जाता
है ।
पूजा
को विधि विधान
के साथ पूर्ण
करने पर सभी
भक्तों के बीच
मां के प्रसाद
बसौड़ा को बांटा
जाता है इस
प्रकार पूजन समाप्त
होने पर भक्त
माता से सुख
शांती की कामना
करता है. संपूर्ण
उत्तर भारत में
शीतलाष्टमी त्यौहार, बसौड़ा के
नाम से भी
विख्यात है. मान्यता
है कि इस
दिन के बाद
से बासी भोजन
खाना बंद कर
दिया जाता है.
मान्यता के अनुसार
इस व्रत को
करने से देवी
प्रसन्न होती हैं
और व्रती के
कुल में समस्त
शीतलाजनित दोष दूर
हो जाते हैं,
दाहज्वर, पीतज्वर, चेचक, दुर्गन्धयुक्त
फोडे, नेत्र विकार
आदी रोग दूर
होते हैं। शीतला
माता की व्रत
कथा - किसी गाँव
में एक महिला
रहती थी ।
वह बासोड़े के
दिन शीतला मत
की पूजा थी
। और ठंडी
रोटी का भोग
माता को चड़ाकर
उसी को खाती
थी उस दिन
उसके घर में
चूल्हा नहीं जलाता
था । वह
पुरे दिन ठंडा
भोजन ग्रहण करती
थी । उस
गाँव में और
कोई शीतला माता
की पूजा नहीं
करता था । एक दिन उस
गाँव में आग
लग गयी और
उस महिला के
घर को छोड़
कर सभी के
घर उस आग
में जल गए
। जिससे सभी
को बड़ा आश्चर्य
हुआ । सभी
लोगो ने इस
चमत्कार का कारण
उस महिला से
पूछा तो उस
महिला ने कहा
की वह बासोड़े
के दिन ठंडा
भोजन ग्रहण कराती
है और शीतला
माता की पूजा
करती है ।
इस कारण से
माता जी की
कृपा से उसकी
झोपड़ी अग्नि में
जलने से बाख
गयी और तुम्हारी
जल गयी ।
तब से उस
गाँव में बसोड़े
का दिन शीतला
माता की पूजा
होने लग गयी
। शीतला अष्टमी
महत्व - देवी शीतला
की पूजा से
पर्यावरण को स्वच्छ
व सुरक्षित रखने
की प्रेरणा प्राप्त
होती है तथा
ऋतु परिवर्तन होने
के संकेत मौसम
में कई प्रकार
के बदलाव लाते
हैं और इन
बदलावों से बचने
के लिए साफ
सफाई का पूर्ण
ध्यान रखना होता
है. शीतला माता
स्वच्छता की अधिष्ठात्री
देवी हैं और
इसी संदर्भ में
शीतला माता की
पूजा से हमें
स्वच्छता की प्रेरणा
मिलती है. चेचक
रोग जैसे अनेक
संक्रमण रोगों का यही
मुख्य समय होता
है अतः शीतला
माता की पूजा
का विधान पूर्णतरू
महत्वपूर्ण एवं सामयिक
है ।
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