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Gudi Padwa

गुड़ी पड़वा - सृष्टि रचना दिवस


भारतीय संस्कृति में उत्सवों और त्यौहारों का आदि काल से ही महत्व रहा है हिन्दू नव वर्ष या भारतीय नव वर्ष का प्रारंभ मास की शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है इसे हिंदू नव संवत्सर या नव संवत या विक्रम संवत कहते हैं शक्ति की देवी माँ दुर्गा की आराधना का ‘‘नवरात्र’’ भी आज से ही प्रारम्भ होता है विक्रम संवत की शुरूआत उज्जैन के प्रतापी राजा विक्रमादित्य ने की थी उनकी न्यायप्रियता के किस्से भारतीय परिवेश का हिस्सा बन चुके हैं ज्योतिष की मानें तो प्रत्येक संवत् का एक विशेष नाम होता है विभिन्न ग्रह इस संवत् के राजा, मंत्री और स्वामी होते हैं इन ग्रहों का असर वर्ष भर दिखाई देता है सिर्फ यही नहीं समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने के लिए स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी इसी दिन को ‘‘ आर्य समज ’’ स्.थापना दिवस के रूप में चुना था


पौराणिक ग्रंथों जैसे ब्रहमपुराण, अर्थर्ववेद और शतपथ ब्राहमण में ये माना गया है कि गुड़ी पड़वा पर ब्रहमाजी ने सृष्टी की शरूआत की थी चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पहली तारीख मतलब प्रतिपदा, पड़वा को गुड़ी पड़वा के तौर पर मनाया जाता है उत्तर भारत में इसी दिन से चैत्र नवरात्रि की शुरूआत होती है, जो रामनवमी तक चलती है कहा जाता है कि महाभारत मंे युधिष्ठिर का राज्यरोहण इसी दिन हुआ था और इसी दिन विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर विक्रम संवत का प्रवर्तन किया था   किसान इसे रबी के चक्र के अंत के तौर पर भी मनाते हैं  



                इस दिन की शुरूआत सूर्य को अध्र्य देने से की जाती है गुड़-धनिया का प्रसाद वितरित किया जाता है घरों की साफ-सफाई कर सुंदर रंगोली बनाई जाती है महाराष्ट्र में और अब तो मालवा-निमाड़ में भी घर की खिड़कियों पर गुड़ी लगाने को विशेष तौर पर शुभ माना जाता है गुड़ी ब्रहमघ्वज के प्रतीक के तौर पर लगाई जाती है इसे राम की लंका विजय के तौर पर और महाराष्ट में छत्रपति शिवाजी की विजय की ध्वजा के तौर पर लगाया जाता है











गुड़ी पड़वा दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है गुड़ी पड़वा यानी विद्या विनय की सीख देने का दिन बसंत ऋतु को पहली ऋतु और सृष्टि के सृजन का प्रतीक माना जाता है इसी बसंत की शुरूआत होती है गुड़ी पड़वा से दरवाजे पर तनकर खड़ी गुड़ी (जिसका अर्थ है विजय पताका) स्वाभिमान से जीने और जमीन पर लाठी की तरह गिरते ही साष्टांग दंडवत कर जिंदगी के उतार-चढ़ाव में बगैर टूटे उठने का संदेश देती है   



गुड़ी पड़वा में जीवन का आध्यात्मिक गुरूमंत्र छिपा है तनकर खड़ी गुड़ी परमार्थ में पूर्ण शरणगति यानि एक निष्ठ शरणाभाव का संदेश देती है, जो ज्ञान प्राप्ति के परमानन्द का अहम साधन है वहीं पड़वा साष्टांग नमस्कार (सिर, हाथ, पैर, हृदय, आंख,जांघ, वचन और मन आठ अंगों से भूमि पर लेटकर किया जाने वाला प्रणाम) का संकेत देता है इस एक दिन के त्यौहार में आपको आदर्श जीवन के प्रतिबिंब नजर आते हैं गुड़ी की लाठी को तेल-हल्दी लगाकर सजाते हैं उस पर चांदी या तांबे का उल्टा लोटा रखकर रेशमी वस्त्र , फूलों के हार नीम की टहनी से सजाकर दरवाजे पर खड़ी करते हैं  


तनी हुई रीढ़ से इज्जत के साथ गर्दन हमेशा ऊंची रखकर जीना ही तो गुड़ी हमें सिखाती है श्वेत केशरी हार और नीम के फूलों की डाल को समभाव से कंधे पर डाले शान से खड़ी गुड़ी कामयाबी और नाकामयाबी में बिना गिरे संघर्ष करना सिखाती है ऋतु संधिकाल में तृष्णा-हरण शक्कर और रोगप्रतिरोधक नीम और गुड़ धनिए की योजना हमारे पूर्वजों के आयुर्वेद के समन्वय को दर्शाती है पोर-पोर की लाठी में रीढ़ की समानता नजर आती है, तो चांदी का बर्तन मस्तक का प्रतीक है उत्तम चैत्र मास और ऋतु बसंत का यह दिन जब सूर्य किरणों में नई चकम होती है तनी हुई रीढ़ पर अधिष्ठित बर्तन सूर्य की किरणों को इकटठा कर उन्हें परिवर्तित भी करता है परिपूर्ण विचार का धन और आत्मज्ञान सूर्य जैसे तपस्वी गुरू से प्राप्त कर तेजस्वी बुद्धि हासिल कर लोक कल्याण की प्रेरणा से उसे समाज को दान देने का संकेत भी गुड़ी ही देती है

           

 

    

  







पतझड़ और वसंत साथ-साथ आते हैं प्रकृति की इस व्यवस्था के गहरे संकेत-संदेश है अवसान-आगमन, मिलना-बिछड़ना, पुराने का खत्म होना-नए का आना ........ चाहे ये हमें असंगत लगते हों, लेकिन हैं ये एक साथ ....... एक ही सिक्के के दो पहलू, जीवन का सत् और सार दोनों ही ......वसंत ऋतु का पहला हिस्सा पतझड़ का हुआ करता है ...... पेड़ों, झाड़ियों, बेलों और पौधों के पत्ते सूखते हैं, पीले होते हैं और फिर मुरझाकर झड़ जाते हैं फागुन और चैत्र वंसत के उत्सव के महीने हैं इसी चैत्र के मध्य में जब प्रकृति अपने श्रृंगार की ..... सृजन की प्रक्रिया में होती है लाल, पीले, गुलाबी, नारंगी, नीले, सफेद रंग के फूल खिलते हैं पेड़ों पर नए पत्ते आते हैं और यूं लगता है कि पूरी की पूरी सृष्टि ही नई हो गई है, ठीक इसी वक्त हमारी भौतिक दुनिया मंे भी नए का आगमन होता है 



नए साल का .... पुराने के विदा होने और नए के स्वागत के संदेश देता ये पर्व है, प्रकृति का, सूरज का, जीवन, दर्शन और सृजन का जीवन-चक्र का स्वीकरण, सम्मान और अमिनंदन और उत्सव है गुड़ी पड़वा तो हम भी प्रकृति के इस उत्सव को मनाएं ...., सूरज का अभिनन्दन करंे और गर्मियों का स्वागत करें, आखिर जीवन भी तो एक तरह का ऋतु-चक्र है..... सुख-दुख, धूप-छांह, सर्दी-गर्मी का ..... गुड़ीपड़वा पर आनन्द-वर्षा हो...
               













               


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