.नन्दी
- शिव जी का
वाहन
.नन्दी
- नन्दी का शाब्दिक
अर्थ बैल है
। नन्दी देवता
शिव जी का
वाहन है ।
इसे भगवान का
गण माना जाता
है । शिव
मंदिरों में एक
ऊंचे चबूतरे पर
बैठे सफेद, कूबड़
युक्त बैल की
मूर्ति होती है,
जिसका मुंह मंदिर
के प्रवेश द्वार
की ओर होता
है ताकि अनुश्रुति
के अनुसार, वह
भगवान को उनके
प्रतिकात्मक रूप लिंगम
में लगातार देखता
रहे । नंदी
शिव के प्रमुख
गणों में से
एक माना जाता
है, जिसे ‘‘ नंदिकेश्वर
’’ या ‘‘अधिकारनंदिन’’ कहा जाता
है ।
भगवान
शिव का वाहन
है नंदी बैल
। नंदी बैल
शक्ति, आस्था व भरोसे
का प्रतीक होता
है । भगवान
शंकर के मंदिर
में उनके सामने
उनकी सवारी नंदी
को इसलिए स्थापित
करते हैं क्योंकि
शिवजी का वाहन
नंदी पुरूषार्थ यानी
मेहनत का प्रतीक
है । नंदी शिवलिंग
की ओर ही
मुख करके बैठा
होता क्योंकि वह
शिव के वाहन
के साथ ही
नंदी व शिव
का शरीर आत्मा
का वाहन है
। जिस प्रकार
नंदी की नजर
भगवान शंकर
की तरफ होती
है उसी तरह
हमारी नजर भी
आत्मा की ओर
होनी चाहिए ।
हमेशा दूसरों के
लिए अच्छी भावना
रखना चाहिए ।
शरीर का ध्यान
आत्मा की ओर
होने पर ही
हर व्यक्ति चरित्र,
आचरण और व्यवहार
से पवित्र हो
सकता है ।
महादेव के विशालकाय
द्वारपाल शक्ति और भक्ति
की वो मूरत
है । नंदी
की मर्जी के
बिना शिव-शंकर
किसी से नहीं
मिलते । नंदी
कर्म का प्रतीक
भी कर्म ही
जीवन का मूल
मंत्र है ।
शिलाद पुत्र के
रूप में जन्में
नंदीश्वर - शिलाद मुनि ब्रहमचारी
थे । वंश
समाप्त होता देख
उनके पितरों ने शिलाद
से संतान उत्पन्न
करने को कहा
। शिलाद ने
संतान की कामना
से इंद्र दवे
को तप से
प्रसनन कर अयोनिज
व मृत्युहीन पुत्र
मांगा । इंद्र
ने कहा ऐसा
वरदान तो शिव
ही दे सकते
हैं । तब
शिलाद ने शिव
को प्रसन्न कर
उनके समान मृत्युहीन
व अयोनिज पुत्र
का वरदान मांगा
। भगवान शंकर
ने स्वयं शिलाद
के यहां पुत्र
रूप में जन्म
लेने का वरदान
दिया ।
कुुछ
समय बाद भूमि
जोतते समय शिलाद
को भूमि से
उत्पन्न एक बालक
मिला । शिलाद
ने उनका नाम
नंदी रखा ।
नंदी जब बढ़े
हुए तो शिलाद
ने नंदी को
शास्त्रों का ज्ञान
दिया । एक
दिन भगवान शंकर
द्वारा भेजे गए
मित्रा-वरूण नाम
के दो मुनि
शिलाद के आश्रम
आए । उन्होेंने
बताया कि नंदी
अल्पायु हैं ।
नंदी को यह
ज्ञात हुआ तो
उसे वन में
जाकर महादेव की
आराधना आंरभ कर
दी । भगवान
शिव नंदी ने
तप से प्रसन्न
हुए व दर्शन
देकर कहा - वत्स
नंदी । तुम्हे
मृत्यु से भय
कैसे हो सकता
है । मेरे
अनुग्रह से तुम्हें
जरा , जन्म और
मृत्यु किसी से
भी भय नहीं
होगा ।
भगवान
शंकर ने नंदी
को अपना गणाध्यक्ष
भी बनाया ।
इस तरह नंदी
नंदीश्वर हो गए
। मरूतों की
पुत्री सुयशा के साथ
नंदी का विवाह
हुआ । .आधुनिक
भारत में बैल
को दिये जाने
वाले सम्मान का
कारण शिव के
साथ उसका संबंध
है । वाराणसी
जैसे पवित्र हिंदू
नगरों में बैलों
को सड़कों पर
खुले घूमने की
छूट है ।
उन्हें शिव की
संपत्ति माना जाता
है और उनके
पाश्र्व में शिव
के त्रिशूल चिन्ह
को दागा जाता
है ।
.न्ंादी
की घंटी बजाने
पर आती है
धातु की आवाज
- शहस्त्रावदी नगर चंबा
में 10 वीं
शताब्दी में बना
चंद्रशेखर महादेव मंदिर है
मंदिर परिसर के
प्रांगण में पत्थर
का बना विशाल
नंदी का बैल
है । विचित्र
बात यह है
कि नंदी बैल
के गले में
बनी पत्थर की
घंटी आज भी
बजाने पर धातु
की आवाज देती
है । इसे
सुनकर हर कोई
अपने आपको धन्य
समझता है ।
तांबे से मढ़ा
गया है विशाल
शिवलिंग यहां स्.थापित है। .नंदी
एक अच्छी तरह
गोल शरीर,बड़ी
भूरे कंधे, चमकदार
कोट, और काली
पूंछ के साथ
सफेद शुद्ध रूप
में चित्रित है
। नंदी की
गांठ एक बर्फ
से ढकी पर्वत
की चोटी की
तरह है ।
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