Skip to main content

प्रयागराज कुम्भ मेला 2019

प्रयागराज कुम्भ मेला 2019


हिंदू धर्म में कुंभ  मेला एक महत्वपूर्ण पर्व के रूप में मनाया जाता है, जिसमें देश-विदेश से सैकड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन और नासिक में स्नान करने के लिए एकत्रित होते हैं। कुंभ का संस्कृत अर्थ कलश होता है। हिंदू धर्म में कुंभ का पर्व 12 वर्ष के अंतराल में आता है। प्रयाग में दो कुंभ मेलों के बीच 6 वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है। कुंभ का मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है। इस दिन जो योग बनता है उसे कुंभ स्नान-योग कहते हैं। हिंदू धर्म के अनुसार मान्यता है कि किसी भी कुंभ मेले में पवित्र नदी में स्नान या तीन डुबकी लगाने से सभी पुराने पाप धुल जाते हैं और मनुष्य को जन्म-पुनर्जन्म तथा मृत्यु-मोक्ष की प्राप्ति होती है। 
प्रयागराज में ’कुम्भ’ कानों में पड़ते ही गंगा, यमुना एवं सरस्वती का पावन सुरम्य त्रिवेणी संगम मानसिक पटल पर चमक उठता है। पवित्र संगम स्थल पर विशाल जन सैलाब हिलोरे लेने लगता है और हृदय भक्ति-भाव से विहवल हो उठता है। श्री अखाड़ो के शाही स्नान से लेकर सन्त पंडालों में धार्मिक मंत्रोच्चार, ऋषियों द्वारा सत्य, ज्ञान एवं तत्वमिमांसा के उद्गार, मुग्धकारी संगीत, नादो का समवेत अनहद नाद, संगम में डुबकी से आप्लावित हृदय एवं अनेक देवस्थानो के दिव्य दर्शन प्रयागराज कुम्भ की महिमा भक्तों को निदर्शन कराते हैं।


प्रयागराज का कुम्भ मेला अन्य स्थानों के कुम्भ की तुलना में बहुत से कारणों से काफी अलग है। सर्वप्रथम दीर्घावधिक कल्पवास की परंपरा केवल प्रयाग में है। दूसरे कतिपय शास्त्रों में त्रिवेणी संगम को पृथ्वी का केन्द्र माना गया है, तीसरे भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि-सृजन के लिए यज्ञ किया था, चैथे प्रयागराज को तीर्थों का तीर्थ कहा गया है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारण है यहाँ किये गये धार्मिक क्रियाकलापों एवं तपस्यचर्या का प्रतिफल अन्य तीर्थ स्थलों से अधिक माना जाना। मत्स्य पुराण में महर्षि मारकण्डेय युधिष्ठिर से कहते हैं कि यह स्थान समस्त देवताओं द्वारा विशेषतः रक्षित है, यहाँ एक मास तक प्रवास करने, पूर्ण परहेज रखने, अखण्ड ब्रह्मचर्य धारण करने से और अपने देवताओं व पितरों को तर्पण करने से समस्त मनोकामनायें पूर्ण होती हैं। यहाँ स्नान करने वाला व्यक्ति अपनी 10 पीढ़ियों को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त कर देता है और मोझ प्राप्त कर लेता है। यहाँ केवल तीर्थयात्रियों की सेवा करने से भी व्यक्ति को लोभ-मोह से छुटकारा मिल जाता है। उक्त कारणों से अपनी पारंपरिक वेशभूषा में सुसज्जित सन्त- तपस्वी और उनके शिष्यगण एक ओर जहाँ अपनी विशिष्ठ मान्यताओं के अनुसार त्रिवेणी संगम पर विभिन्न धार्मिक क्रियाकलाप करते हैं तो दूसरी ओर उनको देखने हेतु विस्मित भक्तों का तांता लगा रहता है। प्रयागराज का कुम्भ मेला लगभग 50 दिनों तक संगम क्षेत्र के आस-पास हजारों हेक्टेअर भूमि विशालतम अस्थायी शहर का रूप ले लेता है। 



स्नान पर्व में गंगा नदी में स्नान करना अलग ही महत्व रखता है। ऐसी मान्यता है कि इससे समस्त पापों का नाश होता है तथा मनुष्य को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। प्रमुख स्नान तिथियों पर सूर्योदय के समय साधु-संतो द्वारा पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाई जाती है। प्रत्येक समूह एक विशेष क्रम में परंपरा के अनुसार स्नान के लिए नदी में जगह लेता है। सभी समूहों के स्नान के बाद बाकी सभी मनुष्य गंगा में स्नान करते हैं। कुम्भ मेले में गंगा नदी में स्नान का शुभ दिन अमृत में डुबकी जैसा लगता है। 


2019 कुम्भ  मेले की शाही स्नान की तारीख
14-15 जनवरी 2019ः मकर संक्रांति (पहला शाही स्नान)
21 जनवरी 2019ः पौष पूर्णिमा
31 जनवरी 2019ः पौष एकादशी स्नान
04 फरवरी 2019ः मौनी अमावस्या (मुख्य शाही स्नान, दूसरा शाही स्नान)
10 फरवरी 2019ः बसंत पंचमी (तीसरा शाही स्नान)
16 फरवरी 2019ः माघी एकादशी 
19 फरवरी 2019ः माघी पूर्णिमा
04 मार्च 2019ः महा शिवरात्री 
कुंभ मेला हर 12 साल में आता है। दो बड़े कुंभ मेलों के बीच के समय में एक अर्धकुंभ मेला भी लगता है। इस बार साल 2019 में आने वाला कुंभ मेला अर्धकुंभ ही है। गंगा, यमुना व     अदृश्य सरस्वती के पावन तट पर लगने वाले कुम्भ पर भगवान शिव की अनन्य    कृपा बरसेगी।
साल 2019 में होने वाले कुंभ मेले में कुछ नई चीजें देखने को मिलेंगी। इस बार यहां पहली बार युथ के लिए सेल्फी प्वाइंट बनाया जाएगा। मेले में एक स्थान एक अटल कॉर्नर के नाम से बनाया जाएगा। दरअसल यह कॉर्नर एक इंफॉर्मेशन डेस्क यानी सूचना देने का केन्द्र होगा।


इस साल कुंभ के मेले में रामलीला भी होगी। जो कि अंतरराष्ट्रीय बैले कलाकारों का एक ग्रुप प्रस्तुत करेगा। यह रामलीला 55 दिनों तक चलेगी। सबसे अलग बात यह है कि यहां करीब 10 एकड़ जमीन पर ‘संस्कृत ग्राम’ बसाया जाएगा। इसे विशेषतौर पर कुंभ के महत्व और इतिहास के बारे में बताया जाएगा।
ग्रहों की चाल के कारण गंगा जल हो जाता है औषधिकृत । इस दौरान ग्रहों की स्थिति हरिद्वार से बहती गंगा के किनारे पर स्थित हर की पौड़ी के पास गंगा जल को औषधिकृत करती है तथा उन दिनों यह अमृतमय हो जाती है। यही कारण है कि अपनी अंतरात्मा की शुद्धि हेतु पवित्र स्नान करने लाखों श्रद्धालु यहां जुटते हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से अर्ध कुंभ के काल में ग्रहों की स्थिति एकाग्रता तथा ध्यान साधना के लिए उत्कृष्ट होती है। 
कुंभ मेले का ज्योतिषीय महत्व - ग्रह नक्षत्रों के विचरण के अनुसार, हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में सदियों से हर तीसरे वर्ष अर्ध या पूर्ण कुम्भ का आयोजन होता है। यह मूल रूप में बृहस्पति और सूर्य ग्रह की स्थिति के आधार पर विभिन्न स्थानों पर मनाया जाता है। खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है। इस दिन को विशेष मंगलिक माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन उच्च लोक के द्वार खुलते हैं और इस दिन कुंभ स्नान करने से आत्मा को उच्च लोक की प्राप्ति हो जाती है।


कुंभ मेला: पौराणिक मान्यता - कुंभ को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं जिनमें प्रमुख समुद्र मंथन के दौरान निकलनेवाले अमृत कलश से जुड़ा है। महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। तब भगवान विष्णु ने उन्हें दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। क्षीरसागर मंथन के बाद अमृत कुंभ के निकलते ही इंद्र के पुत्र ‘जयंत’ अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गए। उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेश पर दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा कर उसे पकड़ लिया। अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक लगातार युद्ध होता रहा। इस युद्ध के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक में कलश से अमृत बूंदें गिरी थीं। शांति के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर सबको अमृत बांटकर देव-दानव युद्ध का अंत किया। तब से जिस-जिस स्थान पर अमृत की बूंदें गिरीं थीं, वहां कुंभ मेले का आयोजन होता है। 


कुंभ मेला का महत्व
कुंभ मेला विश्वास की एक जन हिंदू तीर्थ यात्रा है जिसमें हिंदू एक पवित्र नदी में स्नान करने के लिए इकट्ठे होते हैं। यह दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक सभा है। यह हर तीसरे वर्ष घूर्णन द्वारा चार स्थानों में से एक पर आयोजित किया जाता हैः हरिद्वार, इलाहाबाद (प्रयाग), नासिक और उज्जैन। इस प्रकार कुंभ मेला हर बारहवें वर्ष में इन चार स्थानों में से प्रत्येक पर आयोजित होता है। (“आधा“) कुंभ मेला हर छठे वर्ष में हरिद्वार और इलाहाबाद में केवल दो स्थानों पर आयोजित किया जाता है। इन चार स्थानों पर नदियां हैंः हरिद्वार में गंगा, गंगा के संगम (संगम) और यमुना और इलाहाबाद में पौराणिक सरस्वती, नासिक में गोदावरी, और उज्जैन में शिप्रा।
कुंभ का अर्थ है एक पिचर और मेला का अर्थ हिंदी में उचित है। तीर्थयात्रा इन चार स्थानों में से प्रत्येक में ढाई महीने तक आयोजित की जाती है जहां हिंदू धर्म में यह माना जाता है कि अमृत की बूंदें समुद्र के बाद देवताओं द्वारा किए गए कुंभ से गिर गईं।त्यौहार को “धार्मिक तीर्थयात्रियों की दुनिया की सबसे बड़ी कलीसिया“ के रूप में बिल किया जाता है। तीर्थयात्रियों की संख्या का पता लगाने की कोई वैज्ञानिक विधि नहीं है, और सबसे शुभ दिन पर स्नान करने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या अलग-अलग हो सकती है । इस बार का कुंभ मेले का ज्यादा महत्व है। इस मेले में जहां ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति महत्वपूर्ण बताई जा रही है, वहीं त्रिवेणी के संगम पर 12 वर्षों के 12 चक्र पूर्ण हो रहे हैं। 


144 वर्षों बाद आया है यह अवसर: प्रयाग में वैसे तो हर 12 वर्ष में कुंभ का आयोजन होता है लेकिन इस बार प्रत्येक 12 वर्ष के 12 चक्र पूर्ण हो चुके हैं अर्थात पूरे 144 वर्षों बाद आ रहा हैं महाकुंभ। पौष मास की पूर्णिमा से प्रारंभ हो रहा प्रयाग कुंभ विशेष महत्व रखता है।
प्रकाश की ओर ले जाएगा यह कुंभ: यह कुंभ अन्य कुंभों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह प्रकाश की ओर ले जाता है। यह ऐसा स्थान है जहां बुद्धिमत्ता का प्रतीक सूर्य का उदय होता है। इस स्थान को ब्रह्माण्ड का उद्गम और पृथ्वी का केंद्र माना जाता है। 
प्रयागराज में महायज्ञ: इस स्थान पर कुंभ का आना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस स्थान पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने मिलकर महायज्ञ किया था।

डाॅ. अशोक सिंह
. पूर्व प्राध्यापक एवं प्रमुख
पशु आनुवाशिकीय एवं अभिजनन विभाग
पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय, महू (म.प्र.)
388 एन एक्स विष्णुपुरी इन्दौर .452001 (म.प्र.)

Comments

Popular posts from this blog

हस्तमुद्रा - औषधीय एवं आध्यात्मिक लाभ

हस्तमुद्रा - औषधीय एवं आध्यात्मिक लाभ योग अनुसार आसन और प्राणायाम की स्थिति को मुद्रा कहा जाता है। बंध , क्रिया और मुद्रा में आसन और प्राणायाम दोनों का ही कार्य होता है। योग में मुद्राओं को आसन और प्राणायाम से भी बढ़कर माना जाता है। आसन से शरीर की हड्डियाँ लचीली और मजबूत होती है जबकि मुद्राओं से शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास होता है। मुद्राओं का संबंध शरीर के खुद काम करने वाले अंगों और स्नायुओं से है। मुद्राओं की संख्या को लेकर काफी मतभेद पाए जाते हैं। मुद्रा और दूसरे योगासनों के बारे में बताने वाला सबसे पुराना ग्रंथ घेरण्ड संहिता है। हठयोग पर आधारित इस ग्रंथ को महर्षि घेरण्ड ने लिखा था। घेरंड में 25 और हठयोग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं का उल्लेख मिलता है , लेकिन सभी योग के ग्रंथों की मुद्राओं को मिलाकर कुल 50 से 60 हस्त मुद्राएँ हैं। मानव - सरीर अनन्त रहस्यों से भरा हुआ है । शरीर की अपनी एक मुद्रामयी भाषा है । जिसे करने स

Elephant Pearl ( Gaj Mani)

हाथी मोती ( गज मणि ) गज मणि हल्के हरे - भूरे रंग के , अंडाकार आकार का मोती , जिसकी जादुई और औषधीय  शक्ति    सर्वमान्य   है । यह हाथी मोती   एक लाख हाथियों में से एक में पाये जाने वाला मोती का एक रूप है। मोती अत्यंत दुर्लभ है और इसलिए महंगा भी है जिस किसी के पास यह होता है वह बहुत भाग्यषाली होता है इसे एक अनमोल खजाने की तरह माना गया है । इसके अलौकिक होने के प्रमाण हेतु अगर इसे साफ पानी में रखा जाए तो पानी दूधिया हो जाता है । इसी तरह अगर स्टेथोस्कोप से जांचने पर उसके दिन की धड़कन सुनी जा सकती है । अगर इसे हाथ में रखा जाता है तो थोड़ा कंपन महसूह किया जा सकता है ।   अगर गज मणि को आप नारयिल पानी में रखत हैं तो बुलबुले पैदा होने लगते हैं और पानी की मात्रा भी कम हो जाती है । चिकित्सकीय लाभ में जोड़ों के दर्द , बच्चे न पैदा होने की असमर्थता के इलाज और तनाव से राहत के

पुष्कर - पौराणिक एवं धार्मिक महत्व

पुष्कर - पौराणिक एवं धार्मिक महत्व पुष्कर ब्रह्मा के मंदिर और ऊँटों के व्यापार मेले के लिए प्रसिद्ध है। पुष्कर का शाब्दिक अर्थ है तालाब और पुराणों में वर्णित तीर्थों में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। राजस्थान के शहर अजमेर में कई पर्यटन स्थल है जिनमें से ये एक है। अनेक पौराणिक कथाएं इसका प्रमाण हैं। यहाँ से प्रागैतिहासिक कालीन पाषाण निर्मित अस्त्र - शस्त्र मिले हैं , जो उस युग में यहाँ पर मानव के क्रिया - कलापों की ओर संकेत करते हैं। हिंदुओं के समान ही बौद्धों के लिए भी पुष्कर पवित्र स्थान रहा है। भगवान बुद्ध ने यहां ब्राह्मणों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। फलस्वरूप बौद्धों की एक नई शाखा पौष्करायिणी स्थापित हुई। शंकराचार्य , जिन सूरी और जिन वल्लभ सूरी , हिमगिरि , पुष्पक , ईशिदत्त आदि विद्वानों के नाम पुष्कर से जुड़े हुए हैं।   चैहान राजा अरणोराज के काल में विशाल शास्त्रार्थ हुआ था। इसमें अजमेर के जैन विद्वान जिन सूरी और ज