Skip to main content

शमी वृक्ष - आध्यात्मिक, पौराणिक एवं आयुर्वेदिक महत्व

शमी वृक्ष - आध्यात्मिक, पौराणिक एवं आयुर्वेदिक  महत्व




पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कुछ पेड़-पौधों को घर में लगाने उनकी उपासना करने से घर में खुशहाली रहती है, घर में सदैव लक्ष्मी का वास रहता है उनमें से एक है शमी का वृक्ष जो घर में समृद्धि प्रदान करता है तथा देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है। शमी के पेड़ की पूजा करने से घर में शनि का प्रकोप कम होता है। घर में शमी का पौधा लगाकर पूजा करने से आपके कामों में आने वाली रुकावट दूर होगी। शमी वृक्ष की लकड़ी को यज्ञ की वेदी के लिए पवित्र माना जाता है। 






शनिवार को करने वाले यज्ञ में शमी की लकड़ी से बनी वेदी का विशेष महत्व है। शमी को गणेश जी का प्रिय वृक्ष माना जाता है। इसलिए भगवान गणेश की आराधना में शमी के वृक्ष की पत्तियों को अर्पित किया जाता है। सुबह के समय उठने के बाद शमी के वृक्ष के दर्शन को शुभ माना जाता है। शमी के वृक्ष पर कई देवताओं का वास होता है। दशहरे पर शमी के वृक्ष के पूजन का विशेष महत्व है। शमी का वृक्ष घर के ईशान कोण (पूर्वोत्तर) में लगाना लाभकारी माना गया है. इसमें प्राकृतिक तौर पर अग्नि तत्व पाया जाता है 















शमी वृक्ष दशहरे के 10वे दिन इसके पत्तों को पारस्परिक प्रेम और सम्मान साझा करने और पिछले कड़वाहट को भूल जाने के लिए एक दूसरे के बीच वितरित किया जाता है।  शमी वृक्ष को लक्ष्मी, शिव, सीता आदि जैसे समानार्थक शब्द दिए गए हैं। शमी के वृक्ष पर कई देवताओं का वास होता है



सभी यज्ञों में शमी वृक्ष की समिधाओं का प्रयोग शुभ माना गया है. शमी के कांटों का प्रयोग तंत्र-मंत्र बाधा और नकारात्मक शक्तियों के नाश के लिए होता है वास्तु शास्त्र के मुताबिक, नियमित रूप से शमी वृक्ष की पूजा की जाए और इसके नीचे सरसों तेल का दीपक जलाया जाए, तो शनि दोष से कुप्रभाव से बचाव होता है उत्तर भारत में षमी वृक्ष अधिकतर घरों के दरवाजे के बाहर लगा हुआ मिलता है। लोग किसी भी काम पर जाने से पहले इसके दर्शन करते और इसे माथे से लगाते हैं, ऐसे करने से उन्हें उस काम में कामयाबी मिलती है।




शमी / बन्नवी मरा /खाजरी का वृक्ष बड़ा ही मंगलकारी माना गया   है नवरात्र में भी मां दुर्गा का पूजन शमी वृक्ष के पत्तों से करने का विधान है   गणेश जी और शनिदेव, दोनों को ही शमी बहुत प्रिय है दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की परंपरा भी है। रावण दहन के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते लूट कर लाने की प्रथा है जो स्वर्ण का प्रतीक मानी जाती है। इसके अनेक औषधीय गुण भी है। 



पांडवों द्वारा अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में गांडीव धनुष इसी पेड़ में छुपाए जाने के उल्लेख मिलते हैं। इसी प्रकार लंका विजय से पूर्व भगवान राम द्वारा शमी के वृक्ष की पूजा का उल्लेख मिलता है।  शमी या खेजड़ी के वृक्ष की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है। पीपल और शमी दो ऐसे वृक्ष हैं, जिन पर शनि का प्रभाव होता है। पीपल का वृक्ष बहुत बड़ा होता है, इसलिए इसे घर में लगाना संभव नहीं हो पाता। वास्तु शास्त्र के मुताबिक नियमित रूप से शमी की पूजा करने और उसके नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाने से शनि दोष और उसके कुप्रभावों से बचा जा सकता है।




आयुर्वेद की दृष्टि में तो शमी अत्यंत गुणकारी औषधि मानी गई है. कई रोगों में इस वृक्ष के अंग काम आते हैं आयुर्वेद ने मानसिक विकार, स्कीजोफ्रेनिया, श्वसन पथ के संक्रमण, अत्यधिक गर्मी, दाद, ढीली गति, ल्यूकोरोहाइआ जैसे अनगिनत रोगों के उपचार की सिफारिश की जाती है। शमी के पंचांग, यानी फूल, पत्ते, जड़ें, टहनियां और रस का इस्तेमाल कर शनि संबंधी दोषों से जल्द मुक्ति पाई जा सकती है



शमी फल और अन्य भागों की राख या भस्म का इस्तेमाल शनि के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। शमी की छाल से घाव, ब्रोन्कियल अस्थमा और स्टामाटाइटिस का इलाज करते हैं छाल का पाउडर गले और दांतों के दर्द में और बाहरी अल्सर को ठीक करने में प्रभावी होता है। शमी  के बीज रक्त शर्करा के स्तर को कम करने सहायक है

































शमी की छाल का काढ़ा इलाज बुखार, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हेलमथाथासिस और पित्त और वात दोषों के असंतुलन का उपयोग किया जाता है। छाल का उपयोग गठिया और बिच्छू के डंक के इलाज के लिए किया जाता है। शमी की पत्तियों का काढ़ा आंतों के कीड़े और कुष्ठ रोग के उपचार में प्रभावी है। षमी के फूल को  चीनी के साथ मिश्रित करके खाने से गर्भवती महिलाओं के गर्भपात को रोकने के लिए सहायक है। शमी का वृक्ष लकड़ी का कोयला का एक उत्कृष्ट स्रोत है सूखे फली पशुधन के लिए भोजन का एक समृद्ध स्रोत है। फली राजस्थान में सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है।



Comments

Popular posts from this blog

हस्तमुद्रा - औषधीय एवं आध्यात्मिक लाभ

हस्तमुद्रा - औषधीय एवं आध्यात्मिक लाभ योग अनुसार आसन और प्राणायाम की स्थिति को मुद्रा कहा जाता है। बंध , क्रिया और मुद्रा में आसन और प्राणायाम दोनों का ही कार्य होता है। योग में मुद्राओं को आसन और प्राणायाम से भी बढ़कर माना जाता है। आसन से शरीर की हड्डियाँ लचीली और मजबूत होती है जबकि मुद्राओं से शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास होता है। मुद्राओं का संबंध शरीर के खुद काम करने वाले अंगों और स्नायुओं से है। मुद्राओं की संख्या को लेकर काफी मतभेद पाए जाते हैं। मुद्रा और दूसरे योगासनों के बारे में बताने वाला सबसे पुराना ग्रंथ घेरण्ड संहिता है। हठयोग पर आधारित इस ग्रंथ को महर्षि घेरण्ड ने लिखा था। घेरंड में 25 और हठयोग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं का उल्लेख मिलता है , लेकिन सभी योग के ग्रंथों की मुद्राओं को मिलाकर कुल 50 से 60 हस्त मुद्राएँ हैं। मानव - सरीर अनन्त रहस्यों से भरा हुआ है । शरीर की अपनी एक मुद्रामयी भाषा है । जिसे करने स

Elephant Pearl ( Gaj Mani)

हाथी मोती ( गज मणि ) गज मणि हल्के हरे - भूरे रंग के , अंडाकार आकार का मोती , जिसकी जादुई और औषधीय  शक्ति    सर्वमान्य   है । यह हाथी मोती   एक लाख हाथियों में से एक में पाये जाने वाला मोती का एक रूप है। मोती अत्यंत दुर्लभ है और इसलिए महंगा भी है जिस किसी के पास यह होता है वह बहुत भाग्यषाली होता है इसे एक अनमोल खजाने की तरह माना गया है । इसके अलौकिक होने के प्रमाण हेतु अगर इसे साफ पानी में रखा जाए तो पानी दूधिया हो जाता है । इसी तरह अगर स्टेथोस्कोप से जांचने पर उसके दिन की धड़कन सुनी जा सकती है । अगर इसे हाथ में रखा जाता है तो थोड़ा कंपन महसूह किया जा सकता है ।   अगर गज मणि को आप नारयिल पानी में रखत हैं तो बुलबुले पैदा होने लगते हैं और पानी की मात्रा भी कम हो जाती है । चिकित्सकीय लाभ में जोड़ों के दर्द , बच्चे न पैदा होने की असमर्थता के इलाज और तनाव से राहत के

पुष्कर - पौराणिक एवं धार्मिक महत्व

पुष्कर - पौराणिक एवं धार्मिक महत्व पुष्कर ब्रह्मा के मंदिर और ऊँटों के व्यापार मेले के लिए प्रसिद्ध है। पुष्कर का शाब्दिक अर्थ है तालाब और पुराणों में वर्णित तीर्थों में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। राजस्थान के शहर अजमेर में कई पर्यटन स्थल है जिनमें से ये एक है। अनेक पौराणिक कथाएं इसका प्रमाण हैं। यहाँ से प्रागैतिहासिक कालीन पाषाण निर्मित अस्त्र - शस्त्र मिले हैं , जो उस युग में यहाँ पर मानव के क्रिया - कलापों की ओर संकेत करते हैं। हिंदुओं के समान ही बौद्धों के लिए भी पुष्कर पवित्र स्थान रहा है। भगवान बुद्ध ने यहां ब्राह्मणों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। फलस्वरूप बौद्धों की एक नई शाखा पौष्करायिणी स्थापित हुई। शंकराचार्य , जिन सूरी और जिन वल्लभ सूरी , हिमगिरि , पुष्पक , ईशिदत्त आदि विद्वानों के नाम पुष्कर से जुड़े हुए हैं।   चैहान राजा अरणोराज के काल में विशाल शास्त्रार्थ हुआ था। इसमें अजमेर के जैन विद्वान जिन सूरी और ज