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महर्षि वाल्मीकि - संस्कृत रामायण के रचयिता



महर्षि वाल्मीकि - संस्कृत रामायण के रचयिता

 
महर्षि वाल्मीकि प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों कि श्रेणी में प्रमुख स्थान प्राप्त है और इन्होंने संस्कृत मंे महान ग्रंथ रामायण महान ग्रंथ की रचना कि थी इनके द्वारा रचित रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाती है. हिंदु धर्म की महान कृति रामायण महाकाव्य श्रीराम के जीवन और उनसे संबंधित घटनाओं पर आधारित है वाल्मीकि  के पिता महर्षि कश्यप के पुत्र वरुण या आदित्य माने गए हैं.  एक बार ध्यान में बैठे हुए इनके शरीर को दीमकों ने अपना ढूह (बाँबी) बनाकर ढक लिया था। साधना पूरी करके जब ये दीमक-ढूह से जिसे वाल्मीकि कहते हैं, बाहर निकले तो इन्हें वाल्मीकि कहा जाने लगा  



 महर्षि बनने से पूर्व वाल्मीकि रत्नाकर के नाम से जाने जाते थे तथा परिवार के पालन हेतु दस्युकर्म करते थे एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि मिले तो रत्नाकर ने उन्हें लूटने का प्रयास किया तब नारद जी ने रत्नाकर से पूछा कि तुम यह निम्न कार्य किस लिये करते हो, इस पर रत्नाकर ने जवाब दिया कि अपने परिवार को पालने के लिये. इस पर नारद ने प्रश्न किया कि तुम जो भी अपराध करते हो और जिस परिवार के पालन के लिए तुम इतने अपराध करते हो, क्या वह तुम्हारे पापों का भागीदार बनने को तैयार होगें यह जानकर वह स्तब्ध रह जाता है 



 नारदमुनि ने कहा कि हे रत्नाकर यदि तुम्हारे परिवार वाले इस कार्य में तुम्हारे भागीदार नहीं बनना चाहते तो फिर क्यों उनके लिये यह पाप करते हो इस बात को सुनकर उसने नारद के चरण पकड़ लिए और डाकू का जीवन छोड़कर तपस्या में लीन हो गए और जब नारद जी ने इन्हें सत्य के ज्ञान से परिचित करवाया तो उन्हें राम-नाम के जप का उपदेश भी दिया था, परंतु वह राम-नाम का उच्चारण नहीं कर पाते तब नारद जी ने विचार करके  उनसे मरा-मरा जपने के लिये कहा और  मरा रटते-रटते यही राम हो गया और निरन्तर जप करते-करते हुए वह ऋषि वाल्मीकि बन गए  



आदि कवि वाल्मीकि - एक बार महर्षि वाल्मीकि एक क्रौंच पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे। वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था, तभी उन्होंने देखा कि एक बहेलिये ने कामरत क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर महर्षि की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह लोक फूट पड़ाः मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। महर्षि वाल्मीकिकी रामायण संस्कृत भाषाका पहला काव्य है, अतः उसेआदि-काव्यअथवापहला काव्यकहा जाता है तथा महर्षि वाल्मीकि को आदि कविअथवापहला कविकहा जाता है



  जिस कवि नेरामायणलिखी तथा लव एवं कुश को यह गाना तथा कहानी सिखाई, वे एक महान ऋषि, महर्षि वाल्मीकि थे यह व्यक्ति महर्षि तथा गायक कवि कैसे बने यह बडी बोधप्रद कहानी है महर्षि वाल्मीकिकी रामायण संस्कृत भाषा में है तथा बहुत सुंदर काव्य है महर्षि वाल्मीकिकी रामायण गायी जा सकती है कोयल की आवाजकी तरह वह कानोंको भी बडी मीठी (कर्णप्रिय) लगता है  



 महर्षि वाल्मीकि को काव्य के पेड पर बैठी तथा मीठा गाने वाली कोयल कहा गया है जो भी रामायण पढते हैं, प्रथम महर्षि वाल्मीकि को प्रणाम कर तदुपरांत महाकाव्य की ओर बढते हैं भगवान वाल्मीकि जी की शिक्षाओं का महाकाव्य रामायण में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है जिसमें कर्तव्य परायणता, आज्ञा पालन, वचन निभाना, भाई का भाई के प्रति अथाह प्रेम स्नेह, दुखियों, शोषित पीड़ितों के प्रति दया और करुणा प्रेम, मानवता शांति का संदेश देने के साथ-साथ अपने अंदर के अहंकार, ईर्षा, क्रोध लोभ रूपी राक्षस को मारकर सहनशीलता का परिचय देना शामिल है।

  



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