Skip to main content

Mehndipur Balaji - Rajasthan

मेहंदीपुर वाले बालाजी - राजस्थान


राजस्थान के दौसा जिले के पास दो पहाडियों के बीच बसा हुआ मेहंदीपुर नामक स्थान है। यह मंदिर जयपुर-बांदीकुई- बस मार्ग पर जयपुर से लगभग 65 किलोमीटर दूर है। दो पहाडियों के बीच की घाटी में स्थित होने के कारण इसे घाटा मेहंदीपुर भी कहते हैं। यह मंदिर करीब 1 हजार साल पुराना है। यहां पर एक बहुत विशाल चट्टान में हनुमान जी की आकृति स्वयं ही उभर आई थी। इसे ही श्री हनुमान जी का स्वरूप माना जाता है। इनके चरणों में छोटी सी कुण्डी है, जिसका जल कभी समाप्त नहीं होता। यह मंदिर तथा यहाँ के हनुमान जी का विग्रह काफी शक्तिशाली एवं चमत्कारिक माना जाता है तथा इसी वजह से यह स्थान केवल राजस्थान में बल्कि पूरे देश में विख्यात है। यह मंदिर अरावली पहाड़ियों के बीच बना हुआ है,





  इसे घाटा मेहंदीपुर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का इतिहास लगभग हजार साल पुराना है।श्री बालाजी महाराज(हनुमान जी), प्रेतराज सरकार और श्री कोतवाल (भैरव) जी महाराज तीनों ही देवों की इस स्थान पर प्रधानता है जो लगभग हजार साल पहले यहां प्रकट हुए थे। चमत्कारिक मेहंदीपुर बालाजी मंदिर, प्रेत-भूत बाधा दूर करने का सबसे प्रसिद्ध और विश्वसनीय स्थान है राजस्थान के मेहंदीपुर वाले बालाजी देश ही नहीं दुनियाभर में लोगों के लिए श्रद्धा और आस्था के केंद्र हैं। कहते हैं कि यह ऐसा स्थान है जहां नास्तिक से नास्तिक व्यक्ति भी आस्तिक बन जाता है, आज के वैज्ञानिक युग के वैज्ञानिक भी यहां नतमस्तक हुए बगैर नहीं रहते है। 



चमत्कारों से भरा हुआ यह स्थान लोगों को सहसा ही अपनी ओर खींच लेता है। इतिहास कहता है कि एक बार यहां महंतजी के पूर्वजों को स्वप्न में एक अद्भुत शक्ति दिखाई दी। वे स्वप्नावस्था में उस ओर चल दिए और उन्होंने देखा उनके सामने लाखों दीप सहसा जल उठे। वे इस दृश्य देख अचंभित हो उठे, फिर स्वप्न में उन्हें उसी स्थान पर तीन मूर्तियां के साथ विशाल वैभव दिखाई दिया, साथ ही एक फौज भी दिखाई दी, फौज के सरदार ने मूर्तियों को प्रणाम किया। उसके साथ ही उन्हें एक आवाज सुनाई दी, बालाजी महाराज ने स्वयं प्रकट होकर कहा उठो भक्त मेरी सेवाओं का भार ग्रहण करो मैं अपनी लीलाओं का विस्तार करूंगा  



सुबह महंतजी ने यह घटना क्षेत्र के लोगों को सुनाई और उन्ही के साथ मिलकर उन्होंने बालाजी महाराज की एक छोटी सी तिवाड़ी उस स्थान पर बना दी। काफी समय बाद एक शासक ने श्री बालाजी की मूर्ति निकालने के लिए खुदाई करवाई लेकिन वह सफल ना हो सका, उसके हाथ सिर्फ मूर्ति का ऊपरी भाग ही आया मूर्ति के पैर कहां तक गए हैं, यह काफी खुदाई के बाद भी वह ना जान सका। कहा जाता है कि तब से किसी को भी श्री बालाजी के चरणों के दर्शन आज तक नहीं हुए। मेंहदीपुर बालाजी को दुष्ट आत्माओं से छुटकारा दिलाने के लिए दिव्य शक्ति से प्रेरित हनुमानजी का बहुत ही शक्तिशाली मंदिर माना जाता है। 



यहां कई लोगों को जंजीर से बंधा और उल्टे लटके देखा जा सकता है। यह मंदिर और इससे जुड़े चमत्कार देखकर कोई भी हैरान हो सकता है। शाम के समय जब बालाजी की आरती होती है तो भूतप्रेत से पीड़ित लोगों को जूझते देखा जाता है। प्रसाद खाते ही झूमने लगते हैं पीड़ित लोग - प्रसाद का लड्डू खाते ही रोगी व्यक्ति झूमने लगता है। भूत प्रेतादि स्वयं ही उसके शरीर में आकर चिल्लाने लगते हैं। कभी वह अपना सिर धुनता है कभी जमीन पर लोटने लता है। पीड़ित लोग यहां पर अपने आप जो करते हैं वह एक सामान्य आदमी के लिए संभव नहीं है। 



इस तरह की प्रक्रियाओं के बाद वह बालाजी की शरण में जाता है फर उसे हमेशा के लिए इस होती है। शास्त्र और लोक कथाओं में भैरव देव के अनेक रूपों का वर्णन है, जिनमें एक दर्जन रूप प्रामाणिक हैं। श्री बाल भैरव और श्री बटुक भैरव, भैरव देव के बाल रूप हैं। भक्तजन प्रायः भैरव देव के इन्हीं रूपों की आराधना करते हैं। भैरव देव बालाजी महाराज की सेना के कोतवाल हैं। इन्हें कोतवाल कप्तान भी कहा जाता है। बालाजी मन्दिर में आपके भजन, कीर्तन, आरती और चालीसा श्रद्धा से गाए जाते हैं। प्रसाद के रूप में आपको उड़द की दाल के वड़े और खीर का भोग लगाया जाता है।







  

Comments

Popular posts from this blog

Elephant Pearl ( Gaj Mani)

हाथी मोती ( गज मणि ) गज मणि हल्के हरे - भूरे रंग के , अंडाकार आकार का मोती , जिसकी जादुई और औषधीय  शक्ति    सर्वमान्य   है । यह हाथी मोती   एक लाख हाथियों में से एक में पाये जाने वाला मोती का एक रूप है। मोती अत्यंत दुर्लभ है और इसलिए महंगा भी है जिस किसी के पास यह होता है वह बहुत भाग्यषाली होता है इसे एक अनमोल खजाने की तरह माना गया है । इसके अलौकिक होने के प्रमाण हेतु अगर इसे साफ पानी में रखा जाए तो पानी दूधिया हो जाता है । इसी तरह अगर स्टेथोस्कोप से जांचने पर उसके दिन की धड़कन सुनी जा सकती है । अगर इसे हाथ में रखा जाता है तो थोड़ा कंपन महसूह किया जा सकता है ।   अगर गज मणि को आप नारयिल पानी में रखत हैं तो बुलबुले पैदा होने लगते हैं और पानी की मात्रा भी कम हो जाती है । चिकित्सकीय लाभ में जोड़ों के दर्द , बच्चे न पैदा होने की असमर्थता के इलाज और तनाव से राहत के

हस्तमुद्रा - औषधीय एवं आध्यात्मिक लाभ

हस्तमुद्रा - औषधीय एवं आध्यात्मिक लाभ योग अनुसार आसन और प्राणायाम की स्थिति को मुद्रा कहा जाता है। बंध , क्रिया और मुद्रा में आसन और प्राणायाम दोनों का ही कार्य होता है। योग में मुद्राओं को आसन और प्राणायाम से भी बढ़कर माना जाता है। आसन से शरीर की हड्डियाँ लचीली और मजबूत होती है जबकि मुद्राओं से शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास होता है। मुद्राओं का संबंध शरीर के खुद काम करने वाले अंगों और स्नायुओं से है। मुद्राओं की संख्या को लेकर काफी मतभेद पाए जाते हैं। मुद्रा और दूसरे योगासनों के बारे में बताने वाला सबसे पुराना ग्रंथ घेरण्ड संहिता है। हठयोग पर आधारित इस ग्रंथ को महर्षि घेरण्ड ने लिखा था। घेरंड में 25 और हठयोग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं का उल्लेख मिलता है , लेकिन सभी योग के ग्रंथों की मुद्राओं को मिलाकर कुल 50 से 60 हस्त मुद्राएँ हैं। मानव - सरीर अनन्त रहस्यों से भरा हुआ है । शरीर की अपनी एक मुद्रामयी भाषा है । जिसे करने स

पुष्कर - पौराणिक एवं धार्मिक महत्व

पुष्कर - पौराणिक एवं धार्मिक महत्व पुष्कर ब्रह्मा के मंदिर और ऊँटों के व्यापार मेले के लिए प्रसिद्ध है। पुष्कर का शाब्दिक अर्थ है तालाब और पुराणों में वर्णित तीर्थों में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। राजस्थान के शहर अजमेर में कई पर्यटन स्थल है जिनमें से ये एक है। अनेक पौराणिक कथाएं इसका प्रमाण हैं। यहाँ से प्रागैतिहासिक कालीन पाषाण निर्मित अस्त्र - शस्त्र मिले हैं , जो उस युग में यहाँ पर मानव के क्रिया - कलापों की ओर संकेत करते हैं। हिंदुओं के समान ही बौद्धों के लिए भी पुष्कर पवित्र स्थान रहा है। भगवान बुद्ध ने यहां ब्राह्मणों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। फलस्वरूप बौद्धों की एक नई शाखा पौष्करायिणी स्थापित हुई। शंकराचार्य , जिन सूरी और जिन वल्लभ सूरी , हिमगिरि , पुष्पक , ईशिदत्त आदि विद्वानों के नाम पुष्कर से जुड़े हुए हैं।   चैहान राजा अरणोराज के काल में विशाल शास्त्रार्थ हुआ था। इसमें अजमेर के जैन विद्वान जिन सूरी और ज