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Guru Govind Singh Ji - Tenth Sikh Guru

श्री गुरू गोबिंदसिंह जी - सिखों के दसवें गुरू





श्री गुरू गोबिंदसिंह जी सिखों के दसवें गुरू हैं जिनका जन्म पौष सुदी 7वीं सन् 1966 को पटना (बिहार) मैं  माता गुजरी जी तथा पिता श्री गुरू तेगबहादुर जी के घर हुआ । पहले गुरूजी का नाम गोविंद राय था और सन् 1699 को बैसाखी वाले दिन गुरूजी पंज प्यारों से अमृत छक कर गोविंद राय से गुरू गोविंद सिंह जी बन गए । उनके बचपन के पाँच साल पटना में ही गुजारे । 


धर्म एवं समाज की रक्षा हेतु ही गुरू गोबिंद सिंह जी ने 1699 ई. में खालसा पंथ की स्ािापना की । पाँच प्यारे बनाकर उन्हें गुरू का दर्जा देकर स्वयं उनके शिष्य बन जाते हैं और कहते हैं- जहाँ पाचँ सिख इकटठे होंगे, वहीं में निवास करूँगां । उन्होंने सभी जातियों के भेद-भाव को समाप्त करने समानता स्ािापित की और उनमें आत्म-सम्मान की भावना भी पैदा की ।

दमदमा साहिब में आपने अपनी याद शक्ति और ब्रहबल से श्री गुरूग्रंथ साहिब का उच्चारण किया और लेखक भाई मनी सिंह जी ने गुरूबाणी को लिखा । गुरूजी रोज गुरूबाणी का उच्चारण करते थे और श्रद्धालुओं को गुरूबाणी के अर्थ बताते जाते और भाई मनी सिंह जी लिखते जाते । 


इस प्रकार लगभग पाँच महीनों में लिखाई के साथ-साथ गुरूबाणी की जुबानी व्याख्या भी संपूर्ण हो गई । नांदेड़ में अबचल नगर (हुजूर साहिब) में गुरूग्रंथ साहिब को गुरू का दर्जा देते हुए और इसका श्रेय भी प्रभु को देते हुए कहते हैं - आज्ञा भई अकाल की तभी चलाइयों पंथ, सब सिक्खन को हुक्म है गुरू मान्यो ग्रंथ ।




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