शनिश्चरी अमावस्या का पुण्यकाल संयोग
दस साल बाद
24 जून
2017 को आषाढ़ मास
की अमावस शनिवार
के दिन पड़ने
की वजह से
इसे शनि अमावस्या
या शनिश्चरी अमावस्या
कहते हैं ।
कहते हैं कि
शनिवार को पड़ने
वाली इस अमावस
के दिन दान
करने से अक्षय
फल मिलते हैं,
माना जाता है
कि जब अमावस
शनिवार को पड़ती
है, तो तीर्थ
पर स्नान करने
से बड़े से
बड़ा पाप धुल
जाता है.
इस
बार शनिचर अमावस्या
होना इसलिए भी
खास है, क्योंकि
यह संयोग 10 साल
बाद बना है
। पूर्वजों की
आत्मा की तृप्ति
के लिए अमावस्या
के सभी दिन
श्राद्ध की रस्मों
को करने के
लिए उपयुक्त हैं।
कालसर्प दोष निवारण
की पूजा करने
के लिए भी
अमावस्या का दिन
उपयुक्त होता है।
शनिवार के दिन
अमावस्या का पड़ना
कई कारणों से
काफी मायने रखती
हैं.
शनि ग्रह
को सीमा ग्रह
भी कहा जाता
है, क्योंकि मान्यता
के अनुसार जहां
पर सूर्य का
प्रभाव खत्म हो
जाता है वहीं
से शनि का
प्रभाव शुरू होता
है । मान्यता है कि
इस दिन पितरों
के नाम पर
काले कपड़े दान
करने चाहिए । काले
रंग की खाने
की चीजें भी
दान करने को
अच्छा माना गया
है । कहते हैं
कि इस दिन
जरूरतमंदों को दान
करना बहुत पुण्य
दिलाता है ।
कहते हैं कि
जब शनिदेव खुश
होते हैं, तो
पितर भी खुश
और शांत होते
हैं । मान्यता है कि
शनि की धातु
लोहा है. यही
वजह है कि
लोहे के साथ
अनाज दान करने
से शनिदेव खुश
होते हैं । शनिवार
को चना और
उड़द की दाल
का दान करने
की भी मान्यता
है । दस
साल बाद शनिचरी
अमावस्या का संयोग
बन रहा है।
यह संयोग वर्ष
की दृष्टि से
अनुकूल रहेगा। भारत में
इसका प्रभाव कहीं
अतिवृष्टि, कहीं खण्ड
वृष्टि तथा कहीं
सामान्य वर्षा के रूप
में देखा जाएगा।
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जिन जातकों की
जन्म कुण्डली में
शनि की साढ़ेसाती,
ढ़ैया, महादशा, अंतर्दशा
चल रही है
या शनि के
कारण जिन्हें कष्ट
है उन्हें इस
शनिचरी अमावस्या पर शनि
आराधना एवं हनुमान
आराधना अवश्य रूप से
करना चाहिए। शनि
को वायु का
कारण ग्रह माना
जाता है। वर्षा
ऋतु में आंधी
तुफान गरज ओर
चमक के साथ
तेज बारिश होगी।
सामूद्रिक तुफान के साथ
प्राकृतिक प्रकोप भी देखने
को मिलेगा। हालांकि
इसका प्रभाव अगस्त
माह तक रहेगा।
मां दुर्गा की
नौ दिवसीय साधना
का पर्व गुप्त
नवरात्र 24 जून से
प्रारंभ हो रहा
है, जो भड़ली
नवमी 2 जुलाई तक रहेगा।
24 जून को ही
शनिचरी अमावस्या रहेगी। गुप्त
नवरात्र व शनिचरी
अमावस्या का विशेष
संयोग सुख-शांति
दिलाएगा।
कई साधक
10 महाविद्या की तंत्र
साधना के लिए
मां काली, तारा
देवी, त्रिपुर-सुंदरी,
भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता,
त्रिपुरी भैरवी, मां धूमा
वती, मां बगलामुखी,
मातंगी व कमला
देवी की पूजा
करते हैं। इस
नवरात्र में अन्य
नवरात्र की तरह
पूजा की जाती
है। नौ दिन
उपवास रखा जाता
है।
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