लेपाक्षी शिव मंदिर - ऐतिहासिक,
धार्मिक, सांस्कृतिक और पुरातत्व
महत्व .
भारत
के आंध्र प्रदेश
के अनंतपुर जिले
में लेपाक्षी एक
बहुत छोटा सा
गांव जो कि
हिन्दूपुर से 15 किलोमीटर एवं
बैंगलोर से 120 किलोमीटर की
दूरी पर अपने
ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और
पुरातत्व महत्व के लिए
जाना जाता है
। भगवान षिव,
विष्णु और वीरभद्र
के पूजन के
लिए सन् (1336-1646) में
बनाया गया था
। एक कछुआ
आकार की पहाड़ी
पर मंदिर परिसर
के पास एक
बड़े ग्रेनाइट है
नंदी बैल जो
कि एक पहाड़ी
कूर्म सैला के
रूप में जाना
जाता है ।
शिव
के बैल नंदी
मंदिर से लगभग
200 मीटर लेपाक्षी की मुख्य
सड़क पर एक
ग्रेनाइट अखंड मूर्ति
है। यह 4.5 मीटर
से अधिक है
और 8.23 मीटर लम्बी
सबसे बड़ा नंदी
की मूर्ति है
। यहां शिवलिंग
जो मंदिर के
अंदर एक बड़ा
सांप द्वारा परिरक्षित
है । वास्तुकला
की विशिष्ट शैली
में निर्मित, मंदिर
भगवान, देवी, नर्तकों और
संगीतकारों के कई
अति सुंदर मूर्तियां,
और सभी दीवारों,
स्तंभों पर चित्रों
के सैकड़ों और
महाभारत, रामायण के महाकाव्यों
से छत का
चित्रण कहानियों, और सुविधाओं
पुराणों को दरशता
है ।
वीरभद्र
मंदिर अपने आश्चर्य
के लिए प्रसिद्ध
है। 70 पत्थर के खम्भों
के अलावा, वहाँ
एक है कि
छत से लटका
हुआ है। स्तंभ
के आधार मुश्किल
से जमीन को
छू लेती है
और इस तरह
के कागज की
एक पतली शीट
या अन्य करने
के लिए एक
तरफ से कपड़े
का एक टुकड़ा
के रूप में
वस्तुओं पारित करने के
लिए संभव है।
गांव लेपाक्षी महान
भारतीय महाकाव्य रामायण में
एक महत्वपूर्ण स्थान
रखती है।
किंवदंती
है कि पक्षी
जटायु, लंका, रावण के
राजा से घायल
हो गए, जो
दूर सीता, राम
की पत्नी, अयोध्या
के राजा ले
जा रहा था
राजा के खिलाफ
एक व्यर्थ लड़ाई
के बाद यहां
गिर गया है।
राम मौके पर
पहुंचें और पक्षी
को उठने को
कहा ।
आंध्र
प्रदेश के अनंतपुर
जिले में स्थित
लेपाक्षी मंदिर हवा में
झूलते पिलर्स के
लिए पूरी दुनिया
में प्रसिद्ध है।
इस मंदिर में
लगभग 80 से ज्यादा
पिलर्स हैं जो
बिना किसी सहारे
के खड़े है
और मंदिर को
संभाले हुए हैं।
लेपाक्षी मंदिर के ये
अनोखे पिलर यहां
आने वाले लाखों
पर्यटकों के लिए
आकर्षण का केन्द्र
हैं। यहां आने
वाले भक्तों व
पर्यटकों का मानना
है कि इन
पिलर्स के नीचे
से अपना कपड़ा
निकालने से सुख-समृद्धि मिलती है।
रावण
से सीता को
बचाते हुए यहीं
गिरे थे पक्षीराज
जटायु - इस लेपाक्षी
नाम के पीछे
एक कहानी है
कि सीता का
अपहरण कर जब
रावण उन्हें अपने
साथ लंका लेकर
जा रहा था,
तभी पक्षीराज जटायु
ने रावण से
युद्ध किया और
घायल हो कर
इसी स्थान पर
गिरे थे। उसी
दौरान भगवान श्रीराम
और लक्ष्मण सीता
माता की खोज
करते हुए यहां
आए थे, तो
श्रीराम ने तेलुगु
शब्द में जटायु
को कहा था
“ले पाक्षी”।
जिसका अर्थ है
“उठो पक्षी”।
अंग्रेजों
ने की थी
लटके पिलर्स की
मिस्ट्री जानने की कोशिश
- 16वीं सदी में
बने इस मंदिर
के रहस्य को
जानने के लिए
अंग्रेजों में इसे
शिफ्ट करने की
कोशिश की, लेकिन
वे नाकाम रहे।
जब एक अंग्रेज
इंजीनियर ने इसके
रहस्य को जानने
के लिए मंदिर
को तोड़ने का
प्रयास किया तब
यह पता चला
की इस मंदिर
के सभी पिलर
हवा में झूलते
हैं। मंदिर को
सन् 1583 में विजयनगर
के राजा के
लिए काम करने
वाले दो भाईयों
’’विरुपन्ना और वीरन्ना’’
ने बनाया था।
वहीं, पौराणिक मान्यताओं
के मुताबिक इसे
ऋषि अगस्त ने
बनाया था।
इस
मंदिर में हैं
भारत की सबसे
बड़ी नाग प्रतिमा
- यह मंदिर भगवान
शिव, विष्णु और
वीरभद्र के लिए
बनाया गया है।
यहां तीनों भगवानों
के अलग-अलग
मंदिर भी मौजूद
हैं। यहां मंदिर
परिसर में एक
बड़ी नागलिंग प्रतिमा
लगी है, जो
कि एक ही
पत्थर से बनी
है। यह भारत
की सबसे बड़ी
नागलिंग प्रतिमा मानी जाती
है। काले ग्रेनाइट
पत्थर से बनी
इस मूर्ति में
एक शिवलिंग के
ऊपर सात फन
वाला नाग बैठा
है। दूसरी ओर
मंदिर में रामपदम
“एक मान्यता के
मुताबिक श्रीराम के पांव
के निशान” स्थित
हैं।
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