मां पूर्णागिरि देवी -2016
मां पूर्णागिरि देवी धाम एक देवी शक्तिपीठ होने के कारण सर्वोपरि महत्व रखता है। पूर्णागिरि धाम देवभूमि उत्तराखंड में स्थित अनेकों देवस्थलों में दैवीय शक्ति व आस्था का अद्भुत केंद्र है । मां पूर्णागिरि का मंदिर समुद्रतल से लगभग 3 हजार फीट ऊंची धारनुमा चट्टानी पहाड के पूर्वी छोर पर सिंहवासिनी माता पूर्णागिरि का मंदिर प्रधान पीठों में गणना की जाती है। ऊंची चोटी पर अनादि काल से स्थित माता पूर्णागिरि का मंदिर व वहां के रमणीक दृश्य तो स्वर्ग की मधुर कल्पना को ही साकार कर देते हैं। नीले आकाश को छूती शिवालिक पर्वत मालाएं, धरती में धंसी गहरी घाटियां, शारदा घाटी में मां के चरणों का प्रक्षालन करती कल-कल निनाद करती पतित पावनी सरयू, मंद गति से बहता समीर, धवल आसमान, वृक्षों की लंबी कतारें, पक्षियों का कलरव सभी कुछ अपनी ओर आकर्षित किए बिना नहीं रहते।
पर्यटन की दृष्टिकोण से टनकपुर व पूर्णागिरि का संपूर्ण क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्राचीन ब्रह्मदेव मंडी, परशुराम घाट, ब्रह्मकुंड, सिद्धनाथ समाधि, बनखंडी महादेव, ब्यान, धुरा, श्यामलाताल, भारामल, भुमियागाड, खिलपत्ति, शारदा व्यू आदि अनेक प्राचीन ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं। संगमरमरी पत्थरों से मण्डित मंदिर हमेशा लाल वस्त्रों, सुहाग सामग्री, चढावा, प्रसाद व धूप बत्ती की गंध से भरा रहता है। माता का नाभिस्थल पत्थर से ढका है जिसका निचला छोर शारदा नदी तक गया है।
देवी की मूर्ति के निकट स्थित इस स्थल पर ही भक्तगण प्रसाद चढाते व पूजा करते हैं। मंदिर में प्रवेश करते ही कई मीटर दूर से पर्वत शिखर पर यात्रियों की सुरक्षा के लिए लगाई गई लोहे के लंबे पाइपों की रेलिंग पर रंग बिरंगी पोलोथीन पन्नियों व लाल चीरों को बंधा देकर यात्रीगण विस्मित से रह जाते हैं। देवी व उनके भक्तों के बीच एक अलिखित अनुबंध की साक्षी ये रंग बिरंगी लाल-पीली चीरें आस्था की महिमा का बखान करती हैं।
मनोकामना पूरी होने पर फिर मंदिर के दर्शन व आभार प्रकट करने और चीर की गांठ खोलने आने की मान्यता भी है। चैत्र व शारदीय नवरात्रि प्रारंभ होते ही लंबे-लंबे बांसों पर लगी लाल पताकाएं हाथों में लिए सजे-धजे देवी के डोले व चिमटा, खडताल मजीरा, ढोलक बजाते लोगों की भीड से भरी मिनी रथ-यात्राएं देखते ही बनती हैं।
टनकपुर से टुण्यास व मंदिर तक रास्ते भर सौर ऊर्जा से जगमगाती ट्यूबलाइटें, सजी-धजी दुकानें, स्टीरियो पर गूंजते भक्तिगीत, मार्ग में देवी देवताओं की प्रतिमाएं, देवी के छंद गाती गुजरती स्त्रियों के समूह सभी कुछ जंगल में मंगल सा अनोखा दृश्य उपस्थित करते हैं। रात हो या दिन चैबीस घंटे मंदिर में लंबी कतारें लगी रहती हैं। मस्तक पर लाल चूनर बांध या कलाई में लपेटे भूख प्यास की चिंता किए बिना जोर-जोर से जयकारे लगाते लोगों की श्रद्धा व आध्यात्मिक अनुशासन की अद्भुत मिसाल यहां बस देखते ही बनती है।
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