Skip to main content

पशुपतिनाथ मंदिर (अष्टमुखी शिवलिंग) मंदसौर


पशुपतिनाथ मंदिर  (अष्टमुखी शिवलिंग) मंदसौर 




पशुपतिनाथ मंदिर  सम्पूर्ण विश्व का एकमात्र अष्टमुखी भगवान शिव की प्रतिमा वाला मंदिर शिवना नदी के तट पर स्थित है। चारों दिशाओं में मंदिर के दरवाजे हैं, प्रवेश द्वार केवल पश्चिम दिशा में ही खुलता है। मंदिर में 7.5 फीट ऊंचा शिवलिंग स्थापित है। प्रतिमा के ऊपर के चार मुख शिव के बाल्यकाल, युवावस्था, अधेडवस्था, वृधावस्था को प्रदर्शित करते है! भगवान शिव के दर्शन के लिए दूर-दूर से यहां भक्तों का आना-जाना लगा रहता है। हर साल श्रावण मास में मंदिर परिसर में मनोकामना अभिषेक होता है


जो सम्पूर्ण भारत के किसी भी शिव मंदिर में नहीं होता है यह मंदिर मंदसौर जिले का प्रमुख आकर्षण है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, पशुपतिनाथ के मंदिर कई सदियों पहले निर्माण किया गया था। इस मंदिर के दो प्रमुख आकर्षण रहे हैं।  शिवना नदी पर निर्मित मंदिर 90 फुट ऊंचा, 101 फुट लंबा और 30 फुट चैड़ा और इसके  शीर्ष पर रखा 100 किलो का एक सुनहरा कलश है जिसकी आभा देखते ही बनती है हर सोमवार को श्रद्धालुओं शिवलिंग को जलाभिषेक के  लिए यहां इकट्ठा होते हैं। इसके अलावा, महाशिवरात्रि के त्योहार के दौरान, देश भर से आगंतुकों या भक्तों दर्शन और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यहां इकट्ठा होते हैं। 


अष्ट मुखी शिवलिंग
संसार में शिव जी के अनेकों शिवलिंग लेकिन अष्ट मुखी शिवलिंग एक ही है! यह शिव के आठों मुख भगवान शिव के अष्ट तत्त्व को दर्शाते हैं! या यूँ कहें की यह नाम भगवान शिव के अष्ट मुखों के हैं!
इन मुखुं के नाम इस प्रकार है - 1. शर्व, 2. भव, 3. रूद्र, 4 . उग्र, 5.  भीम, 6.  पशुपति,   7 . ईशान और 8. महादेव 
शर्व ख्शार्वी, - पृथ्वीमयी , 2  भावी -   जलमयी , 3  रौद्री - तेजोमयी ,4  औग्री - वायुमयी , 5  भैमीआकाशमयी ,6  पशुपतिक्षेत्रज्ञरूपा, 7  ईशानसूर्यरूपिणी, 8  महादेव -- चंद्रमयी


पहली बार दर्शन संयोग ही है कि 1940 के जून की 10 तारीख को सोमवार था। इसी दिन घाट पर कपड़े धो रहे उदाजी पिता कालृ फगवार (धोबी) को प्रतिमा के पहली बार दर्शन हुए। उन्होंने किले की दक्षिण-पूर्व दिशा में चिमन चिश्ती की दरगाह के समक्ष रेती में दबी अष्टमुखी प्रतिमा देखी थी। चैतन्यदेव आश्रम मेनपुरिया के अधिष्ठाता स्वामी प्रत्यक्षानंदजी महाराज ने पंचकुडात्मक महायज्ञ के साथ 27 नंवबर 1961 को प्रतिमा का नामकरण किया और पशुपतिनाथ नाम दिया।


ऐसी मान्यता है कि विश्व में केवल मंदसौर में ही एक मात्र अष्टमुखी शिवलिंग हैं। यूं तो मंदसौर अति प्राचीन दशपुर नगरी है, लेकिन भूतभावन के नगर में प्रकट होने के बाद यह स्थल विश्व प्रसिद्ध हो गया। मां शिवना की गोद में भगवान पशुपतिनाथ कब समाए और किस काल में प्रतिमा निर्माण हुआ यह आज भी इतिहास के गर्भ में है। जब से शिवना तट पर अष्टमुखी भगवान की प्रतिमा विराजित हुई तब से यह स्थान धार्मिक स्थल के रूप में पहचाने जाने लगा है। राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा  पर बसे मंदसौर  के पशुपतिनाथ मंदिर में विराजमान भगवान शिव की चार हजार साल पुरानी प्रतिमा को पर्यटन के नक्शे पर लाने के लिए मध्यप्रदेश में प्रशासनिक पहल हुई है



मंदसौर शहर में अच्छी तरह से सड़कों से राज्य के अन्य सभी पड़ोसी शहरों या कस्बों के साथ जुड़ा हुआ है। इसलिए, आगंतुकों या भक्तों को आसानी से पशुपतिनाथ मंदिर में पहुँचने के लिए सड़क-परिवहन प्राप्त कर सकते हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन देश के सभी अन्य भागों के लिए शहर से जोड़ता है कि मंदसौर रेलवे स्टेशन है। इसलिए रेलवे स्टेशन आगंतुकों या तीर्थयात्रियों से रेलवे स्टेशन से केवल 3 किमी दूर स्थित है जो पशुपतिनाथ मंदिर में पहुँचने के लिए बस, टैक्सी और कैब रख सकता है।


मंदसौर शहर के सबसे नजदीक हवाई अड्डों में केवल 148 किमी, इंदौर हवाई अड्डा है फिर आप बस, कार, टैक्सी या केब से यहंा पहुंच सकते हैं मंदसौर भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है। मंद्सौर का प्राचिन नाम दशपुर था ! पुरातात्विक और ऐतिहासिक विरासत को संजोए उत्तरी मध्य प्रदेश  का मंदसौर एक ऐतिहासिक  जिला है।





               
  
  


Comments

Popular posts from this blog

हस्तमुद्रा - औषधीय एवं आध्यात्मिक लाभ

हस्तमुद्रा - औषधीय एवं आध्यात्मिक लाभ योग अनुसार आसन और प्राणायाम की स्थिति को मुद्रा कहा जाता है। बंध , क्रिया और मुद्रा में आसन और प्राणायाम दोनों का ही कार्य होता है। योग में मुद्राओं को आसन और प्राणायाम से भी बढ़कर माना जाता है। आसन से शरीर की हड्डियाँ लचीली और मजबूत होती है जबकि मुद्राओं से शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास होता है। मुद्राओं का संबंध शरीर के खुद काम करने वाले अंगों और स्नायुओं से है। मुद्राओं की संख्या को लेकर काफी मतभेद पाए जाते हैं। मुद्रा और दूसरे योगासनों के बारे में बताने वाला सबसे पुराना ग्रंथ घेरण्ड संहिता है। हठयोग पर आधारित इस ग्रंथ को महर्षि घेरण्ड ने लिखा था। घेरंड में 25 और हठयोग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं का उल्लेख मिलता है , लेकिन सभी योग के ग्रंथों की मुद्राओं को मिलाकर कुल 50 से 60 हस्त मुद्राएँ हैं। मानव - सरीर अनन्त रहस्यों से भरा हुआ है । शरीर की अपनी एक मुद्रामयी भाषा है । जिसे करने स

Elephant Pearl ( Gaj Mani)

हाथी मोती ( गज मणि ) गज मणि हल्के हरे - भूरे रंग के , अंडाकार आकार का मोती , जिसकी जादुई और औषधीय  शक्ति    सर्वमान्य   है । यह हाथी मोती   एक लाख हाथियों में से एक में पाये जाने वाला मोती का एक रूप है। मोती अत्यंत दुर्लभ है और इसलिए महंगा भी है जिस किसी के पास यह होता है वह बहुत भाग्यषाली होता है इसे एक अनमोल खजाने की तरह माना गया है । इसके अलौकिक होने के प्रमाण हेतु अगर इसे साफ पानी में रखा जाए तो पानी दूधिया हो जाता है । इसी तरह अगर स्टेथोस्कोप से जांचने पर उसके दिन की धड़कन सुनी जा सकती है । अगर इसे हाथ में रखा जाता है तो थोड़ा कंपन महसूह किया जा सकता है ।   अगर गज मणि को आप नारयिल पानी में रखत हैं तो बुलबुले पैदा होने लगते हैं और पानी की मात्रा भी कम हो जाती है । चिकित्सकीय लाभ में जोड़ों के दर्द , बच्चे न पैदा होने की असमर्थता के इलाज और तनाव से राहत के

Shri Sithirman Ganesh - Ujjain

श्री स्थिरमन गणेश - उज्जैन श्री स्थिरमन गणेश   एक अति प्राचीन गणपति मंदिर जो कि उज्जैन में स्थित है । इस मंदिर एवं गणपति की विशेषता यह है कि   वे न तो दूर्वा और न ही मोदक और लडडू से प्रसन्न होते हैं उनको गुड़   की एक डली से प्रसन्न किया जाता है । गुड़ के साथ नारियल अर्पित करने से गणपति प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की झोली भर   देते हैं , हर लेते हैं भक्तों का हर दुःख और साथ ही मिलती है मन को बहुत शान्ति । इस मंदिर में सुबह गणेश जी का सिंदूरी श्रंृगार कर चांदी के वक्र से सजाया जाता है ।   यहां सुबह - शाम आरती होती है जिसमें शंखों एवं घंटों की ध्वनि मन को शांत कर   देती है । इतिहास में वर्णन मिलता है कि श्री राम जब सीता और लक्ष्मण के साथ तरपन के लिए उज्जैन आये थे तो उनका मन बहुत अस्थिर हो गया तथा माता सीता ने श्रीस्थिर गणेश की स्थापन कर पूजा की तब श्री राम का मन स्थिर हुआ । कहा जाता है कि राजा व