आषाढ देवशयनी एकादशी
संसार के पालनहार भगवान विष्णु पाताल लोक में राजा बलि के घर विश्राम करने के लिए चले जाएंगे। आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि को देवशयनी या हरिशयनी के नाम से जाना जाता है। श्री हरिविष्णु आज चार माह के लिए शयन कर जाएंगे। इस दौरान मांगलिक कार्य नहीं होंगे। वैवाहिक कार्यक्रम भी नहीं होंगे। इस दौरान मंदिरों में धार्मिक कार्यक्रम होंगे। आषढ मास के शुक्लपक्ष में देवशयनी एकादशी जो सब पापों को हरनेवाली तथा उत्तम व्रत है।
एकादशी की रात में जागरण करके शंख, चक्र, गदा धारण करनेवाले भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। ऐसा करनेवाले पुरुष के पुन्य की गणना करने में चतुर्मुख ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं। राजन ! जो इस प्रकार भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले सर्वपापहारी एकादशी के उत्तम व्रत का पालन करता है, वह जाति का चंडाल होने पर भी संसार में सदा मेरा प्रिय करनेवाला है।
जो मनुष्य दीपदान, पलाश के पत्ते पर भोजन और व्रत करते हुए चैमासा व्यतीत करते हैं, वे मेरे प्रिय हैं। चैमासे में भगवान विष्णु सोये रहते हैं, इसलिए मनुष्य को भूमि पर शयन करना चाहिए। सावन में साग, भादों में दही, क्वार में दूध और कार्तिक में दाल का त्याग कर देना चाहिए। जो चैमासे में ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है। राजन !
एकादशी के व्रत से ही मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है, अतरू सदा इसका व्रत करना चाहिए। कभी भूलना नहीं चाहिए। शास्त्रों में बताया गया है कि परनिंदा, झूठ, ठगी, छल ऐसे पाप हैं जिनके कारण व्यक्ति को नर्क में जाना पड़ता है। इस एकादशी के व्रत से इन पापों के प्रभाव में कमी आती है और व्यक्ति नर्क की यातना भोगने से बच जाता है।
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चैबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। आषाढ शुक्ल एकादशी को देव-शयन हो जाने के बाद से प्रारम्भ हुए चातुर्मास का समापन तक शुक्ल एकादशी के दिन देवोत्थान-उत्सव होने पर होता है। इस दिन वैष्णव ही नहीं, स्मार्त श्रद्धालु भी बडी आस्था के साथ व्रत करते हैं।
इसके साथ ही चतुर्मास की शुरुआत होगी और आगामी चार माह तक मांगलिक कार्यक्रम में विराम लग जाएगा। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक शास्त्रगत मान्यताओं के आधार पर इस दौरान देवी-देवता, क्षीर सागर में विश्राम करेंगे और इसी वजह से चार माह तक मांगलिक कार्यक्रम नहीं होगे। देवशयनी से लेकर दवेउठनी एकादशी के दौरान समस्त मांगलिक कार्यक्रम निषेध होंगे। देवउठनी एकादशी में तुलसी विवाह के साथ ही देवी-देवता क्षीर सागर में विश्राम कर लौटेंगे।
ब्रहमांड पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति एकादशी के दिन उपवास रखकर श्रीहरि का पूजन करता है, जो संयम-नियम से रहता है, वह भगवान का प्रिय पात्र बन जाता है। आज के व्यस्त जीवन में उपवास और संयम-नियम का अधिक महत्व है। क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार, उपवास शरीर और मन को स्वस्थ रखने में सकारात्मक भूमिका निभाता है। आज की जीवन-शैली में संयम-नियम से न रहने के कारण ही तमाम प्रकार की व्याधियों का सामना हमें करना पड़ता है। देवशयनी एकादशी हमें उपवास, संयम-नियम, आत्मचिंतन, मनन व स्वाध्याय का अवसर प्रदान करती है। ऐसा करने से हम शरीर के साथ-साथ अपने अंतरूकरण को भी विशुद्ध कर लेते हैं।
Comments
Post a Comment