.गुरू
पूर्णिमा - 31 जुलाई 2015
भारत
भर में गुरु
पूर्णिमा पर्व बड़ी
श्रद्धा व धूमधाम
से मनाया जाता
है। प्राचीन काल
में जब विद्यार्थी
गुरु के आश्रम
में निःशुल्क शिक्षा
ग्रहण करता था,
तो इसी दिन
श्रद्धा भाव से
प्रेरित होकर अपने
गुरु का पूजन
करके उन्हें अपनी
शक्ति, अपने सामर्थ्यानुसार
दक्षिणा देकर कृतकृत्य
होता था। हमें
वेदों का ज्ञान
देने वाले व्यासजी
ही हैं, अतः
वे हमारे आदिगुरु
हुए। इसीलिए इस
दिन को व्यास
पूर्णिमा भी कहा
जाता है। उनकी
स्मृति हमारे मन मंदिर
में हमेशा ताजा
बनाए रखने के
लिए हमें इस
दिन अपने गुरुओं
को व्यासजी का
अंश मानकर उनकी
पाद-पूजा करनी
चाहिए तथा अपने
उज्ज्वल भविष्य के लिए
गुरु का आशीर्वाद
जरूर ग्रहण करना
चाहिए। साथ ही
केवल अपने गुरु-शिक्षक का ही
नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि
की भी पूजा
का विधान है।
गुरू
पूर्णिमा आषाढ़ मास
की पूर्णिमा को
गुरू पूर्णिमा कहते
हैं , इस दिन
गुरू पूजा का
विधान है ।
पूरे देश में
यह पर्व बड़ी
श्रद्धा व धूमधाम
से मनाया जाता
है । इस दिन
महाभारत ग्रंथ के रचयिता
महर्षि वेदव्यास जी का
जन्मदिन भी है
। व्यास जी
ने चारों वेदों
की रचना की
थी इस कारण
उनका नाम वेद
व्यास पड़ा , उन्हें
आदि गुरू भी
कहा जाता है
। उनके सम्मान
में गुरू पूर्णिमा
को व्यास पूर्णिमा
नाम से भी
जाना जाता
है । शास्त्रों
में गुरू शब्द
की व्याख्या इस
तरह है ‘‘गु’’
का अर्थ है
अंधकार या मूल
अज्ञान और ‘‘ रू’’ का
अर्थ - उसका निरोधक
। अंधकार को
हटाकर प्रकाश की
ओर ले जाने
वाले को ‘गुरू’
कहा जाता है
। इस दिन
अपने गुरूओं को
व्यासजी का अंश
मानकर उनकी पाद-पूजा करनी
चाहिए तथा अपने
उज्ज्वल भविष्य के लिए
गुरू का आर्शीवाद जरूर
ग्रहण करना चाहिए
। साथ ही
केवल अपने गुरू-शिक्षक का ही
नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि
की भी पूजा
का विधान है
।
गुरु पूर्णिमा
पर यह भी
है खास - गुरु
पूर्णिमा पर व्यासजी
द्वारा रचे हुए
ग्रंथों का अध्ययन-मनन करके
उनके उपदेशों पर
आचरण करना चाहिए। यह
पर्व श्रद्धा से
मनाना चाहिए, अंधविश्वास
के आधार पर
नहीं। इस
दिन वस्त्र, फल,
फूल व माला
अर्पण कर गुरु
को प्रसन्न कर
उनका आशीर्वाद प्राप्त
करना चाहिए। गुरु का
आशीर्वाद सभी-छोटे-बड़े तथा
हर विद्यार्थी के
लिए कल्याणकारी तथा
ज्ञानवर्द्धक होता है। इस
दिन केवल गुरु
(शिक्षक) ही नहीं,
अपितु माता-पिता,
बड़े भाई-बहन
आदि की भी
पूजा का विधान
है। गुरू हमारे
जीवन को सही
राह पर ले
जाते हैं. गुरु
के बिना यह
जीवन बहुत अधूरा
है. यूं तो
हम इस समाज
का हिस्सा हैं
ही लेकिन हमें
इस समाज के
लायक बनाता है
गुरु. शिक्षक दिवस
के रूप में
हम अपने शिक्षक
को तो एक
दिन देते हैं
लेकिन गुरु जो
ना सिर्फ शिक्षक
होता है बल्कि
हमें जीवन के
हर मोड़ पर
राह दिखाने वाला
शख्स होता है
उसको समर्पित है
आज का दिन
गुरु पूर्णिमा ।
गुरु के प्रति
नतमस्तक होकर कृतज्ञता
व्यक्त करने का
दिन है गुरुपूर्णिमा.
गुरु के लिए
पूर्णिमा से बढ़कर
और कोई तिथि
नहीं हो सकती.
जो स्वयं में
पूर्ण है, वही
तो पूर्णत्व की
प्राप्ति दूसरों को करा
सकता है. पूर्णिमा
के चंद्रमा की
भांति जिसके जीवन
में केवल प्रकाश
है, वही तो
अपने शिष्यों के
अंतरूकरण में ज्ञान
रूपी चंद्र की
किरणें बिखेर सकता है.
इस दिन हमें
अपने गुरुजनों के
चरणों में अपनी
समस्त श्रद्धा अर्पित
कर अपनी कृतज्ञता
ज्ञापित करनी चाहिए.
यह पूर्णिमा व्यास
पूर्णिमाभी कहलाती है. गुरु
कृपा असंभव को
संभव बनाती है.
गुरु कृपा
शिष्य के हृदय
में अगाध ज्ञान
का संचार करती
है ।
गुरु
का दर्जा भगवान
के बराबर माना
जाता है क्योंकि
गुरु, व्यक्ति और
सर्वशक्तिमान के बीच
एक कड़ी का
काम करता है
और आत्मबल को
जगाने का काम
गुरु ही करता
है. गुरु अपने
आत्मबल द्वारा शिष्य में
ऐसी प्रेरणाएं भरता
है, जिससे कि
वह अच्छे मार्ग
पर चल सके.
साधना मार्ग के
अवरोधों एवं विघ्नों
के निवारण में
गुरु का असाधारण
योगदान है. गुरु
शिष्य को अंतरू
शक्ति से ही
परिचित नहीं कराता,
बल्कि उसे जागृत
एवं विकसित करने
के हर संभव
उपाय भी बताता
है ।
आप
कितने ही कर्म
करो, कितनी ही
उपासनाएँ करो, कितने
ही व्रत और
अनुष्ठान करो, कितना
ही धन इकट्ठा
कर लो और
कितना ही दुनिया
का राज्य भोग
लो लेकिन जब
तक सदगुरु के
दिल का राज्य
तुम्हारे दिल तक
नहीं पहुँचता, सदगुरुओं
के दिल के
खजाने तुम्हारे दिल
तक नही उँडेले
जाते, जब तक
तुम्हारा दिल सदगुरुओं
के दिल को
झेलने के काबिल
नहीं बनता, तब
तक सब कर्म,
उपासनाएँ, पूजाएँ अधुरी रह
जाती हैं ।
देवी-देवताओं की
पूजा के बाद
भी कोई पूजा
शेष रह जाती
है किंतु सदगुरु
की पूजा के
बाद कोई पूजा
नहीं बचती ।
एक सदगुरु अंतःकरण
के अंधकार को
दूर करते हैं
।
आत्मज्ञान के
युक्तियाँ बताते हैं गुरु
प्रत्येक शिष्य के अंतःकरण
में निवास करते
हैं। वे जगमगाती
ज्योति के समान
हैं जो शिष्य
की बुझी हुई
हृदय-ज्योति को
प्रकटाते हैं ।
गुरुमेघ की तरह
ज्ञानवर्षा करके शिष्य
को ज्ञानवृष्टि में
नहलाते रहते हैं
। गुरु ऐसे
वैद्य हैं जो
भवरोग को दूर
करते हैं। गुरु
वे माली हैं
जो जीवनरूपी वाटिका
को सुरभित करते
हैं । गुरु
अभेद का रहस्य
बताकर भेद में
अभेद का दर्शन
करने की कला
बताते हैं। इस
दुःखरुप संसार में गुरुकृपा
ही एक ऐसा
अमूल्य खजाना है जो
मनुष्य को आवागमन
के कालचक्र से
मुक्ति दिलाता है ।
गुरू
पूर्णिमा के दिन
क्या करें - प्रातः
घर की सफाई,
स्नानादि नित्य कर्म से
निवृत होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण
करें तथा घर
के किसी पवित्र
स्थान पर पटिए
पर सफेद वस्त्र
बिछाकर उस पर
12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ
बनाएं, फिर हमें
‘‘ गुरूपरंपरसिद्धयर्थं व्यासपूंजा करिष्यें’ मंत्र
से पूजा का
संकल्प लेना चाहिए
इसके बाद दसों
दिशाओं में अक्षत
छोड़ना चाहिए ं
फिर व्यासजी, ब्रहमा
जी, शुक्रदेव जी,
गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यी
के नाम, मंत्र
से पूजा का
आवाहन करना चाहिए
। इसके बाद
गुरू अथवा उनके
चित्र की पूजा
करके उन्हें यथा
योग्य दक्षिणा देना
चाहिए ।
ज्योतिष
शास्त्र के अनुसार
भी गुरुपूर्णिमा का
विशेष महत्व है।
जिन लोगों की
कुंडली में गुरु
प्रतिकूल स्थान पर होता
है, उनके जीवन
में कई उतार-चढ़ाव आते
है। वे लोग
यदि गुरु पूर्णिमा
के दिन नीचे
लिखे उपाय करें
तो उन्हें इससे
काफी लाभ होता
है। यह उपाय
इस प्रकार हैं-
भोजन में केसर
का प्रयोग करें
और स्नान के
बाद नाभि तथा
मस्तक पर केसर
का तिलक लगाएं।
साधु, ब्राह्मण एवं
पीपल के वृक्ष
की पूजा करें।
गुरु
पूर्णिमा के दिन
स्नान के जल
में नागरमोथा नामक
वनस्पति डालकर स्नान करें।
पीले रंग के
फूलों के पौधे
अपने घर में
लगाएं और पीला
रंग उपहार में
दें। केले के
दो पौधे विष्णु
भगवान के मंदिर
में लगाएं। गुरु पूर्णिमा
के दिन साबूत
मूंग मंदिर में
दान करें और
12 वर्ष से छोटी
कन्याओं के चरण
स्पर्श करके उनसे
आशीर्वाद लें। शुभ
मुहूर्त में चांदी
का बर्तन अपने
घर की भूमि
में दबाएं और
साधु संतों का
अपमान नहीं करें। जिस
पलंग पर आप
सोते हैं, उसके
चारों कोनों में
सोने की कील
अथवा सोने का
तार लगाएं ।
सदगुरु जिसे मिल
जाय सो ही
धन्य है जन
मन्य है।
सुरसिद्ध उसको पूजते
ता सम न
कोऊ अन्य है॥
अधिकारी हो गुरुदेव
से उपदेश जो
नर पाय है।
भोला तरे
संसार से नहीं
गर्भ में फिर
आय है॥
गुरु ब्रह्मा,
गुरु विष्णु गुरु
देवो महेश्वर, गुरु
साक्षात् परमं ब्रह्मा
तस्मै श्री गुरुवे
नमः
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