कुंभ
मेला - हिंदू धर्म का
एक महत्वपूर्ण पर्व
कुंभ
पर्व हिंदू धर्म
का एक महत्वपूर्ण
पर्व है, जिसमें
करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व
स्थल- हरिद्वार, प्रयाग,
उज्जैन और नासिक-
में स्नान करते
हैं। इनमें से
प्रत्येक स्थान पर प्रति
बारहवें वर्ष इस
पर्व का आयोजन
होता है। हरिद्वार
और प्रयाग में
दो कुंभ पर्वों
के बीच छह
वर्ष के अंतराल
में अर्धकुंभ भी
होता है। कुंभ मेला
मकर संक्रांति के
दिन प्रारम्भ होता
है, जब सूर्य
और चन्द्रमा, वृश्चिक
राशी में और
वृहस्पति, मेष राशी
में प्रवेश करते
हैं। मकर संक्रांति
के होने वाले
इस योग को
कुम्भ स्नान-योग
कहते हैं और
इस दिन को
विशेष मंगलिक माना
जाता है, क्योंकि
यह माना जाता
है कि इस
दिन पृथ्वी से
उच्च लोकों के
द्वार इस दिन
खुलते हैं और
इस प्रकार इस
दिन स्नान करने
से आत्मा को
उच्च लोकों की
प्राप्ति सहजता से हो
जाती है।
पौराणिक
कथा- देव-दानवों
द्वारा समुद्र मंथन से
प्राप्त अमृत कुंभ
से अमृत बूँदें
गिरने को लेकर
कथा के अनुसार
महर्षि दुर्वासा के शाप
के कारण जब
इंद्र और अन्य
देवता कमजोर हो
गए तो दैत्यों
ने देवताओं पर
आक्रमण कर उन्हें
परास्त कर दिया।
तब सब देवता
मिलकर भगवान विष्णु
के पास गए
और उन्हे सारा
वृतान्त सुनाया। तब भगवान
विष्णु ने उन्हे
दैत्यों के साथ
मिलकर क्षीरसागर का
मंथन करके अमृत
निकालने की सलाह
दी। भगवान विष्णु
के ऐसा कहने
पर संपूर्ण देवता
दैत्यों के साथ
संधि करके अमृत
निकालने के यत्न
में लग गए।
अमृत कुंभ के
निकलते ही देवताओं
के इशारे से
इंद्रपुत्र जयंत अमृत-कलश को
लेकर आकाश में
उड़ गया। उसके
बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य
के आदेशानुसार दैत्यों
ने अमृत को
वापस लेने के
लिए जयंत का
पीछा किया और
घोर परिश्रम के
बाद उन्होंने बीच
रास्ते में ही
जयंत को पकड़ा।
तत्पश्चात अमृत कलश
पर अधिकार जमाने
के लिए देव-दानवों में बारह
दिन तक अविराम
युद्ध होता रहा।
इस परस्पर मारकाट
के दौरान पृथ्वी
के चार स्थानों
(प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक)
पर कलश से
अमृत बूँदें गिरी
थीं। उस समय
चंद्रमा ने घट
से प्रस्रवण होने
से, सूर्य ने
घट फूटने से,
गुरु ने दैत्यों
के अपहरण से
एवं शनि ने
देवेन्द्र के भय
से घट की
रक्षा की। कलह
शांत करने के
लिए भगवान ने
मोहिनी रूप धारण
कर यथाधिकार सबको
अमृत बाँटकर पिला
दिया। इस प्रकार
देव-दानव युद्ध
का अंत किया
गया। अमृत प्राप्ति
के लिए देव-दानवों में परस्पर
बारह दिन तक
निरंतर युद्ध हुआ था।
देवताओं के बारह
दिन मनुष्यों के
बारह वर्ष के
तुल्य होते हैं।
अतएव कुंभ भी
बारह होते हैं।
उनमें से चार
कुंभ पृथ्वी पर
होते हैं और
शेष आठ कुंभ
देवलोक में होते
हैं, जिन्हें देवगण
ही प्राप्त कर
सकते हैं, मनुष्यों
की वहाँ पहुँच
नहीं है। जिस
समय में चंद्रादिकों
ने कलश की
रक्षा की थी,
उस समय की
वर्तमान राशियों पर रक्षा
करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब
आते हैं, उस
समय कुंभ का
योग होता है
अर्थात जिस वर्ष,
जिस राशि पर
सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति
का संयोग होता
है, उसी वर्ष,
उसी राशि के
योग में, जहाँ-जहाँ अमृत
बूँद गिरी थी,
वहाँ-वहाँ कुंभ
पर्व होता है।
हिन्दू धर्म में
कुम्भ का पर्व
हर 12 वर्ष के
अंतराल पर चारों
में से किसी
एक पवित्र नदी
के तट पर
मनाया जाता हैः
हरिद्वार में गंगा,
उज्जैन में शिप्रा,
नासिक में गोदावरी
और इलाहाबाद में
संगम जहां गंगा,
यमुना और सरस्वती
मिलती हैं ।
नासिक
का कुम्भ पर्व
- भारत में 12 में से
एक जोतिर्लिंग त्र्यम्बकेश्वर
नामक पवित्र शहर
में स्थित है.
यह स्थान नासिक
से 38 किलोमीटर की
दूरी पर स्थित
है और गोदावरी
नदी का उद्गम
भी यहीं से
हुआ. 12 वर्षों में एक
बार सिंहस्थ कुम्भ
मेला नासिक एवं
त्रयम्बकेश्वर में आयोजित
होता है ।
ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार
नासिक उन चार
स्थानों में से
एक है, जहां
अमृत कलश से
अमृत की कुछ
बूंदें गिरी थीं.
कुम्भ मेले में
सैंकड़ों श्रद्धालु गोदावरी के
पावन जल में
नहा कर अपनी
आत्मा की शुद्धि
एवं मोक्ष के
लिए प्रार्थना करते
हैं. यहां पर
शिवरात्रि का त्यौहार
भी बहुत धूम
धाम से मनाया
जाता है ।
उज्जैन
का कुम्भ पर्व
- उज्जैन का अर्थ
है विजय की
नगरी और यह
मध्य प्रदेश की
पश्चिमी सीमा पर
स्थित है. इंदौर
से इसकी दूरी
लगभग 55 किलोमीटर है. यह
शिप्रा नदी के
तट पर बसा
है. उज्जैन भारत
के पवित्र एवं
धार्मिक स्थलों में से
एक है. ज्योतिष
शास्त्र के अनुसार
शून्य अंश (डिग्री)
उज्जैन से शुरू
होता है. महाभारत
के अरण्य पर्व
के अनुसार उज्जैन
7 पवित्र मोक्ष पुरी या
सप्त पुरी में
से एक है
।
इलाहाबाद
का कुम्भ पर्व
- ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार
जब बृहस्पति कुम्भ
राशि में और
सूर्य मेष राशि
में प्रवेश करता
है, तब कुम्भ
मेले का आयोजन
किया जाता है.
प्रयाग का कुम्भ
मेला सभी मेलों
में सर्वाधिक महत्व
रखता है ।
हरिद्वार
के कुम्भ पर्व
- हरिद्वार हिमालय पर्वत श्रृंखला
के शिवालिक पर्वत
के नीचे स्थित
है. प्राचीन ग्रंथों
में हरिद्वार को
तपोवन, मायापुरी, गंगाद्वार और
मोक्षद्वार आदि नामों
से भी जाना
जाता है. हरिद्वार
की धार्मिक महत्तान
विशाल है. यह
हिन्दुओं के लिए
एक प्रमुख तीर्थस्थान
है. मेले की
तिथि की गणना
करने के लिए
सूर्य, चन्द्र और बृहस्पति
की स्थिति की
आवश्यकता होती है.
हरिद्वार का सम्बन्ध
मेष राशि से
है ।
.दिनांक
14 जुलाई से नासिक
कुंभ की शुरूआत
हुई है जो
कि ढाई महीने
तक चलेगा। नासिक
में स्थानीय निकाय
ने 315 एकड़ से
अधिक बड़े स्थान
पर साधुओं के
रहने के लिए
साधू ग्राम तैयार
किया है। इस
साधू ग्राम में
सैकड़ों तंबू लगाए
गए हैं और
शौचालयों, 24 घंटे पेयजल,
एलपीजी सिलिंडरों और बिजली
की व्यवस्था की
गई है। इस
कुंभ मेला का
पहला शाही स्नान
नासिक-त्रयम्बकेश्वर में
में 29 अगस्त को होगा।
उसके बाद शाही
स्नान नासिक में
13 सितंबर और 18 सितंबर को
होगा जबकि त्रयम्बकेश्वर
में 13 सितंबर और 25 सितंबर
को होगा।
नासिक
कुंभ मेले तिथियां
-
कुंभ
मेला नासिक 14 जुलाई
से उस वर्ष
की 25 सितंबर को
नासिक में आयोजित
किया जाएगा ।
(1) 14 जुलाई
2015 (मंगलवार) राम कुण्ड
पर मुख्य समारोह
का ध्वज आरोहण
(2) 14 अगस्त
2015 (शुक्रवार) साधुग्राम
में अखाड़े के
ध्वज आरोहण
(3) 26 अगस्त
2015 (बुधवार) श्रावण सुबह - पहले स्नान
(4) 29 अगस्त
2015 (शनिवार) श्रावण पूर्णिमा - राम
कुण्ड पर पहले
शाही स्नान
(5) 13 सितंबर,
2015 (रविवार)रू भाद्रपद
अमावस्या - दूसरा शाही स्नान ध्
मुख्य
स्नान के दिन
(6) 18 सितंबर,
2015 (शुक्रवार)रू भाद्रपद
शुक्ल पंचमी - तीसरा शाही स्नान
(7) 25 सितंबर,
2015 (शुक्रवार)रू भाद्रपद
शुक्ल द्वादशी - वामन द्वादशी
स्नान
बारह
ज्योतिर्लिंग:
1. सोमनाथ
- सौराष्ट्र 2, श्री
शैल - दक्षिण भारत 3, महाकालेश्वर - उज्जैन
, 4, ओंकारेश्वर - मध्य
प्रदेश , 5, केदारेश्वर - केदारनाथ , 6, भीमशंकर - मुंबाई , 7, विश्वेश्वर - काशी , 8, त्र्यम्बकेश्वर
- नासिक,
9, वैद्यनाथेश्वर - झारखण्ड
,10, नागेश्वर - द्वारका , 11, रामेश्वर - दक्षिण
भारत, 12, घुश्मेश्वर - महाराष्ट्र
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