आभामंडल
और आपका स्वभाव
हर
व्यक्ति के पीछे
होता है आभामंडल,
आभामंडल को अंग्रेजी
में ओरा कहते
हैं। देवी या
देवताओं के पीछे
जो गोलाकार प्रकाश
दिखाई देता है
उसे ही ओरा
कहा गया है।
दरअसल ओरा किसी
व्यक्ति और वस्तु
के भीतर बसी
ऊर्जा का वह
प्रवाह है जो
प्रत्यक्ष तौर व
खुली आँखों से
कभी दिखाई नहीं
देता पर उसको
सिर्फ महसूस किया
जा सकता है
या फिर सूक्ष्मदर्शी
यंत्र से देखा
जा सकता है।
सबसे ज्यादा प्रचलित
नाम औरा, प्रभामंडल,
या ऊर्जामंडल है।
प्राणी
के शरीर से
निकलने वाली प्रज्वलित
शक्ति किरणे है
जिसकी ऊर्जा हर
व्यक्ति में रहती
है। इस प्रभामंडल
का संचालन हमारे
शरीर के 7 चक्र
करते है, और
ये चक्र हमारी
मानसिक शारीरिक, भावनात्मक इत्यादि
कई कडियो से
जुडकर औरा के
रूप मंे हमारे
वर्तमान वक्त के
दर्पण को तैयार
करते है। जिसे
देखकर और उसमें
जरूरत के अनुसार
बदलाव लाकर हम
आने वाली, या
तत्कालिक समस्याओ से निजात
पा सकते हैं।
आभामण्डल
को संचालित करने
वाले 7 चक्र इस
प्रकार हैं - 1. मूलादार चक्र-
इसका रंग लाल
है और इसका
सम्बन्ध हमारी शारीरिक अवस्था
से होता है,
इस चक्र के
ऊर्जा तत्व मे
असंतुलन , रीढ की
हड्डी मे दर्द
होना, रक्त और
कोशिकाओ पर तथा
शारीरिक प्रक्रियाओ पर गहरा
असर डालता है।
2. स्वधिष्ठान चक्र- इसका रंग
नारंगी है और
इसका सीधा संबन्ध
प्रजनन अंगो से
है, इस चक्र
के ऊर्जा असंतुलन
के कारण इंसान
के आचरण, व्यवहार
पर असर पडता
है। 3. मणिपुर चक्र- इसका
रंग पीला है
और यह बुद्धि
और शक्ति का
निर्धारण करता है,
इस चक्र मे
असंतुलन के कारण
व्यक्ति अवसाद मे चला
जाता है, दिमागी
स्थिरता नही रह
जाती। 4. अनाहत चक्र- इसका
रंग हरा है
और इसका संबन्ध
हमारी प्रभामंडल की
शक्तिशाली नलिकाओ से है,
इसके असंतुलित होने
के कारण, इसान
का भाग्य साथ
नही देता, पैसो
की कमी रहती
है, दमा, यक्ष्मा
और फेफडे से
समबन्धित बिमारीयों से सामना
करना पड सकता
है। 5. विशुद्ध चक्र -इसका
रंग हल्का नीला
है और इसका
सम्बन्ध गले से
और वाणी से
होता है, इसमे
असंतुलन के कारण
वाणी मे ओज
नही रह पाता,
आवाज ठीक नही
होती,टांसिल जैसी
बीमारियो से सामना
करना पडता है।
6. आज्ञा चक्र- गहरा नीले
रंग का ये
चक्र दोनो भौ
के बीच मे
तिलक लगाने की
जगह स्थित है,
इसका अपना सीधा
सम्बन्ध दिमाग से है,
इस चक्र को
सात्विक ऊर्जा का पट
भी मानते है,
मेरा ये मानना
है कि अगर
परेशानियाँ बहुत ज्यादा
हो तो सीधे
आज्ञा चक्र पर
ऊर्जा देने से
सभी चक्रो को
संतुलन मे लाया
जा सकता है।
7. सहस्रार चक्र- सफेद रंग
से सौ दलो
मे सजा ये
चक्र सभी चक्रो
का राजा है,
कुडलनी शक्ति जागरण मे
इस चक्र की
अहम भूमिका है,
आम जिन्दगी मे
यह चक्र कभी
भी किसी मे
सम्पूर्ण संतुलन मे मैने
नही देखा है,
वैसे ये पढने
मे आया है
कि, जिस व्यक्ति
मे यह चक्र
संतुलित हो वो
सम्पूर्ण शक्तियों का मालिक
होता है।
दिव्य
आभामण्डल में नित्य
अभिवृद्धि के लिए
हमारे धार्मिक साहित्य
वेद-पुराणों में
पूजा-पाठ, इष्ट
अराधना, अनुष्ठान, यज्ञ तथा
त्राटक योग के
अभ्यास द्वारा व्यक्ति अपने
गिरते हुए औरा
या आभामण्डल में
वृद्धि कर सकता
है। आभामण्डल में
वृद्धि का कर्म
नित्य रहना चाहिये।
प्रातः काल नित्य
15 मिनट तक ओमकार
का ध्यान या
नाद योग करने
से औरा मजबूत
होता है। धार्मिक
तीर्थ स्थल, नियमित
पूजा पाठ, इष्ट
अराधना, मंत्रोचार, योग, प्राणायाम,
कपालभाती, आसन, गायत्री
मंत्र , ओउम मंत्र
का जाप , सत्संग
आदि से सकारात्मक
ऊर्जा से आभा
मण्डल का विकास
किया जा सकता
है।
सेम्योन
कार्लिअन (रूस के
वैज्ञानिक) ने एक
ऐसी फोटोग्राफी का अविष्कार
किया जिसमंे माध्यम
से किसी की
व्यक्ति के आभा
मंडल { औरा } की फोटो
ली जाती सकती
है ऐसे दुनिया
में इलेक्ट्रोफोटोग्राफी ,,कोरोना
डिस्चार्ज फोटोग्राफी, बायो-इलेक्ट्रोग्राफी
, गैसडिस्चार्ज विसुअल , इलेक्ट्रोफोटोनिक
इमेजिंग जैसे विभिन्न
नामों से जाना
जाता है पर
लोकप्रिय नाम
कार्लिअन फोटोग्राफी है
आभामंडल
क्षीण होने के
प्रमुख कारणों में - मोबाईल,
इलेक्ट्रिक एवं इलेक्ट्रोनिक्स
साधन है ये
एक मैग्नेटिक ऊर्जा
का निर्माण कर
विकिरण पैदा करते
हैं। मोबाईल, फ्रीज,
एसी, टी.वी.,
कंप्यूटर आदि अन्य
सभी से नेगेटिव
ऊर्जा निकलती है
जो हमें नुकसान
पहुंचाती रहती है।
.इसके
साथ ही घर,
ऑंफिस, दुकान, फैक्ट्री में
भी नकारात्मक ऊर्जा
का एक कारण
वास्तु दोष भी
है। यदि भवन,
ऑंफिस, व्यवसाय स्थल वास्तु
के नियमों में
नहीं है तो
उससे भी नेगेटिव
ऊर्जाओं का प्रभाव
बना रहता है।
काम, क्रोध, मोह,
लोभ, मद, अहंकार
छः मनुष्य के
शत्रु हैं। व्यक्ति
द्वारा इन छः
कर्मों में संलग्न
होने से आभामण्डल
क्षीण या कम
होता जाता है।
हम निरंतर एक
दूसरे को भला
बुरा कहते रहते
है। एक दूसरे
को डाँटते-फटकारते
रहते है। निरंतर
अपने नकारात्मक भाव
व विचार क्रोध-आक्रोश भय चिंता,विवशता आदि-आदि
दूसरों को संप्रेषित
करते रहते है। आभामण्डल
की ऊर्जा तरंगं
टूट जाती है
तथा आभामण्डल के
कमजोर होते ही
व्यक्ति में सोचने-समझने की शक्ति
भी क्षीण हो
जाती है। एक
साधारण इंसान का औरा
या आभामण्डल 2 से
3 फीट तक माना
जाता है। आभामण्डल
का आवरण इस
माप से नीचे
जाने पर व्यक्ति
मानसिक व भौतिक
रूप से विकृत
हो जाता है
या टूटने लगता
है। इस स्थिति
में उसका आत्म
बल भी कम
हो जाता है।
व्यक्ति की यह
स्थिति जीवन में
कष्ट या दुःख
वाली कहलाती है।
आभा
मण्डल सीधा अपने
कर्मो से जु़डा
रहता है। काम-क्रोध, मोह-माया,
झूठ आदि जो
मानव स्वभाव की
प्रकृति के विपरीत
हैं, उनमें संलग्न
होने से आभा
मण्डल क्षीण हो
जाता है। एक
साधारण स्वस्थ इंसान जिसका
आभा मण्डल 2.8 से
3 मीटर तक माना
जाता है, इससे
भी नीचे जाने
लगता है आभा
मण्डल के विकास
के लिए हम
धार्मिक स्थानों पर नियमित
पूजा-पाठ, मन्त्रोच्चार,
सत्संग आदि से
सकारात्मक होते जाते
हैं एवं जीवन
में गुणात्मक परिवर्तन
आने लगता है।
वहीं गलत साहित्य,
आधुनिक तथाकथित नाच-गाने,
फास्टफूड, कल्चर से नकारात्मक
वातावरण, व नकारात्मक
विचार, विपरीत आहार से
सब सीधे आपका
आभा मण्डल का
ह्रास करते हैं
इसलिए यह घटता-बढ़ता रहता
है। अगर आप
अपना आभा मण्डल
विकसित करते हैं
तो सही समय
पर सही निर्णय
लेकर सही सलाहकार
ढूंढ लेंगे एवं
सही राय से
आप सही दिशा
में कार्य करेंगे।
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