डिप्रेशन
- प्रभाव, बचाव और
चिकित्सा
डिप्रेशन का
मतलब होता है
कुण्ठा, तनाव, आत्महत्या की
इच्छा होना। डिप्रेशन
मानसिक स्वास्थ्य के लिए
हानिकारक है, इसका
असर स्वास्थ्य पर
भी पड़ता है
और व्यक्ति के
मन में अजीब-अजीब से
ख्याल घर करने
लगते हैं। वह
चीजों से डरने
और घबराने लगता
है।
डिप्रेशन
के बहुत से
कारण हो सकते
हैं, यह कभी
भी किसी एक
कारण से नहीं
होता है बल्कि
कई कारणों से
मिलकर होता है
जैसे केमिकल,
भौतिक एवं मानसिक
। डिप्रेशन मानव
जीवन को किसी
भी प्रकार से
प्रभावित कर सकता
है। वो लोग
जो डिप्रेशन से
परेशान होते हैं
उनके पर्सनल और
प्रोफेशनल रिश्ते भी इस
बीमारी के प्रभाव
से नहीं बच
पाते हैं। डिप्रेशन
पर ध्यान देना
बहुत ही जरूरी
हो जाता है
। डिप्रेशन मानव
जीवन के हर
भाग को प्रभावित
करता है जैसे
षरीर, मूड, लाइफस्टाइल
और सोचने समझने
की शक्ति।
डिप्रेशन
- प्रभाव
डिप्रेशन
में रहते हुए
व्यक्ति की आत्महत्या
की इच्छा प्रबल
होने लगती है, व्यक्ति
के मन में
हीनभावना होना, कुण्ठा पनपना,
अपने को दूसरों
से कम आंकना,
तनाव लेना सभी
डिप्रेशन के लक्षण
है, व्यक्ति
डिप्रेशनके कारण अपने
काम पर सही
तरह से फोकस
नहीं कर पाता,
कोई व्यक्ति डिप्रेशनसे
ग्रसित रहता है
तो उसे डिमेंशिया
होने की आशंका
अधिक बढ़ जाती
है, डिप्रेशनसे
हृदय और मस्तिष्क
को भी भारी
खतरा उत्पन्न हो
सकता है, डिप्रेशनऔर
मधुमेह से पीड़ित
लोगों में दिल
से जुड़ी बीमारियां,
अंधापन और मस्तिष्क
से जुड़ी बीमारियां
होने की आशंका
बनी रहती है,
डिप्रेशन
से हार्ट डिजीज
जैसे हार्ट अटैक
और स्ट्रोक का
खतरा बढ़ जाता
है, इम्यून
सिस्टम पर अतिरिक्त
असर पड़ता है,
मानसिक बीमारी से हृदय
संबंधी बीमारी के चलते
मौत का खतरा
75 साल की उम्र
तक दो गुना
अधिक होता है, डिप्रेशनसे
व्यक्ति किसी पर
जल्दी से भरोसा
नहीं कर पाता, वह
अधिक गुस्सेवाला और
चिड़चिड़ा हो जाता
है ।
डिप्रेशन
आम लक्षणों में
हैं जैसे आनन्द
वाली किसी भी
चीज में आनन्द
ना उठा पाना, हमेशा
थका थका सा
महसूस करना, किसी भी
काम का निर्णय
ना ले पाना, जिन्दगी
के लिए एक
उलझा हुआ नजरिया
होना, बिना
कारण वजन का
बढ़ना या कम
होना, खान
पान की आदतों
में बदलाव , आत्महत्या
के उपाय करना
और आत्महत्या के
बारे में सोचना
जिसका अर्थ है,
कि इससे व्यक्ति
के सामाजिक और
पारिवारिक रिश्ते प्रभावित होते
हैं, डिप्रेशन
दुख की तुलना
में कहीं आधिक
समय तक रहता
है। वो लोग
जो डिप्रेशन से
प्रभावित होते हैं
उनके काम नार्मल
लोगों की तुलना
में बहुत कम
होते हैं। डिप्रेशन
में रहने वाले
लोग दुखी और
निराश होते हैं,
लेकिन वह बस
दुखी ही नहीं
होते बल्कि बिना
किसी बड़े कारण
के जीवन से
हार जाते हैं, पुरूषों
की तुलना में
महिलाएं डिप्रेशन से अधिक
प्रभावित होती हैं।
अन्य
बीमारियों की तरह
डिप्रेशन भी एक
अनुवांशिक बीमारी है। डिप्रेशन
की एवरेज उम्र
20 वर्ष से उपर
होती हैं। डिप्रेशन
शारीरिक परेशानियों से भी
जुड़ा होता है
जैसे फिजिकल ट्रामा
या हार्मोन में
होने वाला बदलाव।
डिप्रेशन या डिप्रेशन
के मरीज को
अपना शारीरिक टेस्ट
भी करा लेना
चाहिए। डिप्रेशन का इलाज
सम्भव है। इस
बीमारी में व्यक्ति
का शारीरिक से
ज्यादा मानसिक रूप से
स्वस्थ होना जरूरी
होता है। ऐसी
स्थिति में ऐसा
मित्र बनायें जो
आपकी बातों को
समझ सके और
अकेले कम से
कम रहने की
कोशिश करें।
जीवन
में प्रसन्नता का
आंशिक अथवा पूर्ण
रूप से लोप
हो जाना, जीवन को
एक प्रकार से
भार समझकर घसीटना, किसी
भी कार्य में
मन न लगना, किसी
भी कार्य को
करते समय भरोसे की
कमी महसूस होना, लोगों
से मिलने-जुलने
में संकोच, भय
अथवा अनिच्छा का
बढ़ना, मन
में बार-बार
निराशावादी विचारों का आना, किसी
भी प्रकार का
भय मन पर
हावी होते जाना, अशुभ
घटने के विचारों
का बार-बार
उदय होना, सदा थका-थका सा
अथवा कमजोरी अनुभव
करना, जीवन
बहुत ही नीरस
लगना व जीवन
समाप्त करने के
विचार आना।
डिप्रेशन
- बचाव एवं चिकित्सा
तनाव
और डिप्रेशन के
इलाज के तौर
पर वर्षों से
प्राकृतिक तरीकों से दी
जा रही चिकित्सा
पर ही भरोसा
किया जा सकता
है। मरीज के
व्यवहार और जीवनशैली
से संबंधित कुछ
तनाव बिंदुओं पर
इलाज केंद्रित किया
जाता है। व्यवहार
में पूर्ण बदलाव
के लिए एवं
मरीज के तनाव
और डिप्रेशन कारक
बिंदुओं को चिन्हित
कर उसकी नकारात्मक
विचारधारा प्रक्रिया को रोकने
की दिशा में
काम किया जाता
है। इसी के
साथ मरीज में
एक सकारात्मक परिवर्तन
दिखाई देने लगता
है। मरीज को
डिप्रेशन मुक्त करने वाली
दवाओं के साथ
मूड एलिवेटर्स दी
जाती हैं।
डिप्रेशन
के लिए सिर्फ
दवा काफी नहीं
और मरीज अकेले
औषधियों से ठीक
नहीं होते। उन्हें
दवाओं के साथ
बिहेवियरल थैरेपी भी दी
जाती है। इसके
अलावा,योग और
मानसिक तनाव शैथिल्य
की क्रियाएं भी
कराई जाती हैं।
डिप्रेशनसे निपटने का सबसे
सरल और कारगर
तरीका यह है
कि एक गिलास
उबलते पानी में
गुलाब के फूल
की पत्तियाँ मिलाएं।
ठंडा करें और
शक्कर मिलाकर पी
जाएं। एक चुटकी
जायफल का पावडर
ताजे आंवले के
रस में मिलाकर
दिन में तीन
बार पी लें।
ग्रीन टी भी
डिप्रेशनदूर भगाने में मदद
करती है। दिन
कम से कम
तीन कप ग्रीन
टी पिएं। डिप्रेशनसे
छुटकारा पाने का
एक और उपाय
यह है कि
एक कप दूध
के साथ एक
सेबफल और शहद
का सेवन करें।
गुनगुने पानी के
टब में लगभग
आधे घंटे के
लिए शरीर को
ढीला छोड़ दें।
यदि ग्रामीण क्षेत्रों
में रहते हों
तो नदी अथवा
तालाब के पानी
में तैरें, इससे
डिप्रेशन कम होगा।
सामान्य चाय के
प्याले में एक-चैथाई चम्मच तुलसी
की पत्तियां मिलाएं
और दिन में
दो कप लें।
एक कप उबलते
पानी में दो
हरी इलायची के
दाने पीसकर मिला
दें। शक्कर मिलाकर
पी लें। सूखे
मेवे,पनीर,सेबफल
का सिरका एक
गिलास पानी के
साथ लें। कद्दू
के बीज, गाजर
का रस, सेबफल
का रस, 5-6 सूखी
खुबानी को राई
के दानों के
साथ मिलाकर पीस
लें और इसे
पी लें ।
डिप्रेशन
हेतु प्राकृतिक चिकित्सा
डिप्रेशन
को ठीक करने
के लिए रोगी
व्यक्ति को कुछ
दिनों तक फलों
तथा सब्जियों का
रस पीना चाहिए
तथा सप्ताह में
एक बार उपवास
रखना चाहिए। इसके
फलस्वरूप यह रोग
जल्दी ही ठीक
हो जाता है।
इस रोग से
पीड़ित रोगी को
तली-भुनी चीजें,
मिर्च-मसालेदार चीजें,
मैदा, चीनी तथा
दूषित भोजन का
सेवन नहीं करना
चाहिए। एक गिलास
दूध में सोयाबीन
या तिल को
डालकर प्रतिदिन सुबह
तथा शाम को
पीने से रोगी
व्यक्ति को बहुत
अधिक लाभ मिलता
है। रात के
समय में बादाम
को पानी में
भिगोने के लिए
रख दें। सुबह
के समय में
इन बादामों को
खा लें तथा
पानी को पी
लें। इस क्रिया
को प्रतिदिन करने
से यह रोग
कुछ ही दिनों
में ठीक हो
जाता है। डिप्रेशनरोग
को ठीक करने
के लिए रोगी
व्यक्ति को एनिमा
क्रिया करके अपने
पेट को साफ
करना चाहिए तथा
इसके बाद पेट
पर मिट्टी की
गीली पट्टी करनी
चाहिए। इसके बाद
रोगी को कटिस्नान,
मेहनस्नान तथा रीढ़स्नान
करना चाहिए। इसके
बाद शरीर पर
सूखा घर्षण करना
चाहिए। इसके बाद
गर्मपाद स्नान करना चाहिए
और शरीर पर
मालिश करनी चाहिए।
इस प्रकार से
प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार
करने से डिप्रेशन
रोग ठीक हो
जाता है।
डिप्रेशन
को ठीक करने
के लिए कई
प्रकार के योगासन
तथा यौगिक क्रियाए
हैं जिनको प्रतिदिन
करने से यह
रोग कुछ ही
दिनों में ठीक
हो जाता है
ये आसन इस
प्रकार हैं- भुजंगासन,
शलभाशन, हलासन, सर्वांगासन, पश्चिमोत्तानासन,
चक्रासन, ज्ञानमुद्रा, त्रिबंध, लोम विलोम,
कपालभाति तथा भस्त्रिका
प्राणायाम आदि। सुबह
के समय में
गहरी सांस लेने,
खुली हवा में
टहलने तथा नकारात्मक
विचारों को छोड़कर
सकरात्मक विचारों को अपनाने
से यह रोग
जल्दी ही ठीक
हो जाता है। डिप्रेशन
पीड़ित को मानसिक
चिकित्सा की बहुत
आवश्यकता होती है
इसलिए ऐसे रोगी
की न तो
आलोचना करनी चाहिए
और न ही
उनके साथ कोई
अभद्र व्यवहार करना
चाहिए क्योंकि ऐसा
करने से रोगी
की अवस्था और
भी खराब हो
सकती है।
हमारे
भारतीय मनीषी सकारात्मक सोच
रखने की शिक्षा
देते रहे। इसकी
मनुष्य के शारीरिक,
मानसिक और आत्मिक
स्वास्थ के लिए
बहुत जरूरत होती
है। इन सकारात्मक
विचारों से शरीर
की ग्रंथियाँ अधिक
सक्रिय होकर काम
करने लगती हैं।
हारमोन्स का प्रवाह
शरीर को स्फूर्ति
प्रदान करता है
जिससे भरपूर नींद
आने लगती है
और मन व
मस्तिष्क को सुकून
मिलता है। फिर
से जीवन के
प्रति उत्साह होने
लगता है। तब
यही दुनिया जो
पहले बदसूरत दिखाई
देती थी, सुन्दर
लगने लगती है।
चिंता, तनाव अथवा
डिप्रेशन बढ़ जाने
की स्थिति में
किसी योग्य चिकित्सक
का परामर्श लेना
आवश्यक होता है।
अन्यथा व्यक्ति के मानसिक
सन्तुलन खो जाने
में अधिक समय
नहीं लगता। इस डिप्रेशनसे
मुक्त होने के
लिए सद् ग्रन्थों
का स्वाध्याय करना
चाहिए, सज्जनों की संगति
में रहना चाहिए
और ईश्वर का
ध्यान लगाना चाहिए।
यौगिक क्रियाएँ भी
लाभदायक होती हैं।
इन सबसे बढ़कर
मनुष्य को स्वयं
को सामाजिक कार्यों
में व्यस्त रखना
चाहिए। सबके साथ
मिलना-जुलना चाहिए
और हो सके
तो किसी हाबी
में समय बिताना
चाहिए। ईश्वर पर विश्वास
सदैव आत्मिक बल
देता है। डिप्रेशन
ग्रस्त व्यक्ति को यह
विश्वास करवाना चाहिए कि
ईश्वर उसका अपना
है। वह उसकी
रक्षा करेगा, दुख
दूर करेगा, सहायता
करेगा और कल्याण
भी करेगा। ईश्वर
पर दृढ़ विश्वास
रखने वाले को
कभी डिप्रेशनहो नहीं
सकता। यदि दुर्भाग्यवश
कभी ऐसी स्थिति
बन जाती है
तो वह शीघ्र
ही उस डिप्रेशनसे
बाहर निकल आता
है।
आध्यात्मिक
उपचार:- इसमें हम आए
हुए कष्टों दुःखों
कठिनाईयों को अपने
द्वारा कृत पाप
कर्मों का प्रतिफल
मानते हुए शान्त
मन से उनको
स्वीकार करते हैं।
जो व्यक्ति आध्यात्मिक
नहीं होता वह
आए हुए कष्टों
और दुःखों को
देखकर रोना, कलपना,
हाय-तौबा मचाना
प्रारम्भ कर देता
है। जिससे उसका
उपचार कठिन हो
जाता है और
दुःख बढ़ जाता
है।
अध्यात्म
का दूसरा सिद्धान्त
यह कहता है
कि जो परमात्मा
पूर्ण शक्तिशाली है।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का संचालन
व नियंत्रण करता
है उसका एक
अंश आत्मा के
रूप में मानवीय
सत्ता को संचालित
करता है यही
आत्मा अगर जाग्रत
हो जाए तो
बहुत कुछ सिद्ध
हो जाता है
अतः अपने आप
को कभी भी
कमजोर मत समझो
अपितु यह भावना
करो कि हमारी
आत्मा आए हुए
दुःखों संकटों का मुकाबला
करने में पूर्ण
सक्षम है। मन
की काली परत
आत्मा की शक्ति
को दबाए रखती
है काले बादल
सूर्य की धूप
को छिपा देते
हैं जैसे-जैसे
मन को पवित्र
करने का प्रयास
किया जाता है
वैसे आत्मा प्रखर
व तेजस्वी रूप
में प्रकट होता
है व व्यक्ति
को सही ज्ञान,
शक्ति एवं आनन्द
प्रदान करती है।
अतः आत्मशक्ति को
जगाने के लिए
सदा सन्मार्ग पर
चलने का प्रयास
करें। व अपना
दिल छोटा कर
हिम्मत न हारें।
आध्यात्मिक
उपचारों में अगला
क्रम जप, ध्यान
व स्तुति का
आता है। उदाहरण
के लिए हनुमान
चालीसा, घी का
दीपक जला कर
पढ़े इससे व्यक्ति
का मनोबल बढ़ता
है व दिमाग,
मस्तिष्क शान्त होता है
व गलत विचारों
से मुक्ति मिलती
है। दूसरे क्रम
में हम मिमस
हववक प्रणायाम करें।
अर्थात् श्वास खिचतें हुए
यह भावना करे
कि हमारा शरीर
स्वस्थ बन रहा
है। हमारे अन्दर
ताकत आ रही
है। हमें दिन-प्रतिदिन अच्छा महसूस
हो रहा है।
श्वास छोड़ते हुए
भावना करें कि
हमारे अन्दर की
कमजोरी निराशा बाहर निकल
रही है। इस
प्रकार श्वास पर ध्यान
व्यक्ति को बहुत
राहत देता है।
अन्य उच्चस्तरीय प्रयोगों
में दोनों बोहों
के बीच के
स्थान पर अर्थात्
आज्ञा चक्र पर
उगते हुए स्वर्णिम
सूर्य का ध्यान
कर सकते हैं।
इसके साथ-साथ
गायत्री अथवा महामृत्युंजय
मंत्र का जप
भी कर सकते
हैं। उगते हुए
स्वर्णिम सूर्य के ध्यान
से निराशाएॅं, पाप,कषाय, कल्मष सभी
कुछ धीरे-धीरे
करके हटने लग
जाते हैं व
जीवन स्वस्थ व
आशावादी बनता है।
प्रत्येक
व्यक्ति के भीतर
सतोगुण, रजोगुण व तमोगुण
विद्यमान होता है
जिसके द्वारा उसके
दैनिक क्रियाकलाप व
आचरण संचालित होता
है। जब व्यक्ति
के भीतर रजोगुण
व तमोगुण बढ़
जाता है व
सत्वगुण कम हो
जाता है तो
व्यक्ति के डिप्रेशन
में जाने की
सम्भावना बहुत बढ़
जाती है। कई
बार आध्यात्म के
पथ पर चलनें
वाले व्यक्ति भी
इसकी चपेट में
आ जाते है।
इसका कारण होता
है कि कई
बार व्यक्ति के
अवचेतन मन अथवा
चित्त में रजोगुण
व तमोगुण की
परतें पड़ी होती
है जो उसके
पुरानें जन्मों के संस्कार
स्वरूप बनती है
इस जन्म में
सात्विक सा दिखने
वाला व्यक्ति जब
कुण्डलिनी शक्ति के प्रभाव
में आता है
तो सर्वप्रथम यह
शक्ति उसके भीतर
की गन्दगी सतह
पर ला फेंकती
है। यह ठीक
वैसा ही है
जैसे डॉक्टर चीरा
लगाकर भीतर की
पस को बाहर
निकालता है। अन्यथा
यह पस उसके
लिए भविष्य में
खतरनाक सिद्ध हो सकती
है। कुण्डलिनी शक्ति
जाग्रत होकर व्यक्ति
के भोगों में
शीघ्रता लाती है
जिससे उसकी ईश्वर
प्राप्ति सहज हो
सकें। रजोगुण व
तमोगुण की प्रधानता
व्यक्ति के भीतर
एक प्रकार का
ऋणात्मक प्रभाव उत्पन्न करती
है और व्यक्ति
की उर्जा नकारात्मक
दिषा में बहनें
लगती है। इससें
व्यक्ति के भीतर
हर समय नकारात्मक
विचारों का कोहराम
मचने लगता है
और व्यक्ति बहुत
अशांत व खिन्न
रहने लगता है। यदि
व्यक्ति के भीतर
सतोगुण बढ़ा दिया
जाए तो रोगी
के नकारात्मक विचारों
का घेरा धीरें-धीरें करके कमजोर
पड़ता चला जाता
है। उसके भीतर
शांति व प्रसन्नता
झलकने लगती है।
सतोगुण की वृद्धि
करके ही कोई
व्यक्ति स्थायी शांति पा
सकता है, परन्तु
यह कार्य भी
सरल नहीं है।
तमोगुणी जड़ता, इन्द्रिय लोलुपता,
दूसरे को व्यर्थ
मे नुकसान पहुँचाने
को भाव से
जो घिरा होता
है वह सहजता
के इन विकारों
से मुक्त नहीं
हो पाता। इसी
प्रकार रजोगुणी महत्वकाक्षाँए, पद
प्रतिष्ठा, लोभ लालच
व्यक्ति को अपने
शिकंजे में उलझाए
रखती है। व्यक्ति
को धैर्यपूर्वक सतोगुण
का संचय करना
पड़ता है ।
अध्यात्मिक उपचारों के साथ
साथ हमें लौकिक
उपचारों व आयुर्वेदिक
चिकित्सा का भी
सहारा लेना चाहिए।
यदि समस्या अधिक
बढ़ हुई है
तो एलोपैथी उपचार
लेने में भी
संकोच नहीं करना
चाहिए।
लौकिक
उपचारों में सर्वप्रथम
अपने विचारों को
सृजनात्मक एवं सकारात्मक
दिशा देना है।
लौकिक उपचारों में
हमारे विचारों का
हमारे रोग पर
बहुत प्रभाव पड़ता
है। यदि हम
यह सोचना प्रारम्भ
कर दें कि
रोग कभी ठीक
नहीं हो पाएगा
तो वैसी ही
परिस्थितियाॅं बनती जाएॅंगी
और यदि हम
यह मान कर
चले कि यदि
आज खराब दिन
है तो अच्छे
दिन भी आएॅंगे
जो दुःख आया
है वह निश्चित
रूप से कट
जाएगा तो उसी
प्रकार की परिस्थितियाॅं
विनिर्मित होती चली
जाएगी अतः हम
भावना करे कि
हम दिन-प्रतिदिन
स्वस्थ सुदृढ़ शक्तिशाली बन
रहे हैं। व्यक्ति
द्वारा किया गया
प्रत्येक विचार दो प्रकार
का होता है
या तो सृजनात्मक
या ध्वंसात्मक। हमे
सदा प्रयत्नपूर्वक सृजनात्मक
विचारों का चयन
करना चाहिए। तभी
हमारा भविष्य खुशियों
से भर सकता
है। इसमें कोई
दो राय नहीं,
डिप्रेशन से घिरा
व्यक्ति इस दिशा
में आगे बढ़ने
में कई बार
अपने आप को
बहुत मासूम पाता
है क्योंकि वह
अपने विचारों को
नियंत्रित करने में
समर्थ नहीं होता।
अपितु उल्टे विचार,
उस पर हावी
रहते हैं। फिर
भी व्यक्ति को
हार नहीं माननी
चाहिए। अपनी ओर
से अच्छे विचारों
का घेरा बनाने
का प्रयास अवश्य
करना चाहिए।
Nice Article :)
ReplyDeleteRegards,
Sona.