सिंहस्थ महाकुंभ -तीसरा शाही स्नान ( 21 मई 2016)
धार्मिक नगरी उज्जैन में क्षिप्रा के पावन जल में साधु-संतों और श्रद्धालुओं के स्नान के साथ शुक्रवार (22 अप्रैल 2016) को दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागम सिंहस्थ का आगाज हो गया जो पूरे महीने भर चलेगा। बैसाख के महीने में शुक्ल पक्ष हो और बृहस्पति सिंह राशि पर, सूर्य मेष राशि पर और चंद्रमा तुला राशि पर हो, साथ ही स्वाति नक्षत्र पूर्णिमा तिथि व्यतीपात योग और सोमवार का दिन हो तो क्षिप्रा में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। बारह वर्ष बाद शुक्रवार को ग्रह नक्षत्रों का वह कल्याणकारी योग बना और इसके साथ ही सिंहस्थ का आगाज हुआ। इस दिन सिंह राशि में बृहस्पति के स्थित होने के कारण उज्जैन के कुंभ को सिंहस्थ कहा गया है। इस बार सिंहस्थ में धर्म और मानवता के कल्याण के लिए संतों के प्रवचन और मार्गदर्शन के अलावा देशकाल और परिस्थितियों को लेकर एक वैचारिक कुंभ का आयोजन किया गया है । दिनांक
12, 13 और 14 मई को तीन दिन चलेगा। वैचारिक कुंभ में खेती से जुड़े विषयों जैसे जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए कृषि कुंभ, महिला सशक्तिकरण से जुड़े विषय जैसे बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ आंदोलन् को लेकर शक्ति कुंभ, स्वच्छता और नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने पर चिंतन के लिए पर्यावरण कुंभ और मानव कल्याण व धार्मिकता जैसे विषयों पर मंथन होगा। इसी श्रंखला में विभिन्न अखाड़ों के प्रमुखों ने भी महाकुंभ के जरिए मानवीय जीवन मूल्यों का संदेश देने का मन बनाया है। निवर्तमान शंकराचार्य स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि की पहल अनुपम है।
वे उन मातृशक्तियों को स्वर्ण आभूषण अर्पित करेंगे, स्वर्ण जिनके बूते की बात नहीं है। जूनापीठाधीश्वर आचार्य अवधेशानंद गिरि ने प्रकृति के संरक्षण की दीक्षा देने का मन बनाया है। वे डेढ़ लाख पौधे रोपेंगे। किन्नरों को सिंहस्थ के इतिहास में पहली बार पेशवाई निकालने का हक मिला है। हालांकि गुरुवार को किन्नर अखाड़े की पेशवाई सादगी से निकली लेकिन किन्नर संतों के दर्शन के लिए ऐसा जनसैलाब उमड़ा कि खुद किन्नर संत और प्रशासन हतप्रभ रह गया । किन्नरों ने अपनी पेशवाई को देवत्व यात्रा का नाम दिया है। इसमें देशप्रेम और पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी था। बेशक किन्नर अखाड़े को अभी तक सरकार और अखाड़े परिसर से मान्यता नहीं मिली है।
पूर्णिमा के दिन बहुत ही शुभ माना जाता है हिंदुओं कैलेंडर और सबसे श्रद्धालुओं का निरीक्षण तेजी से दिन भर में और इष्टदेव से प्रार्थना करते हैं भगवान विष्णु । केवल उपवास, प्रार्थना का एक पूरा दिन और नदी में डुबकी लगाने के बाद वे शाम में हल्का खाना ले कर। यह तेजी से या पूर्णिमा और नया चाँद दिनों पर प्रकाश भोजन लेने के रूप में यह हमारे सिस्टम में अम्लीय सामग्री को कम करने के लिए कहा जाता है के लिए आदर्श है, चयापचय दर को धीमा कर देती, धीरज बढ़ जाती है। यह शरीर और दिमाग के संतुलन पुनर्स्थापित करता है। भी प्रार्थना भावनाओं को जीतने में मदद करता है और गुस्से के विस्फोट को नियंत्रित करता है। वैशाख पूर्णिमा एक पूर्ण चंद्रमा का दिन है ।
शिव के अनेक रूप हैं। शिव की आराधना करने से आपकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। श्रावण मास में तो शिव की आरधना अति फलदायी होती है। भगवान शिव देशभर में अनेक स्थानों पर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं। भारत देश में 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंग है, जिनमें से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है। भगवान महाकालेश्वर के इस नगर में एक-दो नहीं बल्कि 33 करोड़ देवता छोटे-बड़े मंदिरों में विराजते हैं। भारत के हृदयस्थल मध्यप्रदेश के उज्जैन में पुण्य सलिला शिप्रा के तट के निकट भगवान शिव महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं। महाराजा विक्रमादित्य के न्याय की नगरी उज्जयिनी में भगवान महाकाल की असीम कृपा है। देशभर के बारह ज्योतिर्लिंगों में श्महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंगश् का अपना एक अलग महत्व है। कहा जाता है कि जो महाकाल का भक्त है उसका काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। महाकाल के बारे में तो यह भी कहा जाता है कि यह पृथ्वी का एक मात्र मान्य शिवलिंग है।
आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है। उज्जैन का सिंहस्थ मेला बहुत ही दुर्लभ संयोग लेकर आता है इसलिए इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। इस दिन यहाँ दस दुर्लभ योग होते हैं, जैसे रू वैशाख माह, मेष राशि पर सूर्य, सिंह पर बृहस्पति, स्वाति नक्षत्र, शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा आदि।
उज्जैन का इतिहास - उज्जैन की प्रसिद्धि सदियों से एक पवित्र व धार्मिक नगर के रूप में रही है। लंबे समय तक यहाँ न्याय के राजा महाराजा विक्रमादित्य का शासन रहा। महाकवि कालिदास, बाणभट्ट आदि की कर्मस्थली भी यही नगर रहा। श्रीकृष्ण की शिक्षा भी यहीं हुई थी। महाकालेश्वर मंदिर - महाकालेश्वर मंदिर एक विशाल परिसर में स्थित है, जहाँ कई देवी-देवताओं के छोटे-बड़े मंदिर हैं। मंदिर में प्रवेश करने के लिए मुख्य द्वार से गर्भगृह तक की दूरी तय करनी पड़ती है। इस मार्ग में कई सारे पक्के चढ़ाव उतरने पड़ते हैं परंतु चैड़ा मार्ग होने से यात्रियों को दर्शनार्थियों को अधिक परेशानियाँ नहीं आती है। गर्भगृह में प्रवेश करने के लिए पक्की सीढ़ियाँ बनी हैं। मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुंड है। वर्तमान में जो महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है वह तीन खंडों में विभाजित है। निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य के खंड में ओंकारेश्वर तथा ऊपरी खंड में श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है। गर्भगृह में विराजित भगवान महाकालेश्वर का विशाल दक्षिणमुखी शिवलिंग है, ज्योतिष में जिसका विशेष महत्व है।
इसी के साथ ही गर्भगृह में माता पार्वती, भगवान गणेश व कार्तिकेय की मोहक प्रतिमाएँ हैं। गर्भगृह में नंदी दीप स्थापित है, जो सदैव प्रज्ज्वलित होता रहता है। गर्भगृह के सामने विशाल कक्ष में नंदी की प्रतिमा विराजित है। इस कक्ष में बैठकर हजारों श्रद्धालु शिव आराधना का पुण्य लाभ लेते हैं। महाकालेश्वर मंदिर के मुख्य आकर्षणों में भगवान महाकाल की भस्म आरती, नागचंद्रेश्वर मंदिर, भगवान महाकाल की शाही सवारी आदि है। प्रतिदिन अलसुबह होने वाली भगवान की भस्म आरती के लिए कई महीनों पहले से ही बुकिंग होती है। इस आरती की खासियत यह है कि इसमें ताजा मुर्दे की भस्म से भगवान महाकाल का श्रृंगार किया जाता है लेकिन आजकल इसका स्थान गोबर के कंडे की भस्म का उपयोग किया जाता है परंतु आज भी यही कहा जाता है कि यदि आपने महाकाल की भस्म आरती नहीं देखी तो आपका महाकालेश्वर दर्शन अधूरा है। उज्जैन का सिंहस्थ मेला बहुत ही दुर्लभ संयोग लेकर आता है इसलिए इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। इस दिन यहाँ दस दुर्लभ योग होते हैं, जैसे रू वैशाख माह, मेष राशि पर सूर्य, सिंह पर बृहस्पति, स्वाति नक्षत्र, शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा आदि।
प्रति बारह वर्ष में पड़ने वाला कुंभ मेला यहाँ का सबसे बड़ा मेला है, जिसमें देश-विदेश से आए साधु-संतों व श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है। महाकालेश्वर मंदिर के ऊपरी तल पर स्थित प्राचीन व चमत्कारी नागचंद्रेश्वर मंदिर वर्ष में एक बार केवल नागपंचमी को ही श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोला जाता है। यहाँ हर वर्ष श्रावण मास में भगवान महाकाल की शाही सवारी निकाली जाती हैं। हर सोमवती अमावस्या पर उज्जैन में श्रद्धालु पुण्य सलिला शिप्रा स्नान के लिए पधारते हैं। फाल्गुनकृष्ण पक्ष की पंचमी से लेकर महाशिवरात्रि तक तथा नवरात्रि महोत्सव पर यहाँ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के विशेष दर्शन, पूजन व रूद्राभिषेक होता है।
सिंहस्थ मेला
- सिंहस्थ
मेले के बारे में यह कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन के पश्चात देवता अमृत कलश को दानवों से बचाने के लिए वहाँ से पलायन कर रहे थे, तब उनके हाथों में पकड़े अमृत कलश से अमृत की बूँद धरती पर जहाँ-जहाँ भी गिरी थी, वो स्थान पवित्र तीर्थ बन गए। उन्हीं स्थानों में से एक उज्जैन है। यहाँ प्रति बारह वर्ष में सिंहस्थ मेला आयोजित होता है। उज्जैन का सिंहस्थ मेला बहुत ही दुर्लभ संयोग लेकर आता है इसलिए इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। इस दिन यहाँ दस दुर्लभ योग होते हैं, जैसे रू वैशाख माह, मेष राशि पर सूर्य, सिंह पर बृहस्पति, स्वाति नक्षत्र, शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा आदि।
भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन व उसके आसपास के गाँवों में कई प्रसिद्ध मंदिर व आश्रम है, जिनमें चिंतामण गणेश मंदिर, कालभैरव, गोपाल मंदिर, हरसिद्धि मंदिर, त्रिवेणी संगम, सिद्धवट, मंगलनाथ, इस्कॉन मंदिर आदि प्रमुख है। इन स्थानों पर पहुँचने के लिए महाकालेश्वर मंदिर से बस व टैक्सी सुविधा उपलब्ध है। मध्य प्रदेश में उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ एक घटना है जो भक्त हिंदुओं बारह साल के लिए इंतजार है। महीने के लंबे मण्डली भारत भर में और विदेशों से लोगों के लाखों लोगों को एक साथ लाता है। आस्था और मन की शांति के लिए खोज से प्रेरित है, वे इस पवित्र शहर पर एकाग्र एक अनूठा स्नान त्योहार का एक हिस्सा बनने के लिए।
इस सिंहस्थ की एक खास विशेषता यह है कि पहली बार के लिए वहाँ तीन शाही (शाही स्नान) मेगा मेले के दौरान किया जाएगा। वहाँ सिंहस्थ की उत्पत्ति के बारे में कहानियाँ हैं। सबसे लोकप्रिय एक समुद्र मंथन से संबंधित है या समुद्र के मंथन। कहानी जाता है कि देवताओं और राक्षसों सागर मंथन किया और एक अमृत कुंड, एक कलश युक्त अमृत पाया। यह सुनिश्चित करें कि कलश राक्षसों के हाथों में गिर नहीं था, देवताओं यह बृहस्पति, चंद्रमा भगवान, भगवान सूर्य और शनि को सौंप दिया। जब जयंत, इंद्र के पुत्र, दूर भाग गया उसके हाथ में कलश धारण, राक्षसों उसे भगा दिया। एक भयंकर लड़ाई शुरू हो गयी है और इसे बारह दिनों तक चली। देवताओं के जीवन में एक दिन मनुष्यों के एक वर्ष के बराबर होती है, मिथक कहते हैं। उस रास्ते में लड़ाई बारह साल तक चली। हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन - संघर्ष कलश के अधिकारी करने के लिए, अमृत की कुछ बूंदे भारत में चार अंक पर गिर गया। गंगा, यमुना, गोदावरी और शिप्रा - पौराणिक कथाओं कि इन बूंदों चार पवित्र नदियों में विकसित यह है। कुंभ मेलों इन चार स्थानों पर ग्रहों के विशिष्ट विन्यास के अनुसार जन्म लिया है।
उज्जैन कर्क रेखा पर स्थित है। इसलिए, उज्जैन के मध्याह्न रेखा भारत के प्रधानमंत्री मध्याह्न बन गया है। विक्रम संवत्सर इस प्राचीन शहर में हुआ था। नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन के अनुसार, ष्भारतीय समय लेखांकन में उज्जैन के प्रभुत्व की स्थिरता के बारे में बहुत हड़ताली कुछ है। शहर गुप्त काल में खगोल विज्ञान के एक महत्वपूर्ण केंद्र था।
सिंहस्थ कुम्भ
मध्य प्रदेश में इंदौर से 55 किमी दूर शिप्रा नदी के तट पर ‘उज्जैन’ (विजय की नगरी) स्थित है. यह भारत के पवित्रतम शहरों तथा मोक्ष प्राप्त करने के लिए पौराणिक मान्यता प्राप्त सात पवित्र या सप्त पुरियों (मोक्ष की नगरी) में से एक माना जाता है. मोक्ष दायिनी अन्य पुरियां (नगर) हैं अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी (वाराणसी), कांचीपुरम, और द्वारका. पौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव ने उज्जैन में ही दानव त्रिपुर का वध किया था. 22 अप्रैल से 21 मई 2016 के बीच उज्जैन के प्राचीन और ऐतिहासिक शहर में कुम्भ आयोजन शुरू होंगे.सिंहस्थ कुम्भ उज्जैन का महान स्नान पर्व है। यह पर्व बारह वर्षों के अंतराल से मनाया जाता है। जब बृहस्पति सिंह राशि में होता है, उस समय सिंहस्थ कुम्भ का पर्व मनाया जाता है।
पवित्र क्षिप्रा नदी में पुण्य स्नान का महात्यम चैत्र मास की पूर्णिमा से प्रारंभ हो जाता हैं और वैशाख मास की पूर्णिमा के अंतिम स्नान तक भिन्न-भिन्न तिथियों में सम्पन्न होता है। उज्जैन के प्रसिद्ध कुम्भ महापर्व के लिए पारम्परिक रूप से दस योग महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।
सिंहस्थ महाकुम्भ के आयोजन की प्राचीन परम्परा है। इसके आयोजन के विषय में अनेक कथाएँ प्रचलित है। समुद्र मंथन में प्राप्त अमृत की बूंदें छलकते समय जिन राशियों में सूर्य, चन्द्र, गुरु की स्थिति के विशिष्ट योग होते हैं, वहीं कुंभ पर्व का इन राशियों में गृहों के संयोग पर ही आयोजन किया जाता है। अमृत कलश की रक्षा में सूर्य, गुरु और चन्द्रमा के विशेष प्रयत्न रहे थे। इसी कारण इन ग्रहों का विशेष महत्त्व रहता है और इन्हीं गृहों की उन विशिष्ट स्थितियों में कुंभ का पर्व मनाने की परम्परा चली आ रही है।
महान सांस्कृतिक परम्पराओं के साथ-साथ उज्जैन की गणना पवित्र सप्तपुरियों में की जाती है। महाकालेश्वर मंदिर और पावन क्षिप्रा ने युगों-युगों से असंख्य लोगों को उज्जैन यात्रा के लिए आकर्षित किया। सिंहस्थ महापर्व पर लाखों की संख्या में तीर्थ यात्री और भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों के साधु-संत पूरे भारत का एक संक्षिप्त रूप उज्जैन में स्थापित कर देते हैं, जिसे देख कर सहज ही यह जाना जा सकता है कि यह महान राष्ट्र किन अदृश्य प्रेरणाओं की शक्ति से एक सूत्र में बंधा हुआ है।
सिंहस्थ कुंभ महापर्व धार्मिक व आध्यात्मिक चेतना का महापर्व है। धार्मिक जागृति द्वारा मानवता, त्याग, सेवा, उपकार, प्रेम, सदाचरण, अनुशासन, अहिंसा, सत्संग, भक्ति-भाव अध्ययन-चिंतन परम शक्ति में विश्वास और सन्मार्ग आदि आदर्श गुणों को स्थापित करने वाला पर्व है। हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन की पावन सरिताओं के तट पर कुंभ महापर्व में भारतवासियों की आत्मा, आस्था, विश्वास और संस्कृति का शंखनाद करती है। उज्जैन और नासिक का कुंभ मनाये जाने के कारण ‘सिंहस्थ’ कहलाते है। बारह वर्ष बाद फिर आने वाले कुंभ के माध्यम से उज्जैन के क्षिप्रा तट पर एक लघु भारत उभरता है।
सिंहस्थ पर्व का सर्वाधिक आकर्षण विभिन्न मतावलंबी साधुओं का आगमन, निवास एवं विशिष्ट पर्वों पर बड़े उत्साह, श्रद्धा, प्रदर्शन एवं समूहबद्ध अपनी-अपनी अनियों सहित क्षिप्रा नदी का स्नान है। लाखों की संख्या में दर्शक एवं यात्रीगण इनका दर्शन करते हैं और इनके स्नान करने पर ही स्वयं स्नान करते हैं। इन साधु-संतों व उनके अखाड़ों की भी अपनी-अपनी विशिष्ट परंपराएँ व रीति-रिवाज हैं।
साधु समाज , उनकी परम्परा तथा विभिन्न अखाड़े- भारत अपनी धर्म प्रियता के लिए जाना जाता हैद्य हजारों सालों से भारतवासी धर्म में आस्था रखते आये हैद्य मनुष्य ने स्रष्टि के निर्माण एवं विनाश में किसी अद्रश्य शक्ति के आस्तित्व को इश्वर के रूप में स्वीकार कर उसके समक्ष अपना सर झुकाया तथा कल्याण के लिय ईश्वरीय शक्ति की पूजा अर्चना प्रारंभ की
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