सिंहस्थ
- 2016 - 5- द्वितीय शाही स्नान
अक्षय तृतीया - 9 मई 2016
अक्षय
तृतीया 9 मई
2016 सोमवार के दिन सिंहस्थ
में पांच हजार
एक सौ अठारह साल
बाद सिद्ध अमृत
योग का विशिष्ट
अवसर बन रहा
है। प्राचीन ग्रंथों
की मान्यता के
अनुसार सिंहस्थ के समय
अमृत कलश से
कुछ बूंदें तीर्थनगरी
अवंतिका के शिप्रा
नदी में गिरी
थी। सिंहस्थ के
समय शिप्रा जल
के अमृत तुल्य
हो जाने की
मान्यता है। तीन
दिन पहले 6 मई
का स्नान वैशाख
कृष्ण अमावस्या शुक्रवार
के दिन अश्विनी
नक्षत्र में मेष
राशि का चंद्रमा
उदय काल में
अमृतसिद्धि तथा दिन
में सर्वार्थसिद्धि योग
बना रहा है।
अक्षय तृतीया पर्व
वैशाख मास के
शुक्ल पक्ष की
तृतीया तिथि के
दिन मनाया जाता
है.
इस दिन
स्नान, दान, जप,
होम आदि अपने
सामर्थ्य के अनुसार
जितना भी किया
जाएं, अक्षय रुप
में प्राप्त होता
है । अमावस्या
के दिन इस
तरह के योग
का बनना सिद्ध
अमृत योग कहलाता
है। वैसे तो
अक्षय तृतीया पर्व
को कई नामों
से जाना जाता
है. इसे अखतीज
और वैशाख तीज
भी कहा जाता
है । ग्रीष्म
ऋतु का आगमन,
खेतों में फसलों
का पकना और
उस खुशि को
मनाते खेतीहर व
ग्रामीण लोग विभिन्न
व्रत, पर्वों के
साथ इस तिथि
का पदार्पण होता
है.
धर्म की
रक्षा हेतु भगवान
श्री विष्णु के
तीन शुभ रुपों
का वतरण भी
इसी अक्षय तृतीया
के दिन ही
हुए माने जाते
हैं । नई
शुरुआत करने के
लिए अक्षय तृतीया
का दिन बेहद
शुभ माना जाता
है. अक्षय
तृतीया में सोना
खरीदना बहुत शुभ
माना गया है.
इस दिन स्वर्णादि
आभूषणों की खरीद-फरोख्त को भाग्य
की शुभता से
जोडा जाता है
।
अक्षय
तृतीया का पौराणिक
महत्व - महाभारत के दौरान
पांडवों के भगवान
श्रीकृष्ण से अक्षय
पात्र लेने का
उल्लेख आता है.
इस दिन सुदामा
और कुलेचा भगवान
श्री कृष्ण के
पास मुट्ठी - भर
भुने चावल प्राप्त
करते हैं.
इस
तिथि में भगवान
के नर-नारायण,
परशुराम, हयग्रीव रुप में
अवतरित हुए थे.
इसलिये इस दिन
इन अवतारों की
जयन्तियां मानकर इस दिन
को उत्सव रुप
में मनाया जाता
है. एक पौराणिक
मान्यता के अनुसार
त्रेता युग की
शुरुआत भी इसी
दिन से हुई
थी. इसी कारण
से यह तिथि
युग तिथि भी
कहलाती है ।
अक्षय तृतीया तिथि
के दिन अगर
दोपहर तक दूज
रहे, तब भी
अक्षय तृतीया इसी
दिन मनाई जाती
है. इस दिन
सोमवार व रोहिणी
नक्षत्र हो तो
बहुत उत्तम है
।
अक्षय
तृतीया में दान
पुण्य का महत्व
- अक्षय तृतीया में पूजा,
जप-तप, दान
स्नानादि शुभ कार्यों
का विशेष महत्व
तथा फल रहता
है. पवित्र नदियों
और तीर्थों में
स्नान करने का
विशेष फल प्राप्त
होता है. यज्ञ,
होम, देव-पितृ
तर्पण, जप, दान
आदि कर्म करने
से शुभ फल
की प्राप्ति होती
है । अक्षय
तृ्तिया के दिन
गर्मी की ऋतु
में खाने-पीने,
पहनने आदि के
काम आने वाली
और गर्मी को
शान्त करने वाली
सभी वस्तुओं का
दान करना शुभ
होता है.
इसके
अतिरिक्त इस दिन
जौ, गेहूं, चने,
दही, चावल, खिचडी,
ईश (गन्ना) का
रस, ठण्डाई व
दूध से बने
हुए पदार्थ, सोना,
कपडे, जल का
घडा आदि दें.
इस दिन पार्वती
जी का पूजन
भी करना शुभ
रहता है ।
अक्षत
तृतीया व्रत एवं
पूजा - अक्षय तृ्तीया का
यह उतम दिन
उपवास के लिए
भी उतम माना
गया है. इस
दिन को व्रत-उत्सव और त्यौहार
तीनों ही श्रेणी
में शामिल किया
जाता है. इसलिए
इस दिन जो
भी धर्म कार्य
किए वे उतने
ही उतम रहते
है । पूजा
में में जौ
या जौ का
सत्तू, चावल, ककडी और
चने की दाल
अर्पित करें तथा
इनसे भगवान विष्णु
की पूजा करें.
इसके साथ ही
विष्णु की कथा
एवं उनके विष्णु
सस्त्रनाम का पाठ
करें.
पूजा
समाप्त होने के
पश्चात भगवान को भोग
लाएं ओर प्रसाद
को सभी भक्त
जनों में बांटे
और स्वयं भी
ग्रहण करें. सुख
शांति तथा सौभाग्य
समृद्धि हेतु इस
दिन भगवान शिव
और माता पार्वती
जी का पूजन
भी किया जाता
है अक्षय
तृतीया अभिजीत मुहुर्त या
सर्वसिद्धि मुहूर्त भी कहा
जाता है. क्योंकि
इस दिन किसी
भी शुभ कार्य
करने हेतु पंचांग
देखने की आवश्यकता
नहीं पड़ती. अर्थात
इस दिन किसी
भी शुभ काम
को करने के
लिए आपको मुहूर्त
निकलवाने की आवश्यकता नहीं
होती. अक्षय अर्थात
कभी कम ना
होना वाला इसलिए
मान्यता अनुसार इस दिन
किए गए कार्यों
में शुभता प्राप्त
होती है. भविष्य
में उसके शुभ
परिणाम प्राप्त होते हैं
। नया वाहन
लेना या गृह
प्रेवेश करना, आभूषण खरीदना
इत्यादि जैसे कार्यों
के लिए तो
लोग इस तिथि
का विशेष उपयोग
करते हैं ।
अक्षय-तृतीया और जैन
धर्म - इस दिन
जैन धर्म के
प्रथम तीर्थंकर श्री
आदिनाथ भगवान ने एक
वर्ष की पूर्ण
तपस्या करने के
पश्चात इक्षु (शोरडी-गन्ने)
रस से पारायण
किया था। जैन
धर्म के प्रथम
तीर्थकर श्री आदिनाथ
भगवान ने सत्य
व अहिंसा का
प्रचार करने एवं
अपने कर्म बंधनों
को तोड़ने के
लिए संसार के
भौतिक एवं पारिवारिक
सुखों का त्याग
कर जैन वैराग्य
अंगीकार कर लिया।
सत्य और अहिंसा
के प्रचार करते-करते आदिनाथ
प्रभु हस्तिनापुर गजपुर
पधारे जहाँ इनके
पौत्र सोमयश का
शासन था। प्रभु
का आगमन सुनकर
सम्पूर्ण नगर दर्शनार्थ
उमड़ पड़ा सोमप्रभु
के पुत्र राजकुमार
श्रेयांस कुमार ने प्रभु
को देखकर उसने
आदिनाथ को पहचान
लिया और तत्काल
शुद्ध आहार के
रूप में प्रभु
को गन्ने का
रस दिया, जिससे
आदिनाथ ने व्रत
का पारायण किया।
जैन धर्मावलंबियों का
मानना है कि
गन्ने के रस
को इक्षुरस भी
कहते हैं इस
कारण यह दिन
इक्षु तृतीया एवं
अक्षय तृतीया के
नाम से विख्यात
हो गया।
अक्षय
का अर्थ है
जिसका कभी क्षय
न हो यानी
कभी कम ना
होने वाला। इसी
मान्यता के कारण
अक्षय तृतीया को
ऐसा मौका माना
जाता है, जिस
दिन किया जाने
वाला हर काम
शुभ होगा और
मन से मांगी
गई हर इच्छा
पूरी होगी। आगे
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जानें अक्षय तृतीया
के दिन किए
जाने वाले वे
धार्मिक अनुष्ठान जिनसे आपका
घर रहेगा धन-धान्य से संपन्न
। वैभव लक्ष्मी
और कुबेर यंत्र
की पूजा- इस
दिन भगवान विष्णु
और देवी लक्ष्मी
के साथ ही
भगवानों के कोषाध्यक्ष
कुबेर की पूजा
भी पूजा की
जाती है। ऐसी
मान्यता है कि
इस दिन इनकी
पूजा करने से
श्रद्धालु को जीवन
में सिद्धि, आहार
और आर्थिक के
साथ ही आध्यात्मिक
धन-संपत्ति की
भी प्राप्ति होती
है।
तिल-तर्पण- इंसान पर
अपने पूर्वजों का
ऋण भी भारी
मात्रा में होता
है और ईश्वर
यह अपेक्षा करते
हैं कि मानव
इसे चुकाने का
प्रयत्न करे। तिल
सात्विकता का प्रतीक
है जो नेगेटिव
एनर्जी को दूर
करता है और
जल पवित्र धार्मिक
भावना का प्रतीक
है। लिहाजा तिल-तर्पण के जरिए
व्यक्ति अपने पूर्वजों
के प्रति आभार
व्यक्त करता है।
सोने
की खरीददारी- ऐसी
मान्यता है कि
अक्षय तृतीया के
दिन से विश्व
में स्वर्ण युग
का आरम्भ हुआ
था और इस
दिन खरीदी गयी
वस्तु का कभी
क्षय नहीं होता।
इस मान्यता के
चलते अक्षय तृतीया
के दिन लोग
सोने के आभूषणों
की खरीददारी करते
हैं। कहत हैं
अक्षय तृतीया के
दिन की जाने
वाली खरीददारी शाश्वत
समृद्धि का प्रतीक
है और घर
में सुख व
समृद्धि लाती है।
दान
का महत्व- इस
दिन को दान
का महापर्व भी
माना जाता है।
कहते हैं इस
खास दिन पर
आप जितना दान-पुण्य करते हैं,
उससे कई गुना
ज्यादा आपको रिटर्न
मिलता है। इस
दिन खास तौर
पर तिल, जौ
और चावल दान
का विशेष महत्व
है। इस दिन
गरीबों को चावल,
नमक, घी, फल,
वस्त्र, मिष्ठान्न का दान
करना चाहिए। इसके
अलावा इस दिन
खरबूजा और मटकी
का दान करने
का भी विशेष
महत्व है।
पेड़
लगाएं- शास्त्रों में इस
दिन वृक्षारोपण का
भी अमोघ फल
बताया गया है।
कहते हैं अक्षय
तृतीया के दिन
लगाए गए वृक्ष
हरे-भरे होकर
पल्लवित पुष्पित होते हैं।
इस दिन वृक्षारोपण
करने वाला व्यक्ति
भी कामयाबियों के
शिखर को छूता
चला जाता है।
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