.दीपावली - प्राचीन सांस्कृति एवं राष्ट्रीय पर्व
दीपावली भारतवासियों का सबसे प्रसिद्ध त्योहार है। दीवाली उत्सव धनतेरस से शुरू होकर भैया दूज पर समाप्त होता है। भारत के सभी त्यौहारों में सबसे सुन्दर दीवाली प्रकाशोत्सव है। गलियां मिट्टी के दीपकों की पंक्तियों से प्रकाशित की जाती हैं तथा घरों को रंगों व मोमबत्तियों से सजाया जाता है। यह त्यौहार नए वस्त्रों, दर्शनीय आतिशबाजी और परिवार व मित्रों के साथ विभिन्न प्रकार की मिठाइयों के साथ मनाया जाता है। चूंकि यह प्रकाश व आतिशबाजी, खुशी व आनन्दोत्सव दैव शक्तियों की बुराई पर विजय की सूचक है।
दीवाली पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी सबसे महत्वपूर्ण देवी होती हैं। पाँच दिनों के दीवाली उत्सव में अमावस्या का दिन सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है और इसे लक्ष्मी पूजा, लक्ष्मी-गणेश पूजा और दीवाली पूजा के नाम से जाना जाता है। दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजा करने के लिए सबसे शुभ समय सूर्यास्त के बाद का होता है। सूर्यास्त के बाद के समय को प्रदोष कहा जाता है। प्रदोष के समय व्याप्त अमावस्या तिथि दीवाली पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण होती है। दिपावली धन, वैभव एवं उल्लास की कामना एवं पूर्णता का पर्व है । कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक चलने वाला दीपावली का त्यौहार सुख समृद्धि की वृद्धि, दरिद्रता का निवारण, स्वास्थ्य की प्राप्ति, व्यापार वृद्धि तथा लौकिक व परालौकिक सुखों की प्राप्ति के उद्देश्यों की पूर्णता प्राप्ति के लिए मनाया जाता है.
दीवाली के आने से चारों और रोशनी का संसार बस जाता है अंधेरों को दूर करते हुए आशा व उत्साह का संचार सभी के हृदय में उजागर होता है । लक्ष्मी आदिशक्ति का वह रूप हैं जो विश्व को भौतिक सुख समृद्धि प्रदान करती हैं. लक्ष्मी धन की अधिष्ठात्री देवी हैं इनक अप्रभव क्षेत्र व्यापक व विश्वव्यापी है. लक्ष्मी जी को सत्वरुपा, श्रुतिरूपा एवं आनंदस्वरुपा माना जाता है । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की मावस्या को ही लक्ष्मी जी का समुद्र मंथन के समय प्रादुर्भाव हुआ था. इसलिए दीपावली के दिन लक्ष्मी जी की पूजा का विधान है. इनके साथ गणेश जी की पूजा भी की जाती है क्योंकि धन के महत्व को समझा जाए और उसे सत्कर्मों में व्यय किया जाए । माँ लक्ष्मी के साथ-साथ दीपावली के दिन माँ सरस्वती की भी पूजा की जाती है. इसी के साथ इंद्र देव की पूजा अभी विधान होता है.
बहीखातों व तुला पूजन का दिवस यह पर्व व्यापारियों एवं गृहस्थों सभी के लिए महत्वपूर्ण होता है. व्यापारी वर्ग के लिए दीपावली का दिन बही खातों एवं तुला आदि के पूजन का दिवस होता है. इसके लिए व्यापारियों को अपने कार्यस्थल के मुख्य द्वार पर शुभ लाभ और स्वस्तिक का चिन्ह बनाना चाहिए । दीपावली के दिन सम्सत देवी देवताओं के प्रति पूर्ण श्रद्धा भाव दर्शाते हुए अंधकार को परास्त करके उजाले के आगमन की विजय के लिए दीपों को प्रज्जवलित किया जाता है. दीपावली के दिन लक्ष्मी जी पृथ्वी पर विचरण करती हैं, इसीलिए लक्ष्मी के स्वागत हेतु दीपदान द्वारा रोशनी का मार्गप्रश्स्त करते हैं. हर कोने में दीपक रखे जाते हैं, ताकि किसी भी जगह अंधेरा न हो. इस दीन दीपदान विशेष महत्व रखता है. इस दिन को महानिशीथ काल भी कहा जाता है अतरू इस अंधेरे को हटाते हुए प्रकाश का आगमन जीवन में स्थायित्व सुख एवं समृद्धि को लाता है दीपदान शुभ फलों में वृद्धि करने वाला होता है ।
लक्ष्मी तथा गणेश पूजन - दीपोत्सव पर पारदेश्वरी महालक्ष्मी जी व गणेश जी की पूजा आराधना का बहुत महत्व होता है. पूजन की तैयारी शाम से शुरू हो जाती है शुभ मुहूर्त के समय लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां स्थापित करके विधि-विधान से लक्ष्मी तथा गणेश भगवान की पूजा की जाती हैं । दीपावली पर्व की कथा - राजा श्री राम के वनवास समाप्त होने की खुशी में अयोध्यावासियों ने कार्तिक अमावस्या की रात्रि में घी के दिए जलाकर उत्सव मनाया था। तभी से हर वर्ष दीपावली का पर्व मनाया जाता है। दीपावली के दिन गणेश जी की पूजा का यूं तो कोई उल्लेख नहीं परंतु उनकी पूजा के बिना हर पूजा अधूरी मानी जाती है। इसलिए लक्ष्मी जी के साथ विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की भी पूजा की जाती है। दीपदान - दीपावली के दिन दीपदान का विशेष महत्त्व होता है।
नारदपुराण के अनुसार इस दिन मंदिर, घर, नदी, बगीचा, वृक्ष, गौशाला तथा बाजार में दीपदान देना शुभ माना जाता है। श्रद्धापूर्वक मां लक्ष्मी की पूजा करता है तो, उसके घर में कभी भी दरिद्रता का वास नहीं होता। इस दिन गायों के सींग आदि को रंगकर उन्हें घास और अन्न देकर प्रदक्षिणा की जाती है। दीपावली शब्द से ही मालूम होता है दीपों का त्यौहार. इसका शाब्दिक अर्थ है दीपों की पंक्ति. ‘दीप’ और ‘आवली’ की संधि से बने दीपावली में दीपों की चमक से अमावस्या की काली रात भी जगमगा उठती है । दिवाली
के दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था. इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाएं और इसके साथ इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धनवंतरि प्रकट हुए थे.
हिन्दुओं के साथ अन्य धर्मों के लिए भी यह दिन शुभ माना गया है जैसे जैन मतावलंबियों के अनुसार चैबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है तो सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था । दिपावली पर लक्ष्मी पूजन - दीपावली पर मां लक्ष्मी व गणेश के साथ सरस्वती मैया की भी पूजा की जाती है. दीपावली के दिन दीपकों की पूजा का विशेष महत्व हैं. इसके लिए दो थालों में दीपक रखें. छः चैमुखे दीपक दोनो थालों में रखें. छब्बीस छोटे दीपक भी दोनो थालों में सजायें.
व्यापारी लोग दुकान की गद्दी पर गणेश लक्ष्मी की प्रतिमा रखकर पूजा करें. इसके बाद घर आकर पूजन करें. पहले पुरूष फिर स्त्रियां पूजन करें. दिवार पर लक्ष्मी जी की फोटो लगा कर सामने एक चैकी रखकर उस पर मौली बांधें फिर जल, मौली, चावल, फल, गुढ़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से विधिवत पूजन करें. लक्ष्मी जी के सामने अपनी क्षमता के अनुसार पैसे रखें और व्यापारी लोग अपने बही खाते भी रख सकते है.। इसके बाद मां की आरती सहपरिवार गाएं. पूजा के बाद खील बताशों का प्रसाद सभी को बांटे ।
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