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देवउठनी ग्यारस - 2015



देवउठनी ग्यारस - 2015


आषाढ़ माह में पड़ने वाली भड़ली नवमीं के बाद देव यानी विष्णु भगवान सो जाते हैं, तब से ग्यारस तक कोई शुभ कार्य नहीं किए जाते। माना जाता है कि दिवाली के बाद पड़ने वाली एकादशी पर देव उठ जाते हैं। यही वजह है कि देवउठनी ग्यारस के बाद से सारे शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि प्रारंभ हो जाते हैं। तुलसी के विवाह को देवउठनी ग्यारस कहते हैं। एकादशी को यह पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है। क्षीरसागर में शयन कर रहे श्री हरि विष्णु को जगाकर उनसे मांगलिक कार्यों की शुरूआत कराने की प्रार्थना की जाएगी। मंदिरों के घरों में गन्नों के मंडप बनाकर श्रद्धालु भगवान लक्ष्मीनारायण का पूजन कर उन्हें बेर, चने की भाजी, आँवला सहित अन्य मौसमी फल सब्जियों के साथ पकवान का भोग अर्पित करेंगे। मंडप में शालिगराम की प्रतिमा तुलसी का पौधा रखकर उनका विवाह कराया जाएगा। 




इसके बाद मण्डप की परिक्रमा करते हुए भगवान से कुँवारों के विवाह कराने और विवाहितों के गौना कराने की प्रार्थना की जाएगी। दीप मालिकाओं से घरों को रोशन किया जाएगा और बच्चे पटाखे चलाकर खुशियाँ मनाएँगे। .पूजन विधि - देवउठनी ग्यारस के दिन ब्रह्म मुहूर्त में जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए।  इस दिन घर के दरवाजे को पानी से स्वच्छ करना चाहिए, फिर चूने गेरू से देवा बनाने चाहिए। उसके ऊपर गन्ने का मंडप सजाने के बाद देवताओं की स्थापना करना चाहिए। - भगवान विष्णु का पूजन करते समय गुड़, रूई, रोली, अक्षत, चावल, पुष्प रखना चाहिए।  पूजन में दीप जलाकर देव उठने का उत्सव मनाते हुए उठो देव बैठो देव का गीत गाना चाहिए।  



देवउठनी एकादशी - पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु जलंधर के बीच युद्ध होता है। जलंधर की पत्नी तुलसी पतिव्रता रहती हैं। इसके कारण विष्णु जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे। जलंधर को पराजित करने के लिए भगवान युक्ति के तहत जालंधर का रूप धारण कर तुलसी का सतीत्व भंग करने पहुँच गए। तुलसी का सतीत्व भंग होते ही भगवान विष्णु जलंधर को युद्ध में पराजित कर देते हैं। युद्ध में जलंधर मारा जाता है। 



भगवान विष्णु तुलसी को वरदान देते हैं कि वे उनके साथ पूजी जाएँगी।  गंगा राधा को जड़त्व रूप हो जाने राधा को गंगा के जल रूप हो जाने का शाप देती हैं। राधा गंगा दोनों ने भगवान कृष्ण को पाषाण रूप हो जाने का शाप दे दिया। इसके कारण ही राधा तुलसी, गंगा नदी कृष्ण सालिगराम के रूप में प्रसिद्ध हुए। प्रबोधिनी एकादशी के दिन सालिगराम, तुलसी शंख का पूजन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। देव प्रबोधिनी एकादशी का महत्व शास्त्रों में उल्लेखित है। गोधूलि बेला में तुलसी विवाह करने का पुण्य लिया जाता है। एकादशी व्रत और कथा श्रवण से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। 


 
ग्यारस के दिन ही तुलसी विवाह भी होता है। घरों में चावल के आटे से चैक बनाया जाता है। गन्ने के मंडप के बीच विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। पटाखे चलाए जाते हैं। देवउठनी ग्यारस को छोटी दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है।  एकादशी की तिथि का महत्व यूं भी बहुत है। अतः इस दिन को विशेष पूजा-अर्चना के साथ मनाया जाता है। इस दिन से विवाह के अतिरिक्त उपनयन, गृह प्रवेश आदि अनेक मंगल कार्यों को संपन्न करने की शुरुआत कर दी जाती है। इस दिन पूजन के साथ व्रत रखने को भी बड़ा महत्व दिया जाता है। महिलाएं इस दिन आंगन में गेरू तथा खड़ी से मांडणे सजाती हैं और तुलसी विवाह के साथ ही गीत एवं भजन आदि के साथ सभी उत्सव मनाते हैं। एकादशी पूजन के लिए गन्ना, बेर, सिंघाड़े और मूली जगह-जगह दिखाई देने लगी है।  


 

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