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Shani Jyanti - 2015

शनि जयंती - .2015  
             
 सोमवार 18 मई 2015 ज्येष्ठ अमावस्या के दिन शनि जयंती मनाई जाएगी इस दिन शनि देव की विशेष पूजा का विधान है शनि देव को प्रसन्न करने के लिए मंत्रों स्त्रौतो का गुणगान किया जाता है शनि हिन्दू ज्योतिष में नौ मुख्य ग्रहों में से एक है शनि, अन्य ग्रहों की तुलना में धीमें चलते हैं इसलिए इन्हें शनैश्चेर भी कहा जाता है शनि ग्रह वायु तत्व और पश्चिम दिशा के स्वामी है शनि जयंती पर उनकी पूजा आराधना और अनुष्ठान करने से शनि देव विशिष्ट फल प्रदान करते हैं  


शनि देव:
.पुराणों और शास्त्रानुसार कश्यप मुनि के वंशज भगवान सूर्यनारायण की पत्नी स्वर्णा (छाया) की कठोर तपस्या से ज्येष्ठ मास की अमावस्या को सौराष्ट के शिंगणापुर में शनि का जन्म हुआ। माता ने शंकर जी की कठोर तपस्या की तेज गर्मी धूप के कारण माता के गर्भ में स्थित शनि का वर्ण काला हो गया जन्म के समय से ही शनि देव श्याम वर्ण, लंबे शरीर, बड़ी आंखों वाले और बड़े केशों वाले थे यह न्याय के देवता हैं , योगी, तपस्या में लीन और हमेशा दूसरों की सहायता करने वाले हैं


शनि जंयती पूजा
शनि देव के निमत्त विधि विधान से पूजा पाठ तथा व्रत किया जाता है शनि जंयती के दिन किया गया दान पुण्य एवं पूजा पाठ शनि संबंधी सभी कष्टों को दूर कर देने में सहायक होता है शनि जयंती के दिन सुबह जल्दी स्नान आदि से निवृत होकर नवग्रहों को नमस्कार करते हुए शनिदेव की लोहे की मूर्ति स्थापित करें और उसे सरसों या तिल के तेल से स्नान कराएं तथा षोड्शोपचार पूजन करें पूजन के बाद दिन भर निराहार रहें मंत्र का जप करें पूजा सामग्री सहित, तिल, उड़द, काली मिर्च, मूंगफली का तेल, आचार, लौंग, तेजपत्ता, काले नमक का उपयोग करना चाहिए  



शनि देव को प्रसन्न करने के लिए हनुमान जी की पूजा करना चाहिए, हनुमान जी को चमेली के तेल में सिंदूर मिलाकर विग्रह का लेपन करना शुभ बताया गया है एवं साथ ही पीपल बरगद के वृक्ष का पूजन करना चाहिए दान में काले कपड़े, जामुन काली, उड़द, काले जूते, काला छाता, तिल, लोहा, तेल आदि वस्तुएं दाने दें जिन जातकों को साढ़े साती अढैया के प्रभाव के साथ ही शनि की महादशा अंतदर्शा या जन्म कुंडली में शनि का विषम प्रभाव हो उन्हें शनि देव का तिलाभिषेक अवश्य करना चाहिए
शनि के लिए उपचार - शनि शिंगनापुर में पूजा, कुचानूर शनि मंदिर में पूजा, शनि की अंगूठी पहने, शनि शंख के लिए प्रार्थना और सक्रिय शनि यंत्र की पूजा


शनि देव 10 नाम,:
कोणस्थ पिंगलो बभुः कृष्णो रौद्रोन्तको यमः
सौरिः शनैश्रचरो मंदः पिप्पलादेन संस्तुतः ।।
1.            कोणस्थ, 2. पिंगल, 3. बभु, 4. कृष्ण, 5. रौद्रान्तक, 6. यम 7. सौरि, 8. शनैश्रचर, 9. मंद, 10. पिप्पलाद  इन दस नामों से शनिदेव का स्मरण करने से सभी शनि दोष दूर हो जाते हैं



शनि मंत्र
शनि ग्रह की पीड़ से निवारण के लिये पाठ, पूजा, स्तोत्र, मंत्र और गायत्री आदि को काफी लाभकारी सिद्ध होंगे नित्य 108 पाठ करने से चमत्कारी लाभ प्राप्त होगा
ऊँ शं शनैश्चराय नमः
ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः
ऊँ निलांजन समाभांस रविपुत्रं यमसग्रजम्
छाया मार्तण्ड सम्भ्ूतं तं नमामी शनैश्चरम्
शनि के रत्न और उपरत्न
नीलम, नीलिमा, नीलमणि, जामुनिया, नीला, कटेला आदि शनि के रत्न और उपरत्न हैं अच्छा रत्न शनिवार को पुष्य नक्षत्र में धारण करना चाहिए इन रत्नों को धारण करते ही चालीस प्रतिशत तक फायदा मिल जाता है



शनि के अशुभ प्रभाव से बचने के अन्य उपाय
1.            लाल चंदन की माला को अभिमंत्रित कर शनिवार या शनि जयंती के दिन पहनने से शनि के अशुभ प्रभाव कम हो जाते हैं 2. शमी वृक्ष की जड़ को शनिवार के दिन श्रवण नक्षत्र में या शनि जयंती के दिन काले धागे में बांध कर गले या बाजू में धारण करें, शनि देव प्रसन्न होंगें 3. बिच्छू घास की जड़ को अभिमंत्रित करवा कर शनिवार के दिन श्रवण नक्षत्र में शनि जयंती के शुभ मुहुर्त में धारण करें सफलता मिलेगी 4. पीपल के पेड़ पर प्रतिदिन जल चढ़ाने और दीपक लगाने से शनि देव प्रसन्न हो जाते हैं



कुछ चुने हुए उपाय
1.            शनिवार के दिन नहाने के बाद एक कटोरे में सरसों या तिल का तेल भरकर उसे किसी सुपात्र को दान कर देवंे
2.            तेल में तली हुई रोटियां काले कुत्ते या कोवों को खिलायें
3.            काली उड़द, काली भैंस, लोहा या लोहा निर्मित वस्तु किसी सुपात्र को दान कर देवंे
4.            शनिवार का व्रत रखंे तथा शनिवार और मंगलवार के दिन सुन्दरकांड का अर्थ सहित पाठ करें
5.            लोहे के दो चैकोर टुकड़े बनवाएं इनमें से एक टुकड़े को शनिवार के दिन बहती हुई नही में बहा दें
6.            हनुमान जी के चरित्र का चिंतन करंे उनके सदुणों को जीवन में उतारने का प्रयास करंे




भारत में तीन चमत्कारिक शनि सिद्ध पीठ

शनि के चमत्कारिक सिद्ध पीठों में तीन पीठ ही मुख्य माने जाते हैं, इन सिद्ध पीठों में जाने और अपने किये गये पापों की क्षमा मागंने से जो भी पाप होते हैं उनके अन्दर कमी आकर जातक को फौरन लाभ मिलता है
1.            शनि शिंगणापुर
महाराष्ट्र का शिंगणापुर गांव का सिद्ध पीठ ( शनि मंदिर शिंग्लापुर) शिंगणापुर गांव में शनिदेव का अदभुत चमत्कार है इस गांव में आज तक किसी ने अपने घर में ताला नहीं लगाया, इसी बात से अन्दाज लगाया जा सकता है कि कितनी महानता इस सिद्ध पीठ में है इस शनि मंदिर में दर्शन पूजा, तेज स्नान, शनिदेव को करवाने से तुरन्त शनि पीड़ाओं में कमी जाती है, लेकिन वह ही यहां पहुंचता है जिसके ऊपर शनिदेव की कृपा हो गयी होती है
2.            शनिश्चरा मन्दिर
                मध्यप्रदेश ग्वालियर के पास महावीर हनुमानजी के द्वारा लंका से फेंका हुआ अलौकिक शनिदेव का पिण्ड है, शनिशचरी अमावश्या को यहां मेला लगता है और जातक शनि देव पर तेल चढ़ाकर उनसे गले मिलते हैं साथ ही पहने हुए कपड़े जूते आदि वहीं पर छोड़ कर समस्त दरिद्रता को त्याग कर और क्लेशों को छोड़ कर अपने घरों को चले जाते हैं इस पीठ की पूजा करने पर भी तुरन्त फल मिलता है
3.            सिद्ध शनि देव
उत्तर प्रदेश के कोशी के पास कौकिला वन में कोसी से 6 किलोमीटर दूर और नन्द गांव से सटा हुआ कोकिला वन है, इस वन में द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण जो सोलह कला सम्पूर्ण ईश्वर हैं ने शनि को कहावतों और पुराणों की कथाओं के अनुसार दर्शन दिया और आर्शीवाद भी दिया कि वह वन उनका है और जो इस वन की परिक्रमा करेगा और शनिदेव की पूजा अर्जना करेगा, वह मेरी कृपा की तरह से ही शनिदेव की कृपा प्राप्त कर सकेगा और जो भी जातक इस शनि पीठ के प्रति दर्शन, पूजा पाठ का अन्तर्मुखी होकर सदभावना से विश्वास करेगा, वह भी शनि के किसी भी उपद्रव से ग्रस्त नहीं होगा यहां पर शनिवार को मेला लगता है, जातक अपने अपने श्रद्धानुसार काई दण्डवत परिक्रमा करता है, या कोई पैदल परिक्रमा करता है , जो लोग शनि देव को राजा दसरथ कृत स्तोत्र का पाथ करते हुए या शनि के बीज मंत्र का जाप करते हुये परिक्रमा करते हैं उनको अच्छे फलों की शीघ्र प्राप्ति हो जाती है इसके बारे में पौराणिक मान्यता है कि यहां शनिदेव के रूप में भगवान कृष्ण विद्यमान रहते हैं



शनि सम्बंधी व्यापार और नौकरी
काले रंग की वस्तुयें, लोहा, ऊन, तेल, गैस, कोयला, कार्बन से बनी वस्तुयें, चमड़ा, मशीनों के पाटर्स, पेट्रोल, पत्थर, तिल और रंग का व्यापार शनि से चुड़े जातकों को फायदा देने वाला होता है, चपरासी की नौकरी, ड्राइवर, समज कल्याण की नौकरी, नगर पालिका वाल काम, जज, वकील, राजदूत आदि वाले पद शनि की नौकरी में आते हैं

शनि सम्बंधी दान पुष्य
पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्रों के समय में शनि पीड़ा के निमित्त स्वयं के वजन के बराबर के चने, काले कपड़े, जामुन के फल, काले उड़द, काली गाय, गोमेद, काले जूते, तिल, भैंस, लोहा, तेल, नीलम, कुलथी, काले, फूल, कस्तूरी, सोना आदि दान की वस्तुओं शनि के निमित्त दान की जाती है

घोड़े के नाल का महत्व

ज्योतिश में ग्रहों (विशेषकर शनि ) की पीड़ा से निवारण के लिए घोड़े की नाल की अंगूठी (मुद्रिका) बनवाकर मध्यमा अंगुली में शनिवार को पहनने की सलाह दी जाती है इसे विभिन्न रत्नों से भी अधिक प्रभावशाली और चमत्कारी माना जाता है घोड़े की शक्ति / अश्वशक्ति (हार्स पावर) घोड़ा बहुत तेज गति से दौड़ता है जब सड़क पर या पथरीली जमीन पर घोड़ा दौड़ रहा होता है तो उसके पैर के चिन्गारियां निकलती दिखाई दे जाती है क्योंकि पैर में ढ़ोकी हुई लोहे की नाल बहुत तीब्रता के साथ टकराती है तो तीब्र घर्षण के चिन्गारियां निकल उठती है सृष्टि का आरम्भ जिस प्रकार ब्रहाण्ड में विस्फोट एवं संलयन से माना जाता है परमाणु बम से जैसे विशालकाय विस्फोट होते हैं उसी प्रकार घोड़े के पैर में लगी लोहे की नाल और कठोर धरती के टकराव से लौह अणुओं में विस्फोटक घर्षण से जिस ऊर्जा की उत्पत्ति होती है वह ऊपर से चिन्गारियों के रूप में दिखती है किन्तु अन्दर से अदभुत ब्रम्हाण्डीय ऊर्जा को समेकित करती जाती है इस प्रकार टकराव से उस लोहे की नाल में अदभुत ऊर्जा के प्रकम्पन भरते जाते हैं जो विभिन्न प्रकार के खतरनाक आघातों  से रक्षा करने की सामाथ्र्य प्रदान करते हैं पुरानी निकली घोड़े की नाल से मुद्रिका ( अंगुठी ) तथा ताबीज या विभिन्न यंत्र आदि बनाकर उपयोग किए जाते हैं जो ग्रह दशा, भूत-प्रेत बाधा, अन्य दोषों का शमन करने की शक्ति प्रदान करते हैं कई लोग अपने घर के प्रवेश द्वार की चैखट पर घोड़े की नाल ठोंक देते हैं विभिन्न आपदाओं से रक्षा करती हुई मानी जाती है
घोड़े की नाल को आग में तपा देने से उसकी शक्ति खत्म हो गई मानी जाती है इसलिए घोड़े की नाल की अंगूठी को यों ही ठोक पीट कर बनाया जाता है घोड़े की नाल के पुरानें कांटें भी स्वयं में विशिष्ट ऊर्जा को समेटे हुए विशेष महत्व के माने जाते हैं जिनका ज्योतिष , तंत्र और मानसिक चिकित्सा में उपयोग होता है

शनि देव दण्डाधिकारी हैं तो भाग्यविधाता भी इसलिए शनि के दण्ड से बचना हो या भाग्य संवारना दोनों के लिए अच्छी सोच कामों का अपनाना बेहद जरूरी बताया गया है


शनि साढ़ेसाती के तीन चरण
शनि साढ़ेसाती में शनि तीन राशियों पर गोचर करते हैं तीन राशियों पर शनि के गोचर को साढ़ेसाती के तीन चरण के नाम से जाना जाता है अलग अलग राशियों के लिये शनि के ये तीन चरण अलग-अलग फल देते हैं शनि कि साढ़ेसाती के नाम से लोग भयभीत रहते हैं जिस व्यक्ति को यह मालूम हो जाये की उसकी शनि की साढ़ेसाती चल रही है, वह सुनकर ही व्यक्ति मानसिक दबाव में जाता है आने वाले समय में होने वाली घटनाओं को लेकर तरह-तरह के विचार उसके मन में आने लगते हैं शनि की साढ़ेसाती को लेकर जिस प्रकार के भ्रम देखे जाते हैं वास्तव में साढ़ेसाती का रूप वैसा बिलकुल नहीं है आईये शनि के चरणों को समझे:
साढ़ेसाती चरण-फल
साढ़ेसाती का प्रथम चरण - वृषभ, सिंह, धनु राशियों के लिए कष्टकारी होता है द्वितीय चरण (मध्य चरण) - मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, मकर राशियों के लिए अनुकूल नहीं माना जाता है अन्तिम चरण - मिथुन, कर्क, तुला, वृश्चिक, मीन राशि के लिये कष्टकारी माना जाता है
साढ़ेसाती का चरणों पर प्रभाव:
प्रथम चरण -
इस चरणावधि में व्यक्ति की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है आय की तुलना में व्यय अधिक होते है विचारें गये कार्य बिना बाधाओं के पूरे नहीं होते हैं धन विषयों के कारण अनेक योजनाओं आरम्भ नहीं हो पाती है अचानक से धन हानि होती है व्यक्ति को निद्रा में कमी का रोग हो सकता है स्वास्थय में कमी के योग भी बनते हैं विदेश भ्रमण के कार्यक्रम बनकर-बिगड़ते रहते है यह अवधि व्यक्ति की दादी के लिये विशेष कष्टकारी सिद्ध होती है मानसिक चिंताओं में वृद्धि होना सामान्य बात हो जाती है दांम्पत्य जीवन में बहुत से कठिनाई आती है मेहनत के अनुसार लाभ नहीं मिल पाते हैं
द्वितीय चरण -
व्यकि को शनि साढ़ेसाती की इस अवधि में पारिवारिक तथा व्यवसायिक जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आते हैं उसे संबन्धियों से भी कष्ट होते है व्यक्ति को अपने संबन्धियों से कष्ट प्राप्त होते हैं उसे लम्बी यात्राओं पर जाना पड़ सकता है घर-परिवार से दूर रहना पड़ सकता है व्यक्ति के रोगों में वृद्धि हो सकती है संपति से संम्बन्धित मामले परेशान कर सकते हैं मित्रों का सहयोग समय पर नहीं मिल पाता है कार्यों के बार-बार बाधित होने के कारण व्यक्ति के मन में निराशा के भाव आते हैं कार्यो को पूर्ण करने के लिये सामान्य से अधिक प्रयास करने पड़ते हैं आर्थिक परेशानियां भी बनी रह सकती है
तीसरा चरण -
 शनि साढ़ेसाती के तीसरे चरण में व्यक्ति के भौतिक सुखों में कमी होती है, उसके अधिकारों में कमी होती है आय की तुलना में व्यय अधिक होते हैं स्वास्थय संबन्धी परेशानियां आती है परिवार में शुभ कार्यों बाधित होकर पूरे होते हैवाद विवाद के योग बनते हैं संतान से विचारों में मतभेद उत्पन्न होते हैं संक्षेप में यह अवधि व्यक्ति के लिए कल्याण कारी नहीं रहती है जिस व्यक्ति की जन्म राशि पर शनि की साढ़ेसाती का तीसरा चरण चल रहा हो, उस व्यक्ति को वाद-विवादों से बचके रहना चाहिए

शनि के साढ़ेसाती के अशुभ प्रभाव का निवारण
1.            राजा दशरथ संस्थाय, पिंगलाय नमोस्तुते
2.            शनि मंदिर या चित्र पूजन कर प्रतिदिन इस मंत्र का पाठ करें:
नमस्ते कोण संस्थाय, पिंगलाय नमोस्तुते
नमस्ते वभुर रूपाय, कृष्णाय नमोस्तुते
नमस्ते रौद्रदेहाय, नमस्ते चांतकाय
नमस्ते मंदसंज्ञाय, शनेश्चर नमोस्तुते
प्रसांद कुरू में देवेश, दीनस्त प्रणतस्य ।।

3.            घर में पारद और स्फटिक शिवलिंग (अन्य नहीं) एक चैकी पर, शुचि बर्तन में स्थापित कर, विधानपूर्वक पूजा, अर्चना कर, रूद्राक्ष की माला से महामृत्युजय मंत्र का जप करना चाहिए
4.            सुंदरकाण्ड का पाठ एवं हनुमान उपासना, संकटमोचन का पाठ करें
5.            हनुमान चालीसा और शनेश्चर देव के मंत्रों का पाठ करें
ऊँ शं शनिश्चराय नमः ।।
6.            शनि जयंती पर शनि मंदिर जाकर, शनिदेव का अभिषेक का दर्शन करें
7.            ऊँ प्रा प्री प्रौ सः शनिश्चराय नमः के 23000 जप करें फिर 27 दिन तक शनि स्तोत्र के चार पाठ रोज करें
अन्य उपाय
1.            शनिवार को सांयकाल पीपल के पेड़ के नीचे मीठे  तेल का दीपक जलाएं
2.            घर के मुख्य द्वार पर, काले घोड़े की नाल, शनिवार के दिन लगावे
3.            काले तिल, ऊनी वस्त्र, कंबल, चमड़े के जूते, तिल का तेल, उड़द, लोहा, काली गाय, भैंस, कस्तूरी, स्वर्ण, तांबा आदि का दान करें
4.            शनिदेव के मंदिर जाकर, उन्हें काले वस्त्रों से सुसज्जित कराकर, यथाविध काले गुलाब जामुन का प्रसाद चढ़ावें
5.            घोड़े के नाल अथवा नाव की कील का छल्ला बनवाकर मध्यमा अंगुली में पहनें
6.            अपने घर के मंदिर मे ंएक डिबिया में सवा तीन रत्ती का नीलम सोमवार को रख दें और हाथ में 12 रूपये रख कर प्रार्थना करंे शनिदेव ये आपके नाम के हैं फिर शनिवार को इन रूपयों में से 10 रूपये के सप्तधन्य (सतनाज) खरीदकर शेष 2 रूपये सहित झाड़ियों या चीटीं के बिल पर बिखेर दें और शनिदेव से कष्ट निवारण की प्रार्थना करें
7.            कड़वे तेल में परछाई देखकर उसे अपने ऊपर सात बार उतारकर दान करें , पहना हुआ वस्त्र भी दान दे दें , पैसा या आभूषण आदि नहीं
8.            शनि विग्रह के चरणों का दर्शन करें, मुख के दर्शन से बचें
9.            शनिव्रत, श्रावण मास के शुक्ल पक्ष से शनिव्रत आरंभ करें, 33 व्रत करने चाहिए तत्पश्चात् उद्यापन करके, दान करें
                                भगवान शंकर जब गणों को कार्य सौंप रहे थे उस समय उन्होंने शनिदेव को अधिकार दिया कि वे दुष्ट व्यक्तियों को दण्ड देंगें शनि उस दिन से धरती पर ही लोगों को कर्म के अनुरूप दंड देते हैं साढ़े साती और ढ़ईया शनि के दण्ड के स्वरूप हैं
जब शनि की दशा शुरू होती है तब राजा को भी रंक बना देती है और पराक्रमी भी निर्बल होकर दया की भीख मांगने लगता है ऐसी ही महिमा है शनिदेव की शनि की दशा से पाण्डव और भगवान राम भी जब नहीं बच पाये तो हम सामान्य मनुष्य की क्या बिसात है शनि देव की इसी महिमा के कारण हम मनुष्य शनि से भय खाते हैं
                शनि की दशा काफी लम्बे समय तक रहती है क्योंकि सभी ग्रहों में इनकी गति धीमी है जब किसी व्यक्ति के जीवन में शनि की दशा शुरू होती है तो कम से कम उसे ढ़ाई वर्ष तक कठिन और  विषम परिस्थितियों से गुजरना होता है इस ढ़ाई वर्ष की अवधि को ढ़ईया कहा जाता है
शनि की दूसरी दशा है साढ़ेसाती जिसे बहुत ही कठिन और दुःखद माना जाता है इस दशा के दौरान व्यक्ति को साढ़े सात साल तक दुःखमय जीवन जीना पड़ता है
शनि की इन दो दशाओं में से हम ढ़ईया को अपना विषय वस्तु बनाकर आपसे बातों का सिलसिला आगे बढ़ाते हैं ज्योतिषि शास्त्र के नियमानुसार जब गोचर में शनि किसी राशि या आठवें भाव में होता है तब ढ़ैय्या लगता है कुछ ज्योतिष शास्त्री इसे लघु कल्याणी ढ़ईया के नाम से संबोधित करते हैं
आमतौर पर ढ़ईया को अशुभ फलदायी कहा गया है परन्तु यह सभी स्थिति में अशुभ नहीं होता कुछ स्थितियों में यह शुभ और मिला जुला फल भी देता है ज्योतिष शास्त्र कहता है अगर कुण्डली में चंद्र और शनि स्थिति में है तो ढ़ईया के दौरान आपके जीवन में कष्ट की अपेक्षा सुख का प्रतिशत अधिक होगा, कुल मिलाकर कहें तो ढ़ईया के कुप्रभाव से आप काफी हद तक बचें रहेंगें



दोष से मुक्ति दिलाती है शनेश्चरी अमावस्या
 शनि जंयती शनैश्चरी अमावस्या शनिवार को पड़ने वाली अमावस्या को शनेश्चरी अमावस्या कहा जाता है इस दिन मनुष्य विशेष अनुष्ठानों से
1.            .पितृदोष , 2. काल सर्प दोष से मुक्ति पा सकता है
शनि का पूजन और तेलाभिषेक कर शनि की साढ़ेसाती, ढै़य्या, महादशाजनित सकंट आपदाओं से मुक्ति पाई जा सकती है








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